हरियाणा की तरह महाराष्ट्र में भी बीजेपी बैकफुट रहते हुए खेला करने के बारे में सोच रही है. जिस तरह हरियाणा में लोकसभा चुनावों में अपेक्षित सफलता न मिलने के बाद विधानसभा चुनाव आते-आते बीजेपी ने हारती हुई बाजी जीत ली थी. वैसा ही कुछ महाराष्ट्र में भी हो सकता है. महाराष्ट्र में भी लोकसभा चुनावों में बीजेपी नीत गठबंधन महायुति की दुर्गति हुई थी. अब हरियाणा वाले दांव से बीजेपी महाराष्ट्र में भी मेडल अपने नाम करने की योजना पर काम कर रही है.
इस बार के हरियाणा चुनाव में बीजेपी ने 39.94 प्रतिशत यानी लगभग 40 प्रतिशत वोट पाए. जबकि कांग्रेस को 39.09 प्रतिशत यानी लगभग 39 प्रतिशत वोट मिले. यह सिर्फ 0.85 प्रतिशत का अंतर था. फिर भी बीजेपी ने 48 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस सिर्फ 37 सीटें जीत पाई. इसी तरह लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र में भाजपा की अगुवाई वाले महायुति गठबंधन को 43.55 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस की अगुवाई वाले महाविकास अघाड़ी के दलों को 43.71 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे. पर सीटों में बहुत बड़ा अंतर सामने आया था. मतलब साफ है कि कुल एक से 2 परसेंट वोट की लड़ाई है. आइये देखते हैं कि किस तरह महायुति गठबंधन एक-एक वोट की लड़ाई लड़ रहा है.
1- ओबीसी कार्ड अपने पक्ष में करने को आतुर महायुति
इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के अनुसार महाराष्ट्र में ओबीसी जातियों का कुल आबादी का 52 प्रतिशत है. कुल 351 पिछड़ी जातियां हैं जिसमें से 291 जातियां केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल हैं. सात नई जातियों और उनकी उप-जातियों को शामिल करने की मांग 1996 से लंबित थी. एनसीबीसी के पास इन जातियों को भी केंद्रीय सूची में शामिल करने का राज्य सरकार का प्रस्ताव अभी हाल फिलहाल ही आया है. जाहिर है कि विदर्भ, उत्तर महाराष्ट्र, मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र जैसे इलाकों में विधानसभा चुनावों में यह महायुति गठबंधन के बहुत काम आने वाला है. बीजेपी ने महाराष्ट्र में पहले भी माधव – माली, धनगर और वंजारी (ओबीसी) – फॉर्मूला विकसित किया था, जिसने महाराष्ट्र में भाजपा को कई चुनावों में फायदा पहुंचाया.
यही नहीं राज्य सरकार ने केंद्र से क्रीमी लेयर की आय सीमा को 8 लाख रुपये से बढ़ाकर 15 लाख रुपये प्रति वर्ष करने की सिफारिश की है. मतलब साफ है कि महाराष्ट्र सरकार का इरादा है कि क्रीमी लेयर का दायरा बढ़ाकर सभी ओबीसी कैटेगरी के हर वर्ग को आरक्षण का लाभ पहुंचाया जा सके. दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार पूरी तरह मेहरबान है ओबीसी केटेगरी पर. दूसरी ओर मराठा आरक्षण की मांग पर सरकार पूरी तरह मौन की स्थिति में है.
