बिहार में लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण में औरंगाबाद, गया, नवादा और जमुई में जनता अपने पसंदीदा प्रत्याशी के लिए वोट करेगी.पर अभी तक चीजें स्पष्ट नहीं हो रही हैं कि वोट किधर जाएगा. सिर्फ कागजों पर हम गणित ही लगा सकते हैं. वास्तविक हालात का अंदाजा लगाना बहुत कठिन हो चुका है. एनडीए को मोदी मैजिक पर भरोसा है, पर जाति का कार्ड खेलने में कोई कोताही नहीं की गई है. उसी तरह इंडिया गुट भी लोकतंत्र और संविधान को बचाने के मुद्दे पर जोरदार अभियान चला रहा है. दक्षिण बिहार में मतदाता 19 अप्रैल को मतदान करेगा. अपनी पसंद बताने के लिए बड़े पैमाने पर जाति को आधार मानते हैं पर जाति के आधार पर भी अपना पसंदीदा कैंडिडेट खोजना आसान नहीं है.हालत यह है कि एक ही जाति आसपास के 2 सीटों पर अलग-अलग पार्टियों के कैंडिडेट को वोट देने का मन बनाए हुए है. इन चार सीटों पर इन चार मुद्दों की भी परीक्षा है.
1-बिहार में एनडीए की सोशल इंजीनियरिंग कितनी कारगर
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी कुशवाहा हैं और भाजपा की सहयोगी पार्टी के नेता उपेन्द्र कुशवाहा भी कुशवाहा लोगों को लीड करते हैं. फिर भी देखने में आ रहा है कि प्रदेश के सारे कुशवाहा एनडीए को वोट नहीं दे रहे हैं. इसी तरह कुर्मियों को जद (यू) के नीतीश कुमार के माध्यम से एक छत्र में लाया गया है. एलजेपी (रामविलास) नेता चिराग पासवान के लिए जगह बनाने के बाद दुसाधों को बीजेपी की ओर लाने के लिए एनडीए के सहयोगी और बिहार के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी को लाया गया है. जो खुद गया से उम्मीदवार हैं.
दूसरी ओर राजद में भी बदलाव की बयार है. इस पार्टी की पहचान लंबे समय से केवल दो समूहों, मुसलमानों और यादवों के साथ की जाती रही है. तेजस्वी यादव के नेतृत्व में इस पार्टी ने अन्य जातिगत समूहों तक पहुंचना शुरू किया है. तेजस्वी ने इसके लिए एक आकर्षक संक्षिप्त नाम भी गढ़ा है. MY-BAAP जिसका मतलब मुस्लिम-यादव और बाप का फुल फॉर्म बहुजन-अगड़ा-आधी आबादी और गरीब की पार्टी .मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी और मल्लाहों के बीच उसके आधार का भारत में प्रवेश एक बोनस है. राजद को ओबीसी और दलितों का समर्थन भी है जो सहयोगी सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के कारण है.
पहले चरण में औरंगाबाद में राजद के कुशवाहा उम्मीदवार अभय कुमार कुशवाहा और नवादा में श्रवण कुशवाहा हैं. एनडीए की ओर से एक भी कुशवाहा उम्मीदवार नहीं हैं. जाहिर है सम्राट चौधरी और उपेंद्र कुशवाहा के होते हुए भी कुशवाहा इन दोनों सीटों पर एनडीए को वोट करेगा या नहीं इसमें संशय है. इसी तरह गया से राजद ने एक पासवान, कुमार सर्वजीत पासवान को मैदान में उतारा है. इस उम्मीद में कि वह कुछ पासवान वोटों को आकर्षित करेगा. गया में मांझी एनडीए के उम्मीदवार हैं जिनसे उम्मीद की जा रही है मुसहर वोट उनको मिलेंगे ही. जाहिर है कि यहां मांझी और चिराग पासवान दोनों की अग्निपरीक्षा है.
