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इफ्तार पार्टियों में दिखने लगे बीजेपी नेताओं के चेहरे, क्या बदल रही है देश की सियासी फिजां?

कई बरसों के बाद दिल्ली से लेकर पटना, मुंबई तक इफ्तार पार्टियां हो रही हैं. भाजपा ने भी इफ्तार दावतें देनी शुरू की हैं और नेता भी खुल कर इन पार्टियों में शामिल हो रहे हैं. भाजपा विरोधी पार्टियां जो कुछ सालों से इफ्तार पार्टियों से दूर हो गईं थीं इस साल वो भी इफ्तार को गुलजार बना रही हैं.

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दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता एक इफ्तार पार्टी में.
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता एक इफ्तार पार्टी में.

भारत की सियासत में इफ्तार पार्टियों का अपना अलग ही महत्व रहा है. ईद के मौके पर राजनेताओं को अपने समीकरण दिखाने और शक्ति प्रदर्शन का भी ये एक मौका होता था. पर 2014 में नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद बीजेपी ही नहीं विपक्ष भी इन पार्टियों से कन्नी काटने लगा. कभी देश के प्रधानमंत्रियों से लेकर राष्ट्रपति और मुख्यमंत्रियों तक के लिए इफ्तार पार्टियों का आयोजन करना जरूरी हो गया था. पहले बीजेपी नेताओं ने इफ्तार पार्टियों से दूरी बनाई. इफ्तार पार्टियों को माना जाने लगा कि इसके जरिये नेता मुस्लिम तुष्टिकरण करते हैं. कांग्रेस और तथाकथित अन्य धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को ऐसा लगने लगा कि भारत में राजनीति करनी है तो खुद को मुस्लिम हितैषी दिखने से बचना होगा. यही कारण रहा कि 2017-18 के बाद तो राजनीतिक इफ्तार पार्टियों वाली संस्कृति लगभग लुप्त ही हो गई थी. पर 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद अचानक एक बार फिर इफ्तार पार्टियों की चर्चा शुरू हो गईं है. यहां तक की बीजेपी नेता भी इफ्तार पार्टियों की शोभा बनने लगे हैं. आइये देखते ऐसा क्यों और कैसे हुआ है?

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इफ्तार पार्टियां और बीजेपी

इफ्तार पार्टियों में बीजेपी नेताओं की भागीदारी बिल्कुल वैसी ही रही है जैसे कांग्रेस और समाजवादी पार्टी आदि की होती रही है. बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में से एक और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री रहे अटल बिहार वाजपेयी ने अपने कार्यकाल के दौरान इफ्तार पार्टियों की खूब मेजबानी की. उनके करीबी सहयोगी शाहनवाज हुसैन वाजपेयी के लिए इफ्तार आयोजनों के मुख्य संयोजक हुआ करते थे. वाजपेयी ने दो बार आधिकारिक तौर पर इफ्तार की मेजबानी की और बाद में शाहनवाज हुसैन की पार्टी में शामिल होते रहे. मुरली मनोहर जोशी ने भी बीजेपी अध्यक्ष के रूप में पार्टी की पहली आधिकारिक इफ्तार पार्टी आयोजित की थी. नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक इफ्तार की कहानी खत्म हो गई. मोदी ने पीएम रहते हुए कभी भी राष्ट्रपति भवन में आयोजित इफ्तार में हिस्सा नहीं लिया. हालांकि 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अंतिम इफ्तार के बाद राष्ट्रपति भवन में भी यह आयोजन बंद हो गया. उत्तर प्रदेश का राज्यपाल रहते हुए बीजेपी के कद्दावर नेता राम नाइक हमेशा इफ्तार पार्टी का आयोजन करते थे. पर 2018 और  2019 में उनकी पार्टी में योगी आदित्यनाथ ने शिरकत नहीं की. उनके जाने के बाद से यूपी राजभवन भी इफ्तार से मरहूम हो गया.

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2025 में इफ्तार और बीजेपी  

केंद्रीय स्तर पर तो इस साल बीजेपी की इफ्तार पार्टियां नहीं दिख पर उसकी जगह पूरे देश में सौगात ए मोदी के 32 लाख किट बांटे गए हैं. इसे पीएम मोदी की तरफ से पूरे देश के मुसलमानों के लिए इफ्तार ही समझना चाहिए. कुछ दिनों पहले ही पीएम मोदी ने सूफी सम्मेलन में भी शिरकत किया था. वहां उन्होंने अमीर खुसरों की जमकर तारीफ भी की थी. वैसे भी पीएम हर साल अजमेर वाले ख्वाजा को चादर भेजते रहे हैं. जाहिर है टॉप नेतृत्व का अनुसरण तो होता ही है. यही कारण है कि स्थानीय स्तर पर बीजेपी नेताओं की इस साल इफ्तार पार्टियों में भागीदारी कुछ ज्यादा ही दिख रही है.
 
