राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा यूपी में पहुंच चुकी है. कांग्रेस पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश की यात्रा बहुत महत्वपूर्ण है.कहा जाता है कि यूपी की जीत से ही रास्ता केंद्र की कुर्सी तक जाता है. यूपी में कांग्रेस मृतप्राय हो चुकी है. राहुल गांधी के लिए खुशी की बात यह है कि उसे यूपी में समाजवादी पार्टी के रूप में एक मजबूत सहयोगी मिल रहा है. अखिलेश यादव इंडिया गठबंधन में रहने के लिए मन बना चुके हैं. समझा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी कम से कम 16 सीटें काग्रेस को दे सकती है. राहुल गांधी की पहली भारत जोड़ो यात्रा ने मतदाताओं में बहुत उम्मीद जगाई थी. उम्मीद है कि भारत जोड़ो न्याय यात्रा से यूपी में भी कांग्रेस का भला हो सकता है. अगर राहुल गांधी समय रहते कुछ खास मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं तो कांग्रेस का यूपी में पुनर्जन्म संभव है. लोकसभा चुनावों के लिए अब समय तो नहीं बचा है पर इन खास 4 मुद्दों पर फोकस करके राहुल गांधी सर के बल खड़ी कांग्रेस को उसके पैरों पर खड़ी कर सकते हैं.
1- सपा से जिताऊ सीटों को हासिल करना
उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटों में समाजवादी पार्टी कांग्रेस को 15-16 सीटें दे सकती है. पर समाजवादी पार्टी उन्हीं सीटों को देने की हामी भरेगी जिन्हें वो अपने लिए कमजोर मानती है. समाजवादी पार्टी के नेता कांग्रेस के साथ गठबंधन करने को तैयार हैं पर उनका मानना यही है कि कांग्रेस को अधिक सीट देने का मतलब है बीजेपी को माइलेज देना.अखिलेश यादव कांग्रेस की पारंपरिक सीट रायबरेली और अमेठी के अलावा कानपुर, झांसी, जालौन और फतेहपुर की सीटें भी देने के लिए राजी हो सकते हैं. उम्मीद जताई जा रही है कि एक सप्ताह के भीतर सीटों की सहमति की घोषणा हो जाएगी.
समाजवादी पार्टी लोकसभा की 16 सीटों पर प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर चुकी है. इनमें करीब 3 ऐसी सीट हैं जहां कांग्रेस अपने प्रत्याशी खड़ी करना चाहेगी.आरएलडी के एनडीए कैंप में जाने के बाद अखिलेश को कमजोर होते देख कांग्रेस की इच्छाएं भी आसमान पर हैं. कहा जा रहा है कि कांग्रेस कम से कम 21 सीटों की मांग कर रही है. राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये होगी कि उन्हें जीतनी भी सीट मिले जिताऊ सीट मिले. क्योंकि समाजवादी पार्टी संख्या बल बढाने के नाम पर ऐसी सीटे कांग्रेस को दे सकती है जो खुद न समाजवादी पार्टी जीत सकती है और न ही कांग्रेस को वहां कुछ हासिल होने वाला है.
2009 में कांग्रेस ने यूपी की जिन 21 सीटों पर जीत हासिल की थी कांग्रेस उन 21 सीटों पर सपा से मांग कर गठबंधन करना चाहती है. ये सीटें हैं. कानपुर, उन्नाव, अकबरपुर, झांसी, फरुखाबाद, रायबरेली, अमेठी, गोंडा, खीरी, धौरहरा, फैजाबाद, कुशीनगर, महाराजगंज, मुरादाबाद, प्रतापगढ़, श्रावस्ती, सुल्तानपुर, डुमरियागंज, बरेली, बहराइच, बाराबंकी.
2-कांग्रेस संगठन को खड़ा करना
हो सकता है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा को बहुत सपोर्ट मिले. लोग उनकी बातों से बहुत प्रभावित होकर कांग्रेस को वोट देने का मन बनाए्ं. पर उन वोटों को बूथ तक पहुंचाना और उनसे मतदान कराने के लिए एक मजबूत संगठन की जरूरत है. जो कि यूपी में बिल्कुल भी नहीं बचा है. सबसे ज्यादा सदस्यों वाली भाजपा को मात देने के लिए कांग्रेस को भी उसी स्तर की तैयारी की जरूरत है. कांग्रेस को प्रदेश के सभी बूथों पर कार्यकर्ता मिलना तक मुश्किल है. जाहिर है कि जब तक कांग्रेस बूथ स्तर पर खुद को मजबूत नहीं करेगी राहुल गांधी की यात्रा का लाभ भी नहीं लिया जा सकेगा.
