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केजरीवाल के CAA विरोध का लेवल देखिए, मोदी के बजाय क्या राहुल गांधी हैं निशाने पर?

केजरीवाल ने सीएए (CAA) के विरोध में केवल रस्म अदायगी नहीं की है. वे लगातार प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं, सरकार का जवाब दे रहे हैं, विडियो बनाकर डाल रहे हैं, ट्वीट कर रहे हैं. विरोध की उनकी भाषा और तल्खी के लेवल पर भी गौर करिए. राहुल गांधी अभी भी मोहब्बत की दुकान पर रोटी-कपड़ा और मकान से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं.

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अरविंद केजरीवाल ने सीएए मुद्दे पर केंद्र सरकार को जमकर घेरा है.
अरविंद केजरीवाल ने सीएए मुद्दे पर केंद्र सरकार को जमकर घेरा है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सीएए के विरोध में धान बो दिया है. जब से केंद्र सरकार ने संशोधित नागरिक कानून को लागू करने के लिए नोटिफिकेशन जारी किया है अरविंद केजरीवाल लगातार विरोध किए जा रहे हैं.इस विरोध में वो यह भी भूल जा रहे हैं कि क्या सही है क्या गलत है. पर विरोध तो ऐसे ही किया जाता है. इसके ठीक उलट राहुल गांधी गुरुवार को किसानों को न्याय दिला रहे थे. उनकी राजनीति मोहब्बत की दुकान और रोटी कपड़ा और मकान से ऊपर ही नहीं उठ पा रही है. राहुल गांधी के सलाहकार लगातार उनसे वही काम करा रहे हैं जिसका सब्जेक्ट ही नहीं टाइमिंग भी गलत है. जब सीएए का विरोध करना चाहिए वो किसानों को न्याय दिला रहे हैं. अरविंद केजरीवाल जिस तरह सीएए का विरोध कर रहे हैं वो उन्हें नरेंद्र मोदी नहीं बना सका तो कम से कम देश के मुख्य विपक्षी नेता के रूप में तो अवश्य स्थापित करने में मददगार बनेगा. अगर ऐसा होता है तो यह राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ा सेटबैक होगा. 

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1-केजरीवाल के सीएए विरोध का लेवल तो देखिए

अरविंद केजरीवाल ने सीएए के विरोध को लेकर केवल औपचारिक विरोध के जैसी रस्म अदायगी नहीं की है . जिस तरह कांग्रेस और विपक्ष के अन्य दलों ने केवल बयान जारी कर दिया और काम हो गया. केजरीवाल सीएए के विरोध में लगातार प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं, सरकार के स्टेमेंट का जवाब दे रहे हैं, विडियो बनाकर डाल रहे हैं, लगातार ट्वीट कर रहे हैं. विरोध की उनकी भाषा और तल्खी के लेवल पर भी गौर करिए. शब्दों का चयन का लेवल ऐसा है कि बीजेपी और उनके समर्थक चिढ़ कर रह जा रहे होंगे. अरविंद केजरीवाल की राजनीति का यही अंदाज है . एक ट्वीट के भाषा पर गौर करिए.

'आज कुछ पाकिस्तानियों ने मेरे घर के सामने प्रदर्शन और हुड़दंग किया. दिल्ली पुलिस ने उन्हें पूरा सम्मान और संरक्षण दिया. बीजेपी ने इनका पूरा समर्थन किया. इनकी इतनी हिम्मत हो गई कि दिल्ली की जनता द्वारा भारी बहुमत से चुने गए CM को हमारे मुल्क में घुसकर माफ़ी मांगने को कह रहे हैं? और बीजेपी इनका समर्थन कर रही है? बीजेपी मुझसे नफ़रत करते-करते पाकिस्तानियों के साथ खड़ी हो गई, भारत के साथ ग़द्दारी करने लगी? इस CAA के बाद ये पाकिस्तानी पूरे देश में फैल जाएंगे और इसी तरह हमारे ही मुल्क के लोगों को इस तरह हड़काएंगे और हुड़दंग करेंगे. बीजेपी इन्हें अपना वोट बैंक बनाना चाहती है.

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सीएए के नोटिफिकेशन जारी होने के बाद किए गए उनके और ट्वीट देखिए आपको उनके विरोध के लेवल का अंदाजा लग जाएगा.

