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हरियाणा नहीं है महाराष्ट्र... एंटी-मराठा सेंटिमेंट उभारने का प्रयोग BJP के लिए आत्मघाती होगा । Opinion

मराठों की नाराजगी के चलते महाराष्ट्र में बीजेपी के वोटों में जो कमी हुई है उसे पूरा करने के लिए पार्टी मराठा बनाम ओबीसी ध्रुवीकरण को हवा दे रही है. भाजपा को उम्मीद है कि हरियाणा में एंटी जाट ध्रुवीकरण की तर्ज पर एंटी मराठा सेंटीमेंट उभारकर ओबीसी और दलितों के बीच पार्टी की पैठ बढ़ाई जा सकती है.

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महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस और कांग्रेस नेता राहुल गांधी
महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस और कांग्रेस नेता राहुल गांधी

महाराष्ट्र में बीजेपी हरियाणा फॉर्मूले पर काम कर रही है. हरियाणा लोकसभा चुनावों में पार्टी को जाटों की नाराजगी का भारी नुकसान उठाना पड़ा था. हरियाणा में पिछले 2 लोकसभा चुनावों से कुल 10 सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी को 2024 के लोकसभा चुनावों में 5 सीटें हारनी पड़ीं. पर बीजेपी ने अपनी रणनीति के चलते विधानसभा चुनावों तक आते-आते डैमेज कंट्रोल कर लिया और बड़े पैमाने पर जीत रही कांग्रेस के पंजे से जीत छीन ली. महाराष्ट्र में भी बिल्कुल हरियाणा वाला ही हाल है .मराठों की नाराजगी के चलते पार्टी को लोकसभा चुनावों में काफी नुकसान उठाना पड़ गया था. अब पार्टी यहां भी हरियाणा वाल फॉर्मूला लागू करने की तैयारी कर रही है. एंटी जाट वोटों के ध्रुवीकरण की तरह बीजेपी यहां एंटी मराठा वोटों को जोड़ने की तैयारी कर रही है. अब देखना है कि महाराष्ट्र में बीजेपी को इस रणनीति का कितना फायदा मिलता है. 

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1-क्रीमी लेयर की आय सीमा डबल के करीब बढाई गई

गुरुवार को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक में ओबीसी वोटर्स को लुभाने के लिए दो प्रस्ताव पास किए गए. हालांकि इस प्रस्ताव को लागू करने से पहले केंद्र की मंजूरी भी जरूरी होगी.पर चूंकि केंद्र में भी एनडीए की ही सरकार है इसलिए ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए की इस प्रस्ताव को कोई रोकने वाला नहीं है.

पहला प्रस्ताव है में केंद्र से क्रीमी लेयर की आय सीमा को 8 लाख रुपये से बढ़ाकर 15 लाख रुपये प्रति वर्ष करने की सिफारिश की है. नॉन-क्रीमी लेयर प्रमाण पत्र, जो यह बताता है कि किसी व्यक्ति की वार्षिक पारिवारिक आय निर्धारित सीमा से कम है, ओबीसी वर्ग में आरक्षण लाभ प्राप्त करने के लिए आवश्यक होता है. क्रीमी लेयर की यह सीमा 8 लाख से सीधे 15 लाख कर दी गई है. मतलब साफ है कि मु्ट्ठी भर परिवार भी नहीं बचेंगे जो क्रीमी लेयर के दायरे में आएंगे और उन्हें ओबीसी कैटेगरी के आरक्षण से वंचित होना पडे़गा. दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार पूरी तरह मेहरबान है ओबीसी केटेगरी पर. दूसरी ओर मराठा लगातार आरक्षण की मांग कर रहे हैं उन्हें इधर उधर की गोली दी जा रही है.

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इस सिफारिश के एक दिन पहले राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) ने महाराष्ट्र के सात समुदायों को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल करने की सिफारिश की थी.गौरतलब है कि महायुति सरकार ने एनसीबीसी से केंद्रीय ओबीसी सूची का विस्तार करने का अनुरोध किया था, जिसमें निम्नलिखित जातियों और उप-जातियों को शामिल किया जाए: 1- लोध, लोढ़ा, लोधी; 2- बडगुजर; 3- सूर्यवंशी गुजर; 4- लेवे गुजर, रेवे गुजर, रेवा गुजर; 5- डांगरी; 6- भोयर, पवार; 7- कापेवार, मुन्‍नार कापेवार, मुन्‍नार कापु, तेलंगा, तेलंगी, पेंटररेड्डी, बुककारी।

महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले को समझने के पहले क्रॉनोलॉजी देखिए. हरियाणा विधानसभा चुनावों में भाजपा की ऐतिहासिक जीत के कुछ ही दिनों बाद ही सरकार ने यह फैसला लिया है. जाहिर है कि सरकार ऐसा लग रहा है कि महाराष्ट्र में हरियाणा जैसा कुछ जाए तो जीत पक्की समझ सकत हैं. हरियाणा की जीत के पीछे ओबीसी समुदायों के बीच पार्टी की पहुंच एक प्रमुख कारक रही. महायुति गठबंधन, जिसमें भाजपा, शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी शामिल है, विधानसभा चुनावों से पहले अपने ओबीसी वोट बैंक को मजबूत करने के लिए ऐसे विभिन्न कदम उठा रहे हैं.

