CWC की बैठक में जातिगत जनगणना पर मुहर लग जाने के बाद कांग्रेस की आगे की राजनीति पूरी तरह साफ हो गयी है. कांग्रेस अब जातीय राजनीति पर ही फोकस करने जा रही है. थोड़ा बहुत संकेत तो संसद के विशेष सत्र में राहुल गांधी और सोनिया ने दे ही दिया था, बाद में सोशल मीडिया के जरिये जातिगत जनगणना की मांग के साथ कांग्रेस की रणनीति में बदलाव का इशारा समझा जाने लगा था.
अब तो ये तय है कि आने वाले चुनावों में कांग्रेस का पूरा जोर जातीय राजनीति पर ही होगा. राहुल गांधी के सॉफ्ट हिंदुत्व का प्रयोग वैसे भी फेल हो चुका है, और कांग्रेस की जगह उसका ज्यादा फायदा बीजेपी को ही मिलता रहा है.
काफी दिनों से देखा जा रहा है कि कांग्रेस में ज्यादातर फैसले देर से ही लिये जाते हैं, लेकिन दुरूस्त कभी कभार ही होते हैं. जातीय राजनीति देश और समाज के लिए जैसी भी हो, लेकिन कांग्रेस के अस्तित्व की लड़ाई में संजीवनी बूटी भी साबित हो सकती है, लेकिन तभी जब कांग्रेस इस लड़ाई में बीजेपी के साथ साथ क्षेत्रीय दलों को भी पछाड़ते हुए आगे बढ़ पाये.
कांग्रेस की जातीय राजनीति पर CWC की मुहर लगी
कभी कांग्रेस का एक नारा हुआ करता था, 'न जात पर - न पात पर, इंदिरा जी की बात पर, मुहर लगेगी हाथ पर'. न तो अब इंदिरा गांधी के जमाने की कांग्रेस बची है, न कांग्रेस में उनके जैसा कोई नेता. ऐसे में जो है, काम तो उसी से चलाना होगा - और अब तो CWC यानी कांग्रेस में फैसला लेने वाली सबसे बड़ी कमेटी कांग्रेस कार्यसमिति ने भी फैसला ले लिया है कि सत्ता में लौटे तो जातिगत जनगणना कराएंगे.
चाहे वो देश में हो, या फिर किसी राज्य में अगर कांग्रेस ने जातिगत जनगणना कराया तो नतीजे तो वैसे ही आएंगे जैसे बिहार से आये हैं. जो सवाल बिहार की जातिगत गणना को लेकर उठ रह हैं, जाहिर है आगे भी वैसे ही सवाल उठेंगे.
लेकिन राहुल गांधी को लगता है कि केंद्र सरकार में 90 में से 3 ओबीसी सचिवों की तैनाती को मुद्दा बनाकर आगे की लड़ाई लड़ लेंगे तो अच्छी बात है. और अपनी बात को वो बार बार, लगातार अपने तरीके से समझा भी रहे हैं.
कांग्रेस की प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी से पूछे गये सवाल और उनके जवाब को लेकर सोशल मीडिया पर कैंपेन भी चलाया जा रहा है. राहुल गांधी से ये जानने की कोशिश हुई कि आखिर जातीय जनगणना पर उनका इतना जोर क्यों है?
इसी सवाल का जवाब कांग्रेस नेता सोशल साइट X पर पोस्ट कर रहे हैं, 'आपमें से कितने दलित हैं? एक हाथ नहीं उठा... आपमें से कितने आदिवासी हैं? एक हाथ नहीं उठा... आपमें से कितने लोग OBC हैं? एक हाथ नहीं उठा.'
और उसके बाद राहुल गांधी ने कहा, 'यही कारण है कि जाति जनगणना की आवश्यकता है, सच्चाई जानने के लिए.'
राहुल गांधी ने X पर लिखा है, 'जातिगत जनगणना राजनीतिक फैसला नहीं... न्याय और हिस्सेदारी का फैसला है... गरीबों को शक्ति देने वाला फैसला है.'
CWC की बैठक में जो फैसला लिया गया है उसके मुताबिक, '2024 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस केंद्र की सत्ता में आती है तो राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना कराई जाएगी... ओबीसी महिलाओं की भागीदारी के साथ महिला आरक्षण को जल्द से जल्द लागू किया जाएगा... और OBC, SC-ST के लिए आरक्षण की अधिकतम सीमा को कानून लाकर खत्म किया जाएगा.'
