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फेक नैरेटिव के आधार पर आरएसएस और बीजेपी के बीच दरार पैदा करने की साजिश

पिछले कुछ दिनों से लगातार यह नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की जा रही है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी के बीच सब कुछ सही नहीं चल रहा है. लेकिन नैरेटिव पूरी तरह से फेक है. सच्चाई तो यह है कि संघ कभी राजनीति में संक्रिय रहा ही नहीं है.

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RSS BJP
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हाल ही में 9 जून को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपने गठबंधन की मदद से एक बार फिर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाई. उसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और भाजपा के बीच 'मतभेद' को लेकर एक फर्जी कहानी गढ़ने की कोशिश की जा रही है.

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संघ कभी राजनीति में सक्रिय नहीं रहा, लेकिन हमेशा बिना किसी राग-द्वेष या मनमुटाव के लोगों के कल्याण के लिए काम करता रहा है. संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने नागपुर में अपने हालिया भाषण में साफ तौर पर कहा है कि देश की राजनीतिक संस्कृति में सुधार और सरकार के सामने आने वाली चुनौतियों पर राष्ट्रीय सहमति बनाने की जरूरत है.

देश के विकास के लिए आएं एकसाथ

संघ प्रमुख ने मोदी सरकार के पिछले 10 सालों के कामकाज की सराहना की और इस बात पर जोर दिया है कि चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं और राजनीतिक दलों को देश के विकास के लिए एक साथ आना चाहिए. संघ अपनी स्थापना के बाद से ही संगठनात्मक स्तर पर किसी राजनीतिक दल के पक्ष या विपक्ष में मतदान करने के लिए सक्रिय नहीं रहा है. संघ के स्वयंसेवक समाज को देश के समक्ष उभरती चुनौतियों से अवगत कराते हैं (अर्थात लोकमत परिष्कृत करते हैं). उन्हें देशहित में शत-प्रतिशत मतदान करने के लिए प्रेरित करते हैं.

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इन तीन चीजों को बढ़ावा देता है RSS

निःसंदेह, संघ की प्रेरणा व मूल्यों पर आधारित अनेक स्वयंसेवक पूर्व में जनसंघ में तथा वर्तमान में भाजपा में कार्य करते रहे हैं तथा समय-समय पर उनके असाधारण व अद्वितीय योगदान से पार्टी के साथ-साथ देश लाभान्वित होता रहा है. लेकिन संघ किसी भी स्तर पर इस योगदान का श्रेय नहीं चाहता है. भाजपा और आरएसएस के बीच के संबंधों को पूरी तरह से समझने के लिए आरएसएस के मूलभूत सिद्धांतों और भाजपा के साथ उसके संबंधों को समझना जरूरी है. 1925 में स्थापित आरएसएस सनातन संस्कृति, राष्ट्रीय एकता और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है.

पक्षपातपूर्ण राजनीति से ऊपर है संघ

आरएसएस एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन के रूप में काम करता है और भाजपा एक राजनीतिक इकाई के रूप में. यह अलगाव आरएसएस की इस धारणा में निहित है कि उसे पक्षपातपूर्ण राजनीति के झगड़ों से ऊपर रहना चाहिए और राष्ट्र के सांस्कृतिक और सामाजिक पुनर्जागरण के लिए एक मार्गदर्शक शक्ति के रूप में काम करना चाहिए.

सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देने पर जोर

आरएसएस ने ऐतिहासिक रूप से समान विचारधारा वाली संस्थाओं की वैचारिक जड़ों को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इसका उद्देश्य इन संगठनों को सामाजिक उत्थान के व्यापक लक्ष्यों के साथ जोड़े रखना है. आरएसएस का निरंतर रुख सामाजिक सद्भाव, राष्ट्रीय एकता और लोकतंत्र, बहुलवाद और सभी नागरिकों की भलाई के साथ संगत भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देने पर जोर देना है.

