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BJP के लिए इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में कितना भारी पड़ेंगे बजट 2024 के ये फैसले

बजट पेश करते हुए हर सरकार इसका ध्यान रखती है कि उसके कोर वोटर्स को क्या मिल रहा है. इस साल लोकसभा चुनावों में शिकस्त मिलने के बाद भारतीय जनता पार्टी के लिए 3 विधानसभा चुनावों को जीतना बहुत जरूरी है. पर बजट में ऐसा कुछ नहीं दिख रहा है जिसे पार्टी जनता के बीच जाकर श्रेय ले सकेगी.

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वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन का बजट बीजेपी की उम्मीदों पर कितना खरा?
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन का बजट बीजेपी की उम्मीदों पर कितना खरा?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने अपनी स्टाइल का बजट इस बार भी दिया है. उनके पहले बजट से लेकर इस साल के सातवें बजट तक उन्होंने कभी भी किसी खास तबके के लिए कुछ ऐसा नहीं किया जिससे उससे संबंधित लोगों की बांछें खिल जाएं. जिस तरह एक आम गृहिणी घर का बजट बनाते हुए इस पर ही जोर देती है कि घर का चौका-चूल्हा बिना किसी की मदद लिए चलता रहे. न कि वह किसी को साधने या सबको साधने का जतन करती है. उसी तरह का बजट निर्मला हर बार पेश करती रही हैं. इसका फायदा ये रहा है कि देश कोरोना संकट और विश्व में आर्थिक सुस्ती के बावजूद भारत एक सामान्य गति से चलता रहा है. 

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निर्मला अपने बजट में बड़े-बड़े वादे करके ताली बटोरनी वाली बड़ी योजनाओं की रूपरेखा कभी नहीं बनाईं. इसका नुकसान ये होता है कि हर साल बजट आने पर देशवासियों में कोई उत्साह नहीं जगता है. पर भारतीय जनता पार्टी के लिए अब देश की जनता में इस तरह का उत्साह जगाना प्रॉयरिटी में आ गया है. क्योंकि लोकसभा चुनावों में मिली शिकस्त के बाद उपचुनावों में भी पार्टी की बहुत किरकिरी हुई है. अभी यूपी में 10 सीटों पर उपचुनाव होने वाला है. 3 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं ऐसे में देशवासियों के लिए ऐसा बजट होना चाहिए था जो लोगों में कुछ बड़ा होने या परिवर्तन होने की उम्मीद जगा सके. इसके उलट वित्तमंत्री ने बजट में ऐसे फैसले लिए हैं जो भाजपा के कोर वोटर्स को ही नुकसान पहुंचाने वाले हैं.

1- LTCG बढ़ने से बीजेपी के कोर वोटर को हुआ नुकसान

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इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है कि देश में शेयर बाजार में निवेश करने वालों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है. देश में करीब 10 करोड़ डीमैट एकाउंट खुल चुके हैं. शेयर बाजार में पैसा लगाने वालों में करीब 90 प्रतिशत लोग बीजेपी के हार्ड कोर वोटर्स हैं. इस बजट में वित्तमंत्री ने सभी वित्तीय और ग़ैर वित्तीय परिसंपत्तियों पर होने वाले लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स पर लगने वाले टैक्स को 10 फीसदी से बढ़ाकर 12.5 फ़ीसदी कर दिया गया है. इसके साथ ही शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन्स पर टैक्स को 15 फ़ीसदी से बढ़ाकर 20 फ़ीसदी कर दिया गया है.जाहिर है कि शेयर खरीदने और बेचने वालों की आमदनी कम हो जाएगी. मंगलवार को बजट पेश होते ही बाजार ने जो रिएक्शन दिया था शायद उसके मूल में यही कारण था. शेयर बाजार में पैसा लगाने वाला बंदा हर रोज वित्तमंत्री को कोसेगा. जो भारतीय जनता पार्टी के हित में नहीं होगा.

