देश में इस बार बहुत कम ऐसी सीटें हैं जहां मुकाबला बहुत रोचक होने वाला है. अधिकतर जगहों पर जहां कोई बड़ा नाम चुनाव लड़ रहा है वहां उसका प्रतिद्वंद्वी बहुत समान्य है. इस कारण रोचक मुकाबले वाली सीटों की संख्या बहुत कम हैं. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आजमगढ़ सीट से अपने परिवार के ही धर्मेंद्र यादव को प्रत्याशी बनाकर आजमगढ़ के मुकाबले को रोचक बना दिया है. अब आजमगढ़ देश की उन चुनिंदा सीटों में से एक हो गया है जहां का मुकाबला कांटें का होने वाला है.
आजमगढ़ में एक तरफ तो भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार निरहुआ यादव हैं जो फिलहाल आजमगढ़ के सिटिंग एमपी हैं. बीजेपी ने उन्हें फिर से लोकसभा चुनावों में उम्मीदवार बनाने का फैसला लिया है. दूसरी ओर समाजवादी पार्टी ने अपने पुराने प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को ही मैदान में उतारा है जो पिछली बार निरूहआ से चुनाव हार गए थे. पर हारने का अंतर इतना कम था कि इस बार जीत का गणित उनके पक्ष में दिखाई दे रहा है. पर राजनीति अनंत संभावनाओं का खेल है. इसलिए चुनाव परिणाम आने के पहले कुछ भी नहीं कहा जा सकता कि ऊंट किस करवट बैठेगा. आजमगढ़ के लोगों और कई राजनीतिक विश्वेषकों से बातचीत के आधार पर समझ में ये आ रहा है कि आजमगढ़ की लड़ाई में निम्न 6 फैक्टर प्रभावी हो सकते हैं.
1-2019 से कम वोट पाकर भी निरहुआ जीत गए थे उपचुनाव
भोजपुरी सुपर स्टार निरहुआ यादव आजमगढ़ के नहीं हैं पर 2019 से ही वो आजमगढ़ में रह रहे हैं. 2019 में वो अखिलेश यादव से करीब 2 लाख 60 हजार वोटों से चुनाव हार गए थे. पर उन्होंने आजमगढ़ की मिट्टी से अपना नाता नहीं तोड़ा और लगातार जनता के बीच ही रहे. अखिलेश ने चूंकि विधानसभा चुनाव जीतकर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने का फैसला किया इसलिए उन्होंने आजमगढ़ संसदीय सीट छोड़ दी. बाद में उपचुनाव हुए और इस सीट पर धर्मेंद्र यादव को समाजवादी पार्टी ने प्रत्य़ाशी बनाया पर बीजेपी के निरहुआ यादव से उन्हें हार मिली. हालांकि 2019 के चुनावों में निरहुआ यादव को करीब 361704 वोट मिले थे जो उपचुनावों में घटकर 312000 के करीब हो गए थे. फिर भी निरहुआ ने धर्मेंद्र यादव को करीब 8 हजार वोटों से हराया. उसके बाद निरहू यादव ने आजमगढ़ को अपना कर्म स्थली बना लिया. निरहू समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के खिलाफ मुखर रहने वाले नेता हैं. क्षेत्र में लगातार उपस्थिति से उनकी छवि आम नेताओं के मुकबाले बेहतर है. इसलिए यहां मुकाबला कांटें का होने वाला है.जीत-हार का फैसला तत्कालीन परिस्थितियों पर निर्भर करेगा.
2- क्या गुड्डू जमाली को केवल बीएसपी के वोट मिले थे
2019 के चुनावों में करीब 3 लाख से अधिक वोटों से जीतने वाली समाजवादी पार्टी कुछ महीने बाद हुए उपचुनाव में करीब 8 हजार वोटों से चुनाव हार जाती है. दरअसल बीएसपी ने एक मुस्लिम प्रत्याशी गुड्ड जमाली को चुनाव में खड़ा कर दिया. गुड्डू जमाली को करीब ढाई लाख वोट पाने में सफल रहे . जाहिर है कि वो समाजवादी पार्टी की हार का मुख्य कारण बने. बीजेपी के निरूहुआ यादव ने समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव को करीब 8 हजार वोटों से हरा दिया.
पर अब गेम उल्टा हो गया है. गुड्डू जमाली अब समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं. और उन्हें समाजवादी पार्टी ने विधान परिषद का सदस्य बना दिया है. जाहिर है कि गुडुडु के वोट समाजवादी पार्टी को मिलेंगे. पर अगर 2019 के चुनाव में मिले वोट और उपचुनाव में मिलेे गुड्डू के वोटों का विश्वेषण करें तो ऐसा लगता है कि गुड्डु को अपने समुदाय के वोट नहीं मिले. उन्हें केवल बीएसपी के वोट ही मिले थे. इस क्षेत्र में करीब 3 लाख दलित वोट हैं. 2019 में अखिलेश यादव को करीब 6 लाख 21 हजार वोट मिले थे. उपचुनावों में सपा के धर्मेंद्र यादव को 3 लाख 4 हजार वोट मिले थे और गुड्डू जमाली को करीब 2लाख 60 हजार वोट मिले थे. जबकि निरहू 312000 वोट लेकर चुनाव जीत गए थे. यानि कि निरहू 2019 के मुकाबले करीब 50 हजार वोट कम मिले थे. चूंकि 2019 में बीएसपी भी सपा के साथ थी . जाहिर है कि दलित वोट भी एसपी के साथ गए थे. जो कि उपचुनावों में एसपी को नहीं मिले. इसी तरह इस बार भी दलित वोट एसपी को मिलने की उम्मीद कम ही है.