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मांगने पर ही मार्गदर्शन देता है आरएसएस

आरएसएस की भूमिका को नैतिक और वैचारिक दिशासूचक के रूप में बेहतर ढंग से समझा जा सकता है. संघ तीन दर्जन अन्य आरएसएस-प्रेरित संगठनों की तरह भाजपा को भी तब मार्गदर्शन प्रदान करता है, जब मार्गदर्शन या कोई सहायता मांगी जाती है. यह दृष्टिकोण हिंदू संस्कृति, राष्ट्रीय एकता और आत्मनिर्भरता के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए समर्पित एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन के रूप में आरएसएस की स्थिति के अनुरूप है.

व्यापक लक्ष्य ही समावेशी विकास

आरएसएस के रुख को भाजपा की नीतियों या निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को कमजोर करने या नियंत्रित करने के प्रयास के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. इसके बजाय, दोनों संगठनों की साझा वैचारिक जड़ें यह सुनिश्चित करती हैं कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में एक ही लक्ष्य की दिशा में काम करें. व्यापक लक्ष्य एक ही यानी समावेशी विकास है. 

पहले भी हुई दरार पैदा करने की कोशिश

अतीत में भी आरएसएस और भाजपा के बीच दरार पैदा करने के लिए अनावश्यक और शरारती प्रयास किए गए हैं. हमें यह समझना चाहिए कि 1951 में भारतीय जनसंघ (बीजेएस) के गठन के बाद से दोनों के बीच संबंध विकसित हुए हैं. यह एक परिपक्व संबंध है और लगातार विकसित हो रहे हैं. अतीत के विपरीत, जब बीजेएस और भाजपा मुख्य रूप से विपक्ष की भूमिका में थे, अब भाजपा भारतीय राजनीति में संदर्भ का केंद्रीय बिंदु बन गई है.

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वोट शेयर बरकरार, मिलीं 240 सीटें

भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार लगातार तीसरी बार केंद्र में सत्ता में आई है. चुनाव पूर्व गठबंधन ने बहुमत हासिल किया और यह भारतीय राजनीति में कोई छोटी उपलब्धि नहीं है कि भाजपा को तीसरे कार्यकाल के बाद भी 240 सीटें मिलीं. इसका वोट शेयर बरकरार है. इसने ओडिशा और देश के दक्षिणी हिस्सों में शानदार बढ़त हासिल की है. भाजपा ने एक जोरदार अभियान चलाया था.

दोनों के बीच खटपट की कोई वजह नहीं

नरेंद्र मोदी जैसे गतिशील नेता के नेतृत्व वाली पार्टी ने बेंचमार्क को बहुत ऊंचा रखा है और यह इसे लगातार ऊपर ले जा रही है. बेंचमार्क की तुलना में सापेक्ष अर्थों में पार्टी ने उम्मीद से कम प्रदर्शन किया हो सकता है, लेकिन अगर आप इसे पूर्ण अर्थों में देखें, तो भाजपा ने ऐतिहासिक प्रदर्शन किया है, जिसे किसी भी पार्टी द्वारा अगले कुछ दशकों में दोहराने की संभावना नहीं है. ऐसी स्थिति में, समझदारी से देखने पर महसूस होगा कि आरएसएस और भाजपा के बीच किसी भी तरह की खटपट की कोई वजह नहीं है.

साजिश का पर्दाफाश करना जरूरी

सरसंघचालक ने अपने हालिया नागपुर भाषण में सही कहा है कि तकनीक का दुरुपयोग करके और सोशल मीडिया के जरिए फर्जी सामग्री बनाकर आरएसएस के नाम को चुनावी राजनीति में घसीटने की कोशिश की गई है. इस साजिश के पीछे आरएसएस और बीजेपी के विरोधी लोग थे. अब इस साजिश का अगला चरण शुरू हो गया है. ऐसा माहौल बनाया जा रहा है, जहां आरएसएस और बीजेपी एक दूसरे के खिलाफ खड़े नजर आएं. इस साजिश का पर्दाफाश और इन फर्जी कहानियों के बहकावे में न आना जरूरी है. ये लोग आरएसएस-बीजेपी के नेतृत्व में भारत के पुनर्निर्माण के विशाल राष्ट्रवादी प्रयास को कमजोर करने की कोशिश कर रही हैं.

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(यह लेख स्वतंत्र लेखक एवं टिप्पणीकार राजीव तुली और दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. प्रशांत बर्थवाल ने लिखा है)

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