आजकल कांग्रेस के हर नेता को लेकर खबरें फैल जाती हैं कि वो बीजेपी में शामिल होंगे .खबरें उठती रहती हैं लेकिन कांग्रेस के लिये तकलीफ ये है कि इस पर विश्वास भी हो जाता है. सिर्फ मीडिया का ही नहीं, खुद कांग्रेस के नेताओं को भी. इसका सबसे बड़ा कारण हाल ही में अशोक चव्हाण का कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होना भी है. वैसे अशोक चव्हाण कोई पहले नेता नहीं है जो कांग्रेस से बीजेपी में गए हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर मिलिंद देवड़ा तक कई नेताओं के नाम शामिल हैं लेकिन फिर भी अशोक चव्हाण इसमें अलग माने जायेंगे. क्योंकि उन्होंने उनके नाराज होने का कभी प्रमाण नहीं दिया और अब भी पार्टी में उनका ओहदा बड़ा ही माना जाता था.
कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य तो वो थे ही, लेकिन महाराष्ट्र में पार्टी के अंदर उनकी हैसियत भी अविवादित थी. तब भी वो असहज थे और यही पार्टी के लिये चिंता का सबब है. एकनाथ शिंदे सरकार के विश्वासमत प्रस्ताव के समय जिस तरह से वो नदाराद रहे तभी से उनके बारे में अटकलें तेज थीं. लेकिन इसके बावजूद वो कांग्रेस की सीमा को लांघकर चले जायेंगे, इस पर यकीन किसी को ना था .
दरअसल, अशोक चव्हाण के जाने से अब महाराष्ट्र में कांग्रेस से कौन जायेगा? जिसे जाना था, वो तो चले गये- इस सोच को धक्का लग गया है . 2019 तक कांग्रेस में आउटगोइंग देखने को मिली. जिसके बाद ऐसा माना जा रहा था कि तमाम मुश्किलों के बावजूद कांग्रेस अपनी साख बचाये रखेगी और बचे-कुचे कुनबे के साथ लड़ लेगी. लेकिन अशोक चव्हाण के बाद ये बात साफ है कि विधानसभा चुनाव तक कुछ और नेता हैं जो पार्टी छोड़ सकते हैं.
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'कुछ और कांग्रेस नेताओं को पाले में लाना चाहती है बीजेपी'
लेकिन ये सवाल लाजमी है कि जब महाराष्ट्र में बीजेपी में इतने लोग बाकी पार्टियों से आ चुके हैं. शिवसेना और एनसीपी का एक बहुत बड़ा धड़ा पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न के साथ बीजेपी के साथ है तब भी बीजेपी अशोक चव्हाण के बाद कुछ और कांग्रेस नेताओं को अपने पाले में लाना चाहती है.
'विदर्भ और मराठवाड़ा जैसे इलाकों में बीजेपी-कांग्रेस में लड़ाई'
बीजेपी ने 2014 के बाद कई कोशिशें कीं, ताकि महाराष्ट्र में वो अपने बलबूते सरकार बना सके या फिर उत्तर प्रदेश की तरह अपना मजबूत नोट बेस बना सके. लेकिन बीजेपी की गाड़ी 27 से 30 प्रतिशत वोटबैंक पर अटक जाती है. अब भी विदर्भ और मराठवाडा जैसे इलाकों में बीजेपी की असली लड़ाई कांग्रेस के साथ ही है. 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जब सभी प्रमुख पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ी थीं, तब भी सबसे ज्यादा सीटों पर लड़ाई कांग्रेस बनाम बीजेपी ही रही. ऐसे में अब भी कांग्रेस को तोड़ना बीजेपी के लिये अनिवार्य है.
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'क्या है बीजेपी का प्लान?'
दूसरा बीजेपी को दिख रहा है कि किसी भी लहर में हमारे खिलाफ पड़ने वाला वोट कांग्रेस की तरफ जा सकता है. मुंबई और आसपास के इलाकों में जहां शिवसेना (उद्धव गुट) ज्यादा सीटों पर चुनाव लडे़गी, वहां ये वोट उद्धव गुट की तरफ ट्रांसफर होगा. ऐसे में चुनावी समर में मुश्किलें हो सकती हैं. यही वजह है कि अगले कुछ दिनों में मुंबई और आसपास के इलाके में स्थानीय कांग्रेसी नेताओं को बीजेपी में खींचने की कोशिश हो सकती हैं.
'नेताओं के साथ छोड़ने से दायरे में सिमटी कांग्रेस?'
लेकिन बीजेपी की मुश्किल ये है कि पार्टी में अब जगह कम होती जा रही है. साथ ही अलायंस पार्टनर्स शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी को साथ में लेकर कांग्रेस से आये नेताओं को संभालना एक चुनौती भी है. अशोक चव्हाण तुरंत राज्यसभा भेजे गये. नारायण राणे को भी इसी तरह संभाला गया था, लेकिन यही बात बाकी कांग्रेस नेताओं के साथ अपने खुद के कैडर को समझाते हुए करना बीजेपी के लिये आसान नहीं है. दूसरी तरफ कांग्रेस कमजोर करनी है तो उनके नेताओं को तोड़ना जरूरी है. महाराष्ट्र में नेताओं के साथ छोड़ने से कांग्रेस का दायरा सिमटा है. नारायण राणे कांग्रेस से गये तो कोंकण में कांग्रेस लगभग खत्म हो गई. इसलिये बीजेपी जिस इलाके में या जिले में उन्हे अपनी पार्टी बढ़ानी है, वहां कांग्रेस के नेता को साथ लेने की कोशिश कर सकती है.
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महाराष्ट्र जैसे राज्य में सालों तक कांग्रेस ने राज किया और मंत्री बने, ना बने लेकिन सत्ता के साथ रहने की कांग्रेसी नेताओं को आदत रही है . कईयों की अपने-अपने इलाकों में शैक्षणिक संस्थाएं, सहकारी संस्थाए हैं ऐसे में सालों कांग्रेस में बिताने के बाद उम्र के इस पड़ाव पर सत्ता से बाहर विपक्ष की राजनीति कईयों को भाना मुश्किल है. साथ ही संस्थाओं को जिंदा रखना है तो सत्ता को साथ में रखना कईयो की मजबूरी भी है. बीजेपी इसे भली-भांति जानती भी है और इसिलिये बीजेपी उन कांग्रेसी नेताओ पर काम कर रही है जहा उन्हे जरुरुत है.
वहीं, दूसरी तरफ अब तक उद्धव ठाकरे और शरद पवार की पार्टी में हो रही बगावत को दूर से देखने वाली कांग्रेस को समझ में आया है कि अब उनकी बारी है. भले ही उद्धव और शरद पवार की तरह पार्टी नहीं जायेगी लेकिन एक-एक नेता जाने से महाराष्ट्र में पार्टी की कमर जरूर टूट सकती है. महाराष्ट्र में कांग्रस का वोट है, लेकिन अगर नेता नहीं रहेंगे तो वो बिखर सकता है. इसलिये कांग्रेस में भी कुनबा बचाने की कवायद जारी है.