निर्भया केस के बाद महिला संगठनों के कठिन संघर्ष की बदौलत रेप केस के कानूनों को और कठोर बनाया गया. उम्मीद थी कि इन कानूनों के बन जाने के बाद पुरुष ऐसी हरकतें करने से पहले सौन बार सोचेंगे. पर महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा के लिए निर्भया एक्ट और पॉक्सो एक्ट जैसे कठोर कानून तो बन गये पर जज उसे अपने हिसाब से इस तरह परिभाषित कर रहे हैं कि कानून का मतलब ही खत्म हो जाता है. महिलाओं को न्याय मिलना तो दूभर हो ही जाता है, दूसरे, पीड़ित महिलाएं इतनी हतोत्साहित हो जाती हैं कि उन्हें चुप रहना ही बेहतर विकल्प लगने लगता है. सवाल यह भी उठता है कि आखिर गलत इरादे से देखना, घूरना और छूना पॉक्सो एक्ट के तहत यौन शोषण का अपराध है तो जबरन ब्रेस्ट छूना और पाजामे का नाड़ा तोड़ना, पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना रेप के प्रयास का अपराध क्यों नहीं?
इलाहाबाद हाई कोर्ट में जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की बेंच ने रेप के प्रयास और अपराध की तैयारी के बीच के अंतर को सही तरीके से समझने की जरूरत बताते हुए कुछ ऐसा ही कहा कि कोई भी महिला या किसी भी बच्ची के माता पिता इस तरह का कोई अपराध होने पर अपने मुंह को बंद रखना ही बेहतर समझेंगे. जज ने कहा कि 'पीड़िता के स्तनों को पकड़ना, उसके पाजामे का नाड़ा तोड़ना, उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना रेप के प्रयास के अंतर्गत नहीं आता है. यह गंभीर यौन हमला है.'
हाई कोर्ट ने निचली अदालत से जारी समन आदेश को संशोधित करने का निर्देश दिया है कि आरोपियों के खिलाफ संशोधित धाराओं के तहत नया समन जारी करें. सवाल उठता है कि क्या निर्भया केस के बाद भी कानून इतने कमजोर हैं कि आरोपी न्यायपालिका से राहत जुटा लेते हैं?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज के क्या तर्क हैं?
हाईकोर्ट ने ब्रेस्ट छूने और पाजामे का नाड़ा तोड़ने को रेप या रेप का प्रयास क्यों नहीं माना, इसे फैसला सुनाते वक्त न्यायमूर्ति राममनोहर नारायण मिश्रा की पीठ द्वारा की गई टिप्पणियों से समझने की कोशिश की जा सकती है.
न्यायमूर्ति राममनोहर नारायण मिश्रा ने आरोपियों की याचिका को आंशिक तौर पर स्वीकार करते हुए कहा, आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ लगाए गए आरोप और तथ्य देखकर लगता है कि इस मामले में बलात्कार के प्रयास का अपराध नहीं बनता है. बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष को यह स्थापित करना होगा कि यह तैयारी के चरण से आगे निकल गया था. सवाल यह है कि आरोप लगाने वाली महिला या बच्ची या पीड़िता के परिवार वाले कहां से सबूत लाएं. कानून तो इस तरह का होना चाहिए कि कम से कम सबूतों और गवाहियों में काम चल सके. 11 साल की एक बच्ची किस तरह समझाएगी कि सामने वाले का इरादा क्या था?
जज ने कहा, आरोपी ने पीड़िता को पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की, और उसके पाजामे का नाड़ा तोड़ दिया. गवाहों ने यह भी नहीं बताया कि आरोपी के इस कृत्य के कारण पीड़िता नग्न हो गई या उसके कपड़े उतर गए. मतलब, पीड़िता को गवाह ढूढने चाहिए जो बताएं कि वह नग्न हो गई थी. जाहिर है कि तमाम कानून बनने के बाद भी मामला वहीं आकर अटक जा रहा है. जज साहब यह भी कहते हैं कि पेनट्रेशन हुआ या करने की कोशिश हुई यह भी आरोपी ने नहीं बताया.हालांकि जज ने आरोपी पर रेप या रेप के प्रयास के बजाय दो मामूली धाराओं में केस दर्ज करने के आदेश दिया है. इनमें एक IPC की धारा 354-बी (कपड़े उतारने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और पोक्सो अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलाया जाएगा.