2- घर बेचने में फायदा कम हो गया

फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण ने संपत्ति की बिक्री पर मिलने वाले इंडेक्सेशन बेनिफिट को खत्म करने की घोषणा की है. मतलब सीधा है कि घरों में इनवेस्टमेंट बहुत फायदेमंद नहीं होगा.इसके साथ ही जिस कैटेगरी के लोगों के पास घर बेचकर नया घर खरीदने की कूवत है उनमें अधिकतर भारतीय जनता पार्टी के सपोर्टर हैं. प्रॉपर्टी बेचने वाले लोग अपनी खरीद कीमत नहीं बढ़ा पाएंगे और अपने पूंजीगत लाभ को कम नहीं कर पाएंगे. अब तक की व्यवस्था में प्रॉपर्टी की सेल से होने वाले लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर इंडेक्सेशन बेनिफिट के भीतर 20% टैक्स लगाया जाता था. अब प्रॉपर्टी की सेल पर पूंजीगत लाभ के लिए इंडेक्सेशन बेनिफिट के बिना 12.5% का नया LTCG टैक्स रेट लागू होगा.

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3-क्या इंसेंटिव देने से रोजगार बढ़ेंगे?

लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को मिली शिकस्त ने यह साफ़ कर दिया था कि रोज़गार का मुद्दा निर्णायक साबित हुआ. उत्तर प्रदेश में हार की कारणों की समीक्षा में भी यही कहा गया कि पेपर लीक और रोजगार का मुद्दा ऐसा रहा है जो भारतीय जनता पार्टी के लिए मुश्किल बना दिया.सवाल ये है कि इस बार रोज़गार को लेकर जो एलान किए गए हैं वो बेरोज़गारी को दूर करने में कितना कामयाब हो पाएंगे. नौकरियां बढ़ाने के लिए बजट में जो एलान किए गए हैं, उनके मुताबिक़ पहली बार नौकरी हासिल करने वाले कर्मचारियों को एक महीने की सैलरी सरकार उनके बैंक खाते में ट्रांसफर करेगी. यानी इससे उन्हें नौकरी देने वाली कंपनियों पर भार कम पड़ेगा. इससे वो नौकरियां देने के लिए प्रोत्साहित होंगी.

यह राशि तीन किस्तों में ट्रांसफर की जाएगी जो अधिकतम 15,000 रुपये तक होगी. इस स्कीम से फायदा 30 लाख युवाओं को मिलने का अनुमान है.लेकिन क्या सिर्फ़ इन्सेन्टिव देने से कंपनियां भर्ती करेंगी. होगा इसका उल्टा कंपनियां इंसेंटिव के रूप में रकम भी हजम कर जाएंगी और रोजगार भी नहीं मिलेगा.रोजगार बढाने के लिए उद्योग धंधों के विकास और लोगों की खरीद क्षमता बढ़ाने की जरूरत है. देश में लगातार आम लोगों की खरीद क्षमता घट रही है. ऐसे में उद्योग धंधों के लिए भी मुश्किल हो सकती है. जब उत्पादन की डिमांड नहीं होगी तो उद्योगपति प्रोडक्शन ही क्यों करेगा. जब प्रोडक्शन घटेगा तो तीन महीने का इंटेंसिव के भरोसे नौकरी कौन देगा?

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कोविड के बाद अर्थव्यवस्था में रिकवरी और रोज़गार बढ़ाने के लिए उद्योगों को ख़ासा टैक्स इन्सेन्टिव दिया गया था ताकि वो लोगों को नौकरियां दें पर क्या हुआ?  उद्योगों ने अपना विस्तार नहीं किया. यही हाल इंटर्नशिप योजना का भी होने वाला है. 

