भारत राष्ट्र समिति (BRS) में दो नेता केटी रामा राव और हरीश राव दो मामलों के सिलसिले में वकीलों से मिलने के लिए नई दिल्ली में डेरा डाले हुए थे. पहला, तेलंगाना में सत्तारूढ़ कांग्रेस के दल बदलने वाले विधायकों की अयोग्यता का मुद्दा और दूसरा, बीआरएस नेता के कविता की जमानत याचिका. लेकिन यह चर्चा खत्म होने का नाम नहीं ले रही है कि यह राष्ट्रीय राजधानी में बीजेपी नेतृत्व से बातचीत करने का एक दिखावा मात्र था. दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में ऐसी अटकलें हैं कि दिसंबर 2023 में विधानसभा चुनावों में सत्ता गंवाने और जून 2024 में लोकसभा चुनावों में एक भी सीट न जीत पाने से हताश बीआरएस ने बीजेपी से बातचीत करने का फैसला किया है.
क्या बीआरएस के लिए बीजेपी के साथ संबंध सुधारने की कोई वजह है? पहली नजर में तो ऐसा लगता है. के कविता इस साल मार्च से दिल्ली शराब मामले में जेल में हैं और बीआरएस उन्हें बाहर निकालना चाहेगी. कविता न केवल बीआरएस सुप्रीमो के चंद्रशेखर राव की बेटी हैं बल्कि पार्टी का एक प्रमुख चेहरा भी हैं.
रेवंत रेड्डी भी यही दावा करते रहे हैं. चुनाव प्रचार के दौरान, वे कविता की जमानत के लिए बीआरएस आलाकमान पर मैच फिक्सिंग का आरोप लगाते रहे. यकीनन, यहां तक कि लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन की वजहों का पता लगाने के लिए तेलंगाना का दौरा करने वाली AICC की फैक्ट-फाइंडिंग टीम के सामने भी कांग्रेस के राज्य नेताओं ने आरोप लगाया है कि बीआरएस-बीजेपी सौदे की वजह से उन्हें कई सीटों का नुकसान हुआ.
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कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने 8-8 सीटें जीतीं, जबकि बीआरएस अपना खाता भी नहीं खोल सकी. कांग्रेस का मानना है कि बीआरएस ने धीमी रफ्तार से काम किया और आधा दर्जन सीटों पर अपने कार्यकर्ताओं को बीजेपी को वोट देने के निर्देश दिए. सबूत के तौर पर, वह 8 सीटों का मामला बताती है, जहां बीआरएस ने अपनी जमानत खो दी, एक ऐसी पार्टी के लिए भारी गिरावट है, जिसने करीब एक दशक तक तेलंगाना पर शासन किया.
बीजेपी पर क्षेत्रीय पार्टी निगलने का आरोप
बीआरएस का कहना है कि कांग्रेस की नैरेटिव-सेटिंग मशीन एक बार फिर केटीआर और हरीश राव के दिल्ली दौरे के पीछे मकसद को लेकर काम कर रही है. उनका मानना है कि इससे कांग्रेस को मदद मिलती है क्योंकि इससे बीआरएस की साख गिरती है और बीजेपी पर एक ऐसी पार्टी का लेबल लग जाता है, जो एक और क्षेत्रीय पार्टी को निगलने की फिराक में है.
बीआरएस इस बात को लेकर क्लियर है कि केसीआर, पार्टी को दूसरी जेडीएस नहीं बनने देंगे. उसका मानना है कि बंगाल में टीएमसी, तमिलनाडु में डीएमके, उत्तर प्रदेश में एसपी, झारखंड में जेएमएम और बिहार में आरजेडी जैसी क्षेत्रीय पार्टियां ही बीजेपी का मुकाबला कर सकती हैं. इन पार्टियों के साथ सिर्फ एक फर्क यह है कि ये सभी पार्टियां INDIA ब्लॉक का हिस्सा हैं, जिसका हिस्सा बनने से बीआरएस ने इनकार कर दिया है.
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KCR भी अपनाएंगे नायडू का रास्ता?
इसके अलावा, यह तेलुगु देशम के राख से उठ खड़े होने को फीनिक्स की तरह फिर से रिवाइवल एक टेंप्लेट लगता है. तर्क यह है कि अगर 2019 में 175 सदस्यीय आंध्र प्रदेश विधानसभा में सिर्फ 23 सीटों पर धकेल दिए जाने और 2023 में जेल भेजे जाने के बाद चंद्रबाबू नायडू खुद को फिर से जिंदा कर सकते हैं, तो केसीआर भी ऐसा ही कर सकते हैं.
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह बिना आग के धुआं है. बीजेपी सूत्रों ने इशारा किया है कि कुछ इलाकों से दबाव है कि विचार-विमर्श होना चाहिए. यह दबाव कथित तौर पर बीआरएस नेताओं द्वारा बनाया जा रहा है, जिसमें कुछ विधायक भी शामिल हैं, जो कांग्रेस में अपने लिए जगह नहीं देखते हैं. तर्क यह है कि अगर बीआरएस ने अभी खुद को सुरक्षित करने के लिए कदम नहीं उठाए, तो रेवंत रेड्डी जल्द ही बीआरएस विधायक दल को खाली कर देंगे.
लेकिन दोनों दलों के नेतृत्व के बीच राजनीतिक संबंधों की कड़वाहट को देखते हुए ऐसा कहना आसान नहीं होगा. दोनों दलों के बीच हाथ मिलाने से उनकी विश्वसनीयता भी कम होगी, क्योंकि पिछले कई सालों से बीजेपी ने बीआरएस पर भ्रष्टाचार और परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए तीखा कैंपेन चलाया है, जबकि बीआरएस ने बीजेपी पर तेलंगाना विरोधी होने का आरोप लगाया है.
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क्या है BRS के लिए सबसे अच्छा दांव?
इसके अलावा, बीजेपी की तेलंगाना यूनिट, केसीआर के साथ किसी भी तरह के समझौते का पूरी ताकत से विरोध करेगी. इस बैकग्राउंड को देखते हुए, दोनों दलों के बीच कोई भी दोस्ती तेल और पानी की तरह होने की संभावना है.
तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच भी एक फर्क है. जहां एक तरफ बीजेपी, टीडीपी के साथ दूसरे दर्जे की भूमिका निभाने में खुश थी. वहीं, तेलंगाना में राज्य बीजेपी खुद को 2028 में सत्ता के दावेदार के रूप में देखती है. इसलिए वह पार्टी के साथ गठबंधन करने के बजाय तमाम बीआरएस लीडर्स को पार्टी में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करेगी. एक कमजोर बीआरएस तब तेलंगाना को बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला बना देगा. ऐसा तर्क दिया जाता है कि इस स्तर पर केसीआर को शांति की पेशकश करने से उन्हें केवल राजनीतिक ऑक्सीजन मिलेगी.
बीआरएस के लिए अब सबसे अच्छा दांव राज्यसभा में अपनी ताकत का इस्तेमाल करना होगा, जहां उसके पास चार सांसद हैं. पार्टी को सलाह दी जाती है कि वह दलबदलुओं पर आरोप लगाने के बजाय लोगों के मुद्दों को उठाए और जमीनी स्तर पर दिखे, क्योंकि सत्ता में रहने के दौरान दलबदलुओं को बढ़ावा देने में पार्टी का अपना ट्रैक रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं है. आखिरी में, बीआरएस को महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों के नतीजों का इंतजार करना चाहिए, जिससे पता चल सके कि सियासी बयार किस तरफ बह रही है.
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