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रायबरेली में BJP के इन 2 धुरंधरों की नाराजगी क्‍या दिनेश प्रताप सिंह का खेल बिगाड़ेगी?

पिछले दिनों रायबरेली में ऐसी घटनाएं हुईं हैं जिन्हें देखकर ऐसा महसूस किया जा रहा है कि बीजेपी ने जो दो मिसाइल (अदिति सिंह और मनोज पांडेय) तैयार किए थे वो लांच के लिए तैयार नहीं हैं. दोनों की नाराजगी के अपने अलग-अलग कारण हैं.

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मनोज पांडेय और अदिति सिंह की नाराजगी क्या भारी पड़ेगी बीजेपी को?
मनोज पांडेय और अदिति सिंह की नाराजगी क्या भारी पड़ेगी बीजेपी को?

उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट से गांधी परिवार को बाहर करने की बीजेपी की रणनीति पर पानी फिरता नजर आ रहा है. 2019 में अमेठी लोकसभा से राहुल गांधी चुनाव हार गए थे. इस बार सोनिया गांधी के चुनाव लड़ने से मना करने पर राहुल गांधी रायबरेली से ताल ठोंक रहे हैं. बीजेपी की हर संभव कोशिश है कि रायबरेली सीट से भी राहुल गांधी को हरा दिया जाए. पर बीजेपी अपनी ही रणनीति में उलझ कर रह गई है. दरअसल भारतीय जनता पार्टी एक रणनीति के तहत रायबरेली के कद्दावर नेताओं को बारी-बारी बीजेपी में शामिल कराती रही है. इसी के तहत कभी सोनिया गांधी के खासमखास दिनेश प्रताप सिंह को भी बीजेपी में लाया गया. 2019 में तो दिनेश प्रताप सिंह ने बीजेपी के टिकट पर सोनिया गांधी को कड़ी टक्कर भी दी. उसके बाद बीजेपी लगातार स्थानीय मजबूत नेताओं को पार्टी में शामिल कराती रही. पर राहुल गांधी को कड़ी टक्कर देने के लिए बीजेपी ने जिसे उम्मीदवार बनाया उसी के चलते सत्तारूढ़ पार्टी के स्थानीय खेमे में कुछ असंतोष फैल गया है. जिसके चलते बीजेपी के लिए उसकी मंजिल कठिन होती जा रही है.

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स्थानीय कद्दावरों को बीजेपी में लाने की रणनीति

रायबरेली से भी यदि गांधी परिवार को बाहर का रास्ता दिखाना है तो पहले राहुल और सोनिया के खास लोगों को तोड़ना जरूरी था. इसी तहत सबसे पहले दिनेश प्रताप सिंह को बीजेपी में लाया गया. दिनेश सिंह का पूरा परिवार स्थानीय राजनीति में है. उनके एक भाई विधायक रहे हैं. एक भाई जिला पंचायत अध्यक्ष भी हैं. कहा जाता है इनके आवास पंचवटी से ही पूरे जिले की राजनीति नियंत्रित होती रही है. इनके समानांतर ही रायबरेली में अखिलेश सिंह का नाम  चलता था. सात बार के विधायक अखिलेश भी दबंग थे और जिले की राजनीति में उनका भी दबदबा था. ये दोनों नाम दो ध्रुव होते थे पर सोनिया गांधी के प्रति वफादार होते थे.

अखिलेश सिंह की मृत्यु होने के बाद उनकी बेटी अदिति सिंह उनका उत्तराधिकार संभाल रही हैं और रायबरेली से वो पहले कांग्रेस की विधायक बनी पर अब बीजेपी में हैं. 2022 में बीजेपी के टिकट पर चुनी गईं हैं. इससे पहले दिनेश प्रताप को बीजेपी ने पार्टी में शामिल कर उन्हें सोनिया के खिलाफ चुनाव लड़ाया गया. वे चुनाव तो हार गए पर चूंकि अच्छी टक्कर दी थी इसलिए उन्हें इनाम के तौर पर न केवल एमएलसी बनाया गया बल्कि यूपी मंत्रिमंडल में भी जगह दी गई. दिनेश प्रताप सिंह को बीजेपी ने अमेठी मॉड्यूल पर काम करने को कहा . जिस तरह अमेठी में हारने के बाद स्मृति इरानी पांच साल लगातार अमेठी के जनता के बीच जनसेवा में लगी रहीं उसी तरह दिनेश प्रताप सिंह को काम करते रहे.

