किसान आंदोलन करने वाले संगठन हमेशा से खुद को राजनीति से अलग करते रहे हैं. लेकिन राजनीतिक संगठनों के साथ इन संगठनों का इस तरह का ताना-बाना जुड़ा हुआ है कि चाहकर भी ये लोग अराजनीतिक नहीं हो पाते हैं. वैसे भी जनता से जुड़े मुद्दों पर राजनीति न हो ये कैसे हो सकता है? शायद यही कारण है कि किसान आंदोलन पूरी तरह राजनीति का केंद्र बन जाता है. और जब किसान नेता खुलकर सरकार बदलने की बात करने लगते हैं तो इसे किस तरह राजनीति से अलग माना जा सकता है. इसी लिए कहा जा रहा है कि किसान आंदोलन तो बहाना है-असली काम तो मोदी सरकार को हटाना है. लोगों में चर्चा इस बात को लेकर है कि आखिर बिना राजनीतिक दलों के सपोर्ट के इतना बड़ा आंदोलन इतनी जल्दी कैसे खड़ा हो सकता है. 2020 में तीन कृषि कानूनों को लेकर पंजाब के 34 किसान संगठन विरोध कर रहे थे,जबकि यह आंदोलन में मात्र कुछ किसान संगठनों द्वारा ही किया जा रहा है. तो क्या यह सही है कि इस बार का आंदोलन किसी खास मकसद से हो रहा है. आइये उन कारणों की चर्चा करते हैं जिससे ऐसा लगने लगा है कि किसान आंदोलन में किसानों की चिंता कम है , ज्यादा चिंता इस बात को लेकर है कि किस तरह मोदी सरकार को हटाया जाए.
1-जगजीत सिंह डल्लेवाल का वायरल विडियो
भारतीय किसान यूनियन सिद्धूपुर के प्रधान जगजीत सिंह डल्लेवाल इस बार किसान आंदोलन के सबसे प्रमुख चेहरे हैं. जिस तरह पिछली बार गुरुनाम सिंह चढ़ूनी और राकेश टिकैत थे इस बार डल्लेवाल हैं. उनके मुंह से किसान आंदोलन की सच्चाई निकल गई है . डल्लेवाल का एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें वह कह रहे हैं कि राम मंदिर बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ग्राफ बहुत बढ़ गया था, उसे नीचे लाना है.
वीडियो में डल्लेवाल कहते सुनाई पड़ रहे हैं, ‘मैं गांव में बात करता था, मौका बहुत थोड़ा है और मोदी का ग्राफ बहुत ऊंचा, क्या थोड़े दिनों में हम ग्राफ नीचे ला सकते हैं’ . सबसे बड़ी बात है कि डल्लेवाल इस विडियो क्लिप को न तो गलत बताया और न ही सही. उनका कहना केवल इतना है कि, यह मेरा अधिकारिक बयान नहीं है. डल्लेवाल के वीडियो आने के बाद किसान आंदोलन पर सवाल उठना स्वभाविक है. क्योंकि आम किसान तो बहुत कुछ बोलते रहते हैं . कोई पीएम को गाली देता है तो कोई खुलेआम खालिस्तान की बात करता है पर वही बात जब जिम्मेदार लोग बोलने लगते हैं तो वह नजीर बन जाता है. डल्लेवाल की बात से साफ संकेत मिलते हैं कि किसान आंदोलन का उद्देश्य लोक सभा चुनाव को लेकर आचार संहिता लगने से पहले मोदी के खिलाफ माहौल बनाने की है.
2-एक और किसान नेता तेजवीर सिंह का विडियो में भी वही बात
आंदोलन में शामिल पंजाब के किसान नेता तेजवीर सिंह का एक विडियो बहुत तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें वो किसान आंदोलन के जरिए देश की सरकार बदलने की बात कर रहे हैं. इतना ही नहीं वो किसान आंदोलन को विपक्ष की लड़ाई लड़ने वाला भी बता रहे हैं. मतलब साफ है कि कहीं न कहीं किसान नेताओं को एक बात समझाई गई है कि ये लड़ाई किसानों के अधिकारों और एमएसपी की गारंटी के लिए नहीं है बल्कि इन मुद्दों के नाम पर सरकार को ही बदलना है.
