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बिहार में नीतीश सरकार के लिए खतरे की घंटी है BPSC छात्र आंदोलन |Opinion

देश के करीब हर राज्य में लगातार परीक्षाओं के पेपर लीक हो रहे हैं, भर्ती बोर्ड के भ्रष्टाचार के किस्से उजागर हो रहे हैं. बिहार का मामला कोई नया नहीं है. पर बिहार में छात्र असंतोष बढ़ता है तो वह पूरे देश को चपेट में ले सकता है. इस बात को नीतीश सरकार जितना जल्दी समझ ले उतना बेहतर है.

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बिहार की राजधानी पटना में BPSC अभ्यर्थियों का आंदोलन. (PTI Photo)
बिहार की राजधानी पटना में BPSC अभ्यर्थियों का आंदोलन. (PTI Photo)

देश में छात्र आंदोलन हमेशा से सरकारों के लिए खतरे की घंटी रही है. बिहार में रविवार को छात्रों पर हुई लाठी चार्ज की घटना छात्र असंतोष का एक उदाहरण है. अभी पिछले महीने भी बीपीएससी के नॉर्मलाइजेशन के विरोध में भी छात्रों पर लाठी चार्ज हुआ था. लगातार कभी परीक्षा प्रणाली , कभी पेपर लीक, कभी रिएग्जाम आदि के नाम पर छात्र आंदोलित हो रहे हैं. यह केवल बिहार में नहीं है. उत्तर प्रदेश , राजस्थान में भी छात्र असंतोष बहुत तेजी से बढ़ रहा है. रह रह कर छात्र सर उठाते हैं उन्हें कुचल दिया जाता है. यह एक ऐसा फोड़ा है जो कभी भी नासूर बन सकता है. बांग्लादेश एक उदाहरण है कि छात्रों का असंतोष कैसे पूरे देश को हिला कर रख दिया है.

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सरकारें छात्र हित में काम नहीं कर पा रही हैं. ऐसा क्यों है यह समझना होगा. क्योंकि कोई भी सरकार स्टूडेंट्स को नाराज करना नहीं चाहती हैं, पर छात्र हितों को वो पूरा नहीं कर पा रही है. दूसरी बात यह भी है कि विपक्ष भी छात्रों को भड़काने के लिए तैयार बैठा हुआ है. ऐसी स्थिति में कभी भी छात्र विस्फोट होना स्वाभाविक है. विशेषकर बिहार में जहां नेता एक दम से तैयार बैठे हैं. जैसे संडे की घटना के पीछे जनसुराज नेता प्रशांत किशोर का नाम आ रहा है. इसके पहले बीपीएससी छात्रों को पप्पू यादव का भी सपोर्ट मिल रहा था. तेजस्वी यादव भी छात्र राजनीति पर पकड़ बनाने की कोशिश करते रहे हैं. बीजेपी और जेडीयू भी अगर विपक्ष में होती तो यही काम करती. पर अभी तो नीतीश सरकार को छात्र असंतोष को शांत करने का काम करना होगा.

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बिहार में तैयारी करने वाले छात्रों का कितना राजनीतिक प्रभाव 

अखिल भारतीय उच्चतर शिक्षा सर्वेक्षण (एआईएसएचई) 2016-17 से यह बात सामने आती है कि बिहार में 18 से 23 वर्ष की युवा जनसंख्या करीब 1.14 करोड़ है. मान लीजिए कि इन की संख्या अब सवा करोड़ भी हो गई है तो इसका मतलब है कम से कम इतने बच्चे तो जरूर इन छात्र आंदोलनों से प्रभावित होंगे. इसके साथ ही मान लीजिए कि पिछले पांच साल में भी करीब इतने ही बच्चे कॉलेजों से निकले होंगे. जाहिर है उनमें सभी नौकरी  नहीं पाए होंगे. सरकार सबको नौकरी तो नहीं दे सकती पर जितने लोग परीक्षाओं में भाग ले रहे हैं उनके लिए सुनियोजित , पारदर्शी और भ्रष्टाचारमुक्त परीक्षा तो करवा ही सकती है.

छात्र-छात्राओं के परिवार वाले भी इन परीक्षाओं से प्रभावित होते हैं. बिहार में हर जाति-वर्ग के परिवारों में भाई-बहन, बेटी-दामाद, बेटा-बहू,  सभी परीक्षा की तैयारी कर रहे होते हैं. जो लोग नौकरी पा चुके हैं और अच्छी नौकरी के लिए, जो युवा कोई रोजगार कर रहे हैं वो आरामतलब सरकारी नौकरी के लिए परीक्षा दे रहे हैं. इस तरह बिहार में नौकरी की तैयारी करना, नौकरी के लिए फॉर्म भरना, परीक्षा देना सभी एक धर्म की चलता है. कमोबेश यही हाल यूपी में भी है. लोकसभा चुनावों में यूपी में भारतीय जनता पार्टी का जो हाल हुआ था उसके पीछे बहुत बड़ा छात्र असंतोष का भी रहा है. यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में कुछ दिनों पहले जब प्रयागराज में छात्र नॉर्मलाइजेशन की मांग को लेकर अड़े तो तुरंत योगी सरकार ने छात्रों की मांग को स्वीकार कर लिया था. क्योंकि कुछ दिनों बाद ही उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाले थे. भारतीय जनता पार्टी के उस डिसीजन का उसे फायदा भी मिला. उपचुनावों में बीजेपी 7 सीटें जीतने में सफल रही थी. इसलिए बिहार सरकार को समझना होगा कि युवा असंतोष को वो बढ़ने न दे.

