दिल्ली में रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री बनने का निर्णय भाजपा की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. यह निर्णय न केवल आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल को काउंटर करने के लिए है, बल्कि भाजपा की सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों को मजबूत करने की कोशिश भी है. इस निर्णय के पीछे जातिगत समीकरण, महिला मतदाताओं को लुभाने की रणनीति, और विपक्ष को कमजोर करने की कोशिश शामिल है. इसके अलावा यह संदेश भी दिया गया है कि भाजपा में आम कार्यकर्ता का बहुत सम्मान है.
आइए, सिलसिलेवार तरीके से समझने की कोशिश करते हैं कि मोदी-शाह के इस दांव के पीछे क्या-क्या छिपा है...
1. महिला वोटबैंक को साधने की रणनीति
रेखा गुप्ता के चयन का सबसे प्रमुख कारण उनका महिला होना है. दिल्ली में महिला मतदाताओं की संख्या और उसकी सरकार बनाने में भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है. केजरीवाल सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जिनमें मुफ्त बस यात्रा, महिला सुरक्षा कार्यक्रम और महिलाओं के लिए आर्थिक सशक्तिकरण के कई प्रयास शामिल हैं. इन योजनाओं से AAP ने महिला मतदाताओं के बीच मजबूत पकड़ बनाई थी.
रेखा गुप्ता की सौम्य और घरेलू छवि दिल्ली की महिलाओं को साधने में मददगार साबित हो सकती है. उनकी छवि एक ऐसी महिला की है, जो जनता के करीब है, उनकी समस्याओं को समझती है. यह छवि महिला मतदाताओं को यह एहसास दिलाएगी कि उनकी मुख्यमंत्री उन्हीं में से एक है. उनके दुख दर्द में उनकी हमसफर है. इसके अलावा देशभर की महिला वोटबैंक को साधने में भी रेखा गुप्ता मददगार साबित होंगी.
2. आतिशी को काउंटर करने में भी उपयोगी
यदि AAP आतिशी को विपक्ष की नेता के रूप में आगे लाती है, तो रेखा गुप्ता के रूप में एक महिला उन्हें काउंटर करने में आसानी से सक्षम होगी. इससे भाजपा को महिला मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने में मदद मिलेगी.
3. दिल्ली के कोर वोटबैंक यानी वैश्य समुदाय को साधने की कोशिश
केजरीवाल और रेखा गुप्ता दोनों ही वैश्य समुदाय से आते हैं. यह समुदाय दिल्ली और हरियाणा में राजनीतिक रूप से काफी प्रभावशाली है. दिल्ली में वैश्य समुदाय का एक मजबूत वोट बैंक है. यह वोट बैंक लंबे समय से भाजपा को समर्थन देता रहा है. हालांकि केजरीवाल ने पिछले कुछ वर्षों में इस समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की है.
रेखा गुप्ता के मुख्यमंत्री बनने से भाजपा वैश्य समुदाय को संतुष्ट रखने में कामयाब होगी. इसी तरह केजरीवाल पर जो भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं, उनकी काट के लिए भी रेखा गुप्ता एक दमदार कैंडिडेंट होंगी. रेखा गुप्ता की छवि एकदम साफ-सुधरी है. इससे वैश्य समुदाय का विश्वास भाजपा में बना रहेगा और केजरीवाल को इस समुदाय के बीच अपनी पकड़ बनाने में मुश्किल आएगी.
दिल्ली में पंजाबी और वैश्य समुदाय के इसी बड़े वोट बैंक के बलबूते ही भाजपा लंबे समय से अपना वोट परसेंट 35 फीसदी के आसपास रख पाने में सफल रही है. इसलिए इन समुदायों को साधना भाजपा के लिए बेहद जरूरी था. रेखा गुप्ता के नेतृत्व में भाजपा इस समर्थन को और मजबूत करने की कोशिश करेगी.