तेजवीर सिंह कहते हैं कि इस तानाशाह सरकार के खिलाफ मैं आपको 2 बातें सप्ष्ट कर देना चाहता हूं ... किसान मजदूर सबकी लड़ाई लड़ रहे हैं, पूरे विपक्ष की लड़ाई लड़ रहा है किसान. किसान पैरा मिलट्री फोर्सेस ,अग्निवीर, वन रैंक पेंशन, खिलाड़ियों , नूंह के दंगों के रोकने के लिए खड़े किसान, मजदूरों की लड़ाई लड़ रहे किसान...आने वाले समय में आप देखेंगे कि यह आंदोलन देश का राजनीतिक भूगोल बदल कर रख देगा. लोग एक नए देश को देखेंगे. आंदोलनों से नेता पैदा होते हैं नेता से आंदोलन नहीं पैदा होते हैं...
यही नहीं किसान आंदोलन को कवर कर रहे है बहुत से यूट्यूबरों , मीडिया हाउसेस के विडियो देखने के मिल रहे हैं जिन्हें यहां दिखाया भी नहीं जा सकता. इन्हें देखकर आप यही कह सकते हैं कि किसान आंदोलन भ्रमित है या गलत लोगों के हाथ है. बहुत से किसान इंडिपेंडेंट पंजाब या खालिस्तान की बात करते हुए मिलते हैं. कुछ तो पीएम नरेंद्र मोदी के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करते हुए मिल जाते हैं. इन किसानों के मन में एमएसपी पर गारंटी की डिमांड कम ,केंद्र सरकार को बदलने का जज्बा काफी है. इनमें से कुछ को नरेंद्र मोदी के लिए इतनी नफरत भरी हुई जैसे किसी राजनीतिक दल के कार्यकर्ता अपने विरोधी दलों के नेताओं के बारे में रखता है. बल्कि राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं में भी अपने विरोधी दल के नेता के लिए मरने-मारने की बात नहीं होती . यहां तो किसान मरने-मारने की बात भी कर रहे हैं.
3-राहुल गांधी के ट्वीट पर गौर करिए
आंदोलन शुरू होने से 2 दिन पहले जिस तरह कांग्रेस नेता राहुल गांधी का ट्वीट किसान आंदोलन को समर्थन करते आ गया था उससे भी इस संदेह को बल मिला कि यह आंदोलन किसानों के अधिकार के लिए नहीं बल्कि मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए ज्यादा है.
राहुल गांधी किसान आंदोलन शुरू होने के 2 दिन पहले ट्वीट करते हैं कि
दिन रात ‘झूठ की खेती’ करने वाले मोदी ने 10 वर्षों में किसानों को सिर्फ ठगा है.दो गुनी आमदनी का वादा कर मोदी ने अन्नदाताओं को MSP के लिए भी तरसा डाला. महंगाई तले दबे किसानों को फसलों का सही दाम न मिलने के कारण उनके कर्ज़े 60% बढ़ गए - नतीजा, लगभग 30 किसानों ने रोज़ अपनी जान गंवाई.धोखा जिसकी USP हो, वो MSP के नाम पर किसानों के साथ सिर्फ राजनीति कर सकता है, न्याय नहीं.किसानों की राह में कीलें बिछाने वाले भरोसे के लायक नहीं हैं, इनको दिल्ली से उखाड़ फेंको, किसान को न्याय और मुनाफा कांग्रेस देगी.
राहुल का यह ट्वीट 11 फरवरी को आता है. उसके बाद सीधे 13 फरवरी को राहुल गांधी ट्वीट करते हैं . इस बीच वे कोई ट्वीट नहीं करते हैं. 13 तारीख को वो ट्वीट काफी सोच विचार कर करते हैं.वो किसानों का समर्थन ही नहीं करते बल्कि कांग्रेस की सरकार बनने पर एमएसपी की गारंटी देने का वादा भी करते हैं.
राहुल गांधी लिखते हैं कि किसान भाइयों आज ऐतिहासिक दिन है! कांग्रेस ने हर किसान को फसल पर स्वामीनाथन कमीशन के अनुसार MSP की कानूनी गारंटी देने का फैसला लिया है.यह कदम 15 करोड़ किसान परिवारों की समृद्धि सुनिश्चित कर उनका जीवन बदल देगा.
न्याय के पथ पर यह कांग्रेस की पहली गारंटी है.
