scorecardresearch
 

बिहार में कांग्रेस दिल्ली वाले तेवर में, क्या RJD का भी हश्र आम आदमी पार्टी वाला होगा?

बिहार प्रदेश कांग्रेस के बहुत से नेता चाहते थे कि पार्टी लालू यादव की छत्रछाया से बाहर निकले. पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश सिंह के चलते ये संभव नहीं हो पा रहा था. फिलहाल उनकी जगह एक दलित नेता को नेतृत्व दिया गया है. जाहिर है कि अभी कांग्रेस बिल्कुल दिल्ली विधानसभा चुनावों वाले तेवर में है.

Advertisement
X
राजेश कुमार लेंगे बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह का स्थान
राजेश कुमार लेंगे बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह का स्थान

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस हर रोज यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि वह राज्य में इस बार अपने अस्तित्व के लिए कुछ भी कर सकती है. कांग्रेस लगातार ऐसे फैसले ले रही है जिसका संदेश जाता है कि लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी आरजेडी के साये में रहना पार्टी को अब पसंद नहीं है. बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाकर कुटुंबा विधायक राजेश कुमार को बागडोर सौंपने के पीछे एक कारण यह भी बताया जा रहा है. अभी कुछ दिन पहले ही पार्टी ने इसी कड़ी में राज्य में ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ नाम से एक पदयात्रा शुरू की है. इस यात्रा का नेतृत्व पार्टी ने अनौपचारिक रूप से कन्हैया कुमार को सौंप दिया. ये जानते हुए भी कि लालू परिवार कन्हैया कुमार से कितना खार खाता है. जाहिर है कि एक के बाद एक झटका कांग्रेस पार्टी लालू यादव परिवार को दे रही है. इसका सीधा मतलब है कि पार्टी आरजेडी और लालू परिवार के अर्दब में अब नहीं रहने वाली है. जाहिर है कि कांग्रेस महागठबंधन में रहेगी तो अपने शऱ्तों पर या फिर दिल्ली की तरह अपनी अलग राह चुनेगी. और दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के अलग चुनाव लड़ने पर क्या हुआ ये सभी जानते हैं.

Advertisement

1-दलित राजनीति पर कांग्रेस का फोकस

कांग्रेस लगातार दलित राजनीति पर पकड़ बनाने की कोशिश में लगी हुई है. दलित कभी कांग्रेस के कोर वोटर रहे हैं. जिस तरह 2024 के लोकसभा चुनावों में दलितों ने कांग्रेस का साथ दिया उससे यही लगता है कि कांग्रेस के सहयोगी दलों को सावधान हो जाना चाहिए. यूपी और बिहार में कांग्रेस के पतन होने के चलते दलित वोट बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी, आरजेडी, जेडीयू के साथ चले गए थे. पर जिस तरह राहुल गांधी हर मंच पर दलितों और ओबीसी के हितों का मुद्दा उठा रहे हैं उसे एक संदेश तो गया ही है कि उनके असली शुभचिंतक कांग्रेस ही है. राहुल पूरे देश की तरह बिहार में भी संविधान बचाओ  रैलियों में शामिल होते रहे हैं. बिहार में दलित समाज के बड़े नेता जगलाल चौधरी की जयंती समारोह में राहुल ने भाग लिया था. राहुल गांधी के इन कदमों से दलित वोटर्स में कांग्रेस के लिए पॉजिटिव संदेश गया है. जाहिर है कि कम से कम बिहार में तो दलितों के कांग्रेस के साथ आने की पूरी संभावना है. यही कारण है कि कांग्रेस ने अखिलेश प्रसाद की जगह विधायक राजेश कुमार को बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर दलितों को साधने की कोशिश की है.राजेश कुमार बिहार के कुटुम्बा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. उन्होंने कांग्रेस टिकट पर 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल की थी. पार्टी ने उन्हें अध्यक्ष बनाकर साफ कर दिया है कि 2025 का चुनाव उन्हीं के अगुवाई में लड़ा जाएगा. सबसे बड़ी बात यह है कि राजेश कुमार को लालू यादव के अर्दब में नहीं आने वाले हैं.

Advertisement

2-जाति जनगणना के मुद्दे पर राहुल ने सबको पीछे छोड़ा

जाति जनगणना को लेकर राहुल गांधी इतना बोल चुके हैं कि अब गूगल या किसी एआई से पूछेंगे तो जाति जनगणना के असली खिलाड़ी वो राहुल गांधी को ही बताएगा. देश विदेश का कोई मंच या सभा ऐसी नहीं होगी जहां राहुल गांधी को बोलने का मौका मिला हो और वो जाति जनगणना का प्रश्न न उठाएं हों. हालांकि जाति जनगणना की सबसे पहले बात मंडलवादी पार्टियों ने ही उठाया. पर राहुल ने इस मुद्दे को लपक लिया है.