2- शिंदे का नाम आगे बढ़ाने से मराठा वोटों का मिल सकता है लाभ
एकनाथ शिंद मराठा समुदाय से आते हैं. बीजेपी के साथ दिक्कत है कि हरियाणा में जाटों की तरह महाराष्ट्र में मराठे भी पार्टी से नाराज हैं. यही कारण रहा कि एकनाथ शिंदे को पार्टी अपना फेस बनाए हुए है. जबकि गठबंधन सरकार में वो डिप्टी सीएम भी बनाए गए होते तो भी खुश रहते. सीएम की कुर्सी मिलना तो उनके लिए बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना जैसा था.पर अब वो इतना ताकतवर हो चुके हैं कि लोकसभा चुनावों में उनकी शिवसेना ने उद्धव ठाकरे वाले शिवसेना से बेहतर प्रदर्शन किया.बीजेपी भी केवल इसी चक्कर में देवेंद्र फडणवीस को सीएम नहीं बना पाई कि कही मराठों को यह भान न हो जाए कि यह पार्टी अपने लाभ के लिए शिवसेना तोड़ दी. भारतीय जनता पार्टी के पास कोई भी कद्दावर और लोकप्रिय मराठा नेता नहीं हैं. शायद यही सोचकर तब शिंदे को सीएम बनाया गया. जो काम करता दिख रहा है. अब जबकि फडणवीस खुद सीएम कैंडिडेट के लिए शिंदे का नाम ले रहे हैं तो जाहिर है मराठा समुदाय पर कुछ तो असर होगा ही.
3- मायावती और ओवैसी फैक्टर भी करेगा काम
हरियाणा में बीजेपी की जीत का एक फैक्टर दलित वोट को भी माना गया है. महाराष्ट्र में बीएसपी प्रमुख मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की है. जिस तरह हरियाणा में बीएसपी का वोट परसेट बढ़ा है उसी तरह उम्मीद की जानी चाहिए कि महाराष्ट्र में भी कुछ परसेंट वोट मिलेंगे. ओवैसी की पार्टी भी महाराष्ट्र में अपना आधार बना चुकी है. चूंकि सारी लड़ाई केवल एक परसेंट वोट की ही है. इसलिए मायावती और ओवैसी का एक-एक वोट बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण होगा. हरियाणा और महाराष्ट्र में कुल एक परसेट से भी कम वोटों ने सीटों का बड़ा उलटफेर देखा गया है.
4- शिंदे शिवसेना और अजीत पवार की पार्टी को भी मिल सकता है मुस्लिम वोट
महायुति सरकार ने पिछले दिनों उम्मीद के विपरीत मदरसा टीचर्स के वेतन में भारी बढ़ोतरी करके यह साबित कर दिया था कि मुसलमान उनके लिए अछूत नहीं हैं. दूसरी ओर बाबा सिद्दीकी को राजकीय सम्मान देकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने एक और पहल की है. अजित पवार ने तो यह घोषित ही कर रखा है कि वो अपने कोटे के टिकटों में से 10 परसेंट टिकट मुसलमानों को देगे. इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए की कुछ तो वोट शिंदे शिवसेना और अजीत पवार की एनसीपी को भी मिलेंगे.
5-लड़की बहिन योजना और टोल टैक्स फ्री का लाभ होगा
महाराष्ट्र में लडकी बहिन योजना को सरकार का सबसे बड़ा चुनावी दांव माना जा रहा है. सरकार ने जुलाई महीने से लडकी बहिन योजना शुरू की. इस योजना में महिलाओं के खाते में हर महीने 1500 रुपये जमा किए जाते हैं. इसी बीच प्यारी बहनों की दिवाली और भी मीठी करने के लिए सरकार ने बहनों को 5500 रुपये का बोनस भी देने की तैयारी की है.
शिंदे सरकार ने कार, जीप, वैन समेत हर एक छोटे वाहन के लिए टोल टैक्स फ्री कर दिया है. मुंबई में एंट्री के लिए सभी पांच टोल बूथ पर हल्के मोटर वीइकल के लिए टोल पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है.
6-ब्राह्मण और राजपूत जातियों के लिए निगम
आम तौर पर कोई भी राज्य सरकार ब्राह्मणो और राजपूतों के लिए कुछ नहीं करती है. पर शिंदे सरकार ने इन दोनों समुदायों को भी लुभाने का काम किया है. इन दोनों समुदायों के कमजोर तबकों के लोगों के उत्थान के लिए दोनों समुदायों के लिए अलग-अलग निगम बनाए गए हैं. दोनों निगम ब्राह्मण और राजपूत समुदायों के कमजोर वर्गों के व्यक्तियों को कौशल विकास और स्वरोजगार के अवसरों में आर्थिक सहायता प्रदान करेंगे.