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विधानसभा चुनाव नतीजों के रुझानों में BJP के लिए 2024 का बड़ा मैसेज ये है

2018 के विधानसभा चुनाव में हार के बावदूद बीजेपी ने लोक सभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन किया था. 2024 के आम चुनाव के हिसाब से देखें तो इस बार मोदी का जादू भी छाया हुआ नजर आ रहा है. लेकिन बीजेपी के लिए ध्यान देने वाली बात ये है कि दक्षिण भारत को लेकर कांग्रेस ने बड़ा अलर्ट भेजा है.

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तेलंगाना में भले ही कांग्रेस सरकार बना रही हो, लेकिन बीजेपी, बीआरएस के साथ बड़ा मौका देख रही होगी
तेलंगाना में भले ही कांग्रेस सरकार बना रही हो, लेकिन बीजेपी, बीआरएस के साथ बड़ा मौका देख रही होगी

हर चुनाव में हर पार्टी के लिए कुछ न कुछ मैसेज छिपा हुआ होता है. अभी जो पांच राज्यों के चुनाव हुए हैं, उसमें आने वाले 2024 के आम चुनाव के लिए संदेश है. बीजेपी के ये खास इसलिए भी है क्योंकि केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी की सरकार है - और इस बार मोदी सरकार के लिए हैट्रिक का चांस है.

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अंतिम रिजल्ट जो भी हो, लेकिन एग्जिट पोल के नतीजों से रुझान काफी अलग देखने को मिल रहे हैं. रुझानों के मुताबिक, बीजेपी मध्य प्रदेश और राजस्थान ही नहीं, छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस को पछाड़ती हुई देखी जा रही है. 

तेलंगाना और मिजोरम के मामले में तो बीजेपी को लेकर कोई कयास भी नहीं लगा रहा था, लेकिन मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव का जो हाल नजर आ रहा है, वो भी लगता है 2024 में बीजेपी के लिए फायदेमंद ही हो सकता है. 

और सबसे बड़ा सवाल जो हर किसी के मन में था. मोदी फैक्टर में दमखम बचा है या नहीं? 2024 के लोक सभा चुनाव के लिए ये सबसे बड़ा सवाल है - और लोगों ने अपनी तरफ से इस सवाल का भी जवाब दे दिया है.

1. मोदी है तो मुमकिन तो है

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2020 में जब बीजेपी दिल्ली विधानसभा का चुनाव हार गयी थी, तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र ने एक महत्वपूर्ण सलाह दी थी. सलाह ये थी कि बीजेपी को सिर्फ मोदी और केंद्रीय मंत्री अमित शाह के भरोसे नहीं बैठे रहना चाहिये. मोदी-शाह अपने दम पर हर चुनाव में जीत नहीं सुनिश्चित कर सकते. ऐसे में सबसे जरूरी है कि बीजेपी स्थानीय स्तर पर मजबूत नेतृत्व खड़ा करे, और कोई उपाय नहीं है.

लेकिन तब से लेकर अब तक ऐसे मौके कम ही आये हैं जब लगा कि बीजेपी स्थानीय नेतृत्व को तरजीह देने के मूड में हो. 2022 के गुजरात चुनाव को छोड़ दें, तो हर चुनाव बीजेपी मोदी के नाम पर ही लड़ती आयी है. जहां सत्ता में नहीं है, वहां की तो बात ही और है, लेकिन जहां सरकार और मुख्यमंत्री हैं, वहां भी बीजेपी ने मोदी के आगे मुख्यमंत्री का नाम तक ठीक से नहीं लिया. 

गुजरात विधानसभा के चुनाव में तो प्रधानमंत्री मोदी ने ही साफ तौर पर कहा था कि वे लोग बीजेपी को इतने वोट दें कि उनकी भी जीत का रिकॉर्ड टूट जाए. लोगों ने मोदी की बात मान ली - और भूपेंद्र पटेल ने जीत के मामले में मोदी का रिकॉर्ड तोड़ दिया. 

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अभी पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव में एक मध्य प्रदेश ही ऐसा राज्य रहा जहां बीजेपी सबसे मजबूत नजर आ रही थी, लेकिन उम्मीदवारों की पहली लिस्ट आई तभी लग गया कि कैसे बीजेपी शिवराज सिंह चौहान को किनारे लगाने का इंतजाम कर रही है. 

ये बीजेपी के संसदीय बोर्ड का ही फैसला था कि लोक सभा से पहले के यानी 2023 तक के सभी विधानसभा चुनाव पार्टी सिर्फ मोदी के चेहरे पर ही लड़ेगी - और चुनाव दर चुनाव देखा भी यही गया.

विधानसभा चुनाव नतीजों के रुझान बता रहे हैं कि मोदी का जादू बरकरार है, लेकिन बीजेपी को स्थानीय नेताओं की सख्त दरकार है. मध्य प्रदेश सबसे बड़ी मिसाल है. बेशक राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी के पास स्पष्ट चेहरा न होते हुए भी रुझान पक्ष में आ रहे हैं, लेकिन मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को हटाकर देखें तो तस्वीर अलग भी हो सकती थी.

और भी समझ लेना भी बहुत महत्वपूर्ण है कि अगर राजस्थान में बीजेपी ने वसुंधरा या किसी और नाम को पेश किया होता तो पहले ही शक शुबहे खत्म हो चुके होते - और यही बात छत्तीसगढ़ के मामले में भी लागू होती है. 

