पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में मंगलवार को चार सौ से ज़्यादा यात्रियों से भरी एक ट्रेन पर हथियारबंद चरमपंथियों ने कब्ज़ा कर लिया है. पाकिस्तान सरकार का कहना है कि करीब 104 यात्रियों को बचा लिया गया है. पर अभी भी बहुत से यात्री बलूच चरमपंथियों के कब्जे में हैं. बलूचिस्तान में ये चरमपंथी एक अलग देश की मांग कर रहे हैं. भारत के लिए यह महत्वपूर्ण इसलिए हो जाता है क्योंकि बलूचिस्तान की जनता के साथ हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों के प्रति मोदी सरकार पहले चिंता जता चुकी है. 2016 में गणतंत्र दिवस पर पीएम नरेंद्र मोदी के लाल किले से दिए गए भाषण में बलूचिस्तान और गिलगित के लोगों के प्रति अपनी संवेदना दिखाते रहे हैं. इसके साथ ही बलूचिस्तान के लोग लगातार भारत से समर्थन की उम्मीद भी जताते रहे हैं. ऐसा माना जाता है कि देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के समय जब रियासतों का बंटवारा हो रहा था, उस समय बलूचिस्तान ने भारत के साथ आने की इच्छा दिखाई थी. पर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस के अन्य नेताओं की गलतियों के चलते पाकिस्तान ने बलूचिस्तान पर सैन्य कार्रवाई करके उसे जबरन मिला लिया. भारत के पास बलोच लोगों के साथ हुए उस अन्याय का और कश्मीर में बेवजह दखल करने वाली पाकिस्तानी सेना को सबक सिखाने का एक बढ़िया मौका है.
1- बलोचिस्तान भारत में शामिल होना चाहता था लेकिन नेहरू सरकार ने प्रस्ताव नजरअंदाज कर दिया
जम्मू कश्मीर की तरह ही बलूचिस्तान के शासक भी अपनी रियासत की ऑटोनॉमी बनाए रखना चाहते थे, लेकिन पाकिस्तानी शासन ने इसके स्वतंत्रता के सात महीने बाद ही मार्च 1948 को अपनी सेना भेज दी. पाकिस्तान को डर था कि भारत कहीं बलूचिस्तान को अपने साथ न मिला ले. बलूचिस्तान के लोगों का पाकिस्तान की सरकार और सेना किस तरह से दमन कर रही है यह पूरी दुनिया जानती है. बलोच लोग पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में पाकिस्तानी अत्याचारों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. UNHRC में भी कई बार बलूच समर्थकों ने पाकिस्तान के खिलाफ जमकर नारेबाजी की है. कैबिनेट सचिवालय में विशेष सचिव रहे तिलक देवेशर 'The Balochistan Conundrum' नाम से एक किताब लिखी है. देवेशर लिखते हैं कि...
चूंकि 1948 में सैन्य कार्रवाई के बल पर पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को अपने साथ मिलाया था इसलिए ज्यादातर बलोचों के मन में यह बात बैठी हुई है कि पाकिस्तान कभी उनका नहीं रहा है और न ही उनका हो सकता है. अंग्रेजों की विदाई के साथ ही बलोचों ने अपनी आजादी की घोषणा कर दी थी. पाकिस्तान ने ये बात मान ली थी लेकिन वो बाद में इससे मुकर गए. बलोचों के सबसे बड़े नेता खुदादाद खान (खान ऑफ कलात) से 1876 में अंग्रेजों ने जो संधि की थी उसके मुताबिक बलूचिस्तान एक आजाद देश था. उनकी आजाद देश की पहचान को 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने नकार दिया था. खान पहले से ही पाकिस्तान की आंखों में चढ़े हुए थे. बलोचों के विरोध की वजह से वह और निशाने पर आ गए थे. 1948 में खान को को पाकिस्तान की सेना ने गिरफ्तार कर लिया और उनसे जबरन बलूचिस्तान के पाकिस्तान में विलय के समझौते पर साइन करवा लिए.
