सिनेमा को समाज का आईना कहा जाता है. इस आईने में देखने के बाद हमें हमारी और समाज की हकीकत पता चलती है. सिनेमा समाज को प्रभावित करता है. फिल्में लोग मनोरंजन के लिए भले ही देखते हैं, लेकिन उससे प्रभावित भी होते हैं. फिल्में हम जागरूक भी करती हैं. कई सामाजिक मुद्दों और समस्याओं पर बनने वाली फिल्मों जैसे कि 'मदर इंडिया', 'प्रेम रोग', 'मंथन', 'डोर', 'अर्थ', 'तारे जमीं पर', 'आर्टिकल 15', 'हिंदी मीडियम', 'पीपली लाइव', 'पैडमैन', 'टॉयलेट एक प्रेमकथा', 'छपाक', 'थप्पड़' और 'शुभ मंगल ज्यादा सावधान' ने लोगों पर गहरा प्रभाव डाला है. ऐसी ही एक फिल्म साल 2003 में रिलीज हुई थी, जिसका नाम 'बागबान' है.
फिल्म 'बागबान' को रिलीज हुए 20 साल हो चुके हैं. लेकिन इस फिल्म की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है. संयुक्त से एकल हो रहे परिवारों में माता-पिता की जगह कहां रह गई है, फिल्म ने इस कड़वी सच्चाई से पर्दा उठाया है. इसके साथ ही ये सीख भी दी है कि हर व्यक्ति को आर्थिक रूप से अपना भविष्य सुरक्षित रखने की जरूरत है. वरना मां-बाप बच्चों को ही अपना भविष्य समझ लेते हैं और उनकी परवरिश में अपनी सारी जमा-पूंजी लगा देते हैं. वही बच्चे बुजुर्ग होने के बाद मां-बाप को उनके हाल पर छोड़ देते हैं. ऐसा लंबे समय से हो रहा है. लेकिन इस फिल्म को देखने के बाद लोगों को रिश्तों की अलग-अलग परिभाषा समझ में आती है.
रवि चोपड़ा के निर्देशन में बनी फिल्म 'बागबान' में अमिताभ बच्चन, हेमा मालिनी, सलमान खान, महिमा चौधरी, अमन वर्मा और समीर सोनी अहम भूमिका में थे. फिल्म की कहानी एक बुजुर्ग कपल की जिंदगी पर आधारित है, जिनके चार बच्चे होते हैं. अपने बच्चों की परवरिश और उनकी जरूरतों को पूरा करने में इस कपल की सारी जमापूंजी खर्च हो जाती है. यहां तक कि बैंक से लोन भी लेना पड़ता है. रिटायरमेंट के बाद माता-पिता अपने बच्चों के साथ रहना चाहते हैं. लेकिन सभी बच्चे अपनी मजबूरियां बताकर दोनों को एक साथ रखने से इंकार कर देते हैं. बाद में तय होता है कि माता-पिता अलग-अलग बच्चों के साथ 6-6 महीने के लिए रहेंगे.
इस तरह उम्र के आखिरी पड़ाव में ये कपल अलग हो जाता है. इसके बाद कई नाटकीय घटनाक्रम के बाद दोनों एक-दूसरे से मिलते हैं. उनका जीवन पूरी तरह से बदल जाता है. फिल्म में अमिताभ बच्चन ने पिता राज मल्होत्रा, हेमा मालिनी ने मां पूजा मल्होत्रा, अमन वर्मा ने बड़े बेटे अजय, समीर सोनी ने दूसरे बेटे संजय, साहिल चड्ढा ने तीसरे बेटे रोहित, नसीर खान ने चौथे बेटे करन, सलमान खान ने दत्तक पुत्र आलोक मल्होत्रा और महिमा चौधरी ने अर्पिता की भूमिका निभाई है.
फिल्म 'बागबान' से हमें ये सीख मिलती है...
