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जाटों का जाल बनाकर खुद ही उसमें फंस गए हुड्डा, क्‍या कांग्रेस में होगा आर-पार का खेल? । Opinion

राहुल गांधी ने हरियाणा विधानसभा चुनावों के बारे में कहा है कि पार्टी के कुछ नेताओं ने अपने व्यक्तिगत हित को पार्टी से ऊपर रखा. हालांकि राहुल गांधी की यह बात पार्टी में कई नेताओं के लिए फिट बैठती है. पर इसे समझा हुड्डा परिवार के लिए ही जा रहा है. आखिर किसी को तो बलि का बकरा बनाना ही है. आइये देखते हैं कि हुड्डा परिवार का कांग्रेस में क्या भविष्य है?

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हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को क्या कांग्रेस बनाएगी बलि का बकरा?
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को क्या कांग्रेस बनाएगी बलि का बकरा?

हरियाणा में कांग्रेस की हार के पीछे तमाम राजनीतिक विश्वेषकों ने जो निष्कर्ष निकाले हैं उसका लब्बोलुआब यह है कि कांग्रेस नेता हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके सांसद पुत्र दीपेंद्र हुड्डा की राज्य कांग्रेस पर मोनोपोली ने पार्टी को धूल चटा दिया. हो सकता है कि यह तर्क सही हो. पर यह भी सही है कि हरियाणा में जो कांग्रेस ने 37 सीटें झटक ली हैं उसके पीछे भी हुड्डा पिता-पुत्र की मेहनत और उनकी रणनीति है. पर भौतिक विज्ञान में काम की जो परिभाषा है उसके अनुसार जिस दिशा में बल लगाया गया और उस दिशा में अगर विस्थापन नहीं हुआ तो माना जाता है कि कार्य हुआ ही नहीं. वही हाल है कांग्रेस की सफलता का भी. चूंकि राज्य में कांग्रेस की सरकार नहीं बन पाई इसलिए चाहे बीजेपी के बराबर वोट प्रतिशत हो या 37 सीटें हो, कोई मायने नहीं रखता है. इसलिए हुड्डा पिता-पुत्र की सारी मेहनत को कांग्रेस की हार का कारण ही समझा जाएगा.

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दूसरे बड़ी पार्टियों में जीत का श्रेय केंद्रीय नेतृत्व को जाता है और हार होने पर क्षत्रप को जिम्मेदारी लेनी होती है. यह लगातार साबित करने की कोशिश हो रही है कि हुड्डा पिता-पुत्रों ने अगर पार्टी पर कब्जा नहीं जमाया होता, दूसरे नेताओं को भी महत्व दिया गया होता तो पार्टी जीतते नहीं रह गई होती.अब सवाव उठता है कि क्या भूपेंद्र सिंह हुड्डा की राजनीतिक पारी का अंत समझा जाए. अब हरियाणा कांग्रेस का पूरा भविष्य क्या हुड्डा के राजनीतिक भविष्य पर टिका हुआ है?

1-भूपेंदर हुड्डा की राजनीतिक पारी का अंत ही समझिये

भूपेंद्र सिंह हुड्डा की आयु अब 77 साल हो चुकी है. अगले विधानसभा चुनावों तक उनकी उम्र 82 साल हो चुकी होगी. वैसे भी वे हरियाणा विधानसभा में हार की हैट-ट्रिक तो कायम कर चुके. इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि अब उनकी राजनीति का अवसान हो चुका है. हालांकि वे अभी खुद को जवान ही मानते हैं. पर पार्टी में जिस तरह उनके खिलाफ लगातार लोग बोल रहे हैं उससे यही लगता है कि अब उनकी राजनीतिक ज्यादा दिन नहीं चलने वाली है. उन पर आरोप लग रहे हैं कि पार्टी को जाटलैंड तक में वोट इसलिए नहीं मिला क्योंकि...

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- पहला आरोप यह है कि हुड्डा ने जानबूझकर कुछ जगहों से कांग्रेस के बागी उम्मीदवारों को खड़ा करवाया था ताकि पार्टी पूर्ण बहुमत से बहुत अधिक सीट न पा जाए. क्योंकि ऐसी स्थिति में पार्टी किसी दूसरे को भी मुख्यमंत्री बना सकती है. इसलिए हुडडा कांग्रेस की कई सीटों को हरवाने की रणनीति भी साथ लेकर चल रहे थे.

-हुड्डा ने इसलिए ही आम आदमी पार्टी के साथ हरियाणा में कांग्रेस का गठबंधन होने नहीं दिया. क्योंकि वो चाहते थे कि हरियाणा में एक छत्र उनका ही साम्राज्य कायम रहे.

- चूंकि हुड्डा का मुख्य फोकस जाटों पर था इसलिए बीजेपी को दलितों को एंटी जाट बताने का बहान मिल गया. बीजेपी नेताओं ने उनके कार्यकाल में हुए मिर्चपुर कांड और गोहाना कांड को प्रचारित किया. बीजेपी ने लोगों को समझाया कि अगर हुड्डा सरकार प्रदेश में बनती है तो एक बार फिर हरियाणा में जाटों का राज होगा. दलितों पर उत्पीड़न की मिर्चपुर और गोहाना कांड जैसी कहांनियां फिर शुरू होंगी.

-हुड्डा के कई समर्थकों ने प्रचार के दौरान ये बातें कहीं कि हुड्डा सरकार बनते ही वो अपने इलाके से बड़ी संख्या में युवकों को सरकारी नौकरियों में भर्ती कराएंगे. जैसा कि हुड्डा सरकार में हो रहे थे. तमाम एंटी जाट वोटर्स को लगा कि अगर बीजेपी सत्ता से बाहर हुई तो एक बार फिर केवल जाटों को ही नौकरियां लगेंगी.