 

 


2-केजरीवाल की इस रणनीति से मोदी को फायदा और नुकसान राहुल को 

केजरीवाल ने सीएए के विरोध को जिस लेवल पर लेकर जा रहे हैं उसे आप नैतिक नहीं कह सकते हैं पर एक राजनीतिक दल के नेता की लिहाज से वो अपनी पार्टी के लिए बेहतरीन काम कर रहे हैं. जिस मुद्दे पर देश की करीब 20 प्रतिशत जनता का पक्का समर्थन मिल सकता है उसे इस लेवल तक ले जाने में पार्टी का फायदा ही फायदा है. फिलहाल सीएए विरोध के नाम पर आज देश का विपक्ष केजरीवाल के आगे गूंगा लग रहा है. क्षेत्रीय पार्टियों को तो छोड़ ही दीजिए कांग्रेस जैसी अखिल भारतीय पार्टी भी आम आदमी पार्टी के आगे फीकी लग रही है. जबकि आपको याद होगा 2019 में जब सीएए का विरोध शुरू हुआ और शाहीन बाग की महिलाएं सड़क पर धरने पर बैठीं तो कांग्रेस ही उनके साथ थी. आम आदमी पार्टी की ओर से नैतिक समर्थन के नाम पर कभी अरविंद केजरीवाल शाहीन बाग नहीं पहुंचे थे. इस बात के लिए उनकी खूब आलोचना भी हुई थी. अब अचानक अरविंद केजरीवाल ने जो रुख दिखाया है उससे सभी लोग हतप्रभ हैं. 

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जाहिर है कि केजरीवाल सीएए का विरोध करके नैशनल लेवल पर प्रमुख विपक्ष की हैसियत में आ रहे हैं. जो काम राहुल गांधी को करना चाहिए था वो केजरीवाल कर रहे हैं. केजरीवाल यह भी समझते हैं कि उनके इस एक्सरसाइज का सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी ही उठाने वाली है. नुकसान तो सीधा राहुल गांधी को होने वाला है. क्योंकि प्रतीकों की राजनीति में केजरीवाल अब नैशनल लेवल पर राहुल गांधी पर भारी पड़ेंगे. कई स्टेट में कांग्रेस को रिप्लेस करने को तैयार आम आदमी पार्टी के लिए ये एस्टेरॉयड की तरह ताकत देने वाला होगा.

3- सीएए के विरोध की बजाय राहुल का फोकस न्याय की गारंटी पर

राहुल ताबड़तोड़ वायदे किए जा रहे हैं. उन्होंने महिलाओं के न्याय, श्रमिकों के न्याय, किसानों के न्याय आदि के नाम पर इतने वादे कर दिए हैं कि आम लोगों को खुद लगने लगा है कि ये सब पूरे होने वाले नहीं है. फिर एक बात और है कि पब्लिक को लगता है कम से कम राहुल गांधी को ये वादे पहले कांग्रेस शासित राज्यों में पूरा करके दिखाना चाहिए. राहुल ने 30 लाख सरकारी नौकरियों , महिलाओं को हर साल एक लाख रुपये, भर्तियों में महिलाओं को 50 परसेंट आरक्षण, एमएसपी की गारंटी आदि कुछ ऐसे वादे किए हैं जो कांग्रेस शासित राज्यों में पहले करके दिखाना चाहिए था. अन्यथा लोगों को यही लगता है कि यूपीए गवर्नमेंट में भी भोजन की गारंटी और काम की गारंटी, शिक्षा की गारंटी आदि के कानून बनाए गए . उन कानूनों का क्या हुआ ? कितने लोग आज भी भूखे सोते हैं , कितने लोगों को काम मिलता है , कितने लोग आज भी अशिक्षित रह जाते हैं. दूसरी ओर नरेंद्र मोदी चूंकि सरकार में हैं इसलिए उनकी गारंटी मायने रखती है. इसलिए उनसे तुलना करने वाले वादे करने की जरूरत ही क्या थी? पिछले दिनों राहुल गांधी के बड़े बड़े वादों की लिस्ट देखिए और अंदाज लगाइए.उसमें कितने पूरे होने वाले लगते हैं.

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4-उत्तर भारत से खुद को समेट रहा है गांधी परिवार, केजरीवाल के लिए मौका

अरविंद केजरीवाल भी समझ रहे हैं कि यह समय उन्हें बीजेपी को रिप्लेस करने के लिए नहीं खर्च करना है, बल्कि यह अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस को खत्म करने में लगाना है. इसी रणनीति के तहत वह सीएए के विरोध में अपनी जान लगा दिए हैं. उत्तर भारत से कांग्रेस खुद अपने को समेटने में लगी है. केजरीवाल के लिए यह बढ़िया मौका है जब वह कांग्रेस की जगह भरने के लिए तैयार रहे. उत्तर प्रदेश में अमेठी और राय बरेली छोड़कर गांधी परिवार ने दिखा दिया है कि वो उत्तर भारत को लेकर अब गंभीर नहीं है. अन्यथा राहुल गांधी या प्रियंका गांधी ने अमेठी और रायबरेली से चुनाव लड़ने की जरूर हिम्मत दिखाए होते. 
 

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