कांशीराम के नाम के सहारे दलित वोटर पर नजर
एक बार राहुल गांधी ने बीएसपी नेता मायावती को कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद का ऑफर देने का दावा किया था. हालांकि, मायावती ने तत्काल प्रभाव से कांग्रेस नेता के दावे को खारिज भी कर दिया था.
राहुल गांधी का कहना था कि कांग्रेस ने बीएसपी के साथ गठबंधन की सरकार बनाने के प्रयास में मायावती को संदेश भेजा था कि चुनाव जीतने की स्थिति में वो ही मुख्यमंत्री बन जायें.
अप्रैल, 2022 में एक कार्यक्रम में राहुल गांधी ने कहा था, 'हमने मायावती को मैसेज दिया कि गठबंधन करिये... मुख्यमंत्री बनिये... उन्होंने बात तक नहीं की... सीबीआई और ईडी से डरती हैं वो... कांशीराम ने दलितों को आवाज दी... दलितों को जगाया, लेकिन आज मायावती कहती हैं कि वो दलितों की आवाज के लिए नहीं लड़ेंगी.'
दलितों के घरों का दौरा तो राहुल गांधी बहुत पहले से करते रहे हैं, इस बार कांग्रेस की तरफ से बीएसपी के संस्थापक कांशीराम के नाम पर आगे बढ़ने की कोशिश हो रही है. पहले ये देखा जा चुका है कि राहुल गांधी के दलित प्रेम को मायावती अपने तरीके से खारिज करती रही हैं. मायावती समझाती थीं कि दलितों के घरों से लौटने के बाद राहुल गांधी दिल्ली पहुंच कर 'एक विशेष प्रकार के साबुन' से नहाते हैं.
दलित वोटर तक पहुंचने की नयी कवायद उत्तर प्रदेश में शुरू हुई है. कांशीराम की पुण्यतिथि के मौके पर यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय दलित गौरव संवाद शुरू करने की घोषणा की है. इस अभियान के तहत कांग्रेस 4 हजार रात्रि-चौपाल करने जा रही है. हर विधानसभा में ऐसी 10 चौपाल होगी. सभी मंडलों में 10 यात्राएं भी की जाएंगी.
26 नवंबर तक चलाये जाने वाले इस अभियान के दौरान करीब दो लाख दलित अधिकार पत्र भरवाये जाएंगे. दलित समुदाय के लोगों के पास पहुंच कर कांग्रेस अधिकार पत्र पर उनसे अपनी 5 मांगें भरने को कहेगी.
अभियान के तहत कम से कम एक लाख प्रमुख दलित प्रतिनिधियों से सीधी मुलाकात की भी योजना है. हर विधानसभा क्षेत्र में 250 डॉक्टर, इंजीनियर, अध्यापक सहित दलित वर्ग के तमाम प्रभावशाली लोगों से संपर्क की कोशिश होगी - और हर लोक सभा क्षेत्र में एक 'सीधा संवाद' कार्यक्रम भी होगा.
2019 के आम चुनाव से पहले बीजेपी ने संपर्क फॉर समर्थन अभियान चलाया था, लेकिन कांग्रेस का ये अभियान सिर्फ दलित वोटर से मुलाकात तक सीमित है.
जातीय राजनीति का नफा-नुकसान भी होगा
2017 में गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी के दौरे ऐसे प्लान किये जाते थे कि रास्ते में पड़ने वाले सभी मंदिरों में वो जायें और दर्शन करें. तब सौराष्ट्र के पांच मंदिरों में दर्शन-पूजन के साथ राहुल गांधी ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की थी.
मंदिर दर्शन अभियान को उस वक्त एक जोरदार झटका लगा जब राहुल गांधी सोमनाथ मंदिर पहुंचे. मंदिर में दर्शन के लिए जाने वाले गैर हिंदुओं के रजिस्टर में राहुल गांधी का नाम दर्ज हो गया. फिर क्या था, राजनीतिक विरोधियों ने मुद्दा उछाल दिया - और फिर कांग्रेस नेताओं को आगे आकर बताना पड़ा कि राहुल गांधी जनेऊधारी हिंदू हैं. राहुल चुनाव के दौरान गुजरात के 27 मंदिरों का दौरा किये थे. कांग्रेस की रैलियां भी मंदिरों के आस पास के इलाकों में ही हुआ करती थीं.