2022 के विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू लगातार सड़कों पर संघर्ष करते रहे पर उसका नतीजा कुछ नहीं निकला. उस दौर में सपा की बजाय कांग्रेस ही यूपी में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में दिख रही थी.तत्कालीन यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा भी तमाम घटनाओं पर योगी सरकार को घेरने का प्रयास किया , पर नतीजा क्या निकला? इसलिए संघर्ष से भी जरूरी है पहले पार्टी ृके संगठन को मजबूत किया जाए.
3- वोट ट्रांसफर कराना सबसे बड़ी चुनौती होगी
2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और सपा का गणित था कि वे दोनों पार्टियां साथ चुनाव लड़ेंगी तो दोनों का वोट प्रतिशत मिलकर उनकी जीत का कारण बन जाएगा. लेकिन हुआ उल्टा .कांग्रेस का वोट परसेंटेज 20212 विधानसभा चुनावों से भी कम हो गया.कांग्रेस का 2012 विधानसभा चुनाव में वोट प्रतिशत 11.6 था जो कि 2017 में 6.2 पर आ गया. सपा का वोट प्रतिशत 29.2 था जो कि 21.8 पर ठहर गया है. भाजपा ने अकेले चुनाव लड़ा पिछले विधानसभा चुनाव के 15 प्रतिशत वोट के मुक़ाबले 40 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल हुई. सवाल यह है कि ऐसा क्यों हुआ?
दरअसल समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के वोट बैंक ऐसे नहीं हैं जो ट्रांसफर हो सकें. यूपी में मायावती के वोट बैंक ही केवल ट्रांसफर होते हैं. हो सकता है कि अब वो भी वोट ट्रांसफर कराने में सक्षम न हो सकें. मुस्लिम वोट बीजेपी को मिलते नहीं है. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस अगर अलग-अलग चुनाव लड़ते तो हो सकता है कि मुस्लिम वोट कुछ बंट जाते ,जो अब न बंटे . कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के साथ चुनाव लड़ने से बस एक यही फायदा होने वाला है.राहुल गांधी और अखिलेश यादव को अपनी यात्रा के दौरान अपने वोटर्स से इस बात की ही अपील करनी होगी कि जहां कांग्रेस के प्रत्याशी हों वहां समाजवादी पार्टी के कोर वोटर बीजेपी की बजाय कांग्रेस को वोट दें.
4-रायबरेली और अमेठी को बचाने की चुनौती
उत्तर प्रदेश में 2019 के लोकसभा चुनावों के पहले तक कांग्रेस की 2 सीटों पर जीत पक्की होती थी. अमेठी और रायबरेली कांग्रेस की सीट मानी जाती रही है. पर 2019 में अमेठी से मिली हार के राहुल गांधी अब वायनाड़ के हो चुके हैं. सोनिया गांधी भी राज्यसभा जा रही हैं उन्होंने रायबरेली को छोड़ने का ऐलान कर दिया है. हो सकता है कि यहां से प्रियंका गांधी चुनाव लड़ें पर स्थितियां ऐसी हैं कि रायबरेली की सीट भी फंस सकती है. कांग्रेस के हाथ से रायबरेली और अमेठी के निकलने का मतलब है कि यूपी से कांग्रेस का आधार का खत्म होना. शायद यही कारण है कि राहुल गांधी की न्याय यात्रा में इन दोनों जगहों को शामिल किया गया है. अखिलेश यादव भी इन दोनों जगहों में से किसी जगह राहुल की यात्रा में शामिल हो सकते हैं. अखिलेश का आना यहां के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.रायबरेली लोकसभा सीट की 5 विधानसभा सीटों में 4 समाजवादी पार्टी के पास हैं.इसी तरह अमेठी लोकसभा की सीट पर भी समाजवादी पार्टी का अच्छा खासा वोट बैंक है. राहुल गांधी को हर हाल में ये दोनो्ं सीटें जीतने की कोशिश करनी होगी.