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2-पटना आंदोलन क्यों खास है?

बिहार की छात्र राजनीति में देश की राजनीति को बदलने की ताकत रही है. जेपी आंदोलन को ताकत छात्र राजनीति से ही मिली थी. क्योंकि बिहार में छात्र आंदोलन सिर्फ एक परीक्षा का मुद्दा नहीं होता है यह पूरे परिवार के सम्मान और जीवन मरण का प्रश्न होता है. चूंकि दूसरे प्रदेशों में पढ़ाई के अलावा खेती , बिजनेस , उद्योग धंधे भी जीवन के आधार होते हैं पर बिहार में ऐसा नहीं है. यहां अभी भी परिवार को चलाने के लिए नौकरी का ही आधार है. इसलिए छात्र आंदोलन नौकरी के अधिकार और समानता के अधिकार का मामला बन जाता है. सरकार अगर नौकरियों के लिए होने वाली परीक्षा ठीक से नहीं करा पाती है तो सवाल उठता है कि क्या सरकार भ्रष्ट है?  इसलिए जो सरकार परीक्षा प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं लागू कर पाती है, भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म नहीं कर पाती है, परिणामों की निष्पक्षता सुनिश्चित नहीं कर पाती है और बेरोजगारी का हल नहीं निकाल पाती है वह जनता की दुश्मन बन जाती है. पटना का यह विरोध न सिर्फ बिहार, बल्कि पूरे देश के युवाओं की कब आवाज बन जाए ये कोई नहीं जानता. क्योंकि बिहार से उठी आवाज पहले भी कई बार देश की आवाज बनी है. छात्र असंतोष तो हर राज्य में है. बस उसे नेतृत्व नहीं मिल रहा है.

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3-पटना में छात्र सड़कों पर क्यों हैं?

बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की 70वीं संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा, जो 13 दिसंबर 2024 को आयोजित हुई थी को लेकर उस दिन ही विवाद खड़ा हो गया था. पटना के बापू सभागार में आयोजित परीक्षा में प्रश्न पत्र वितरण में देरी और पेपर लीक के आरोपों के चलते परीक्षार्थियों ने हंगामा किया था. इसके अलावा छात्रों का आरोप है कि परीक्षा में अनियमितताएं हुई हैं, प्रश्न पत्र स्तरहीन थे, और कुछ प्रश्न निजी कोचिंग संस्थानों के मॉडल प्रश्न पत्रों से मेल खाते थे. शायद इन तमाम कारणों से छात्र चाहते हैं कि पूरी परीक्षा रद्द कर फिर से परीक्षा आयोजित हो. छात्र नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया कैसे काम करती है इसका फार्मूला पूछ रहे हैं. इसके साथ ही पेपर लीक के दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग भी कर रहे हैं. बीपीएससी छात्रों के आरोपों को राज्य लोकसेवा आयोग के अधिकारी मानने को तैयार नहीं है और छात्रों से मुख्य परीक्षा की तैयारी में जुटने के लिए कह रहे हैं. राज्य सरकार ने कहा है कि यदि किसी के पास अनियमितताओं के सबूत हैं, तो वे प्रस्तुत करें. सवाल यह है कि छात्र कहां से सबूत लाएगा. यह काम तो सरकार ही कर सकती है. फिलहाल सवाल उठाने वालों छात्रों की मदद करने के नाम पर जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज भारती सहित 21 लोगों के खिलाफ पटना के गांधी मैदान थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई है. 

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4- पेपर लीक रोकने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी

भारत में पिछले पांच सालों में जो पेपर लीक के बारे में पता चलता है उसके हिसाब से कम से कम 45 एग्जाम लपेट में आए हैं. इनमें से कम से कम 27 एग्जाम या तो रद्द कर दिए गए या टाल दिए गए. सबसे ज्यादा पेपर लीक उत्तर प्रदेश में हुए, वहां 8 मामले सामने आए. इसके बाद राजस्थान और महाराष्ट्र में 7-7 पेपर लीक हुए. बिहार में 6, गुजरात और मध्य प्रदेश में 4-4 पेपर लीक हुए हैं. ऐसे कौन से कारण हो सकते हैं कि सरकार एक  परीक्षा भी ढंग से नहीं करा पा रहे हैं. जो सरकार अपने देश के युवाओं के लिए न्यायपूर्ण ढंग से परीक्षा भी आयोजित न करवा सके उसे सत्ता में बने रहने का बिल्कुल भी अधिकार नहीं होना चाहिए. पर मुश्किल यह है कि बीजेपी हो या विपक्ष की कोई भी सरकार सभी में पेपर लीक हो रहे हैं. राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार जाने का यही कारण था. पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती कांड का घोटाल सबके सामने है. खुद ममता बनर्जी ने तत्कालीन शिक्षामंत्री को बर्खास्त किया और कभी उनसे जेल में मिलने तक नहीं गईं. ऐसा क्यों हो रहा है? जाहिर है कि पेपरलीक को रोकने के लिए सरकारों में इच्छाशक्ति की कमी दिखती है. अंदाजा लगाइए सिर्फ पेपर लीक की वजह से कितनी सरकारी नौकरियां रद्द हुई होंगी. इस दौरान तीन लाख से ज्यादा सरकारी पदों पर भर्ती के लिए होने वाले एग्जाम रद्द करने पड़े.

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