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जाहिर है कि इतनी शिकायतों के बाद शायद ही उनको एक बार फिर हरियाणा में कांग्रेस के चुनाव अभियान की कमान मिल सके.कांग्रेस को अगर हरियाणा में दूसरी जातियों का वोट पाना है तो हुड्डा परिवार से अलग एक दूसरा नेतृत्व सामने लाना होगा . वह भी ऐन चुनावों के मौके पर नहीं . क्योंकि एक दिन , एक महीने या एक साल में कांग्रेस पर जाट पार्टी का लगा धब्बा धुलने वाला नहीं है. उम्मीद की जाती है की पार्टी बहुत जल्द ही हरियाणा में नया नेतृत्व लाने की कोशिश करेगी जो 36 बिरादरियों का वास्तविक नेतृत्व रखता हो.

2-दीपेंदर हुड्डा के सामने है जाट नेता वाली छवि को तोड़ने की चुनौती

भूपेंद्र हुड्डा पुत्र दीपेंद्र हुड्डा रोहतक से सांसद हैं. उनकी आवाज संसद में भी कई बार ऐसी गूंजी है जब पूरे देश ने उनको सुना है. संसद में दी गई उनकी एक स्पीच बहुत वायरल हुई थी. तब कहा गया था दीपेंद्र हुड्डा राजनीति में बहुत लंबी पारी खेलने वाले नेता हैं.   इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है कि कांग्रेस के लिए दीपेंद्र हुड्डा ने भी जी जान लगाकर कैंपनिंग की है. पिछले कई सालों से लगातार भूपेंद्र हुड्डा अपने पुत्र दीपेंद्र हुड्डा को प्रदेश का सीएम बनाने की जमीन तैयार कर रहे थे. दीपेंद्र हुड्डा की कई  रैलियों में एक लाख से अधिक लोग इकट्ठे हुए . चुनाव के कुछ दिनों पहले दीपेंद्र ने पूरे प्रदेश में यात्रा भी निकाली . जिस प्रदेश में पार्टी का जिलाध्यक्ष और बूथ कमेटी तक पिछले 8 साल से न हो उस प्र्देश में पार्टी का सारा काम हु्ड्डा परिवार के संसाधनों के भरोसे ही हो रहा था.इसलिए ऐसी उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि हुड्डा परिवार को कांग्रेस हाशिए पर रखे जाने की हिम्मत दिखा सकती है. पर दीपेंद्र हुड्डा को अगर हरियाणा की राजनीति में अपने पिता की उपलब्धि को हासिल करना है तो उन्हें समय के हिसाब से अपने में बदलाव करना होगा. कांग्रेस शुरू से सभी जाति और बिरादरी की पार्टी रही है. उसे केवल जाटों की पार्टी बनाकर हुड्डा परिवार राज्य में कांग्रेस की वापसी नहीं कर सकती है. क्योंकि उनके मुकाबले बीजेपी जैसी मजबूत संगठन वाली पार्टी है.

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3-हुड्डा परिवार के राजनीतिक भविष्‍य पर टिका है कांग्रेस का भविष्‍य, वरना...

हरियाणा में अगर अभी देखा जाए तो कोई भी ऐसा लीडर नहीं है जो हुड्डा परिवार के नजदीक भी कहीं ठहरता हो. रणदीप सुरजेवाला हों या कुमारी सैलजा, दोनों की राजनीतिक ताकत कुछ जिलों या कुछ सीटों तक ही सीमित है. हुड्डा जैसा पूरे जाटलैंड पर एक छत्र नेतृत्व किसी और के पास नहीं है. इसके पीछे भूपेंद्र हुड्डा का हरियाणा में 10 साल तक सीएम रहना भी है. दूसरे पिता-पुत्र के रूप में वे डबल इंजन वाले लीडरशिप की भूमिका में आ जाते हैं. जिस तरह राहुल गांधी ने गुरुवार को कहा है कि हरियाणा में कुछ नेताओं का व्यक्तिगत हित पार्टी से ऊपर रहा. समझा जाता है कि उनका इशारा हुड्डा परिवार पर ही था.हालांकि हुड्डा ही नहीं कांग्रेस के अधिकतर नेताओं पर यह आरोप सही लगते हैं. पर हुड्डा पर कांग्रेस एक्शन लेकर अपना ही नुकसान करने वाली है. हुड्डा तो पहले भी असंतुष्टों के गुट 23 में शामिल रहे हैं. राहुल गांधी उनको नापसंद करते रहे हैं. भूपेंद्र हुड्डा यह जानते भी हैं पर अधिकार के साथ हरियाणा कांग्रेस पर कब्जा जमाए हुए हैं.
अगर हुड्डा के साथ पार्टी कोई एक्शन लेती है तो उन्हें पार्टी छोड़ने में देर नहीं लगेगी. क्योंकि हरियाणा में कई दशकों से क्षेत्रीय पार्टियों का अहम रोल रहा है. इनेलो ने तो हरियाणा में राज किया ही है उसके पहले बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी भी सरकार बनाने में सफल हुई थी. छोटा प्रदेश होने के नाते यहां कोई भी कद्दावर लीडर अपनी पार्टी बनाकर सफल होने की स्थिति में आ सकता है. इस समय हरियाणा में कोई भी क्षेत्रीय राजनीतिक दल मजबूत स्थिति में नहीं है. हुड्डा के साथ कांग्रेस का जरा भी समीकरण गड़बड़ होता है तो प्रदेश में एक और राजनीतिक दल अस्तित्व में आ जाएगा. जिसका सीधा फायदा बीजेपी को ही होगा.

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