गुजरात के बाद 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी राहुल गांधी को मठों का दौरा करते देखा गया था. और उसके बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा से लौटे तो मध्य प्रदेश में भी शिवभक्त के रूप में उनका स्वागत सत्कार भी हुआ. राहुल गांधी के इस प्रयोग को सॉफ्ट हिंदुत्व के प्रयोग के तौर देखा जाता है.
एक बार फिर मध्य प्रदेश सहित देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, लेकिन अब राहुल गांधी सॉफ्ट हिंदुत्व को पीछे छोड़ कर जातीय राजनीति के रास्ते निकल पड़े हैं. संसद में महिला आरक्षण बिल पेश किये जाते वक्त राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने ओबीसी महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की मांग की थी - और अब सारा जोर जातिगत जनगणना पर दिखायी दे रहा है.
राहुल गांधी के सॉफ्ट हिंदुत्व के प्रयोग तो सिर्फ बीजेपी के खिलाफ थे, लेकिन जातीय राजनीति वाले प्रयोग बीजेपी के साथ साथ क्षेत्रीय दलों के लिए भी चुनौती बन सकता है. बीजेपी की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नहीं चाहता कि देश में जातीय राजनीति को बढ़ावा मिले. ऐसा हुआ तो बीजेपी के हिंदुत्व का एजेंडा फेल हो जाएगा.
बीजेपी अपने हिसाब से ओबीसी और SC/ST के एकमुश्त वोट बैंक को टुकड़े टुकड़े कर चुकी है. देखा जाये तो ओबीसी में सिर्फ यादव वोटर एकजुट है, यूपी में अखिलेश यादव के साथ और बिहार में तेजस्वी यादव के साथ. ऐसे ही बीजेपी ने मायावती को भी पैदल कर दिया है - अब राहुल गांधी की नजर उन सभी वोटर पर है जो कभी कांग्रेस को वोटे देते रहे लेकिन फिर लालू यादव और मुलायम सिंह यादव की पार्टी के साथ हो गये.
बीजेपी जातीय जनगणना से साफ तौर पर इनकार कर चुकी है. मोदी सरकार के मंत्री भरी संसद में ये बात कह चुके हैं. बीजेपी के पास विपक्ष के इस दांव की काट भी है, और वो उसी हिसाब से तेजी से आगे भी बढ़ रही है.
कांग्रेस बदली हुई इस रणनीति को कई तरीके से देखा जा सकता है. एक तरीका तो इस मुद्दे पर लालू यादव और अखिलेश यादव को साथ लेकर चलने का लगता है. महिला आरक्षण बिल पर संसद में राहुल गांधी और सोनिया गांधी के भाषण सुन कर तो ऐसा ही लगा था. लेकिन रणनीति इसके काफी आगे तक बनायी जा चुकी लगती है.
एक तरीका ये भी हो सकता है कि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और आरजेडी जैसे क्षेत्रीय दलों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही हो. देश के पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस सत्ता में आने पर जातिगत जनगणना कराने का वादा कर रही है. मतलब, देश के हर ओबीसी वोटर को कांग्रेस बताना चाहती है कि उनके हक की लड़ाई अकेले वही लड़ सकती है. ये भी करीब करीब वही बात है जो राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान अखिलेश यादव के बहाने क्षेत्रीय दलों की विचारधारा के बहाने समझाने की कोशिश कर रहे थे.
कांग्रेस एक तरीके से ये भी समझा रही है कि बीजेपी तो ओबीसी के खिलाफ है ही, क्षेत्रीय दलों की पहुंच अपने अपने राज्यों तक सीमित है. वो भी तब जब वो सरकार बनाने में सक्षम हो पायें. ऐसे में ओबीसी वोटर के सामने कांग्रेस ही एकमात्र विकल्प बचती है - कांग्रेस की ये रणनीति कारगर होती तो लगती है, बशर्तें ऐसी बातें वो अपने वोटर को भी समझा पाये.
कांग्रेस को सबसे बड़ा फायदा विपक्षी गठबंधन INDIA के सहयोगी दलों के बीच सीट बंटवारे को दौरान हो सकता है. अगर 2024 का आम चुनाव आने तक कांग्रेस ओबीसी और दलित वोटर तक अपनी बात पहुंचा पायी तो सीटों पर मोलभाव थोड़ा बेहतर हो सकता है. और अभी कांग्रेस को इससे ज्यादा भला क्या चाहिये?