2024 में भी लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने भी जातीय जनगणना करने का मुद्दा उठाया और बिहार में जाति आधारित आरक्षण बढ़ाने का श्रेय लिया. इन सब के बीच पिछले दिनों जब राहुल गांधी ने पटना में संविधान सुरक्षा सम्मेलन में जब बिहार में कराए गए जातीय जनगणना को ही पूरी तरीके से फर्जी बताकर लालू परिवार को यह संदेश दे दिया था. राहुल गांधी के बयान से तेजस्वी के दावे पर सवाल तो खड़ा ही होता है. कांग्रेस ने जिस तरह तेलंगाना में जाति जनगणना कराके ओबीसी आरक्षण बढ़ाने वाली है उसका असर बिहार में जरूर पड़ेगा. जाहिर है कि अगर कांग्रेस अलग चुनाव लड़ती है तो आरजेडी के लिए काफी मुश्किल होने वाली है.

Advertisement

3-कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को बिहार में एक्टिव करना

कन्हैया कुमार और पप्पू यादव से लालू यादव परिवार बहुत पहले से ही खार खाता है. ऐसा क्यों है यह समझ से परे है.वैसे बहुत से लोगों का मानना है कि लालू यादव नहीं चाहते हैं कि बिहार की राजनीति में तेजस्वी के मुकाबले कोई खड़ा हो. यही कारण है कि कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को वो उभरने नहीं देते हैं. पर इस तर्क में बहुत वजन नहीं दिखता है.  फिर भी अगर किसी भी कारण से ये दोनों लालू परिवार को नहीं सुहाते हैं तो इन्हें आगे करने का मतलब क्या हो सकता है. अब तक बिहार में लालू के भरोसे कांग्रेस की सांसें चलती रही हैं. 2020 के विधानसभा चुनावों में लालू यादव समझते हैं कि कांग्रेस को 70 सीटें देकर एक अहसान किया था. लालू समर्थकों का कहना है कि अगर कांग्रेस को कम सीटें दी गईं होतीं तो बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी होती. कांग्रेस केवल 19 सीटें जीत सकी थी. कांग्रेस ने जिस तरह पप्पू यादव और कन्हैया कुमार को अभी से सक्रिय कर दिया है वह रंग ला सकता है. पप्पू यादव को हल्के में लेने का नतीजा लोकसभा चुनावों में भी आरजेडी को महंगा पड़ा था. अब तो पप्पू यादव कांग्रेस के साथ है जाहिर तौर पर आरजेडी के लिए और मुश्किल खड़ी करेंगे.

Advertisement

4-अखिलेश सिंह को हटाना

बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरु कुछ दिनों पहले ही इशारों में ये संकेत दे चुके थे कि बिहार में जल्द ही नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है. कुछ दिनों पहले ही उन्होंने पटना एयरपोर्ट पर दो टूक कह दिया था कि कांग्रेस अब बिहार में A टीम बन कर काम करेगी. अखिलेश प्रसाद सिंह की लालू प्रसाद यादव से नजदीकी छिपी हुई नहीं है. बिहार के सीएम नीतीश कुमार से नजदीकियों के चलते ही तत्कालीन डिप्टी सीएम सुशील मोदी को बीजेपी ने किनारे लगाया था. क्योंकि बीजेपी भी बिहार में छोटा भाई बनकर नहीं रहना चाहती थी. ठीक उसी तरह अब कांग्रेस में बिहार में लालू यादव की छत्रछाया से बाहर निकलना चाहती है. 2019 में कांग्रेस और राजद के बीच सीट बंटवारे को लेकर सियासी गलियारे में कहा जाता है कि अखिलेश प्रसाद सिंह के चलते ही कांग्रेस और आरजेडी में सीटों पर समझौता करवाने में अहम भूमिका निभाई थी. प्रदेश कांग्रेस के बहुत से नेता चाहते थे कि पार्टी लालू यादव की छत्रछाया से बाहर निकले. पर अखिलेश सिंह के चलते ये संभव नहीं हो पा रहा था.

5- क्‍या आरजेडी को भी होगा आम आदमी पार्टी जैसा नुकसान

आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों ने मिलकर चुनाव लड़ा होता तो तस्वीर कुछ और होता. हरियाणा में भी दोनों के अलग चुनाव लड़ने के चलते कांग्रेस को नुकसान हुआ था. बिहार में कांग्रेस देखने में कमजोर लग सकती है पर इस पार्टी के वोट दलितों और मुसलमानों में ठीक ठाक है. कांग्रेस अगर अच्छे कैंडिडेट खड़ी करती है तो बिहार मेआरजेडी और जेडीयू ही नहीं बीजेपी का भी नुकसान करने की क्षमता रखती है. दरअसल सवर्ण वोटर्स में कांग्रेस की घुसपैठ अभी भी बहुत अच्छी है. बिहार में आरजेडी का मूल आधार दलित-ओबीसी और मुसलमान वोटर्स रहे हैं. जाहिर है कि कांग्रेस आरजेडी के इस वोट बैंक में सेंध लगाने को तैयार दिखती है.

Live TV

Advertisement
Advertisement