इस साल दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता, केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू, प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा, दिल्ली मंत्री प्रवेश वर्मा और शाहनवाज हुसैन जैसे नेताओं ने इंडिया इस्लामिक सेंटर और माइनॉरिटी मोर्चा द्वारा आयोजित इफ्तार में हिस्सा लिया.दिल्ली हज कमेटी की चेयरपर्सन और बीजेपी नेता कौसर जहां ने होली पर्व के अगले दिन यानी 15 मार्च को अपने आवास पर इफ्तार पार्टी रखी. इस आयोजन में भी सीएम रेखा गुप्ता, कैबिनेट मंत्री प्रवेश वर्मा समेत कई राजनीतिक हस्तियां और आम लोग शामिल हुए. 

सीएम रेखा गुप्ता ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा, बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा (दिल्ली प्रदेश) द्वारा आयोजित 'दावत-ए-इफ्तार' कार्यक्रम में सभी भाई-बहनों के साथ मिलकर सौहार्द और एकता का संदेश साझा करने का अवसर मिला. हमारी संस्कृति आपसी सम्मान, प्रेम और सद्भाव का प्रतीक है और ऐसे कार्यक्रम समाज में एकजुटता व समरसता को और अधिक सशक्त करते हैं. एक दशक लंबे शासन को समाप्त करने के बाद बीजेपी द्वारा दिल्ली में सरकार बनाने के बाद यह दूसरी इफ्तार पार्टी थी, जिसमें बीजेपी नेताओं ने भाग लिया. 

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2025 में इफ्तार और बीजेपी के सहयोगी दल और विपक्ष

मोदी सरकार बनने और देश में हिंदुत्व के उभार को देखते हुए कांग्रेस ने भी इफ्तार से दूरी बना ली. समाजवादी पार्टी के सत्ता में रहते हुए फाइव स्टार होटल में इफ्तार पार्टी आयोजित करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी कुछ सालों से इफ्तार पार्टियों से तौबा कर ली थी. बसपा सुप्रीमो मायावती भी अब इस आयोजन से अपनी दूरी बनाए रखी. हालांकि दक्षिण के राज्यों में इफ्तार पार्टियां इस दौर में भी खूब हो रहीं थीं. पर इस साल फिजां बदली बदली नजर आ रही है. बिहार के सीएम नीतीश कुमार के इफ्तार की तस्वीर तो इन दिनों सुर्खियों में है.  बिहार में विधानसभा के चुनावों के चलते वहां चारों तरफ इफ्तार की धूम है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सीएम आवास में दावत रखी, जिसमें भाजपा के उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी सहित तमाम नेता शामिल हुए. कांग्रेस की ओर से सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने दिल्ली में इफ्तार की दावत दी, जिसमें राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल हुए.पटना में लालू प्रसाद ने दावत देकर मुस्लिम समुदाय के बीच अपनी पैठ दिखाई. मुंबई में भाजपा के सहयोगी अजित पवार ने इफ्तार की दावत दी और कहा कि मुस्लिम भाइयों को आंख दिखाने वालों को छोड़ेंगे नहीं.

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क्यों बदली बदली दिख रही सियासी फिजां

महाराष्ट्र और दिल्ली के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने ध्रुवीकरण का खेल नहीं खेला और इसके बाद भी जनता से उन्हें भरपूर समर्थन मिला. पार्टी को समझ में आ गया है कि बहुत ज्यादा अल्पसंख्यक समुदाय को टार्गेट पर रखने से उनके हिंदू वोट भी गड़बड़ हो जाते हैं. मुस्लिम वोट तो विरोध में एकजुट हो जाते हैं पर हिंदू वोटों का कोई फायदा नहीं होता है. झारखंड में हिंदुओं को एकजुट करने का उनका फॉर्मूला नहीं चला. महाराष्ट्र में तो एनसीपी और शिवसेना शिंदे गुट ने मुस्लिम कैंडिडेट भी खड़े किए थे. बीजेपी ने उनका प्रचार भी किया. बीजेपी को बिहार और बंगाल में बड़ी लड़ाई लड़नी है. इन दोनों राज्यों में अल्पसंख्यकों का बहुत प्रभाव है. इसलिए कट्टर हिंदुत्व के चेहरे के साथ अपना उदारवादी रूप भी बीजेपी साथ लेकर चलना चाहती है. जाहिर है बीजेपी को देखकर ही विपक्ष और सहयोगी दलों ने भी इफ्तार आयोजन से दूरी बनाई थी. जब बीजेपी खुद इन आयोजनों में शऱीक होने लगी तो विपक्ष के लिए भी मौका मिल गया है.

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