4. भाजपा शासित राज्यों में महिला मुख्यमंत्री का मुद्दा भी खत्म होगा
भाजपा के पास फिलहाल किसी भी राज्य में महिला मुख्यमंत्री नहीं है. रेखा गुप्ता के चयन से भाजपा ने इस मुद्दे को अपने पक्ष में कर लिया है. यह कदम न केवल महिला मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए है, बल्कि यह भाजपा की महिला सशक्तिकरण के प्रति प्रतिबद्धता को भी दर्शाएगा.
इससे भाजपा को महिला मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने में मदद मिलेगी. साथ ही यह कदम राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की छवि को महिला समर्थक बनाने में काम आएगा. चूंकि भाजपा किसानों, युवाओं के साथ-साथ महिलाओं को भी एक वर्ग मानकर उनका वोट लेने के लिए प्रतिबद्ध है. इस कदम से संदेश भी जाएगा कि पार्टी महिलाओं को नेतृत्व के अवसर देने का हौसला रखती है.
5. साधारण कार्यकर्ता भी पा सकता है बड़ा पद
भाजपा ने पिछले कई मौकों पर इस संदेश को देने में कोताही नहीं बरती है कि पार्टी में साधारण कार्यकर्ता का बड़ा सम्मान है. कोई भी पार्टी में बड़ा पद पा सकता है. इसके लिए विरासत का होना जरूरी नहीं है. साथ ही पार्टी यह संदेश देने में भी सफल रही है कि भाई-भतीजावाद से पार्टी दूर है. यहां चुपचाप काम करने वालों पर पार्टी नजर रखती है. समय आने पर उसे नवाजने से पीछे नहीं हटती है.
दूसरी पार्टियों से अलग कार्यकर्ता का भरोसा जीतने की कोशिश के रूप में भी इस प्रयास को देखा जा सकता है. यह संदेश भी दिया गया है कि भाजपा में जो भी काम करता है उस आम कार्यकर्ता का बहुत सम्मान है. रेखा गुप्ता का सफर साधारण कार्यकर्ता के रूप में शुरू हुआ था. उनका करीब तीन दशक से बीजेपी से जुड़ाव है. उन्हें दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने एक समर्पित कार्यकर्ता को नवाजा है.
6. घरेलू महिला की छवि जनता से जुड़ाव बनाना
रेखा गुप्ता की छवि एक साधारण और घरेलू महिला की है, जो दिल्ली की आम महिलाओं से जुड़ाव महसूस करा सकती है. यह छवि उन्हें जनता के करीब लाने में मददगार साबित होगी. दिल्ली की महिलाओं को लगेगा कि उनकी मुख्यमंत्री उन्हीं में से एक है, जो उनकी समस्याओं को बेहतर ढंग से समझ सकती हैं.
यह छवि न केवल महिला मतदाताओं को लुभाएगी, बल्कि यह आम जनता के बीच भाजपा की पहुंच को भी मजबूत करेगी. इससे भाजपा को दिल्ली में अपनी जड़ें और गहरे तौर पर जमाने में मदद मिलेगी. इसके अलावा दिल्ली में बीजेपी ने एक गैर-विवादित नेता का चुनाव किया है. रमेश बिधूड़ी और प्रवेश वर्मा जैसे नेता अपने तीखे बयानों के लिए आलोचना का शिकार हो चुके हैं. साथ ही रेखा गुप्ता एक नया चेहरा भी हैं क्योंकि उन्होंने संसदीय चुनाव नहीं लड़ा है. नए चेहरे तौर पर वह आदर्श हैं.
कुल मिलाकर रेखा गुप्ता के मुख्यमंत्री बनने के पीछे भाजपा की बहुआयामी रणनीति है. यह निर्णय न केवल महिलाओं और वैश्य समुदाय को साधने की कोशिश है, बल्कि यह आप और केजरीवाल को कमजोर करने की रणनीति का हिस्सा भी है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह रणनीति दिल्ली की राजनीति में कितनी कारगर साबित होती है. क्या रेखा गुप्ता दिल्ली के लोगों के बीच अपनी पहचान बना पाती हैं. हालांकि फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि रेखा गुप्ता के चयन से भाजपा ने शुरुआती मैदान तो मार ही लिया है.