कांग्रेस मुक्त भारत अभियान को बीजेपी अपने हिसाब से लगभग अंजाम तक पहुंचा चुकी है. देश का मौजूदा राजनीतिक माहौल भी तो बीजेपी के लिए विपक्ष मुक्त भारत जैसा ही है - लेकिन ये बात भी है कि आम आदमी पार्टी का विस्तार उसे नये खतरे के रूप में दिखायी पड़ रहा होगा.
2022 के गुजरात चुनाव के दौरान बीजेपी की एक मीटिंग से सूत्रों के हवाले से ऐसी ही एक खबर आयी थी. मीटिंग बीजेपी के सीनियर नेता अमित शाह ले रहे थे. तभी किसी बीजेपी नेता ने गुजरात चुनाव में अरविंद केजरीवाल की दस्तक को हवा में उड़ाने की कोशिश की. ये कहते हुए कि अरविंद केजरीवाल से बीजेपी को कोई नुकसान नहीं होने वाला क्योंकि आम आदमी पार्टी सिर्फ कांग्रेस का वोट काट सकती है. अमित शाह ने समझाया था कि भविष्य को लेकर जो चीज वो देख पा रहे हैं, वो बीजेपी नेता नहीं समझ पा रहे थे. और उसके साथ ही अमित शाह ने बीजेपी नेताओं को एक टारगेट भी दिया कि आम आदमी पार्टी का वोट शेयर एक खास फीसदी से ज्यादा किसी भी सूरत में नहीं होना चाहिये.
आम आदमी पार्टी को गुजरात विधानसभा में 5 ही सीटें मिल सकीं. वो भी कांग्रेस के ही हिस्से की. और वोट शेयर भी अमित शाह की तरफ से तय की गयी सीमा को नहीं लांघ सका. देखा जाये तो बीजेपी के उस नेता का आकलन भी सही साबित हुआ, जिसने कहा था कि आम आदमी पार्टी तो कांग्रेस के ही वोट काटेगी - लेकिन ये तो अमित शाह की तत्परता और सही रणनीति रही कि आम आदमी पार्टी न तो ज्यादा सीटें जीत पायी न ही इतना वोट शेयर ही हासिल कर सकी जो बीजेपी के लिए खतरा बन सके. गुजरात में बीजेपी ने रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी, लेकिन ये वाकया इतना संकेत तो देता ही है कि बीजेपी नेतृत्व आम आदमी पार्टी के उभार से किस हद तक चिंतित है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को प्रवर्तन निदेशालय का समन मिलने के बाद AAP नेता राघव चड्ढा का कहना है कि बीजेपी की तैयारी विपक्षी गठबंधन INDIA के नेताओं को जेल में डाल देने की है, ताकि 2024 का आम चुनाव वो आसानी से जीत सके. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भी ऐसा ही बयान आया है.
कांग्रेस के बाद AAP ही अकेली क्षेत्रीय पार्टी है जिसकी एक से ज्यादा राज्यों में सरकार है. दिल्ली के साथ साथ पंजाब में भी, और दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी का वर्चस्व बढ़ता ही जा रहा है. आम चुनाव के दौरान मोदी लहर की वजह से बीजेपी दिल्ली की सभी सात लोक सभा सीटें जीत तो लेती है, लेकिन बाकी जगह आम आदमी पार्टी रास्ता रोक दे रही है.
2014 से पहले बीजेपी के लिए पहला टारगेट था कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करना. उसके बाद कांग्रेस को दोबारा खड़ा होने लायक नहीं रहने देना. लेकिन की जगह कोई और पांव पसारने लगे तो, बीजेपी को फिक्र तो होगी ही - और इस हिसाब से अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी बीजेपी की निगाह में खटक रही होगी.
ताकि AAP भी कांग्रेस जैसी मुसीबत न बन जाये
1. गुजरात चुनाव भले ही बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल को बहुत ज्यादा हासिल नहीं करने दिया, लेकिन आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बनने से नहीं रोका जा सका. ऐसे में कांग्रेस के बाद फिलहाल सिर्फ आम आदमी पार्टी ही बचती है जो भविष्य में बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती हो सकती है.
2. तृणमूल कांग्रेस से लेकर BRS और NCP तक जितने भी क्षेत्रीय दल हैं, दूसरे राज्यों में उनकी पहुंच नहीं के बराबर है. कुछ क्षेत्रीय दल ऐसे जरूर हैं जो जैसे तैसे अपने प्रभाव वाले राज्यों के अलावा कुछ सीटें जीत भी लेते हैं, लेकिन बाद में उनके विधायक सत्ताधारी दल के साथ चले जाते हैं. राजस्थान में बीएसपी और बिहार में AIMIM विधायकों ने तो ऐसी ही मिसाल पेश की है. दूसरा उदाहरण अरुणाचल प्रदेश जैसा भी देखने को मिलता है, जैसे बीजेपी ने जेडीयू विधायकों को भगवा चोला धारण करा दिया था.