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पर रायबरेली जीतना अभी भी मुश्किल था. क्योंकि रायबरेली में जातिय गणित बैलेंस नहीं हो पा रहा था. इस सीट पर सबसे अधिक संख्या में ब्राह्रण मतदाता हैं. एक अनुमान के अनुसार क्षेत्र में 11 प्रतिशत राजपूत और 18 प्रतिशत के करीब ब्राह्मण मतदाता हैं. चूंकि ब्राह्रण कांग्रेस के परंपरागत वोटर्स रहे हैं इसलिए बीजेपी के लिए ये सबसे बड़ी चिंता की बात थी. इसके काट के लिए बीजेपी ने क्षेत्र के सबसे कद्दावर ब्राह्मण नेता ऊंचाहार से समाजवादी पार्टी के विधायक मनोज पांडेय पर दांव खेला. मनोज पांडेय समाजवादी पार्टी के ब्राह्मण चेहरे के रूप मे जाने जाते रहे हैं. समाजवादी पार्टी ने इसलिए ही उन्हें विधानसभा में सचेतक जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे रखी थी. राज्यसभा चुनावों के दौरान बीजेपी ने उन्हें अपने खेमे में मिला लिया. मनोज पांडेय रायबरेली के वो किरदार हैं जिन्हें मोदी की लोकप्रियता के चरमोत्कर्ष में भी प्रदेश में सबसे अधिक मतों से विजय प्राप्त करने का श्रेय हासिल है. फिलहाल मनोज पांडेय तकनीकि रूप से समाजवादी पार्टी में ही हैं अभी.  

क्या अदिति सिंह और मनोज पांडेय नाराज हैं?

पिछले दिनों रायबरेली में ऐसी घटनाएं हुईं हैं जिन्हें देखकर ऐसा महसूस किया जा रहा है कि बीजेपी की ये दोनों मिसाइल लांच के लिए ही तैयार नहीं है. दोनों की नाराजगी के अपने अलग-अलग कारण हैं. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि रायबरेली सदर से भाजपा विधायक अदिति सिंह और ऊंचाहार से बागी सपा विधायक मनोज कुमार पांडे अपने निर्वाचन क्षेत्रों में दिनेश प्रताप सिंह के लिए प्रचार करने से कतरा रहे हैं. भाजपा सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने रायबरेली दौरे के दौरान दोनों को मनाने की भरपूर कोशिश की.

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रविवार को रायबरेली में अपने चुनाव प्रचार के दौरान शाह दिनेश प्रताप सिंह को लेकर मनोज पांडे के घर गए और उनके लिए समर्थन मांगा. कहा जा रहा है कि मनोज पांडेय की नाराजगी के दो कारण हैं. पहला कारण तो उन्हें रायबरेली सीट से अपने लिए भाजपा का टिकट पाने की उम्मीद थी. 27 फरवरी के राज्यसभा चुनाव में पांडे ने सपा के मुख्य सचेतक का पद छोड़ दिया था और भाजपा के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की थी. हो सकता है कि उन्हें पार्टी की ओर से ऐसा कोई आश्वासन दिया गया हो.

हालांकि कई भाजपा नेता सफाई में ये कहते हैं कि पांडे, जो अभी तक औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल नहीं हुए हैं, चिंतित हैं कि अगर उन्हें दिनेश प्रताप सिंह के लिए खुलेआम प्रचार करते देखा गया तो उनकी विधानसभा सदस्यता जा सकती है. हालाँकि,इन सबके पीछे सबसे महत्वपूर्ण दिनेश प्रताप के साथ पुरानी प्रतिद्वंद्विता को बताया जा रहा है. दिनेश प्रताप के नामांकन पत्र दाखिल करने के दिन, कई स्थानीय भाजपा नेता भी पांडे को मनाने गए थे, लेकिन वह साथ जाने के लिए राजी नहीं हुए. बीजेपी ने उनके बेटे और भाई को उस दिन भाजपा में शामिल कराया. जब मनोज पांडेय नामांकन दाखिल करने के लिए नहीं गए, तो ब्राह्मण समुदाय के बीच सकारात्‍मक संकेत देने के लिए बीजेपी को उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक को उतारना पड़ा. इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि शाह ने पांडे से कहा है कि उन्हें भाजपा के उम्मीदवार का समर्थन करना चाहिए और पार्टी उन्हें उचित समय पर इसका इनाम देगी.

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रायबरेली सदर से विधायक अदिति सिंह भी पार्टी उम्मीदवार दिनेश प्रताप सिंह के लिए प्रचार में  कहीं दिखाई नहीं दे रही हैं. जाहिर है कि इसका सीधा प्रभाव बीजेपी को मिलने वाले वोटों पर पड़ सकता है. रायबरेली में अमित शाह के दौरे के समय वो सार्वजनिक बैठक में तो मौजूद थीं लेकिन उन्होंने सभा को संबोधित नहीं किया. शाह ने उनकी चर्चा जरूर की पर शनिवार को उन्होंने 'एक्स' पर अपने पिता के साथ एक पुरानी तस्वीर भी पोस्ट की, जिसमें कहा गया कि उनके लिए अपने 'उसूल' (सिद्धांतों) से समझौता करना मुश्किल था. इस पोस्ट के कई मायने निकाले जा रहे हैं. दरअसल 2019 के लोकसभा चुनावों के बीच तत्कालीन कांग्रेस विधायक अदिति सिंह ने आरोप लगाया था कि उनकी कार पर दिनेश प्रताप सिंह के भाई और तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष अवधेश सिंह ने हमला किया था. भाजपा में शामिल होने और पार्टी के टिकट पर 2022 का चुनाव जीतने के बाद भी दिनेश के साथ उनके मतभेद दूर नहीं हो सके. ऐसी दशा में दिनेश प्रताप सिंह के चुनाव में वो खुद को शायद असहज पा रही हैं.

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