मतलब साफ है कि कांग्रेस को इस आंदोलन का इंतजार था. और कांग्रेस ने पूरी तैयारी कर रखी थी. अगर कांग्रेस पार्टी एमएसपी की गारंटी पूरे देश के किसानों के लिए करती है तो निश्चित है कि इसकी तैयारी की गई होगी. इतनी बड़ी पार्टी तुरंत इतना बड़ा फैसला नहीं ली होगी.यह सब पूर्व प्लानिंग के तहत हुआ होगा.
4-कांग्रेस नेता रमनदीप सिंह मान, किसान नेताओं और पार्टी के बीच की कड़ी
कांग्रेस नेता रमनदीप सिंह मान पर आरोप है कि वो कांग्रेस और किसान नेताओं के बीच कड़ी का काम कर रहे थे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र पांचजन्य के हैंडल ने उनके कई ट्वीट्स की कड़ी का थ्रीड बनाकर अपने हैंडल पर डाला हुआ है. इस थ्रीड से पता चलता है कि कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा ने किस तरह रमनदीप सिंह के साथ मिलकर किसान आंदोलन को खड़ा किया. कोलकाता का डेली द टेलिग्राफ की खबर बताती है कि रमनदीप सिंह मान का ट्वीटर हैंडल 2 दिन पहले सस्पेंड कर दिया गया है. किसान आंदोलन के समय उनका ट्वीटर हैंडल क्यों सस्पेंड हुआ यह भी अपने आप में एक खबर हो सकती है. इस थ्रीड का पहला ट्वीट 16 नवंबर 2023 का है. जिसमें लिखा गया है कि राहुल गांधी के बेहद करीबी और दिग्गज कांग्रेसी नेता दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने रमनदीप सिंह मान से मुलाकात की व किसान आंदोलन के आगे की रणनीति तैयार किया.ट्वीट में फोटो भी है. इस थ्रीड में करीब 22 ट्वीट हैं जो कांग्रेस और किसान आंदोलन के रिश्ते को उजागर करने के लिए काफी हैं. थ्रीड में रमनदीप सिंह के ट्वीट का स्क्रीनशॉट भी है.
5-लाल किले में उपद्रव करने वाले, पीएम मोदी का काफिला रोकने वाले संगठन हॉवी हैं इस बार
26 जनवरी 2021 को लालकिले में घुसकर उपद्रव मचाने वाले 'पंजाब किसान मजदूर संघर्ष समिति'के महासचिव सरवन सिंह पंढेर इस बार के किसान आंदोलन के सबसे खास स्तंभ हैं. दूसरा संगठन, भारतीय किसान यूनियन (एकता सिंधुपुर) के अध्यक्ष जगजीत सिंह डल्लेवाल का है जिनका विडियो वायरल हो रहा है जिसमें उन्होंने कहा है कि मोदी की लोकप्रियता बहुत तेजी से बढ़ रही है , हमारे पास टाइम बहुत कम है. आंदोलन में हरियाणा से बीकेयू (शहीद भगत सिंह) अंबाला, एसकेएम (बलदेव सिंह सिरसा) अमृतसर, लखविंद्र सिंह का एक छोटा समूह और फतेहाबाद में खेती बचाओ संगठन से जुड़े रहे सरपंच जरनैल सिंह शामिल हैं. पंजाब में पीएम मोदी का काफिला रोकने की जिम्मेदारी लेने वाले संगठन भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी संगठन भी इस आंदोलन में शामिल है.
पिछली बार के मशहूर नाम गुरनाम सिंह चढूनी, हन्नान मोल्ला, जोगिंदर सिंह उगराहां, शिवकुमार शर्मा (कक्का जी), युद्धवीर सिंह, योगेंद्र यादव, अविक साहा, भारतीय किसान यूनियन लक्खोवाल के अध्यक्ष अजमेर सिंह लक्खोवाल, किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के सतनाम सिंह पन्नू, जम्हूरी किसान सभा के प्रेसिडेंट सतनाम सिंह अजनाला, महिला किसान अधिकार मंच की संस्थापक सदस्य कविता कुरुगंटी और राष्ट्रीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक शिवकुमार शर्मा उर्फ 'कक्का' आदि लोग दिल्ली को घेरने में इस बार शामिल नहीं है.