3. ये ठीक है कि गुजरात को छोड़ कर बाकी विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी के हाथ कुछ खास नहीं लग सका है, और ये भी जरूरी नहीं कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी बहुत कुछ मिले ही - लेकिन संगठन का विस्तार तो हो ही रहा है. आम आदमी पार्टी धीरे धीरे पांव जमाने की कोशिश तो कर ही रही है.
अरविंद केजरीवाल का बढ़ता कद
1. अरविंद केजरीवाल विपक्षी खेमे में प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में अन्य क्षेत्रीय नेताओं से बेहतर तो हैं ही.
2. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले में न सही, लेकिन बाकी क्षेत्रीय नेताओं से अरविंद केजरीवाल बेहतर तो हैं ही.
3. पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनवा कर अरविंद केजरीवाल साबित कर चुके हैं कि वो सिर्फ एक राज्य के नेता नहीं हैं. जैसे ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव या के. चंद्रशेखर राव हैं.
4. नीतीश कुमार सुशासन बाबू के रूप में जाने जाते हैं, केंद्र और राज्य का लंबा अनुभव भी है, लेकिन उनकी राजनीति ढलान पर है, अरविंद केजरीवाल की राजनीति उभार पर है.
5. ममता बनर्जी या एमके स्टालिन जैसे नेताओं की तरह अरविंद केजरीवाल के साथ कोई भाषाई समस्या भी नहीं है.
दिल्ली में AAP की किलेबंदी
1. दिल्ली विधानसभा में लगातार दूसरी बार आम आदमी पार्टी ने अपना दबदबा बरकरार रखा है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जो हैसियत बन चुकी है, वो तो देश में भारतीय जनता पार्टी की भी नहीं है. सीटों के मामले में बीजेपी के लिए दहाई का आंकड़ा पार करना मुश्किल हो रहा है. पांच साल बाद भी बीजेपी 3 से 8 सीटों तक ही पहुंच पायी है.
2. विधानसभा के बाद आम आदमी पार्टी ने एमसीडी चुनाव में भी बीजेपी को गच्चा दे दिया. तमाम तिकड़मों के बावजूद बीजेपी अपना मेयर नहीं बना सकी - और अब तो मन मसोस कर रह जा रही है.
3. ये ठीक है कि बीजेपी दिल्ली की सभी 7 लोक सभा सीटों पर काबिज है. 2014 की ही तरह 2019 में भी बीजेपी को मोदी लहर का फायदा मिला, लेकिन 2024 में क्या हो सकता है, अभी किसी को नहीं पता. अगर बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ विपक्ष से भी एक ही उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतार दे तो बीजेपी के लिए मुश्किल तो हो ही सकती है. अपनी प्रेस कांफ्रेस में राघव चड्ढा भी ऐसी बातों का जिक्र कर रहे थे.
आम आदमी पार्टी का हिंदू एजेंडा
1. चुनावों में लोगों के बीच पहुंच कर अयोध्या दर्शन और तीर्थयात्रा के वादे करते हैं. दिल्ली में शुरू की गयी ऐसे सेवाओं का उदाहरण देते हैं.
2. योगी आदित्यनाथ की तरह अरविंद केजरीवाल को अयोध्या तक पहुंचने का मौका नहीं मिल पाता, इसलिए अक्षरधाम से दिवाली मनाकर अपने इरादे जाहिर करते हैं. ED के नोटिस की जवाबी चिट्ठी में भी अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के कार्यक्रमों में व्यस्तता का हवाला दिया है.
3. अरविंद केजरीवाल भारतीय नोटों पर अब लक्ष्मी और गणेश की तस्वीर लगाये जाने की पैरवी करने लगे है.
4. ममता बनर्जी चंडी पाठ तो करती हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल तो खुलेआम 'जय श्रीराम' के नारे लगाने लगे हैं.
ये भी विडंबना है कि भ्रष्टाचार के खात्मे के वादे के साथ आंदोलन के जरिये राजनीति में आयी आम आदमी पार्टी अपने नेताओं पर लगे करप्शन के इल्जाम से जूझने लगी है. अब तो AAP नेता अरविंद केजरीवाल पर भी बन आयी है. उनको गिरफ्तार कर लिये जाने की आशंका जतायी जा रही है - लेकिन अरविंद केजरीवाल का हिंदुत्व का एजेंडा बीजेपी के लिए डराने वाला तो है ही.