2-महाराष्ट्र में ओबीसी राजनीति की ताकत

इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के अनुसार महाराष्ट्र में 351 ओबीसी समुदाय हैं, जो राज्य की जनसंख्या का 52% हिस्सा हैं. इनमें से 291 समुदाय केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल हैं. सात नई जातियों और उनकी उप-जातियों को शामिल करने की मांग 1996 से लंबित थी. राज्य सरकारों ने पहले भी एनसीबीसी से यह अनुरोध किया था, लेकिन यह मुद्दा ठंडे बस्ते में पड़ा रहा. एनसीबीसी का राज्य सरकार के अनुरोध को स्वीकार करने का प्रयास विधानसभा चुनावों से कुछ हफ्ते पहले आया है. जाहिर है कि विदर्भ, उत्तर महाराष्ट्र, मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र जैसे इलाकों में विधानसभा चुनावों में यह बहुत काम आएगा.

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एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार भोयर और पवार समुदायों की उपस्थिति विदर्भ क्षेत्र के वर्धा, चंद्रपुर, भंडारा-गोंदिया, यवतमाल और नागपुर जिलों में है, जिसमें 62 विधानसभा सीटें हैं. यहां पर भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला होने वाला है.  बडगुजर, लेवे गुजर, रेवे गुजर और रेवा गुजर समुदाय उत्तर महाराष्ट्र के जलगांव, नासिक, नंदुरबार और अहमदनगर जिलों में रहते हैं. यहां 35 विधानसभा सीटें हैं, और उत्तर महाराष्ट्र भाजपा का गढ़ माना जाता है.प्याज किसानों की असंतुष्टि के चलते लोकसभा चुनावों में बीजेपी को काफी नुकसान हुआ था. उम्मीद है कि कुछ डैमेज कंट्रोल हो सकेगा. इसी तरह तेलंगी, पेंटररेड्डी और मुन्‍नार कापु समुदाय मराठवाड़ा क्षेत्र के नांदेड़ और पश्चिमी महाराष्ट्र के सोलापुर में केंद्रित हैं. ये समुदाय 35-40 सीटों पर महायुति के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है.

3-ओबीसी पर ध्यान देकर भाजपा मराठा बनाम पिछड़ों का संघर्ष कराना चाहती है?

मुसलमानों, मराठाओं और दलितों के भाजपा से दूर होने के बाद, पार्टी ने अपनी पारंपरिक ओबीसी वोट बैंक पर फिर से ध्यान केंद्रित करने का रणनीतिक निर्णय लिया है. हरियाणा में भी ऐसा हुआ था.मुसलमानों के साथ जाटों और दलितों का वोट नहीं मिलने वाला था. इसलिए हरियाणा में एंटी जाट सेंटीमेंट पर पार्टी ने चुपचाप काम किया.कांग्रेस जाट पर फोकस हो गई और बीजेपी एंटी जाट पर ध्यान केंद्रित कर लिया.बीजेपी ने महाराष्ट्र में पहले भी माधव – माली, धनगर और वंजारी (ओबीसी) – फॉर्मूला विकसित किया, जिसने महाराष्ट्र में भाजपा को कई चुनावों में फायदा पहुंचाया. जिस तरह हरियाणा में जाटों का समर्थन न मिलने के चलते बीजेपी को लोकसभा चुनावों में नुकसान पहुंचा था उसी तरह मराठा आरक्षण पर मनोज जरांगे पाटिल के नेतृत्व वाले आंदोलन ने इस समुदाय में भाजपा के खिलाफ असंतोष पैदा कर दिया, जिससे हाल के लोकसभा चुनावों में पार्टी को सीटों का नुकसान हुआ.

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मराठों की नाराजगी के चलते बीजेपी के वोटों में जो कमी हुई है उसे पूरा करने के लिए ही भाजपा मराठा बनाम ओबीसी ध्रुवीकरण को हवा दे रही है. महाराष्ट् में  भी भाजपा को उम्मीद है कि एंटी मराठा सेंटीमेंट ओबीसी और दलितों के बीच पार्टी की पैठ को और बढ़ाने में कामयाब होगा.

4-उल्टा पड़ सकता है बीजेपी का प्रयोग

हालांकि हर फॉर्मूला हर जगह काम करे कोई जरूरी नहीं है. महाराष्ट्र और हरियाणा की सामाजिक बनावट में जमीनी फर्क है. हरियाणा में जाट केवल एक जाति है. इसक उपजातियां इसकी खाप हैं. पर मराठा कई जातियों के समूह को कहा जाता है. मराठा आरक्षण में भी यही दिक्कत आती है. जैसे बहुत सी जातियां ओबीसी और ईबीसी हैं और साथ ही खुद के मराठा होने का दावा करती हैं. कुनबी समुदाय का विवाद कुछ ऐसा ही है.दूसरे जाटों का पिछड़ी जातियों के साथ सामंती व्यवहार कुछ ज्यादा ही रहा है. इसके विपरीत महाराष्ट्र में मराठा जातियों में कुछ ही ऐसी हैं जिनका व्यवहार सामंती हो.दूसरे महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी के नाम पर सभी जातियां एक हो जाती हैं. मराठा बनाम पिछड़े करने की कोशिश कहीं शिवाजी के खिलाफ चली गई तो बीजेपी को लेने के देने पड़ जाएंगे. 

ओबीसी जन मंच के अध्यक्ष प्रकाश शेंडगे महायुति कैबिनेट के निर्णय को भ्रमित करने वाला बताते हुए खारिज करते हैं. शेंडगे ने कहा अगर वे वास्तव में इन समुदायों के बारे में चिंतित होते,तो वे दो साल पहले यह निर्णय ले सकते थे. इसके बजाय, मराठा आरक्षण पर उनकी उथल-पुथल ने ओबीसी को नाराज किया है. 

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