1947 में भी कांग्रेस के नेताओं ने यह मान लिया होता कि बलूचिस्तान एक आजाद देश है तो भारत को कोई फायदा होता या न होता, कम से कम पाकिस्तान और छोटा हो गया होता. देवेशर लिखते हैं कि कांग्रेस के कई नेता ये भी मानते थे कि भारत की आजादी के बाद बलूचिस्तान शायद ही आजाद राष्ट्र बनकर रह सके. इसके लिए उन्हें अंग्रेजों का साथ चाहिए होगा जो कांग्रेस को स्वीकार्य नहीं था. मार्च 1948 में ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित एक प्रेस कांफ्रेंस का जिक्र अकसर मीडिया में होता रहा है. इस किताब में भी उस पीसी का जिक्र है. जिसमें कहा गया कि खुदादाद खान इस बात को लेकर तैयार थे कि बलूचिस्तान का भारत में विलय कर दिया जाए. लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और अन्य कांग्रेस नेताओं ने इसको नकार दिया. भारत सरकार के इस रवैये से खान को गहरा धक्का लगा और आखिर में उन्होंने पाकिस्तान के साथ संधि करने के लिए बातचीत की पेशकश कर दी. हालांकि बाद में पंडित नेहरू ने इस प्रेस कांफ्रेस में कही गई सभी बातों से पल्ला झाड़ लिया. उन्होंने इस पूरी खबर को ही मनगढ़ंत और झूठा बताया था.
2-मोदी ने 2016 में लाल किले के प्राचीर से दिखाई थी बलोचों के लिए हमदर्दी
2016 में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने 14 अगस्त को अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में कश्मीर में जारी हिंसा के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया था. वहीं भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त के अपने भाषण में पश्चिमी बलूचिस्तान प्रांत में पाकिस्तानी उत्पीड़न की ओर इशारा करते हुए जवाबी हमला किया था. यह कोई नई बात नहीं है दोनों देश एक दूसरे पर इस तरह का आरोप लगाते रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने इस्लामाबाद पर कटाक्ष किया और इस्लामी गणराज्य के नेताओं को बलूचिस्तान प्रांत और देश के उत्तर में गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में उनके स्वयं के अधिकारों के उल्लंघन की याद दिलाई. मोदी ने अपने संबोधन में कहा, बलूचिस्तान, गिलगित और पीओके (पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर) के लोगों ने पिछले कुछ दिनों में मुझे बहुत धन्यवाद दिया है, मैं उनका आभारी हूं.
मोदी के इस स्पीच के एक हफ़्ते पहले पाकिस्तानी शहर क्वेटा में तालिबान के एक गुट ने आत्मघाती हमला करके 80 से ज़्यादा लोगों को मार डाला था. पाकिस्तान सरकार ने दावा किया था कि इस बम विस्फोट के पीछे भारत का हाथ है. बलोच कार्यकर्ताओं का तर्क है कि कश्मीर संघर्ष के विपरीत, बलूचिस्तान समस्या को उतना ध्यान नहीं मिलता जितना मिलना चाहिए. भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा स्वतंत्रता दिवस के भाषण में बलूचिस्तान का स्पष्ट उल्लेख किए जाने से इस संघर्ष पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान गया था.
3- क्या मोदी सरकार को बलूचिस्तान मुद्दे पर विपक्ष का मिलेगा साथ
सबसे बड़ी बात यह है कि बलूचिस्तान के लोगों की मदद के लिए अगर भारत हाथ बढाता है तो क्या मोदी सरकार को विपक्ष का साथ मिलेगा? क्योंकि ऐसे फैसले कोई भी सरकर सर्वसम्मत से ही लेती रही है. आपको याद होगा कि 1971 में बांग्लादेश लिबरेशन ऑर्मी की मदद के लिए सेना उतारने के पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी विपक्ष से सहयोग मांगा था. तब अटल बिहारी वाजपेयी समेत पूरा देश इंदिरा गांधी के साथ था. पर क्या अब ऐसा संभव है. इसका जवाब हमें 2016 में जब पीएम नरेंद्र मोदी ने बलूचिस्तान के लोगों के लिए हमदर्दी दिखाने पर विपक्ष के रिएक्शन में मिल जाएगा.
प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी पर कांग्रेस ने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी बलूचिस्तान के बारे में बात करने वाले पहले व्यक्ति नहीं हैं, उन्होंने जोर देकर कहा कि यूपीए सरकार ने लगातार इस क्षेत्र में बढ़ती हिंसा और भारी पाकिस्तानी सैन्य कार्रवाई के बारे में बात की है. रणदीप सुरजेवाला ने कहा था कि कांग्रेस और यूपीए सरकार ने अतीत में कई मौकों पर बलूचिस्तान और पीओके में पाकिस्तानी सेना और प्रतिष्ठान द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की निंदा की है.
