बिहार में नीतीश सरकार ने देश के पहले जातिगत आबादी की सर्वे रिपोर्ट पेश कर दी है. सर्वे रिपोर्ट आने के बाद आ रहे नेताओं के बयान बताते हैं कि 'मंडल-2' की स्क्रिप्ट पहले से तैयार है. मंडल कमीशन की रिपोर्ट 1989 में आने के बाद देश की राजनीति बदल गई थी. हालांकि रिपोर्ट लागू होने के बाद इसकी बहुत बड़ी कीमत भी समाज ने चुकाई थी. मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने के विरोध में देशभर में करीब 100 से अधिक युवाओं ने विरोध स्वरूप आत्महत्या कर ली थी.
अब मंडल 2.0 की बारी है. गनीमत है कि जातिगत जनगणना के ये सर्वे हैं, अभी इन सर्वे के आधार पर कोई फैसला नहीं हो रहा है. हालांकि लालू यादव ने ट्वीट करके जिसकी जितनी संख्या उसकी उतनी हिस्सेदारी बोलकर अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं. मतलब साफ है कि आगे लंबी लड़ाई है. बिहार में जिसकी जितनी संख्या उतनी उसकी हिस्सेदारी का फार्मूले से देखें तो बिहार विधानसभा में प्रतिनिधित्व के मामले में सवर्णों को ही नहीं यादव और कुर्मी को भी नुकसान होने वाला है.
2020 के चुनाव में किस जाति के कितने थे विधायक
2020 के चुनावों में बिहार की राजनीति में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन का फॉर्मूला सवर्णों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुआ था . यादव, कुर्मी और कुशवाहा जैसी जातियों के लिए नुकसान साबित हुआ है. इस गठबंधन के चलते ओबीसी समुदाय से आने वाली जातियों के विधायक घट गए थे. हालांकि घटने के बाद भी यादव अपनी संख्या 14 परसेंट से ज्यादा करीब 21 परसेंट विधायक भेजने में सफल रहे. बिहार विधानसभा में इस बार हर चार विधायक में से एक सवर्ण है. इस तरह राज्य की 243 विधानसभा सीटों में से करीब 64 विधायक अगड़ी जातियों से चुनकर आए थे. बिहार में कुल 28 राजपूत विधायक जीतकर आए हैं जबकि 2015 में 20 विधायक ही जीते थे.इस तरह 3.45 जनसंख्या वाला राजपूत समुदाय साढ़े ग्यारह प्रतिशत के करीब विधायक चुने गए.इसी प्रकार 2.86 प्रतिशत वाल भूमिहार समुदाय करीब 4 गुना अधिक विधायक भजने में कामयाब हुआ है. करीब 21 भूमिहार विधायक चुनकर पहुंचे थे जबकि 2015 में 17 विधायक चुने गए थे. करीब 12 ब्राह्मण विधायक चुनाव जीते हैं जबकि 2015 में 11 विधायकों ने जीत हासिल की थी.यह तय है कि आने वाले दिनों में जातियों के हिसाब से प्रतिनिधियों के चुने जाने की बात हो सकती है.सवर्णों की कुल आबादी में परसेंटेज केवल 15 है जबकि बिहार विधानसभा में उनका प्रतिनिधित्व 26 परसेंट से ऊपर हैं.
यादव और कुर्मी को भी नुकसान
बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार यादव विधायकों की संख्या की संख्या घटकर फिर 2010 के आंकड़े पर पहुंच गई है. इस बार चुनाव में विभिन्य दलों से कुल 52 यादव विधायक चुने गए हैं जबकि 2015 में 61 विधायक जीतकर आए थे.जाति सर्वे के आधार पर देखा जाए तो यादव जाति का हिस्सा 14 प्रतिशत के करीब है जबकि वह 21.5 परसेंट विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे हैं. इस बार 9 कुर्मी समुदाय के विधायक ही जीत सके हैं जबकि 2015 में 16 कुर्मी विधायक जीतने में सफल रहे थे.पर अभी भी अपनी जातिगत हिस्सेदारी के हिसाब से कुर्मी करीब 4 गुना चुने गए हैं. कुर्मी अबादी 2.87 है जबकि कुल 9 विधायक चुने गए हैं. इस तरह करीब 3 गुना से अधिक विधायक चुने गए हैं.