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राजस्थान में भी बीजेपी के MP जैसे प्रयोग, वसुंधरा राजे फिर दरकिनार?

राजस्थान के लिए आयी बीजेपी उम्मीदवारों की सूची मध्य प्रदेश जैसी ही है. वसुंधरा राजे को अभी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिये क्योंकि उनके विधानसभा क्षेत्र झालारपाटन से किसी को टिकट नहीं मिला है - हां, चिंता की बात है कि दीया कुमारी को वसुंधरा राजे के ही एक समर्थक का टिकट काट कर उम्मीदवार बनाया गया है.

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राजस्थान के मैदान में दीया कुमारी की एंट्री वसुंधरा राजे की फिक्र बढ़ाने वाली है, राज्यवर्धन राठौड़ के लिए सख्त संदेश
राजस्थान के मैदान में दीया कुमारी की एंट्री वसुंधरा राजे की फिक्र बढ़ाने वाली है, राज्यवर्धन राठौड़ के लिए सख्त संदेश

राजस्थान में भी बीजेपी ने करीब करीब मध्य प्रदेश जैसा ही प्रयोग किया है. बीजेपी ने राजस्थान में सांसदों को तो विधानसभा का टिकट दिया है, लेकिन पहली सूची में किसी केंद्रीय मंत्री का नाम नहीं शामिल है.  

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विधानसभा उम्मीदवार बनाये गये सांसदों में मुख्य तौर पर दो नाम हैं. एक हैं दीया कुमारी और दूसरे हैं राज्यवर्धन राठौड़. दीया कुमारी राजस्थान की राजसमंद लोक सभा सीट से सांसद हैं, जबकि राज्यवर्धन राठौड़ संसद में जयपुर ग्रामीण लोक सभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. 

दीया कुमारी और राज्यवर्धन राठौड़ के साथ साथ किरोड़ी लाल मीणा, बाबा बालकनाथ, देवी सिंह पटेल, नरेंद्र कुमार और भगीरथ चौधरी को भी विधानसभा का उम्मीदवार बनाया गया है. सांसदों की बात करें तो दीया कुमारी को छोड़ कर बाकी 6 सांसदों के लिए बीजेपी की तरफ से संदेश भी दे दिया गया है. 

सांसद दीया कुमारी को विधानसभा चुनाव में उतारने के मायने

हाल ही में हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जयपुर रैली के दौरान दीया कुमारी को मिले वीआईपी ट्रीटमेंट ने हर किसी का ध्यान खींचा था. दीया कुमारी भी राजघराने से ही आती हैं. वो जयपुर के महाराजा सवाई सिंह और महारानी पद्मिनी देवी की बेटी हैं. 

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मध्य प्रदेश के सिंधिया और राजस्थान के धौलपुर राजघराने से ताल्लुक रखने वाली पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए ये संकेत बिलकुल भी अच्छा नहीं है. राजनीति को समझें तो बीजेपी वसुंधरा के समानांतर एक महिला नेता को ही धीरे धीरे मैदान में उतार रही है, वो भी ऐसी महिला नेता जो राजघराने से ही आती हो. 

मोदी की जयपुर रैली के सारे इंतजाम का जिम्मा महिला नेताओं और कार्यकर्ताओं के पास था. संसद के विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल पास होने के उपलक्ष्य में ये जश्न जैसा था, लगे हाथ वसुंधरा राजे के लिए भी कड़ा संदेश देना भी एक मकसद रहा. 

पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को विधानसभा का टिकट नहीं दिया जाना, और सांसद होने के बावजूद दीया कुमारी उम्मीदवारों की पहली सूची में जगह मिलना - काफी मजबूत इशारे कर रहा है.

वसुंधरा राजे की पूछ लगातार घटती जा रही है

बीजेपी के उम्मीदवारों की सूची में वसुंधरा राजे का नाम न होना, हैरान करने वाला तो नहीं कहा जा सकता लेकिन उनकी चिंता बढ़ाने वाला तो है ही. वैसे तो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के उम्मीदवारों की पहली सूची में शिवराज सिंह चौहान और डॉक्टर रमन सिंह के नाम नहीं थे. छत्तीसगढ़ की दूसरी सूची में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को बतौर उम्मीदवार जगह दी गयी है, और वैसे ही मध्य प्रदेश की चौथी लिस्ट में शिवराज सिंह चौहान का भी नाम शामिल किया जा चुका है. वसुंधरा राजे के लिए बस इतनी ही राहत की बात है. 

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जिस दिन 5 राज्यों में चुनावों की घोषणा होती है, बीजेपी शिवराज सिंह और रमन सिंह को विधानसभा उम्मीदवार बना देती है, लेकिन वसुंधरा राजे के नाम के साथ सस्पेंस छोड़ देती है, ये भी तो आलाकमान की रणनीति का ही हिस्सा है. ऐसा लगता है जैसे वसुंधरा राजे के धैर्य की परीक्षा ली जा रही हो. जैसे उनको उकसा कर कुछ गलती करने का मौका दिया जा रहा हो. शिवराज सिंह चौहान को उनकी परंपरागत सीट बुधनी और रमन सिंह को राजनंदगांव से विधानसभा उम्मीदवार बनाया गया है. 

