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विधानसभा चुनावों में मुद्दों के हिसाब से कौन भारी पड़ रहा है - बीजेपी या कांग्रेस?

चुनाव में बीजेपी अपने एजेंडे पर कायम तो है, लेकिन इस बार हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को लोकल टच देने की कोशिश लगती है. कांग्रेस के कैंपेन में निशाने पर तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही रहे. कांग्रेस की गारंटी पर निश्चित तौर पर जोर देखा गया, लेकिन राहुल गांधी के भाषणों जातिगत जनगणना का मुद्दा छाया रहा है.

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चुनावी मुद्दे तो ज्यादातर पुराने ही रहे, नेताओं के भाषण में 'मूर्खों के सरदार' से लेकर 'पनौती' तक सुनने को जरूर मिले
चुनावी मुद्दे तो ज्यादातर पुराने ही रहे, नेताओं के भाषण में 'मूर्खों के सरदार' से लेकर 'पनौती' तक सुनने को जरूर मिले

देश के 5 राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों को लोक सभा चुनाव 2024 के लिए रिहर्सल के तौर पर देखा जा रहा है. तैयारी तो अपनी तरफ से कांग्रेस भी कर रही है, लेकिन एक्सपेरिमेंट के हिसाब से देखा जाये तो बीजेपी काफी आगे नजर आती है. 

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विपक्षी गठबंधन INDIA के अस्तित्व में आने के बाद ऐसा लगा था जैसे 2024 का ट्रेलर विधानसभा चुनावों में देखने को मिल सकता है. लेकिन मध्य प्रदेश में जिस तरह गठबंधन के सहयोगी दल आपसे में ही लड़ने लगे, INDIA के खड़े हो पाने पर ही प्रश्नचिह्न लगाया जाने लगा. 

ये सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि मध्य प्रदेश चुनाव में बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस के साथ साथ आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी और जेडीयू भी लड़ रहे थे, बल्कि अखिलेश यादव और कमलनाथ के बीच जो हुआ वो निराश करने वाला रहा. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने अखिलेश यादव के साथ कमलनाथ के व्यवहार पर आश्चर्य भी जताया था. 

और मध्य प्रदेश का असर ये हुआ है कि अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश को लेकर कांग्रेस को चेतावनी देने लगे हैं. ये तो साफ है कि यूपी में गठबंधन होने पर किसे कितनी सीटें मिलेंगे, आखिरी फैसला समाजवादी पार्टी का ही होगा. वैसे मध्य प्रदेश में विपक्षी खेमे के जो भी दल चुनाव लड़ रहे हैं, सभी का मकसद 2024 में कांग्रेस के साथ गठबंधन की सूरत में बेहतर मोलभाव करना ही है. 

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वैसे जो भी आपसी मतभेद देखने को मिले हों, लेकिन जातिगत जनगणना के मुद्दे पर पूरा विपक्ष एक साथ खड़ा नजर आया है, राहुल गांधी के जोश हाई दिखाई देने की बड़ी वजह भी यही है - चुनावी मुद्दों की बात होगी तो बीजेपी ने इस बार थोड़ा अलग रवैया अपनाया है. 

बीजेपी अपने परंपरागत हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर ही कायम रही, लेकिन इस बार राज्यों के हिसाब से मुद्दे बदलते रहे. जैसे, राजस्थान में कन्हैयालाल हत्याकांड तो तेलंगाना में उर्दू को दूसरी भाषा बनाये जाने को लेकर - लेकिन तीन बार दिवाली मनाने की बात तो घुमा फिरा कर बीजेपी नेता अमित शाह ने अपनी ज्यादातर रैलियों में की. 

चुनावी मुद्दे और कांग्रेस बनाम बीजेपी

विधानसभा चुनाव में देखा जाये तो बीजेपी अपने एजेंडे पर कायम तो है, लेकिन इस बार हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को लोकल टच देने की कोशिश लगती है. बीते कई चुनावों में ये देखा गया है कि बीजेपी राजनीतिक विरोधियों को हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और भ्रष्टाचार के पैमानों पर तौलते हुए तीखे हमले करती रही है. 

2019 के महाराष्ट्र और दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान ऐसी ही बातें देखी और समझी गयीं, और ऐसा ही हाल 2022 के पंजाब चुनाव में भी रहा. महाराष्ट्र में तो शिवसेना के साथ गठबंधन के कारण बीजेपी चुनाव जीत भी गयी थी, लेकिन दिल्ली और पंजाब तो हाथ नहीं ही आ सके.

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बीजेपी का चुनाव अभियान

राजस्थान में चुनावी माहौल बनने के काफी पहले से ही बीजेपी नेतृत्व ने उदयपुर के कन्हैयालाल हत्याकांड का मुद्दा उछालना शुरू कर दिया था. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हत्या की पहली बरसी पर जून, 2023 में ही राजस्थान की कांग्रेस सरकार को घेरना शुरू कर दिया था. 

बाद की चुनावी रैलियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कन्हैयालाल की हत्या के बहाने कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति के साथ साथ आतंकवाद और कानून-व्यवस्था के नाम पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कई बार कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की. 

मोदी-शाह के आरोपों को काउंटर करने के लिए अशोक गहलोत ने ज्यादातर तथ्यों का सहारा लिया, और बड़ी ही संजीदगी के साथ आरोपों का जवाब देते हुए अपना बचाव भी किया. शायद यही वजह रही कि कन्हैयालाल की हत्या का मुद्दा बीजेपी के तमाम प्रयासों के बावजूद जोर नहीं पकड़ सका. 

