हाल ही में चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में एक टिप्पणी छपी, जिसमें भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर को चीन-भारत संबंधों में सुधार की राह में एक 'बाधा' बताया गया. हालांकि, अगर हम चीन में भारत पर चल रही चर्चाओं को करीब से देखें तो पता चलता है कि चीन-भारत संबंधों को सुधारने के खिलाफ विरोध खुद चीन के समाज से आ रहा है.
यह सच है कि चीनी रणनीतिक समुदाय का एक हिस्सा चीन-भारत संबंधों को बेहतर बनाने के लिए सकारात्मक माहौल बनाना चाहता है. साथ ही वह यह दिखा रहा है कि दोनों देशों के बीच तनाव धीरे-धीरे कम हो रहा है. इसी तरह, चीनी इंटरनेट पर द्विपक्षीय संबंधों में संभावित 'रीसेट' को लेकर चर्चाएं हो रही हैं. भले ही वह 'रणनीतिक' ही क्यों न हो.
यह तर्क दिया जा रहा है कि 2024 के बाद से चीन-भारत संबंधों में सुधार के संकेत मिले हैं, खासकर उच्च स्तरीय लेवल पर दोनों देशों के बीच बातचीत बढ़ने के साथ. जुलाई में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में जयशंकर से मुलाकात की. अगस्त के अंत में दोनों की विएंटियन, लाओस में फिर से मुलाकात हुई. पिछले चार वर्षों में इतनी बार उच्च स्तरीय मुलाकातें दुर्लभ रही हैं, जो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सकारात्मक संकेत देती हैं. उच्च स्तरीय वार्ताओं के अलावा सीमा विवाद पर परामर्श में भी कुछ प्रगति देखने को मिली है.
जुलाई और अगस्त के अंत में दोनों पक्षों ने नई दिल्ली और बीजिंग में 30वीं और 31वीं सीमा मामलों की परामर्श बैठकें कीं. जैसे-जैसे बातचीत और गहरी हुई, कहा जा रहा है कि भारत ने भी अपनी चीन नीति में बदलाव किया है. चीनी निवेश पर लगी पाबंदियों को धीरे-धीरे कम किया है और चीनी लोगों को वीजा देने में सकारात्मक रवैया दिखाया है.
चीनी पक्ष यह भी मानता है कि भारत में सार्वजनिक राय भी धीरे-धीरे बदल रही है, और चीन-भारत आर्थिक संबंधों को फिर से स्थापित करने की आवश्यकता पर आम सहमति बन रही है, जो भारत के अपने आर्थिक विकास के लिए जरूरी है. कुछ चीनी विशेषज्ञों का मानना है कि इन प्रयासों का उद्देश्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी BRICS शिखर सम्मेलन के लिए कजान यात्रा के दौरान दोनों राष्ट्राध्यक्षों की मुलाकात के लिए सही माहौल बनाना है.
संघर्ष की अफवाहें क्यों फैल रही हैं?
वहीं दूसरी ओर पिछले कुछ दिनों में चीन की सोशल मीडिया जैसे Douyin और TikTok पर चीन और भारतीय सैनिकों के बीच ताजा संघर्ष की सनसनीखेज खबरें चल रही हैं. इन रिपोर्ट्स में कहा गया कि 31वीं चीन-भारत सीमा मामलों की परामर्श बैठक के तुरंत बाद, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने LAC पार कर भारतीय सेना का पीछा किया. वो 20 किलोमीटर अंदर तक घुस आई और इस प्रक्रिया में उसने अपने 6 सैनिकों को खो दिया, लेकिन आखिरकार चुमार बंकरों को फिर से अपने कब्जे में ले लिया.
इस खबर की टाइमिंग, जगह और विवरण (यहां तक कि पीड़ितों के नाम सहित) इतने सटीक और पेशेवर ढंग से पेश किए गए कि चीनी इंटरनेट पर धूम मच गई. 6 सितंबर को PLA के वेस्टर्न थिएटर कमांड को हस्तक्षेप कर बयान जारी करना पड़ा. इसमें कहा गया, 'इंटरनेट एक कानून रहित जगह नहीं है! सेना से जुड़े अफवाहों का प्रचार-प्रसार बंद होना चाहिए!'
चीन की सरकार के करीब माने जाने वाले मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे साउथ एशिया स्टडीज न्यूज़लेटर (南亚研究通讯) ने इन 'अफवाहों' को खारिज करने की पूरी कोशिश की और बताया कि यह 'गलत सूचना अभियान' वर्तमान में चीन-भारत संबंधों में आ रहे सुधार के विषय से बिल्कुल बाहर है.
दूसरों ने इसका आरोप कुछ स्वार्थी समूहों पर लगाया, जो चीन-भारत संबंधों में आ रहे सकारात्मक रुझानों को खराब करने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, आम लोग इन स्पष्टीकरणों से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे और यह सोच रहे थे कि क्या अफवाहें सच हो सकती हैं. एक चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म Weibo पर एक पोस्ट में लिखा गया था- 'बिना आग के धुआं नहीं होता! हो सकता है कि घोषणा का समय राष्ट्रीय रणनीति के विपरीत हो.'
भारत के लिए यह 2013 और 2014 की घटनाओं की याद दिलाने जैसा है, जब चीन और भारत के बीच उच्च स्तरीय वार्ता गंभीर सीमा संघर्षों के साये में हुई थी. इसलिए, हमें यह सबक लेना चाहिए कि हमें चीन के साथ शांति वार्ता के दौरान भी संघर्ष के लिए तैयार रहना चाहिए.