न तो राहुल गांधी क्षेत्रीय दलों के नेताओं को बर्दाश्त कर पाते हैं, न वे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन हजम कर पा रहे हैं. लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने के बाद स्वाभाविक रूप से राहुल गांधी के हाव-भाव में अकड़ तो आ ही गई है, लेकिन साथी नेताओं के प्रति उनका व्यवहार पहले जैसा ही लगता है.
अब तक विपक्ष के नेतृत्व की जब भी बात आई है, सबसे बड़ा विपक्षी दल होने के नाते कांग्रेस की दावेदारी बढ़ जाती है. विपक्ष का नेता होने से तो किसी को दिक्कत नहीं होती, लेकिन वो बात सीधे सीधे प्रधानमंत्री पद से जुड़ जाती है, और बखेड़ा खड़ा हो जाता है.
ऐसा तो है नहीं कि जो विपक्ष का नेता बनेगा, वो स्वाभाविक रूप से प्रधानमंत्री पद का भी दावेदार होगा ही. चूंकि अब तक विपक्षी खेमे में ऐसी ही समझ रही है, इसलिए प्रयास बीच रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं.
बीच बीच में नीतीश कुमार और ममता बनर्जी के नाम प्रधानमंत्री पद के लिए उछाले जाते रहे हैं, और अब तो नये दावेदार अरविंद केजरीवाल भी हो गये हैं. चूंकि कांग्रेस प्रधानमंत्री का पद राहुल गांधी के लिए आरक्षित मानती है, इसलिए हमेशा ही टकराव होता रहता है.
अगर कांग्रेस नेतृत्व ये समझ ले कि किसी और के इंडिया ब्लॉक का नेता बन जाने भर से राहुल गांधी की प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी नहीं खत्म हो जाती तो भी झगड़ा खत्म हो जाये. लेकिन, जैसे ही विपक्ष के नेता के रूप में राहुल गांधी के अलावा कोई और नाम सामने आता है, कांग्रेस बेचैन हो जाती है.
लोकसभा चुनाव के बाद ये बहस थोड़ी थम गई थी, लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद तकरार शुरू हो गई, और तभी तृणमूल कांग्रेस की तरफ से ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक का नेता बनाने की मांग खड़ी हो गई. समाजवादी पार्टी और लालू यादव ने ममता बनर्जी का नाम लेकर सपोर्ट कर दिया और तभी से बवाल मचा हुआ है.
देखा जाये तो टीएमसी ने अडानी मुद्दे पर कांग्रेस से दूरी बनाई, और धीरे धीरे कांग्रेस विपक्षी खेमे में अकेली पड़ती गई. नया मसला ईवीएम पर कांग्रेस के स्टैंड को लेकर है, जिस पर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के बाद टीएमसी महासचिव अभिषेक बनर्जी ने भी कांग्रेस नेतृत्व को कठघरे में खड़ा कर दिया है.
EVM को लेकर निशाने पर आई कांग्रेस
महाराष्ट्र चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस ने ईवीएम पर सवाल उठाया था, जिस पर सबसे पहले नेशनल कांफ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस के स्टैंड पर सवाल किया था - और अब तृणमूल कांग्रेस नेता अभिषेक बनर्जी कह रहे हैं कि अगर कांग्रेस पास कुछ ठोस है, तो चुनाव आयोग के सामने डेमो देना चाहिये.
कांग्रेस की तरफ से चुनावों में बैलट पेपर पर लौटने की मांग की जा रही है. कांग्रेस को आईना दिखाने की कोशिश करते हुए उमर अब्दुल्ला ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से कहा था, 'जब आप जीतते हैं तो चुनाव नतीजों को स्वीकार कर लेते हैं, और जब आप हारते हैं तो ईवीएम को दोष देते हैं... इसी ईवीएम से जब आपके 100 से ज्यादा सांसद चुनकर आते हैं, तो आप इसे अपनी पार्टी की जीत के रूप में सेलीब्रेट करते हैं... कुछ महीनों बाद आप ये नहीं कह सकते कि हमें ईवीएम पसंद नहीं है, क्योंकि अब चुनाव नतीजे उस तरह नहीं आ रहे हैं जैसा हम चाहते हैं.'
जम्मू-कश्मीर विधानसभा का चुनाव कांग्रेस ने उमर अब्दुल्ला की पार्टी के साथ मिलकर लड़ा था, लेकिन सरकार में शामिल नहीं हुई - और उसके बाद उमर अब्दुल्ला का इस तरह का बयान आया है.
ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक का नेता बनाने की बात पर उमर अब्दुल्ला ने लालू यादव की तरह खुलकर तो कुछ नहीं कहा था, लेकिन राहुल गांधी का सपोर्ट भी नहीं किया था. ममता बनर्जी के सपोर्ट में लालू यादव ही नहीं, शरद पवार, उद्धव ठाकरे जैसे नेताओं के मन की बात भी सामने आ गई है.
पहल तो टीएमसी नेताओं की तरफ से ही हुई थी, और अब ममता बनर्जी की बात आने पर अभिषेक बनर्जी कहते हैं, 'इंडिया ब्लॉक में शामिल दलों के नेता बैठेंगे और इस मामले पर चर्चा करेंगे... इस संबंध में विस्तृत चर्चा होनी चाहिए... किसी भी पार्टी को छोटा नहीं समझना चाहिए. टीएमसी इंडिया ब्लॉक में एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस को भी हराया है... लोग पार्टियां छोड़कर बीजेपी में जाते हैं. टीएमसी एकमात्र ऐसी पार्टी है जहां लोग बीजेपी छोड़कर आते हैं.' अभिषेक बनर्जी जो भी कहें, लेकिन उनको भी शुभेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय का नाम नहीं भूलना चाहिये.
कांग्रेस को निशाना बनाते हुए अभिषेक बनर्जी का कहना है, 'जो लोग ईवीएम पर सवाल उठाते हैं... अगर उनके पास कुछ है तो चुनाव आयोग के पास जाकर डेमो दिखाना चाहिये... अगर ईवीएम रैंडमाइजेशन के समय काम ठीक से किया गया है, और बूथ पर काम करने वाले लोग मॉक पोल और गिनती के दौरान जांच करते हैं, तो मुझे नहीं लगता कि इस आरोप में कोई दम है.'
अभिषेक बनर्जी कहते हैं, अगर फिर भी किसी को लगता है कि ईवीएम को हैक किया जा सकता है, तो उनको चुनाव आयोग से मिलना चाहिये... और बताना चाहिये कि ईवीएम को कैसे हैक किया जा सकता है... सिर्फ अनाप-शनाप बयान देकर कुछ नहीं किया जा सकता.
कारोबारी गौतम अडानी के बाद ईवीएम दूसरा मुद्दा है जिस पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी अकेले पड़ते नजर आ रहे हैं. कहने को तो अरविंद केजरीवाल और शरद पवार के बीच ईवीएम के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट जाने को लेकर मीटिंग भी हो चुकी है, लेकिन उमर अब्दुल्ला और अभिषेक बनर्जी के निशाने पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ही हैं.
कांग्रेस अडानी के मुद्दे पर अकेले पड़ चुकी है
INDIA ब्लॉक में अडानी के मुद्दे पर सबसे पहले तृणमूल कांग्रेस ने आंखें दिखाना शुरू किया था. पहले भी जब अडानी के मुद्दे पर राहुल गांधी ने संसद में जोरदार भाषण दिया था, टीएमसी से ठन गई थी. तब पहली बार कांग्रेस अडानी ग्रुप के कारोबार की जांच के लिए जेपीसी की मांग पर अड़ी थी, लेकिन टीएमसी के साथ कुछ और भी राजनीतिक दलों ने हाथ पीछे खींच लिये थे. कांग्रेस अकेले पड़ी और मामला ठंडा पड़ गया.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने नवंबर के आखिर में INDIA ब्लॉक की मीटिंग बुलाई थी, लेकिन तृणमूल कांग्रेस का कोई भी नेता शामिल नहीं हुआ.
संसद के शीतकालीन सत्र में 4 दिसंबर को कांग्रेस की ओर से अडानी का मुद्दा उठाया गया, और उसके बाद कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के सांसदों ने सदन से वॉकआउट किया. कांग्रेस के नेतृत्व में हुए विरोध प्रदर्शन में न तो टीएमसी के सांसद नजर आये, न ही समाजवादी पार्टी के. अब तो लगता है जैसे अडानी के मुद्दे पर ज्यादातर दलों ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया है, और वही हाल ईवीएम के मुद्दे पर भी हो रहा है.
अब तक सिर्फ एक ही मुद्दा ऐसा नजर आया है, जिस पर कांग्रेस को लगभग सभी दलों का सपोर्ट मिल रहा है, और वो है जातिगत जनगणना का मुद्दा - लेकिन जैसे ही उससे आगे बढ़ कर राहुल गांधी हाथरस और संभल का रुख करते हैं, अखिलेश यादव भी बुरा मान जाते हैं.