जज के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के वकील कपिल सिब्बल का कहना है -
पत्नी मर गई पर जबरन अप्राकृतिक सेक्स करने के बयान को रेप नहीं माना
अभी कुछ महीने पहले की ही एक और घटना भी ऐसी है जो हमारे कानून और न्याय संहिता की कमजोरी को दिखाते हैं. छत्तीसगढ़ की एक महिला से उसका पति इतनी बर्बरता से यौन संबंध बनाता है कि उसे हॉस्पिटल में एडमिट होना पड़ता है. पीड़िता ने अपनी मौत के पहले मजिस्ट्रेट को बताया कि पति द्वारा बलपूर्वक बनाए गए यौन संबंध के कारण उसकी ये हालत हुई है. इस मामले में पीड़िता के मायके वालों ने उसके पति पर आईपीसी की धारा 376, 377 और 304 के तहत केस दर्ज करवाया था. 2019 में जिला न्यायालय ने पीड़िता के पति को बलात्कार, अप्राकृतिक कृत्य और गैर-इरादतन हत्या के लिए दोषी ठहराया और 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई. पर हाईकोर्ट ने जिला अदालत के फैसले को खारिज करते हुए आरोपी पति को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया. कारण यह दिया गया कि मैरिटल रेप के लिए भारत में कानून नहीं है. हालांकि भारत में पति पत्नी के खराब होते रिश्तों को देखते हुए होना तो यह चाहिए कि पति के जबरन खाना खिलाने या शराब पिलाने से भी पत्नी की मौत होती है तो भी हत्या का मुकदमा दर्ज होना चाहिए.
ब्रेस्ट को कपड़े के ऊपर से सिर्फ छूने भर को जज ने यौन हमला नहीं माना
19 जनवरी 2021 को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने अपने आदेश में कहा था, ब्रेस्ट को कपड़े के ऊपर से सिर्फ छूने भर को यौन हमला नहीं कहा जा सकता.जस्टिस गनेडीवाला ने सेशन कोर्ट के फैसले में संशोधन करते हुए दोषी को पॉक्सो एक्ट के तहत दी गई सजा से बरी कर दिया था, जबकि IPC की धारा 354 के तहत सुनाई गई एक साल की कैद को बरकरार रखा था.
इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था, इस फैसले के लिहाज से तो कोई ग्लव्स पहनकर किसी महिला के शरीर पर हाथ फेर सकता है, लेकिन उसे यौन शोषण का आरोपी नहीं माना जाएगा. 27 जनवरी, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी थी. रोक लगाते हुए कोर्ट ने कहा था कि इस तरह के फैसले खतरनाक उदाहरण कायम करेंगे, इसलिए इसे बदल देना चाहिए. अब ये बदल दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया था कि POCSO अधिनियम के तहत यौन शोषण के आरोप के लिए ‘स्किन टू स्किन’ टच होना ही जरूरी नहीं है.
डिरोब करना क्या रेप की कोशिश नहीं है?
पॉक्सो एक्ट के तहत derobe (कपड़े उतारना या निर्वस्त्र करना) और attempt to rape (बलात्कार का प्रयास) दो अलग-अलग अवधारणाएं हैं, जिनमें कानूनी परिभाषा और गंभीरता के आधार पर अंतर है. अगर कोई व्यक्ति बच्चे के कपड़े फाड़ने या उतारने की कोशिश करता है, लेकिन आगे कोई penetration या बलात्कार की कोशिश नहीं करता, तो यह derobe की श्रेणी में आएगा. यानि इसे रेप या रेप की कोशिश नहीं माना जाएगा पर अपराध माना जाएगा. Attempt to rape का मतलब है बलात्कार करने की स्पष्ट कोशिश करना, जिसमें अपराधी का इरादा और उसकी हरकतें बलात्कार की ओर बढ़ती दिखें. हो सकता है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज को ऐसा महसूस किया होगा कि बच्ची के कपड़े उतारने वालों का इरादा रेप करने का न रहा हो. या यह भी हो सकता है कि उनकी मजबूरी रही हो कि रेप की कोशिश साबित करने के लिए उनके पास साक्ष्य न मिले हों.
पर बीबीसी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच की एक वकील के हवाले से लिखा है कि पॉक्सो अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं में यौन अपराधों के सबंध में स्पष्ट प्रावधान मौजूद हैं, जिनका इस मामले में सही तरीके से उपयोग नहीं किया गया. हाई कोर्ट को इन धाराओं का उपयोग करके पीड़िता को न्याय दिलाना चाहिए था. भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में बेहतर प्रावधान मौजूद हैं. उनका कहना है कि बीएनएस में इस तरह के अपराधों को लेकर अधिक स्पष्टता है. धारा 63 (बलात्कार के प्रयास) बलात्कार करने का इरादा और उसकी दिशा में किया गया कोई भी कार्य इस धारा के तहत अपराध माना जाएगा. धारा 75 (लैंगिक उत्पीड़न) यदि कोई व्यक्ति किसी महिला की लज्जा भंग करने या उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से छेड़छाड़ करता है, तो यह अपराध की श्रेणी में आएगा. धारा 79 के तहत यदि किसी महिला के कपड़े उतारने या उसे अपमानित करने का प्रयास किया जाता है, तो इसे गंभीर अपराध माना जाएगा.