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महाराष्ट्र और हरियाणा फिर दे सकते हैं बीजेपी को टेंशन, शिवराज का भी इम्तिहान

लोकसभा चुनाव में हार की समीक्षा के बीच बीजेपी ने 2024 के विधानसभा चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है. शिवराज सिंह चौहान को झारखंड जीतने की जिम्मेदारी थमाते हुए बीजेपी नेतृत्व ने महाराष्ट्र, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के लिए भी चुनाव प्रभारियों की नियुक्ति कर दी है.

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बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती महाराष्ट्र है, लेकिन असली इम्तिहान शिवराज सिंह चौहान का है
बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती महाराष्ट्र है, लेकिन असली इम्तिहान शिवराज सिंह चौहान का है

बीजेपी को लोकसभा चुनाव में मिले दर्द के लिए शिद्दत से मरहम की जरूरत थी, और 2024 के विधानसभा चुनाव वो मौका देने जा रहे हैं. अव्वल तो गम भुलाने के लिए बीजेपी में हार की समीक्षा का दौर भी चल रहा है, लेकिन लगे हाथ वो नये मिशन पर भी निकल चुकी है. 

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2024 में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिए प्रदेश प्रभारी और सह-प्रभारियों की नियुक्ति इस दिशा में उठाया गया पहला कदम है. ये नियुक्तियां महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के लिए की गई हैं. हरियाणा और महाराष्ट्र में अक्टूबर-नवंबर तक और झारखंड में उसके बाद विधानसभा चुनाव हो सकते हैं - और उसी दौरान कभी भी जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा के लिए चुनाव कराये जा सकते हैं.

लोकसभा चुनाव के नतीजों से तो साफ ही है कि बीजेपी के लिए महाराष्ट्र के साथ साथ हरियाणा जैसे राज्य भी चुनाव के हिसाब से काफी चुनौतीपूर्ण हो गये हैं. यही वजह है कि मोदी-शाह के बेहद भरोसेमंद और बार बार आजमाये हुए रणनीतिकार भूपेंद्र यादव को महाराष्ट्र का प्रभारी बनाया गया है.

शिवराज सिंह को मिली झारखंड की जिम्मेदारी भी ध्यान खींच रही है. मध्य प्रदेश विधानसभा की ही तरह लोकसभा चुनाव में भी सूबे की सभी 29 सीटें जीतने वाली बीजेपी के नेता शिवराज सिंह खुद वोटों के भारी अंतर से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे हैं, और मोदी कैबिनेट में अति महत्वपूर्ण कृषि विभाग के कैबिनेट मंत्री बनाये गये हैं.

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भोपाल से विदिशा के रास्ते तबादला होने के बाद दिल्ली पहुंचे शिवराज सिंह चौहान के लिए झारखंड नया परीक्षा केंद्र बन गया है - और एक तरीके से मध्य प्रदेश उनका पत्ता पूरी तरह साफ करने की कोशिश भी लगती है. 

झारखंड में बीजेपी नहीं, शिवराज का इम्तिहान होगा

लोकसभा चुनाव के दौरान शिवराज सिंह चौहान को विजय संकल्प यात्रा से जोड़ा गया था, और उनको दक्षिण के राज्यों का रुख करना पड़ा था. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए भी शिवराज सिंह चौहान दक्षिण भारत के राज्यों में सक्रिय रहे हैं. उधर के कई राज्यों के मंदिर और मठों में वो जाते रहे हैं. साथ ही, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक चुनावों में भी शिवराज सिंह चौहान की सक्रियता रही है.

लोकसभा चुनाव के नतीजे देखें तो झारखंड में बीजेपी का प्रदर्शन महाराष्ट्र और हरियाणा के मुकाबले काफी बेहतर रहा है. हां, ये बात जरूर है कि बीजेपी राज्य की सत्ता से फिलहाल बाहर है. 

झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से एनडीए के हिस्से में 9 सीटें आई हैं, जिनमें से 8 सीटों पर बीजेपी के सांसद चुने गये हैं - चुनाव से पहले झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ईडी द्वारा गिरफ्तारी के बाद बीजेपी की चुनौती बढ़ गई थी, लेकिन नतीजे अलग आये. 

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अब शिवराज सिंह चौहान पर झारखंड में बीजेपी की सरकार बनवाने की जिम्मेदारी होगी. जरूरी नहीं कि विधानसभा चुनाव में भी झारखंड के वोटर का मूड लोकसभा चुनाव जैसा ही रहे - क्योंकि उसी दौरान गांडेय उपचुनाव में कल्पना सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की है.

हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन को झारखंड का डिप्टी सीएम बनाये जाने की भी मांग और चर्चा चल रही है. हेमंत सोरेन के जेल जाने से पहले भी कल्पना को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिशें हुई थीं, लेकिन पार्टी में ही विरोध के चलते चंपई सोरेन के नाम पर सहमति बनाने की कोशिश हुई, और कामयाब रही.

शिवराज सिंह चौहान की मदद के लिए असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को झारखंड चुनाव के लिए सह-प्रभारी बनाया गया है. 

महाराष्ट्र और हरियाणा की चुनौती ज्यादा बड़ी है

महाराष्ट्र में जैसे तैसे बीजेपी ने शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बीजेपी ने सरकार तो बना लिया, लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों में जो संकेत मिले हैं, वे बिलकुल भी अच्छे नहीं हैं. 

मुश्किल ये है कि बीजेपी ने उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र की सत्ता और शिवसेना से उद्धव ठाकरे को चलता तो कर दिया, लेकिन जनता के मूड को नहीं भांप पाई. और शरद पवार की एनसीपी के मामले में भी बिलकुल ऐसा ही फीडबैक मिला है.

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एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले को हराने के लिए पवार परिवार से ही अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार को बारामती के मैदान में उतार दिया गया, लेकिन सिक्का तो शरद पवार का ही चला. सुप्रिया सुले ने अपनी सीट बरकरार रखी - और बागी भतीजे अजित पवार के हिस्से में बीजेपी कीा मदद के लिए महाराष्ट्र की सिर्फ एक सीट ही मिल पाई. और वैसे ही एकनाथ शिंदे के रूप में असली शिवसेना के साथ होने का दावा करने वाली बीजेपी के अपने खाते में महाराष्ट्र की 48 सीटों में से सिर्फ 9 सीटें ही आ पाईं. 

ऐसे में भूपेंद्र यादव पर एक बार फिर बड़ी जिम्मेदारी आ गई है. बीजेपी हर हाल में महाराष्ट्र में सत्ता बरकरार रखना चाहेगी, लेकिन वहां के लोग अगर आगे भी उद्धव ठाकरे के प्रति सहानुभूति बरकार रखे, या पक्ष में आगे बढ़ कर खड़े हो गये तो बीजेपी के लिए मुश्किल हो सकती है. भूपेंद्र यादव के साथ केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव को महाराष्ट्र का सह प्रभारी बनाया गया है. 

महाराष्ट्र की तरह हरियाणा विधानसभा चुनाव भी बीजेपी के लिए बड़ी मुसीबत लेकर आने वाला है. वैसे तो बीजेपी 2014 से ही हरियाणा की सत्ता पर काबिज है, लेकिन 2019 में बहुमत से चूक जाने के बाद उसे जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला के साथ गठबंधन की सरकार बनानी पड़ी थी.

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हरियाणा में बीजेपी ने नायब सैनी के रूप में मुख्यमंत्री तो पहले ही बदल लिया है, अलग मुश्किल ये है कि दुष्यंत चौटाला के साथ गठबंधन भी टूट चुका है. लोकसभा के चुनाव नतीजों को देखें तो बीजेपी 10 में से 5 सीटें ही जीत पाई है. 

आने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों के हिसाब में हरियाणा का प्रभारी बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को बनाया है, जो अभी अभी ओडिशा में बरसों से चली आ रही बीजेडी की नवीन पटनायक सरकार को सत्ता से बेदखल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं. उनके साथ त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब देब को सह-प्रभारी बनाया गया है.  

लेकिन जम्मू-कश्मीर में बीजेपी का क्या होगा?

ऐसे में जबकि इस साल जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव कराये जाने के संकेत मिल चुके हैं, बीजेपी ने तेलंगाना से आने वाले जी. किशन रेड्डी को चुनाव प्रभारी बनाया है - और ये इस बात का इशारा भी है कि जम्मू-कश्मीर चुनाव को लेकर बीजेपी बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं है. जम्मू-कश्मीर में हुए स्थानीय चुनाव में बीजेपी ने अनुराग ठाकुर और शाहनवाज हुसैन को भेजा था, और दोनों ने अच्छा प्रदर्शन भी किया था. और उनकी मेहनत की बदौलत ही डीडीसी चुनावों में बीजेपी को घाटी में भी खाता खोलने का मौका हासिल हो पाया था. 

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जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म किये जाने के बाद पहली बार केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव होंगे - लेकिन लगता नहीं कि बीजेपी की कोई खास दिलचस्पी है. लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी जम्मू-कश्मीर की 5 में से दो सीटों पर ही उम्मीदवार उतारे थे.

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