बिहार सरकार की जाति सर्वे की दूसरी रिपोर्ट सामने आ गई है . इस रिपोर्ट के दूरगामी परिणाम होने तय हैं. रिपोर्ट को अगर सही मानें तो सामान्य वर्ग और पिछड़ा वर्ग में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले में कोई खास फर्क नहीं है. यानि दोनों तबकों में गरीबी करीब-करीब एक समान है. यही नहीं अति पिछड़े और अन्य पिछड़ा वर्ग में गरीबी एक दम बराबर ही हैं. रिपोर्ट के अनुसार चौथाई प्रतिशत यानि 25.09 प्रतिशत से अधिक लोग समान्य वर्ग में गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत कर रहे हैं. इसी तरह पिछड़ी जाति के लोगों में 33.16 प्रतिशत से लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं. इस तरह देखा जाए तो आर्थिक आधार पर पिछड़े तबकों के लिए आरक्षण की बात बेमानी हो जाती है.सबसे कमाल की बात तो यह है कि भूमिहार जो राज्य की भूस्वामी जाति रही है उसमें गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत करने वाले लोग 27.58 परसेंट हैं. यानि की अति पिछड़े और भूमिहार जाति में गरीबी रेखा से नीचे जीने वालों में कोई खास अंतर नहीं हैं . तो क्यों नहीं भूमिहार लोगों को भी आरक्षण मिले. इस रिपोर्ट ने तो समाजिक न्याय के फार्मूले को ही उलट दिया है.
पिछड़े और अति पिछड़े में कोई अंतर नहीं दिखा सर्वे करने वालों को
जाति सर्वे की पहली रिपोर्ट में बिहार में रहनेवाली जातियों की संख्या की जानकारी दी गई थी. दूसरी रिपोर्ट में विभिन्न जातियों में गरीबों रेखा से नीचे रहनेवालों की संख्या बताई गई है. इस रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में सबसे अधिक गरीबी 47.70 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के लोगों में है. बिहार विधानमंडल का शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन बिहार सरकार ने जाति आधारित गणना की आर्थिक रिपोर्ट पेश की. रिपोर्ट के अनुसार बिहार में पिछड़ा वर्ग में 33.16%, सामान्य वर्ग में 25.09%, अति पिछड़ा वर्ग में 33.58%, अनुसूचित जाति वर्ग में 42.93%, अनुसूचित जनजाति वर्ग में 42.7% गरीब परिवार हैं. सामान्य वर्ग में भूमिहार सबसे ज्यादा 25.58% परिवार, ब्राह्मण में 25.32% परिवार, राजपूत में 24.89% परिवार, कायस्थ में 13.83% परिवार गरीब हैं. भट्ट में 23.68% परिवार, मल्लिक, मुस्लिम में 17.26% परिवार, हरिजन में 29.12% परिवार, किन्नर 25.73% परिवार, कुशवाहा में 34.3 2% परिवार, यादव 35.87% परिवार, 29.90% कुर्मी परिवार, सोनार में 26.58% परिवार, मल्लाह में 32.99 परिवार गरीब हैं. इस रिपोर्ट के आधार पर तो लगता है कि बिहार में पिछड़े वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग में कोई अंतर ही नहीं है.
जनरल परसेप्शन से अलग लगती है रिपोर्ट
बिहार जाति सर्वे की रिपोर्ट के पहले भाग की जबरदस्त आलोचना हुई थी. कई समुदायों के लोगों को लगा था उनके साथ अन्याय हुआ है.कई समुदायों की जनसंख्या को अधिक दिखाने का और कई समुदायों की संख्या को कम दिखाने का आरोप लगा था. दूसरी रिपोर्ट का भी विरोध होना तय है .सामान्य रूप से जो परसेप्शन था जातियों और समुदायों की उसे यह रिपोर्ट पूरी तरह खारिज करती है. पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग में आर्थिक रूप से कोई अंतर नहीं दिख रहा है. पिछड़ा वर्ग में गरीबी 33.16 परसेंट और अति पिछड़ा वर्ग में 33.58 परसेंट गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोग हैं यानि दोनों तबकों में गरीबी रेखा से नीचे के लोग करीब-करीब बराबर हैं. जब कि रोजमर्रा के जीवन शैली , घर, शिक्षा आदि के जीवन शैली को देखकर तो यही लगता है कि अतिपिछड़े समुदाय में गरीबी अधिक है.
सामान्य वर्ग में भूमिहार सबसे अधिक गरीब
इसी तरह बिहार में भूमिहार जाति सबसे बड़ी भूस्वामी जाति रही है. प्रदेश में सबसे अधिक दबंग , जमीन-जायदाद , ठेकेदारी आदि का सबसे अधिक इसी जाति के पास है. सामान्य तौर पर सभी को लगता है कि बिहार में भूमिहार सबसे अधिक संपन्न हैं. पर इस रिपोर्ट को सही माने तो सामान्य वर्ग में सबसे खराब स्थिति में भूमिहार ही हैं. और तो और अति पिछड़े वर्ग और भूमिहार तबके के गरीबी रेखा से नीचे के लोगों की तुलना की जाए तो अंतर केवल 6 परसेंट का रह जाता है. यानी कि अति पिछड़े तबके और भूमिहारों में गरीबी करीब-करीब बराबर ही है. यही हाल ब्राह्रमण और राजपूतों का भी है. एक सामान्य परसेप्शन रहा है कि ब्राह्रमणों के पास राजपूतों के मुकाबले जमीन बहुत कम रही है. पर यहां तो दोनों तबकों में गरीबी एक्युरेट बराबर है.
लोग यादवों से अमीर हैं कुर्मी
इसी तरह यादव परिवार में गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वाले लोगों का प्रतिशत 35.87 परसेंट है जबकि कुर्मी लोगों में गरीबी यादव परिवारों से करीब 6 परसेंट कम 29.90 परसेंट ही है. कुशवाहा और मल्लाह में भी गरीबी का परसेंटेट एक जैसा ही है. लगता है कि रिपोर्ट में ही खामियां हैं. बिहार को लोग शायद ही इसे पचा पाएं. बिहार के जर्नलिस्ट रामनाथ राजेश कहते हैं कि बिहार सरकार डेटा से खिलवाड़ करती रही है. इस बार भी ऐसा ही हुआ है. विशेषकर पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग में गरीबी का लेवल एक जैसा देखकर लगता है कि डेटा मैन्युफैक्चर्ड है.