अमेरिकी एयर फोर्स के विमान में सिर झुकाए बेड़ियां पहने भारतीय युवाओं को अपने देश में वापसी करते देखकर किस भारतीय का मन नहीं दुखी हुआ होगा. इन लोगों को अमेरिका चाहता तो सामान्य यात्री विमान से भेजता जो अमेरिकी सरकार के लिए बेहद सस्ती पड़तीं . ये कोई कुख्यात अपराधी नहीं थे. पर अमेरिकी सरकार ने अवैध प्रवासियों को उनके देश भेजने के लिए अत्यंत खर्चीले इन विमानों में भेजने की व्यवस्था की है. ये केवल और केवल एक प्रतीकात्मक संदेश है कि ये लोग अपराधी हैं. अगर ये लोग यात्री विमानों से अपने देश पहुंचेंगे तो ये लगेगा कि इनकी ससम्मान वापसी हुई है.
कानूनी और नैतिक रूप से दरअसल चोरी छिपे किसी भी देश में घुसने वाले लोगों के साथ यही व्यवहार होना चाहिए. पर क्या भारत अगर ऐसी ही हरकत बांग्लादेशियों या रोहिंग्या घुसपैठियों के साथ करे तो दुनिया किस तरह रिएक्ट करेगी ? दरअसल इसे ही कहते हैं समरथ को नहीं दोष गोसाईं. भारत अगर इस तरह अपने देश से घुसपैठियों को बाहर करता है तो पूरी दुनिया में मानवाधिकारों का मुद्दा उठने लगेगा. इसलिए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप जो कर रहे हैं उसे मौका समझ कर स्वागत करना चाहिए. मौका यह है कि लगे हाथ भारत को भी बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं से छुटकारा पाने के बारे में सोचना चाहिए. पर दिक्कत तो ये है कि भारत ऐसे लोगों को भी अपने देश का नागरिक मानता है जो अमेरिका जैसे देश में जाकर ये कहते हैं कि भारत में हमारा राजनीतिक उत्पीड़न कर रहा है. जबकि बांग्लादेश जैसे देश भी हैं जो अपने मजबूर नागरिकों भी अपना मानने को तैयार नहीं है.
अमेरिका से डिपोर्ट होने वाले लोगों को बेचारा और गरीब न समझा जाए
पहली बात यह समझ लें कि जो लोग अमेरिका से डिपोर्ट होकर भारत में वापसी कर रहे हैं इन लोगों को बेचारा या गरीब नहीं समझना चाहिए. डंकी रूट से भी अमेरिका में एंट्री लेने वालों को कम से कम 25 से 30 लाख खर्च करना होता है. ये ऐसे लोग हैं जिनकी भारत में अच्छी रोजी रोटी चल रही होती है , बस ये लोग लग्जरी लाइफ की तलाश में अपना देश अपना परिवार को छोड़कर अमेरिका और कनाडा जाना चाहते हैं. जिस भारत में हर साल लाखों की संख्या में बांग्लादेश रोजी रोजगार के लिए आते हैं उस देश के लोग लग्जरी लाइफ के लिए अमेरिका में जाना चाहते हैं. दूसरे ये इस हद तक मतलबी होते हैं कि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में शरण पाने के लिए अपने देश के खिलाफ यह भी लिखकर देने को तैयार होते हैं कि भारत में राजनीतिक उत्पीड़न के चलते इन्होंने भागकर दूसरे देश में घुसने की कोशिश की है. इस बिला पर इनके साथ अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश में माफी ही नहीं मिलता रहा है बल्कि सहायता भी मिल जाती थी. अब तक अमेरिकी सरकार भी इस तरह के केस में रहम कर देती थी. ऐसे लोगों को पोलिटकल एसाइलम मिल जाता था. पर अब ट्रंप के आने के बाद इस तरह के मामलों में सख्ती बरती जा रही है.
भारत के पास एक मौका है बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों को उनके देश भेजने का
अभी कुछ महीनों पहले जब बांग्लादेश में हिंसा की खबरें आ रहीं थीं हमने कई ऐसी तस्वीर देखीं थीं जिसमें बड़ी संख्या में लोग भारत में आने की फिराक में दिख रहे थे. भारत और बांग्लादेश का बॉर्डर ऐसा है कि दोनों देशों में घुसपैठ बहुत आसान हो जाता है. भारत-बांग्लादेश का बॉर्डर 4,096 किलोमीटर लंबा है. यह बॉर्डर जंगल, पहाड़ और नदियों के चलते अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों का आने रोकना भारत के लिए गंभीर समस्या है. करीब 25 साल पहले भारत सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार करीब 1.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठिए अवैध रूप से भारत में रह रहे हैं. रिपोर्ट के अनुसार हर साल 3 लाख से ज्यादा बांग्लादेशी भारत में घुस जाते हैं. कई बार सेना और भारत की खुफिया रिपोर्ट्स में इस बात के दावे किए गए हैं कि जिस तरीके से अवैध बांग्लादेशियों की संख्या भारत में बढ़ रही है उसे वह दिन दूर नहीं है जब बांग्लादेशी भारत के कुछ हिस्सों को बांग्लादेश से जोड़ने की बात करने लगें. भारत के पास मौका है कि पूरे देश में आइडेंटिफिकेशन ड्राइव चलाकर इनकी पहचान की जाए. दिल्ली -मुंबई जैसे शहरों और बॉर्डर से सटे राज्यों में विशेष तौर पर अभियान चलाकर इनकी पहचान की जाए.