4-असेंबली इलेक्शन होने वाले राज्यों को कुछ नहीं मिला

महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं. चुनावी राज्यों को बजट से बहुत उम्मीदें थीं. पर इन राज्यों के लिए मिलना तो दूर कोई उम्मीद भी नहीं जगी है. लोकसभा चुनावों में अनुसूचित जाति और पिछड़ी जाति के वोट छिटकने की चिंता भी नजर नहीं आई.अन्य पिछड़ा वर्ग या अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए कोई खास योजना नजर नहीं आई. उम्मीद की जा रही थी कि उपचुनावों और 3 राज्यों में होने वाले चुनावों को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार 3.0  के पहले बजट में सरकार चुनावी राज्यों के लिए अपना खजाना खोल देगी. बजट में प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान शुरू करने का ऐलान किया गया है. जनजातीय समुदाय के लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए शुरू किए जा रहे इस अभियान के तहत जनजातीय परिवारों को सरकारी योजनाओं के संपूर्ण कवरेज का लक्ष्य रखा गया है. इसमें जनजाति बाहुल्य 63 हजार गांवों को शामिल किया जाना है और पांच करोड़ जनजातीय लोग लाभान्वित होंगे. जनजाति बाहुल्य झारखंड की कुल आबादी में करीब 27 फीसदी भागीदारी जनजातियों की है. ऐसे में इस योजना का लाभ भी झारखंड को मिलने की उम्मीद की जा सकती है. पर ये योजनाएं पार्टी की ब्रैंडिंग की नहीं कर पाती हैं. जनता ये मानकर चलती है कि ये सरकारी योजनाएं हैं ये तो मिलना ही था.अगर इनकी जगह पर कोई लोन, कोई छात्रवृत्ति, कोई सहायता जैसी योजना शुरू की गई होती तो उसकी बात अलग होती. इसी तरह चुनावी राज्यों में कोई बड़ा प्रोजेक्ट शुरू करने की घोषणा हो सकती थी.

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5-किसानों के लिए नहीं हुई कोई घोषणा

हरियाणा और महाराष्ट्र में किसानों के वोट बहुत महत्वपूर्ण है. भारतीय जनता पार्टी की जरूरत थी कि किसानों के लिए बजट में कुछ ऐसी घोषणाएं की जाएं जिससे उन्हें अपने जीवनशैली में बदलाव होने की कुछ उम्मीद जग सके.सरकार ने कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों के लिए एक लाख 52 हजार करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है. वित्त मंत्री ने उत्पादन बढ़ाने और जलवायु के अऩुकूल किस्मों के विकास पर जोर देने के लिए कृषि अनुसंधान व्यवस्था की व्यापक समीक्षा का ऐलान करते हुए ये भी कहा है कि 32 कृषि और बागवानी फसलों की नई 109 उच्च पैदावार वाली और जलवायु अनुकूल किस्में जारी की जाएंगी. दर असल बजट में हुए फैसले कृषि उत्पादन बढ़ाने वाले हैं. पर किसान नेता राकेश टिकैत आज तक से कहते हैं कि किसान को पैदावार बढ़ाने से क्या मिलेगा. जब तक फसल के बिकने की व्यवस्था नहीं होगी.फसल अधिक होने से किसान उसे औने पौने बेचेगा या घर पर रखकर सड़ाएगा. बजट में किसानों के लिए बहुत कुछ करने के वादे किए गए हैं. पर कोई भी एक वादा ऐसा नहीं है जो किसानों को प्रत्यक्ष लाभ पहुंचाता दिख रहा हो.

वित्त मंत्री ने ये भी कहा है कि 6 करोड़ किसानों और उनकी जमीन के ब्यौरे रजिस्ट्री में दर्ज किए जाएंगे, राष्ट्रीय सहकारी नीति लाई जाएगी जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास में तेजी आएगी. हरियाणा और महाराष्ट्र के लिए बजट में सीधे कोई ऐलान नहीं किया गया है लेकिन इन दोनों ही राज्यों की बड़ी आबादी कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों से जुड़ी है.

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