अभी वसुंधरा राजे को उम्मीद इसलिए भी नहीं छोड़नी चाहिये क्योंकि उनके विधानसभा क्षेत्र झालारपाटन से किसी को टिकट नहीं दिया गया है - लेकिन सबसे बड़ी चिंता की बात है कि दीया कुमारी को वसुंधरा राजे के ही एक समर्थक का टिकट काट कर उम्मीदवार बनाया गया है. ठीक ऐसा ही राज्यवर्धन राठौड़ के केस में भी किया गया है. 

विद्याधर नगर (जयपुर) से मौजूदा विधायक नरपत सिंह राजवी का जगह सांसद दीया कुमारी को विधानसभा उम्मीदवार बनाया गया है. वैसे ही झोटवाड़ा (जयपुर) से पूर्व मंत्री राजपाल सिंह शेखावत की जगह पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को टिकट दिया गया है. नरपत सिंह राजवी और राजपाल सिंह शेखावत, दोनों ही वसुंधरा राजे के समर्थक विधायक माने जाते रहे हैं. मतलब ये कि पहली सूची से वसुंधरा राजे के समर्थक विधायकों को नजरअंदाज किया जाना शुरू हो चुका है. 

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राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी की तरफ से अब तक दो समितियों का ऐलान किया जा चुका है. एक, चुनाव प्रबंधन समिति और दूसरी, संकल्प पत्र समिति. दोनों ही समितियों में वसुंधरा राजे को शामिल नहीं किया गया - और दोनों ही समितियों में वसुंधरा राजे के कट्टर विरोधी माने जाने वाले नेताओं को काम दिया गया है. वसुंधरा राजे को लेकर सवाल तभी उठाया गया था, जिसे राजस्थान बीजेपी प्रभारी अरुण सिंह ये कहते हुए टाल दिया था कि बाकी सभी सीनियर नेता चुनाव प्रचार करेंगे. और सीनियर नेताओं में वसुंधरा राजे हैं ही, समझना मुश्किल नहीं है. 

मैसेज तो राज्यवर्धन राठौड़ जैसे नेताओं के लिए भी है

ऑलंपिक मेडल जीतने वाले कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ पिछली मोदी सरकार में सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री बनाये गये थे, लेकिन उनका एक बयान उनको बहुत भारी पड़ा. 2015 में राज्यवर्धन राठौड़ ने म्यांमार में एक ऑपरेशन के लिए सेना की दिल खोल कर तारीफ की थी. राठौड़ ने कहा था कि सेना ने म्यांमार की सीमा में घुस कर आतंकवादियों का सफाया कर डाला है. 

राज्यवर्धन राठौड़ का बयान आने के बाद म्यांमार की भी नाराजगी सामने आयी थी, और उसकी वजह से मोदी सरकार को भी मुश्किल हुई थी. सरकार ने तो राज्यवर्धन राठौड़ के बयान से किनारा कर लिया, लेकिन ऐसा लगता है जैसे उसके बाद से ही राज्यवर्धन राठौड़ को भी किनारे लगा दिया गया. 

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बीजेपी आलाकमान ने 2019 में राज्यवर्धन राठौड़ का टिकट तो नहीं काटा, लेकिन सत्ता में वापसी के बाद मंत्री नहीं बनाया गया, जबकि कई राज्य मंत्रियों को प्रमोशन देकर अब कैबिनेट मंत्री भी बनाया जा चुका है. 

दीया कुमारी और राज्यवर्धन राठौड़ को विधानसभा का टिकट दिये जाने में बुनियादी फर्क ये है कि एक का कद बढ़ाया जा रहा है, दूसरे के पर कतरे जा रहे हैं. लोक सभा का चुनाव तो  राज्यवर्धन राठौड़ ने मोदी लहर में निकाल लिया था, लेकिन विधानसभा चुनाव उनके लिए अस्तित्व की लड़ाई जैसा है. ये ठीक है कि कोई भी नेता अपने इलाके के लोगों के वोट से विधायक या सांसद बनता है, लेकिन बहुत कुछ इस बात से भी तय होता है कि पार्टी में उसकी हैसियत क्या है, और उसके कैसे ट्रीट किया जा रहा है.

मध्य प्रदेश के बीजेपी उम्मीदवारों की सूची आने के साथ ही राजस्थान को लेकर एक चर्चा ये भी रही कि गजेंद्र सिंह शेखावत और अर्जुन राम मेघवाल जैसे मंत्रियों को भी राजस्थान के मोर्चे पर चुनाव लड़ने के लिए उतारा जा सकता है. अव्वल तो अभी पहली ही सूची है, लिहाजा संभावना खत्म नहीं हुई है - अगर गजेंद्र सिंह शेखावत को आगे भी टिकट नहीं मिलता तो मान कर चलना चाहिये कि दिल्ली में तो वो बने रहेंगे लेकिन राजस्थान में मुख्यमंत्री पद की उनकी दावेदारी खत्म हो गयी है. फिलहाल तो ऐसा ही है.

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