कांग्रेस ने मोदी सरकार पर उसकी 'असंगत' विदेश नीति के लिए हमला जारी रखते हुए पार्टी नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि सरकार पाकिस्तान के साथ अपनी भड़काऊ नीति को समाप्त करे तथा बलूचिस्तान जैसे मुद्दों को उठाने से पहले देश के भीतर की समस्याओं को सुलझाए.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने भी प्रधानमंत्री पर अपना गुस्सा जाहिर किया था. अब्दुल्ला ने कहा था कि उन्हें जम्मू-कश्मीर के उस हिस्से के बारे में बात करनी चाहिए जो जल रहा है. अब्दुल्ला ने कहा, अगर प्रधानमंत्री बलूचिस्तान के बारे में बात करना चाहते हैं तो वे कर सकते हैं, लेकिन उन्हें जम्मू-कश्मीर के उस हिस्से के बारे में भी बात करनी चाहिए जो जल रहा है. सीपीआई(एम) भी बलूचिस्तान पर प्रधानमंत्री के साथ एकमत नहीं था. .
4- क्या बांग्लादेश जैसी स्थितियां पैदा हो रही हैं?
अभी पिछले महीने की ही बात है जब पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के सदस्य मौलाना फजलुर्रहमान ने चेतावनी दी कि पाकिस्तान एक बार फिर से विभाजित हो सकता है, खासकर बलूचिस्तान. उनका कहना था कि बलूचिस्तान के कुछ हिस्सों में लोगों की असंतुष्टि बढ़ रही है और अगर यह स्थिति बनी रहती है तो यह 1971 जैसे हालात उत्पन्न कर सकती है. पाकिस्तान के टूटने से बांग्लादेश का जन्म हुआ था जिसमें भारत की अहम भूमिका रही.
अब जैसी स्थितियां बलूचिस्तान में बन रही हैं वह काफी कुछ बांग्लादेश के इतिहास को दुहरा रही हैं. मौलाना रहमान का यह बयान उस समय आया है जब बलूचिस्तान में हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं और क्षेत्र में सुन्नी-शिया संघर्ष भी जारी है. कबीलाई लोग भारी हथियारों से लड़ाई लड़ रहे हैं. पाकिस्तान के सुरक्षाबलों के लिए अफगानिस्तान की सीमा से सटी पहाड़ी इलाकों पर नियंत्रण बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो गया है.अफगानिस्तान से पाकिस्तान के संबंध अब पहले जैसे नहीं रह गए हैं.
पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत होने के बावजूद बलूचिस्तान में देश की मात्र दो प्रतिशत आबादी निवास करती है. पाकिस्तान सेना पर करीब 20 हजार बलोच कार्यकर्ताओं को गायब करने का आरोप है. बलूचिस्तान के संदर्भ में चीन के CPEC प्रोजेक्ट ने स्थिति को और जटिल बना दिया है. स्थानीय लोगों का आरोप रहा है कि बलूचिस्तान के संसाधनों का उपयोग पंजाब और सिंध जैसे पाकिस्तान के अन्य क्षेत्रों में विकास कार्यों के लिए किया जा रहा है.
5- क्या बांग्लादेश गठन जैसी भूमिका फिर निभाएगा भारत?
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी संप्रभु देश के किसी अलगाववादी आंदोलन को समर्थन देने का फैसला लेना 1971 में भी उतना ही मुश्किल था जितना आज है. फिर भी राजनीतिक इच्छा शक्ति से कुछ भी किया जा सकता है.1971 के मुकाबले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आज पाकिस्तान कमजोर हो चुका है. पाकिस्तान की आज ऐसी स्थिति नहीं है कि वह भारत के साथ दस दिन भी युद्ध कर सके.इसके साथ ही पाकिस्तान के साथ अमेरिका भी नहीं है. चीन जरूर उसके साथ है. पर अब तक इतिहास है कि चीन कभी भी ऐसे मामलों में अपनी टांग नहीं उलझाता है. वैसे चीन भी पाकिस्तान के लिए भारत के साथ दुश्मनी करना नहीं चाहेगा. पाकिस्तान के फेवर में आज की तारीख में केवल उसके पास परमाणु बम होना है.