3-ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह का फैक्टर
आजमगढ़ सीट पर राजभर और नोनिया वोट की संख्या करीब एक लाख के ऊपर है. सुभासपा नेता ओमप्रकाश राजभर और नोनिया समुदाय के कद्दावर नेता दारा सिंह चौहान इस बार बीजेपी के साथ हैं. ये दोनों नेता 2019 के चुनावों में समाजवादी पार्टी के साथ थे. जाहिर है कि इस बार ये वोट भी बीजेपी को मिल सकते हैं. घोसी उपचुनावों लोकल चुनाव क्षेत्र होने की वजह से दारा के प्रति स्थानीय लोगों में दल बदलने के चलते नाराजगी थी. जो यहां नहीं होगी. पड़ोसी सीट पर ओमप्रकाश राजभर के पुत्र अरविंद राजभर एनडीए के टिकट पर सांसदी लड़ रहे हैं. जाहिर है कि राजभर समुदाय और नोनिया समुदाय में एनडीए को लेकर पॉजिटिव सोच होगी.
4-बीएसपी का दांव
बहुजन समाज पार्टी ने जिस तरह मुरादाबाद, कन्नौज, अमरोहा और सहारनपुर में मुस्लिम कैंडिडेट खड़ा कर इंडिया गठबंधन को चैलेंज दिया है, समझा जा रहा है कि कुछ ऐसा ही चैलेंज आजमगढ़ में भी पार्टी देने वाली है. सुनने में आ रहा है कि बीएसपी आजमगढ़ के अकबर अहमद डंपी से भी संपर्क में है. डंपी आजमगढ़ से 2 बार बीएसपी के सांसद रह चुके हैं. इसके अलावा बीएसपी किसी मुस्लिम धर्मगुरु से भी संपर्क में है. हो सकता है कि ये सब बातें केवल हवा-हवाई हों पर इतना तय है कि अगर बीएसपी का कोई दमदार कैंडिडेट आता है तो धर्मेंद्र यादव के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है.
5- आजमगढ़ में जाति फैक्टर
आजमगढ़ में जाति फैक्टर हमेशा से समाजवादी पार्टी के फेवर में रहा है. यही कारण रहा है कि यहां से 2 बार मुलायम सिंह यादव , एक बार अखिलेश यादव सांसद रह चुके हैं. यादव बाहुल्य वाली सीट होने के चलते यहां से उत्तर प्रदेश के 4 पूर्व मुख्यमंत्री सांसद रहे हैं. मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के अलावा इस क्षेत्र को पूर्व सीएम चंद्रजीत यादव और पूर्व सीएम रामनरेश यादव को भी सांसद बनाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है. यादव वोटों की संख्या यहां सबसे अधिक है उसके बाद मुस्लिम वोट हैं. बताया जाता है कि यहां करीब 26 परसेंट वोट यादव और 24 परसेंट मुस्लिम वोट हैं. इस तरह माई ( मुस्लिम -यादव) समीकरण के वोट करीब 50 परसेंट हो जाता है. बाकी में सभी जातियां हैं. जाहिर है कि इस बार कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के एक साथ होने के चलते मुस्लिम वोट एक तरफा समाजवादी पार्टी को जा सकते हैं. हालांकि बीजेपी पूरी ताकत से मुस्लिम और यादव वोट में सेंध लगाने की तैयारी कर रही है.
6-यादव वोटों को तोड़ने की बीजेपी की रणनीति
आजमगढ़ में कुछ दिनों पहले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का दौरा कराने का मुख्य इरादा यादव समुदाय को यह संदेश देना था कि बीजेपी इस समुदाय की दुश्मन नहीं है. बीजेपी के साथ रहकर भी सर्वोच्च पदों पर पहुंचा जा सकता है. धर्मेंद्र यादव को टिकट मिलते ही सांसद निरहू यादव ने तुरंत तंज कसा था कि यादव केवल उनके घर ही पैदा होते हैं.आजतक से बात करते हुए दिनेश लाल यादव ने कहा कि अखिलेश यादव को आजमगढ़ में फिर से परिवार को भेजने की जरूरत नहीं थी. बीजेपी सांसद ने कहा, आजमगढ़ में किसी और प्रत्याशी को उतारा जा सकता था. यही जो उनकी सोच है कि अगर यादव ही लड़ाना है तो सिर्फ उनके घर में ही पैदा हुए हैं बाकी पूर्वांचल मे उनको कोई यादव नहीं दिखता है. ये दिक्कत है. निरहुआ ने कहा, "अखिलेश यादव को किसी स्थानीय यादव पर भरोसा नहीं है इसलिए वो अपने परिवार से ऊपर नहीं उठ पाए. उत्तर प्रदेश में यादव महासभा पर भी बीजेपी का कब्जा हो चुका है. इस महासभा के तत्वावधान में ही आजमगढ़ में मध्यप्रदेश सीएम मोहन यादव का कार्यक्रम हुआ था.