कुल मिलाकर कर अभी तो यही कहा जा सकता है कि मोदी का जादू अभी अच्छी तरह चल रहा है, और विपक्षी गठबंधन INDIA के खड़े होने की स्थिति में भी बीजेपी के लिए केंद्र की सत्ता में वापसी बहुत मुश्किल नहीं हो सकती. 

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2. दक्षिण में कांग्रेस से सावधान रहने का अलर्ट है

तेलंगाना में बीजेपी ने बहुत पहले से ही तैयारी शुरू कर दी थी. विधानसभा चुनावों से साल भर पहले ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गयी - और उसके बाद से तो लगातार तैयारी चलने लगी थी. मोदी-शाह के लगातार कार्यक्रम बनाये गये. तेलंगाना से जुड़े नेताओं को मोदी कैबिनेट से लेकर बीजेपी संसदीय बोर्ड तक में खास अहमियत दी जाने लगी. 

ये तो पहले से ही साफ था कि बीजेपी तेलंगाना में सरकार बनाने की पोजीशन में नहीं खड़ी हो पा रही है. तेलंगाना की केसीआर सरकार के खिलाफ बीजेपी ने शुरू से ही आक्रामक रुख अपना रखा था. प्रधानमंत्री मोदी शुरू से ही केसीआर पर परिवारवाद की राजनीति करने और बीआरएस सरकार में भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहे. पीछे पीछे अमित शाह और दूसरे बीजेपी नेता दोहराते रहे. 

ऐन उसी वक्त ये भी देखने को मिला कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी केसीआर पर बीजेपी की ही तरह परिवारवाद और भ्रष्टाचार के आरोप लगाने लगे - और फिर दो कदम आगे बढ़ कर बीजेपी और केसीआर की पार्टी के बीच सांठगांठ के आरोप भी लगाने लगे. समझाने लगे कि बीआरएस का मतलब 'भाजपा रिश्तेदार समिति' है.

सवाल ये है कि क्या तेलंगाना में बीजेपी के पास सत्ता हासिल करने का मौका नहीं था? अगर केसीआर के हाथ से सत्ता फिसली तो कांग्रेस ने क्यों लपक लिया, बीजेपी कैसे चूक गयी? क्या तेलंगाना में भी बीजेपी की पंजाब जैसी ही हालत थी? कांग्रेस के हाथ से सत्ता फिसल कर आम आदमी पार्टी के पास चली गयी, और बीजेपी खूब मेहनत के बावजूद चूक गयी. ऐसा क्यों लगता है जैसे पंजाब में आम आदमी पार्टी को सत्ता सौगात में मिल गयी, तेलंगाना में कांग्रेस को भी सरकार तोहफे में ही मिली लगती है - और ये तोहफा भी कांग्रेस को बीजेपी की तरफ से ही मिला लगता है.

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तेलंगाना की जीत में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का भी असर महसूस किया जा सकता है. कर्नाटक के बाद तेलंगाना की जीत तो यही कहती है. भारत जोड़ो यात्रा में भी राहुल गांधी कर्नाटक के बाद ही तेलंगाना गये थे - और करीब दो हफ्ते तक डेढ़ दर्जन विधानसभाओं में घूमते रहे. 

ऐसे भी समझ सकते हैं कि कर्नाटक में कांग्रेस ने बीजेपी को हराकर तो तेलंगाना में पछाड़ कर सरकार बनाने का संकेत दे रही है - और 2024 के लोक सभा चुनाव के लिए ये बीजेपी के लिए सबसे बड़ा अलर्ट है. 

जैसे तैसे बीजेपी दक्षिण भारत में कर्नाटक में जगह बना पायी थी, लेकिन कांग्रेस ने छुट्टी कर दी और तेलंगाना में मौका था, वो भी हाथ से निकल गया. तमिलनाडु तक जायें तो बीजेपी के लिए स्थिति वैसी ही विकट नजर आ रही है.

लेकिन बीजेपी के लिए तेलंगाना में आपदा में अवसर भी है. बीआरएस नेता केसीआर पहले से ही कांग्रेस के विरोध की राजनीति करते आ रहे हैं. वैसे वो बीजेपी के विरोध में भी वैसे ही मैदान में डटे रहे हैं, और विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में वो तीसरे मोर्चे के ही पक्षधर नजर आये हैं. 

अगर 2024 के हिसाब से देखें तो केसीआर चुनाव हार जाने के बाद कांग्रेस के साथ तो जाने से रहे. अगर चुनाव जीत गये होते तो राष्ट्रीय राजनीति में भी स्थिति थोड़ी मजबूत हो जाती, लेकिन अब वो बात भी नहीं रही. 

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अब तो केसीआर के पास एक ही रास्ता बचता है. या तो वो खुलेआम बीजेपी के साथ हो जायें, या फिर नवीन पटनायक और जगनमोहन रेड्डी की तरह बाहर से समर्थन देते रहें - भला बीजेपी के लिए ये आपदा में अवसर नहीं तो क्या है?

3. अपवाद हमेशा एक जैसे हों जरूरी नहीं है

तेलंगाना की बात करें तो 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी कुछ भी नहीं कर पायी थी. तेलंगाना विधानसभा तक भी सिर्फ एक ही विधायक पहुंच सका था. लेकिन पांच साल बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी सत्ता में वापसी की तरफ बढ़ रही है.

पिछले चुनाव में विधानसभा चुनाव हार जाने के बावजूद बीजेपी ने लोक सभा चुनाव में तीनों राज्यों में बेहतरीन प्रदर्शन किया था. और तेलंगाना के मामले भी भी ऐसा ही कहा जा सकता है - लेकिन ये भी जरूरी तो नहीं कि अपवाद हर बार एक जैसे नतीजे लायें. 

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