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विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान, 5 राज्यों के समीकरण समझिये

देश के पांच राज्यों में 7 नवंबर से शुरू होकर 30 नवंबर तक कुल चार चरणों में मतदान होंगे. छत्तीसगढ़ में दो चरणों में, जबकि बाकी राज्यों में एक ही दिन वोट डाले जाएंगे. नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे. साल के ये आखिरी चुनाव सेमीफाइनल तो नहीं, लेकिन 2024 के आम चुनाव के लिए रिहर्सल जैसे जरूर हैं.

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देश के 5 राज्यों में 4 चरणों में मतदान होंगे और नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे
देश के 5 राज्यों में 4 चरणों में मतदान होंगे और नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे

देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है. ये इस साल के आखिरी चुनाव हैं. ये चुनाव सेमीफाइनल तो नहीं कहे जाएंगे, लेकिन 2024 के आम चुनाव के हिसाब से सभी राजनीतिक दलों के लिए रिहर्सल जैसे जरूर हैं.

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मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के मुताबिक, चुनाव का पहला चरण 7 नवंबर को शुरू होगा और आखिरी चरण के वोट 30 नवंबर को डाले जाएंगे - वोटिंग के साथ ही नतीजे 3 दिसंबर को आने की संभावना है.

पांचो राज्यों में कुल चार चरणों में वोटिंग होगी. सिर्फ छत्तीसगढ़ में दो चरणों में मतदान होंगे बाकी राज्यों में एक ही चरण में वोट डाले जाएंगे. शुरुआत मिजोरम से 7 नवंबर को होगी, जबकि आखिरी चरण में तेलंगाना विधानसभा के लिए 30 नवंबर को वोट डाले जाएंगे - सभी राज्यों में मतगणना 3 दिसंबर को होगी. 

चुनाव तारीखों की घोषणा तो अब हुई है, लेकिन राजनीतिक पार्टियां काफी पहले से ही चुनाव कैंपेन शुरू कर चुकी हैं. अब तक का हाल तो यही बता रहा है कि 3 राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई है, जबकि तेलंगाना और मिजोरम में क्षेत्रीय दलों का दबदबा है.

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बीजेपी तो सभी राज्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ रही है, जबकि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री हैं. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें हैं जहां वो अपने मुख्यमंत्रियों अशोक गहलोत और भूपेश बघेल के चेहरे पर चुनाव मैदान में उतर चुकी है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस कमलनाथ के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है. तेलंगाना में प्रदेश कांग्रेस प्रमुख रेवंत रेड्डी ही चेहरे के रूप में नजर आ रहे हैं - और राहुल गांधी, प्रियंका गांधी भी तेलंगाना में काफी जोर मार रहे हैं.

पहले चरण में मिजोरम में चुनाव 7 नवंबर को

मिजोरम में जोरामथंगा मुख्यमंत्री हैं और सत्ताधारी पार्टी मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) उनके ही चेहरे पर चुनाव मैदान में उतर रही है. 2008 के बाद 10 साल तक सत्ता से बाहर रही, MNF सत्ता में वापसी के लिए प्रयासरत है. 

40 सीटों वाली मिजोरम विधानसभा में कांग्रेस ने 2013 में एमएनएफ को 5 सीटों पर ही समेट दिया था, और 34 विधायकों के साथ सरकार बना ली थी. लेकिन 2018 में कांग्रेस खुद भी 5 सीटों पर ही सिमट कर रह गयी थी, और 26 विधायकों के साथ जोरामथंगा ने सरकार बना ली थी.

मिजोरम विधानसभा चुनाव में इस बार मुख्यमंत्री जोरामथंगा को कांग्रेस और बीजेपी से पहले जोरम पीपल्स अलायंस से भी जूझना है, जो 6 क्षेत्रीय दलों का गठबंधन है. बीजेपी को 2018 में एक ही सीट मिल पायी थी. कांग्रेस की तरफ से कई चेहरे हैं, लेकिन मिजोरम कांग्रेस अध्यक्ष लालसावता आगे नजर आते हैं. वैसे ही बीजेपी की तरफ से प्रमुख क्षेत्रीय चेहरा मिजोरम इकाई के अध्यक्ष वनलाल हमुआका हैं, लेकिन पार्टी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगी. सत्ताधारी MNF से मुकाबले के लिए कांग्रेस ने पीपल्स कांफ्रेंस और जोरम नेशनलिस्ट पार्टी के साथ मिलकर मिजोरम सेक्युलर अलायंस बनाया हुआ है.