2-दलित वोटों का ट्रेंड पता चलेगा
मांझी पिछले तीन लोकसभा चुनाव गया से हारे हैं - पिछली दो बार तो भाजपा से ही हारे हैं. 2014 में जद(यू) उम्मीदवार के रूप में और 2019 में राजद और कांग्रेस के सहयोगी के रूप में. इस बार, उन्हें उम्मीद है कि वे भाजपा के पारंपरिक उच्च जाति के वोटों के साथ-साथ अपने मुसहर वोट उन्हें ही मिलेंगे. चिराग पासवान के साथ होने से पासवान वोटों का एक बड़ा हिस्सा भी उन्हें मिल सकता है. गया में पासवान और मुसहर दलितों के दो सबसे बड़े समूह हैं, जिनकी आबादी करीब 30% के करीब है.मांझी को मिलने वाले वोट निर्भर करेगा आगामी चरण में बीजेपी को दलितों का कितना साथ मिलता है.
3-औरंगाबाद और नवादा में सवर्ण प्रत्याशियों को बैकवर्ड और दलित का कितना समर्थन
भूमिहार बहुल निर्वाचन क्षेत्र नवादा में, भाजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सीपी ठाकुर के बेटे विवेक को मैदान में उतारा है. दूसरी ओर औरंगाबाद से बीजेपी ने अपने तीन बार के सांसद सुशील कुमार सिंह जो कि एक राजपूत हैं को फिर से मैदान में उतारा है. राजद ने अभय कुमार कुशवाह को अपना टिकट दिया है. इस सीट पर यादव और कुशवाह के वोट निर्णायक होते हैं. यादव वोट तो बीजेपी को मिलने नहीं हैं. अगर कुशवाहा वोटों नें सम्राट चौधरी और उपेंद्र कुशवाहा सेंध नहीं लगा सके तो औरंगाबाद सीट पर बीजेपी कमजोर हो सकती है.
4-बीजेपी के परिवारवाद का इम्तिहान
बीजेपी पारिवारवाद की विरोधी रही है पर विरोधियों का आरोप रहा है कि बीजेपी भी परिवारवाद जमकर लाभ उठा रही है.पूर्व डिप्टी सीएम और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने बीजेपी के परिवारवाद पर तंज कसते हुए कहा था कि जमुई से NDA ने अरुण भारती को टिकट दिया है, जो पूर्व MLC ज्योति पासवान के बेटे और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के दामाद और चिराग पासवान के जीजा हैं. औरंगाबाद के भाजपा उम्मीदवार सुशील कुमार सिंह भी पूर्व सांसद राम नरेश सिंह के बेटे हैं. गया से पूर्व CM जीतनराम मांझी उम्मीदवार हैं, जो मंत्री और MLC संतोष सुमन के पिता हैं. वहीं नवादा से उम्मीदवार विवेक ठाकुर पूर्व सांसद सीपी ठाकुर के बेटे हैं. इस तरह बिहार के पहले चरण में बीजेपी ने इन चारों सीटों पर परिवारवाद के सहारे नैय्या पार लगाने की कोशिश की है.देखना है कि बीजेपी के लिए यह कितना फायदेमंद रहने वाला है.
5-कितना चलेगा मोदी मैजिक
इन जातीय गणनाओं के बीच एनडीए की सबसे बड़ी उम्मीद मोदी मैजिक का है. 2019 के चुनावों में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट पड़ा था. सारी सोशल इंजिनियरिंग के बीच चर्चा में केवल नरेंद्र मोदी ही हैं. जाति की चर्चा करने वाले मोदी की जाति की भी चर्चा करते हैं पर यह सवर्ण और बैकवर्ड-दलित सबके लिए महत्वहीन हो जाता है. हर जाति और वर्ग के बीच एक तबका ऐसा है जो केवल नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट करने की बात करता है. यह अंडर करंट है या नहीं है, और है तो कितना है इसकी भी परीक्षा होनी है. इन चारों सीटों पर जातिगत समीकरण इतने कच्चे पक्के हैं कि यहां पर जीत पार्टी नेता का व्यक्तित्व ही विजयश्री दिलाएगा. अब देखना है कि मोदी मैजिक कितना कारगर होता है.