राजस्थान में प्रधानमंत्री मोदी के साथ साथ यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सतानत का मुद्दा भी जोर शोर से उठाया. सनातन के मुद्दे पर बहस तो डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन के बयान के बाद ही शुरू हो गयी थी, जिसे मल्लिकार्जुन खड़के के बेटे प्रियांक खड़गे ने भी हवा देने की कोशिश की थी - लेकिन ये मुद्दा बीजेपी के समर्थकों को एकजुट रखने में काफी मददगार साबित हुआ. 

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान में भ्रष्टाचार के नाम पर कांग्रेस को घेरते हुए बार बार लाल डायरी का जिक्र किया है. हाल की एक रैली में मोदी कह रहे थे, जादूगर की जादूगरी लाल डायरी के माध्यम से सामने आने लगी है. अशोक गहलोत पेशेवर जादूगर रहे हैं.

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी सनातन मुद्दे का विशेष प्रभाव देखने को मिला. सनातन का इतना असर रहा कि अपने इलाके के बीजेपी विधायकों से नाराज लोग भी सनातन के मुद्दे के कारण बीजेपी के साथ ही बने रहने की बात करते पाये गये. 

वैसे शिवराज सिंह चौहान की लाड़ली बहना योजना का काफी असर महसूस किया गया है. कांग्रेस की तरफ से कमलनाथ ने महिलाओं को पैसे और सस्ते सिलिंडर के नाम पर वोटों में हिस्सेदारी लेने की काफी कोशिश की है. 

तीन बार दिवाली मनाये जाने की बात भी अमित शाह ने मध्य प्रदेश से ही शुरू की थी. पहली बार तो जिस दिन परंपरागत रूप से दिवाली मनायी जाती है. दूसरी बार जब 3 दिसंबर को विधानसभा चुनाव के नतीजे आएंगे और उनका दावा है कि बीजेपी की जीत होगी. तीसरी बार जब अयोध्या में रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा होगी. 

दिवाली के बहाने अमित शाह ने राम मंदिर का मुद्दा ही उछाला है, जिसे मध्य प्रदेश से शुरू करके बाकी राज्यों में भी ले गये हैं. तेलंगाना तक वो बीजेपी के लिए तीन बार दिवाली के नाम पर वोट मांग आये हैं. 

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कांग्रेस का इलेक्शन कैंपेन

कांग्रेस के कैंपेन में निशाने पर तो पूरे वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही रहे. कांग्रेस की गारंटी पर निश्चित तौर पर प्रियंका गांधी वाड्रा और मल्लिकार्जुन खड़गे के भाषणों में जोर देखा गया, लेकिन राहुल गांधी के भाषणों हमेशा जातिगत जनगणना का मुद्दा छाया रहा है.

कांग्रेस ने अपनी गारंटी को चुनाव घोषणा पत्र में भी शामिल किया और खूब उछाला भी. बल्कि बीजेपी पर कांग्रेस का आइडिया चुराने का भी इल्जाम कांग्रेस नेताओं की तरफ से लगाया गया. साथ ही, कुछ इलाकों में क्षेत्रीय मुद्दों को भी कांग्रेस ने भुनाने का भरपूर प्रयास किया.

राहुल गांधी के साथ साथ मल्लिकार्जुन खड़गे, प्रियंका गांधी और दूसरे सीनियर कांग्रेस नेताओं ने जातिगत जनगणना का मुद्दा जोर शोर से उठाया - और हर बार ये याद दिलाने की कोशिश हुई कि राज्य हों या केंद्र जहां कहीं भी कांग्रेस सत्ता में आयी, जातिगत जनगणना जरूर करायी जाएगी. 

अलग अलग राज्यों में कांग्रेस की तरफ से बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस की तरफ से स्थानीय मुद्दे भी उछाले गये. मसलन, सीधी में हुए पेशाब कांड का मुद्दा कई जगह उठाया गया. साथ ही कांग्रेस नेताओं ने बेरोजगारी और महंगाई के साथ साथ बिजली, सड़क और पानी जैसे बुनियादी मुद्दों को लेकर बीजेपी को टारगेट करने की पूरी कोशिश की. 

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तेलंगाना की बात करें तो मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव और उनका पूरा परिवार बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस और गांधी परिवार के खिलाफ बेहद आक्रामक नजर आया. केसीआर के साथ साथ उनके बेटे केटीआर और बेटी कविता एक सुर में जवाहरलाल नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक सबका नाम लेकर कोस रहे थे - और तेलंगाना की सारी समस्याओं की कांग्रेस के शासन और जिम्मेदार गांधी परिवार को बता रहे थे. 

कांग्रेस तो वहां महिलाओं के लिए महालक्ष्मी योजना लेकर उतरी है, जबकि बीजेपी ने परिवारवाद और मुस्लिम तुष्टिकरण के साथ साथ मुस्लिम आरक्षण और उर्दू को राज्य की दूसरी भाषा के रूप में मान्यता देने को मुद्दा बना रही है. कांग्रेस और बीजेपी से दो-दो हाथ करते मुख्यमंत्री केसीआर अपनी रायतू बंधु स्कीम और तेलंगाना को समृद्ध बनाने के मिशन में जुटे रहने की बात कर वोट मांग रहे हैं.

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