1. बुढा़पे के लिए पैसे की बचत जरूरी है
भारतीय समाज में परिवार का हमेशा से महत्व रहा है. संयुक्त हो या एकल परिवार, ज्यादातर मां-बाप बच्चों की परवरिश के लिए अपना सबकुछ लगाने के लिए तैयार रहते हैं. फिल्म 'बागवान' में भी राज मल्होत्रा अपने बच्चों की परवरिश और पढ़ाई में अपना सारा पैसा लगा देते हैं. उनकी पत्नी पूजा एक बार आर्थिक स्थिति के बारे में पूछती भी है, तो राज कहते हैं, ''हमारे बच्चे चार-चार फिक्स्ड डिपॉजिट हैं.'' रिटायरमेंट के बाद एक्सटेंशन का ऑफर मिलने के बाद भी उसे स्वीकार नहीं करते. उनको लगता है कि उनके बच्चे उनकी देखभाल कर लेंगे. लेकिन ऐसा होता नहीं है. जब वो अपने बच्चों से अपने मन की बात बताते हैं तो वो उन्हें एक साथ रखने से इंकार कर देते हैं. राज के पैरों तले जमीन खिसक जाती है. उन्हें गहरा धक्का लगता है. इस फिल्म से सीख मिलती है कि हर व्यक्ति को अपने बुढ़ापे के लिए पैसा जरूर बचना चाहिए.
2. रिश्ते सिर्फ खून से नहीं बनते हैं
अक्सर खून के रिश्तों की बात कही जाती है. ज्यादातर लोगों का मानना है कि खून से बने रिश्ते ज्यादा मजबूत होते हैं. लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है. फिल्म 'बागवान' में अपने ही बेटे माता-पिता को धोखा देते हैं. उनके लिए मां-बाप से ज्यादा उनका अपना परिवार महत्वपूर्ण हो जाता है. ऐसे में राज मल्होत्रा का दत्तक पुत्र आकाश मल्होत्रा उनका सहारा बनता है. आकाश अनाथ होता है, जिसे राज मंदिर के बाहर उठाकर पढ़ाते हैं. विदेश भेजते हैं. राज और पूजा को बुरे हाल में देखकर आकाश रोने लगता है. अपने घर लाता है. भगवान की तरह उनकी पूजा करता है. यहां तक कि राज की पसंदीदा कार भी गिफ्ट करता है. आकाश का किरदार साबित करता है कि रिश्ते सिर्फ खून नहीं बनते हैं.
3. प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती है
''न उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बंधन, जब प्यार करे कोई, तो देखे केवल मन, नई रीत चलाकर तुम, ये रीत अमर कर दो, मेरा गीत अमर कर दो''...साल 1981 में रिलीज हुए फिल्म 'प्रेम गीत' का ये गाना बताता है कि प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती है. ज्यातादर देखा गया है कि बुजुर्ग होने के बाद कपल आपस में प्यार का इजहार करने से कतराते हैं. उनको लगता है कि इस उम्र में ऐसा करते देख लोग क्या कहेंगे, लेकिन फिल्म 'बागवान' में राज और पूजा इसे गलत साबित करते हैं. फिल्म में उन्हें अक्सर अपने प्यार का इजहार करते देखा जा सकता है. यहां तक कि बच्चों के साथ अलग-अलग जाने पर वो बहुत दुखी हो जाते हैं. एक-दूसरे को हमेशा याद करते हैं.
4. माता-पिता के महत्व को समझना जरूरी है
हर माता-पिता अपनी क्षमतानुसार अपने बच्चों की परवरिश करते हैं. उनकी शिक्षा, स्वास्थ और मूलभूत सुविधाओं का ध्यान रखता है. इस फिल्म में राज और पूजा अपने चारों बच्चों के लिए सबकुछ करते हैं. लेकिन बच्चे उनके बुजुर्ग होने के बाद उनसे मुंह फेर लेते हैं. उनको बोझ समझने लगते हैं. लेकिन बाद में राज जब अपनी किताब की वजह से मशहूर और पैसे वाले हो जाते हैं, तो वही बच्चे उनके पास वापस आने की कोशिश करते हैं. लेकिन अपने बच्चों से कष्ट झेल चुके राज और पूजा उनसे मुंह फेर लेते हैं.