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मिजोरम चुनाव में स्थानीय मुद्दों के साथ सीथ मणिपुर का प्रभाव भी देखने को मिल रहा है. अचानक शरणार्थियों की समस्या से जूझ रहे मुख्यमंत्री जोरामथंगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर केंद्र सरकार की मदद और व्यक्तिगत हस्तक्षेप की मांग की थी. 

महीना भर बाद तो सब कुछ साफ हो ही जाएगा, लेकिन अप्रैल, 2023 में हुए मारा स्वायत्त जिला परिषद (MADC) के चुनाव नतीजों से राजनीतिक हालात को समझें तो बीजेपी इस बार एमएनएफ को कड़ी टक्कर देती हुई लगती है, नतीजे तो यही कहानी कह रहे हैं. MADC चुनाव में सत्ताधारी एमएनएफ को सिर्फ 25 मिल पायी थीं, जबकि बीजेपी ने 99 में से 41 सीटों पर जीत हासिल कर ली थी. कांग्रेस को 8 जबकि ZPM को एक ही सीट मिल पायी थी. 

छत्तीसगढ़ में चुनाव 7 और 17 नवंबर को वोट डाले जाएंगे

छत्तीसगढ़ में लगातार 15 साल के शासन के बाद बीजेपी ने 2018 में कांग्रेस के हाथों सत्ता गंवा दी थी. मध्य प्रदेश में तो बीजेपी ने 15 महीने में ही हिसाब बराबर कर लिया था, लेकिन छत्तीसगढ़ के लिए पूरे पांच साल इंतजार करने पड़े हैं. इस बार 7 नवंबर और 17 नवंबर को होने जा रहे मतदान में कांग्रेस को शिकस्त देने के लिए बीजेपी पूरी ताकत झोंक चुकी है. छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सत्ता में वापसी कराने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोर्चा संभाले हुए हैं, साथ में बीजेपी के बाकी बड़े नेता तो जी जान से जुटे ही हैं. 

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मध्य प्रदेश के साथ ही बीजेपी ने छत्तीसगढ़ के लिए बीजेपी के 21 उम्मीदवारों की सूची जारी की थी, दूसरी लिस्ट को लेकर अभी सस्पेंस बना हुआ है. कहा जा रहा है कि उम्मीदवारों के नाम फाइनल हो चुके हैं, बस घोषणा होनी बाकी है. 

छत्तीसगढ़ की पहली सूची में बीजेपी ने एक सांसद को विधानसभा का टिकट दिया है. बीजेपी सांसद विजय बघेल इस बार पाटन विधानसभा से टिकट दे रखा है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पाटन सीट से ही विधायक हैं - और लड़ाई इस बार कका बनाम भतीजा होने जा रही है. 

पांच चुनावी राज्यों की बात करें तो कांग्रेस का ज्यादा जोर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ पर ही दिखाई पड़ रहा है. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ साथ पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी मोर्चे पर तैनात देखे जा रहे हैं. 

बीते पांच साल की बात करें तो छत्तीसगढ़ कांग्रेस की प्रयोगशाला रही है. मनरेगा 2.0 से लेकर छत्तीसगढ़ में सत्ता में वापसी की सूरत में जातीय जनगणना कराने के वादे तक, सिवा एक चीज के. चुनावी वादे न पूरा करने को लेकर तो छत्तीसगढ़ में कभी विवाद नहीं हुआ, लेकिन राहुल गांधी एक तोहमत से खुद को नहीं बचा सके. राहुल गांधी ने 2018 में टीएस सिंह देव को मुख्यमंत्री बनाने का जो वादा किया था वो अधूरा ही रहा. टीएस सिंह देव को डिप्टी सीएम बनाया जाना भी तो वादे के हिसाब से अधूरा ही माना जाएगा.

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जहां तक बीजेपी का सवाल है, बाकी राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ में भी मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर नेतृत्व बराबर परेशान है. डॉक्टर रमन सिंह ने आस भले न छोड़ी हो, लेकिन बीजेपी नेतृत्व तो उनको भी फुंके हुए कारतूस की तरह ही मान कर चल रहा है. 

