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कांग्रेस के दलित नेता खड़गे की कुर्सी किनारे पर क्यों लगाई? बीजेपी के ऐतराज में कितना दम

भाजपा का यह आरोप अतिशयोक्ति ही है कि दलित होने के चलते मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ अपमाजनक व्यवहार हुआ. कांग्रेस में अगर गांधी परिवार से इतर कोई सवर्ण भी अध्यक्ष बनता तो उसके साथ वही व्यवहार होता जो मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ हुआ. 

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अहमदाबाद से आई मल्लिकार्जुन खड़गे की इस तस्वीर पर विवाद हो रहा है.
अहमदाबाद से आई मल्लिकार्जुन खड़गे की इस तस्वीर पर विवाद हो रहा है.

भाजपा ने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि कांग्रेस अधिवेशन में कार्यसमिति की बैठक के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए अलग से कुर्सी लगाई गई, जबकि सोनिया गांधी और राहुल गांधी बीच में लगे सोफे पर बैठे थे. अमित मालवीय ने लिखा, 'पहले खड़गे जी का सम्मान करना सीखो. वह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. उनकी कुर्सी किनारे पर लगाने का क्या मतलब था? यह साफ दर्शाता है कि कांग्रेस दलित विरोधी है'. भारतीय जनता पार्टी इस घटना के बहाने एक बार फिर कांग्रेस और उसके आलाकमान पर दलित विरोधी राजनीति करने का आरोप लगाया है.

दरअसल यह मामला दलित विरोधी भले न हो पर इतना तो है कि कांग्रेस में गांधी परिवार के सामने किसी दूसरे को उतना तवज्जो नहीं मिलता है. कांग्रेस में जब गांधी फैमिली से अलग अध्यक्ष चुने जाने की बात चल रही थी तो बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय प्रवक्ता टॉम वडक्कन ने कहा था कि कांग्रेस पार्टी चाहे जो भी व्यवस्था अपना ले, चाहे गहलोत अध्यक्ष बनें या थरूर... वे महज कठपुतली होंगे. पार्टी की कमान राहुल गांधी के हाथ में ही होगी, बस वह'बैकसीट' से पार्टी चला रहे होंगे. 

दरअसल इस विडियो को ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि उसमें मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ कोई अपमानजनक व्यवहार नहीं हो रहा है. दरअसल राहुल गांधी और सोनिया गांधी को पता है कि वो पार्टी में सुपर हैं. इसलिए वो खुद आगे बढ़कर ये नहीं कह सकते कि आप सोफा पर ही बैठिये हम कुर्सी पर बैठ जाते हैं. सोनिया फिलहाल बुजुर्ग हो चुकीं हैं. उनसे ये उम्मीद करना नाइंसाफी होगी पर राहुल गांधी यह पहल कर सकते थे कि खड़गे जी आइये मैं कुर्सी पर बैठ जाता हूं. पर कांग्रेस को गांधी परिवार हमेशा से प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ही मानती रही है. खड़गे भी कांग्रेस के पुराने सिपाही हैं. उन्हें पता है कि सीताराम केसरी के साथ क्या हश्र हुआ था. इसलिए वो अपनी इज्जत खुद बचाकर चलते हैं.

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खड़गे को यह भी पता है कि पिछले कुछ दशकों में गांधी परिवार से बाहर के जिन लोगों ने भी अध्यक्ष बनने का सपना देखा उनका क्या हश्र हुआ. चाहे वो राजेश पायलट रहे हों या जितेंद्र प्रसाद ,चाहे शशि थरूर रहे हों, सभी कांग्रेस हाईकमान की नजरों से उतर जाते रहे हैं. गांधी फैमिली की कृपा से अगर उन्हें अध्यक्ष की कुर्सी मिली है तो उन्हें खुद आगे बढ़कर सोफा की बजाए कुर्सी संभाल लेनी चाहिए. भाजपा का यह आरोप अतिशयोक्ति ही है कि दलित होने के चलते मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ अपमाजनक व्यवहार हुआ. कांग्रेस में अगर गांधी परिवार से इतर कोई सवर्ण भी अध्यक्ष बनता तो उसके साथ वही व्यवहार होता जो मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ हुआ. 

दरअसल यह लगभग उसी समय तय हो गया था जब  मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष पद के सिंहासन पर विराजमान हुए थे. उन्होंने अध्यक्ष चुने जाने के बाद ही कह दिया था कि मुझे गांधी परिवार से सलाह और मदद लेने में कोई हिचक नहीं है. उनकी इस एक बात से ही यह तय हो गया था कि भविष्य में पार्टी पर किसकी चलने वाली है.

खड़गे को पता है कि कांग्रेस में गांधी परिवार से इतर किसी अध्यक्ष की क्या बिसात हो सकती है? जब यहां परिवार से बाहर के पीएम की की पूछ नहीं होती है. मनमोहन सिंह के पीएम बनने के बाद शायद इसलिए ही एनएसी यानी राष्ट्रीय सलाहकार समिति बना दी गई थी. एनएसी का दफ्तर सोनिया के निवास 10 जनपथ के सामने ही था. 2006 में जब तत्कालीन अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लगा कि तेल की कीमत कम नहीं की जानी चाहिए पर उनकी एक न चली.राहुल गांधी का मनमोहन सिंह के लाए गए आध्यादेश की कॉपी को फाड़ना भी खड़गे को याद है.

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