मध्य प्रदेश के उम्मीदवारों की सूची से जो समझ में आया है, छत्तीसगढ़ को लेकर भी बीजेपी में मिलते जुलते प्रयोग की ही तैयारी लग रही है - मुश्किल ये है कि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल से मोदी सरकार के कामकाज के बहाने लड़ना अपनेआप में बड़ी चुनौती है.  

मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को होगी वोटिंग

मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस और बीजेपी के बीच आमने सामने का मुकाबला है. छत्तीसगढ़ की तरह मध्य प्रदेश को लेकर राहुल गांधी को कांग्रेस की सरकार बनने का भरोसा है, लेकिन मोर्चे पर राहुल गांधी से ज्यादा प्रियंका गांधी वाड्रा नजर आ रही हैं. 

कांग्रेस में राहुल ब्रिगेड के लिए मध्य प्रदेश में होने जा रहा ये पहला चुनाव है, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया सामने से हमला बोल रहे हैं, सिर्फ साथ छोड़ने की कौन कहे. शुरू में तो ज्योतिरादित्य सिंधिया थोड़ा बहुत परहेज भी करते थे, लेकिन अब तो वो खुल कर कांग्रेस और राहुल गांधी पर भी हमला बोल दे रहे हैं. 

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कहने को दिग्विजय सिंह साथ जरूर हैं, लेकिन कमलनाथ के लिए ये चुनाव ऐसा है जिसमें उनके काम में कोई भी दखल देने वाला नहीं है. पिछले चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव का कांग्रेस को फायदा जरूर हुआ था, लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान भी उसी कारण हुआ - और उसकी जिम्मेदारी से कमलनाथ कभी पल्ला नहीं झाड़ पाएंगे.

हाल फिलहाल मध्य प्रदेश कांग्रेस में कमलनाथ को चैलेंज करने वाला तो कोई भी नहीं नजर आता, ये सब फायदेमंद है या नुकसानदेह - ये भी कमलनाथ ही बेहतर समझ और बता पाएंगे. संयुक्त परिवारों से निकल कर न्यूक्लियर फेमिली चलाने में सुख और दुख दोनों ही झेलने पड़ते हैं, मात्रा किसकी कम होती है और किसकी ज्यादा फर्क इसी बात से पड़ता है. कमलनाथ का हाल भी फिलहाल कुछ कुछ ऐसा ही है. 

बीजेपी के लिए तो मध्य प्रदेश में भी चुनौतियां हजार हैं. सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों के साथ साथ बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को विधानसभा चुनाव में उतार कर बीजेपी एक ही तीर से बहुत सारे निशाने साधने की कोशिश कर रही है - लेकिन नाव तो कदम कदम पर डगमगा ही रही है. 

बीजेपी के पास अभी तक शिवराज सिंह चौहान का कोई विकल्प नहीं मिल सका है, लेकिन ऐसा लगता है जैसे उनसे भी जल्द से जल्द पीछा छुड़ाने की कोशिश है. राजनीति का आकर्षण अपनी जगह है, लेकिन शिवराज सिंह चौहान अगर घर बैठ जायें तो बीजेपी आलाकमान हाथ मलता रह जाएगा. 

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राजस्थान में 23 नवंबर को मतदान होंगे

पांचो राज्यों में सबसे ज्यादा दिलचस्प राजनीति तो राजस्थान में ही देखने को मिल रही है - और वहां जो हाल कांग्रेस का है, बीजेपी की हालत भी मिलती जुलती ही है. गांधी परिवार ने तो ऐसा लगता है, जैसे राजस्थान कांग्रेस के नेताओं के हवाले ही छोड़ दिया है. 

ऊपर से राजस्थान को लेकर राहुल गांधी ने जो बयान दिया है, वो तो और भी गंभीर लगता है. राहुल गांधी ने कुछ दिन पहले कहा था कि राजस्थान को छोड़ कर बाकी राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत पक्की है. राजस्थान में राहुल गांधी के हिसाब से कांग्रेस और बीजेपी में कांटे की टक्कर होने वाली है. 

ऐसा लगता है जैसे राजस्थान चुनाव में हार जीत का फैसला जनता की खुशी या नाराजगी से नहीं बल्कि बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं के आपसी झगड़ों से तय होने जा रही है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जहां कांग्रेस की चुनावी कमान अपने हाथ में लिये हुए हैं, बीजेपी में ये सब दिल्ली से तय हो रहा है. 

कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस नेतृत्व के सामने करीब करीब एक जैसी ही चुनौतियां थीं, लेकिन लोगों के बीजेपी से खफा होने का पूरा फायदा मिला. हिमाचल प्रदेश में बीजेपी के दो मजबूत नेता जेपी नड्डा और अनुराग ठाकुर मोर्चे पर डटे रहे, लेकिन बाजी बीजेपी के हाथ से निकल गयी. और राजस्थान में भी दोनों राज्यों की तरह सबसे बड़े नेता को नजरअंदाज किये जाने का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. 

तमाम मुश्किलों को काउंटर करने के लिए बीजेपी राजस्थान में भी मध्य प्रदेश जैसा ही प्रयोग करने जा रही है, अब तो ऐसे ही संकेत मिले हैं - लेकिन क्या मोदी सरकार के काम पर राजस्थान के लोग बीजेपी को वोट देंगे. आम चुनाव की बेशक चिंता नहीं होगी, क्योंकि 2019 में भी साल भर पहले ही सरकार चली जाने का कोई असर नहीं दिखा था. 

तेलंगाना में 30 नवंबर को वोट डाले जाएंगे

तेलंगाना में आखिरी चरण में 30 नवंबर को वोट डाले जाने हैं. मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने तो सत्ता में वापसी के लिए पार्टी का नाम तक बदल दिया है. तेलंगाना राष्ट्र समिति की जगह अब केसीआर की पार्टी का नाम भारत राष्ट्र समिति हो गया है. केसीआर ने अपनी तरफ से लोगों को तो यही समझाने की कोशिश की है कि वो पार्टी को राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित करने जा रहे हैं, लेकिन सच तो यही है कि ये सब सत्ता बचाने की तरकीब से ज्यादा कुछ भी नहीं है.

तेलंगाना में केसीआर की पार्टी बीआरएस का मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी से होने जा रहा है. वैसे मैदान में कहीं न कहीं चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM से भी चुनौती मिलेगी ही.

केसीआर एक साथ और एक ही बराबर बीजेपी और कांग्रेस दोनों के निशाने पर हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी BRS का फुल फॉर्म जहां भारतीय रिश्तेदार समिति बता चुके हैं, राहुल गांधी ने BJP रिश्तेदार समिति नाम दे रखा है. 

परिवारवाद की राजनीति को लेकर केसीआर जहां मोदी-शाह के निशाने पर हैं, राहुल गांधी बीजेपी पर केसीआर के भ्रष्टाचार पर परदा डालने का आरोप लगा चुके हैं. राहुल गांधी का सवाल है कि केसीआर के भ्रष्टाचार के खिलाफ केंद्र की मोदी सरकार ने ईडी और सीबीआई को क्यों नहीं भेजा? 

मुख्यमंत्री केसीआर भी बचाव की मुद्रा में नजर आ रहे हैं. केसीआर अपनी परंपरागत गजवेल सीट के साथ साथ कामारेड्डी विधानसभा क्षेत्र से भी चुनाव लड़ने जा रहे हैं. कोई भी नेता ऐसा कदम तो हार के डर से ही उठाता है. बीआरएस ने 115 उम्मीदवारों की सूची में 114 नामों की ही घोषणा की थी, क्योंकि केसीआर दो सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं. 

तेलंगाना में बीजेपी ने भले ही कई बड़े नेता तैनात कर रखे हैं, लेकिन मैदान में चेहरा तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही है. और कांग्रेस की तरफ से केसीआर को चैलेंज करने वाले कई नेता मैदान में हैं, लेकिन मुख्य चेहरा तो रेवंत रेड्डी ही हैं. रेवंत रेड्डी को राहुल गांधी का करीबी माना जाता है, तभी तो क्षेत्रीय नेताओं के विरोध के बावजूद बीजेपी वाले खेमे से आकर भी प्रदेश अध्यक्ष बने हुए हैं. 

पांचों राज्यों में तेलंगाना ही एक ऐसा राज्य है, जिसे लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी काफी सक्रिय देखे जा सकते हैं. ये सक्रियता जमीन पर भले ही थोड़ी कम हो, लेकिन सोशल मीडिया पर नहीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेता अमित शाह तो बहुत पहले से ही तेलंगाना की तैयारी में जुट गये थे, बीजेपी की देखादेखी कांग्रेस ने भी CWC की मीटिंग कर ही डाली है.

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