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 EXIT POLL : इन 5 कारणों से बीजेपी के पक्ष में पैदा हुआ देशव्‍यापी अंडर-करंट

चुनाव प्रचार के जोड़ पकड़ते ही एक समय एनडीए बैकफुट पर नजर आ रही थी. ऐसा लग रहा था कि इंडिया गठबंधन 2004 को दोहराने जा रहा हो. पर बीजेपी ने ऐसा क्या किया जिससे इतनी बड़ी लीड लेती दिख रही है पार्टी?

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राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी
राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी

आजतक एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल के रिजल्ट बता रहे हैं कि बीजेपी बहुत बड़ी लीड लेती दिख रही है. एग्जिट पोल अगर सही होता है तो भारतीय जनता पार्टी देश में तीसरी बार बहुत बड़े बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल होगी. हालांकि चुनाव शुरू होने के पहले तक जिस तरह विपक्ष निस्तेज दिख रहा था उससे ऐसा लग रहा था कि बीजेपी और एनडीए के लिए यह चुनाव बहुत आसान है. इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी का 400 पार का नारा आ गया. एक समय तो ऐसा लगा कि इंडिया गठबंधन के दलों के लिए यह लोकसभा चुनाव बहुत मुश्किल होने जा रहा है. पर चुनाव प्रचार के जोड़ पकड़ते ही और प्रथम चरण के मतदान होने तक एक ऐसी स्थिति बन गई थी जब एनडीए बैकफुट पर नजर आ रही थी. ऐसा लग रहा था कि इंडिया गठबंधन 2004 को दुहराने जा रहा हो. पर बीजेपी की रणनीति और चुनाव प्रचार ने पार्टी के लिए एक अंडर करंट पैदा किया जो किसी को दिख तो नहीं रहा था पर हर कहीं मौजूद था. जाहिर है एग्जिट पोल में वही दिख रहा है. आइये देखते हैं वो कौन से मुख्य कारण रहे जिसके चलते बीजेपी इतनी बड़ी लीड लेते हुए दिख रही है.

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1-लाभार्थी स्कीम्स का अंडर करंट

गोरखपुर में चुनाव ड्यूटी पर लगीं रीना श्रीवास्तव ( बदला हुआ नाम) बताती हैं कि शनिवार को मतदान केंद्र पर एक महिला दोपहर 12 बजे के करीब आती और कहती है कि उसको वोट देना है पर उसका नाम वोटर लिस्ट में नहीं है. जांच पड़ताल करने के बाद उसे पड़ोस के एक मतदान केंद्र पर भेजा जाता है.शाम को ड्यूटी समाप्त करके घर जाते हुए रीना को वही महिला मतदान केंद्र के बाहर मिल जाती है. दिन भार गर्मी और उमस में वह भटकती रही पर वोट नहीं दे सकी. महिला लगभग रोते हुए कहती है कि मेरे बेटे ने कहा था जरूर जाकर वोट देना पर मैं नहीं दे सकी. मुझे बहुत अफसोस हो रहा है कि जो बेटा मेरे लिए छत  और 2 वक्त की रोटी की व्यवस्था कर रहा है उसके लिए मैं इतना भी नहीं कर सकी. रीना बताती हैं कि पहले वो समझीं कि उस महिला का बेटा दिल्ली में कोई छोटी मोटी नौकरी करता होगा और वोट करने के लिए फोन किया होगा. पर महिला से थोड़ी और बात करने पर स्पष्ट होता है कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही अपना पुत्र बता रही थी. इस छोटी सी कहानी को बताने का मतलब सिर्फ इतना है कि नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई लाभार्थी स्कीम्स का इन चुनावों में बड़ा प्रभाव रहा है.यहां तक कि इंडिया ब्लॉक की पार्टियों के कोर वोटर्स जिनमें मुस्लिम भी शामिल हैं इन लाभार्थी स्कीम्स के चलते एनडीए को वोट दिया है. देश में एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा बना है जो बड़े पैमाने पर सरकारी योजनाओं की सहायता पर जीवन यापन कर रहा है. करीब 80 करोड़ लोगों को हर व्यक्ति के हिसाब से 5 किलो अनाज दिया जा रहा है. घर और शौचालय के लिए भी धन मिल रहा है. आयुष्मान कार्ड के जरिए मुफ्त इलाज हो रहा है. ऐसे लाभार्थी लोगों की अलग दुनिया है. ऐसा नहीं है कि ऐसी योजनाएं देश में पहली बार लागू हुई हैं. ये योजनाएं पहले भी रही हैं पर उनका क्रियान्यवयन सही तरीके से अब हो रहा है. इसलिए लोगों को ऐसा लग रहा है कि कोई दूसरी सरकार आ गई तो संभव है कि ये योजनाएं बंद हो जाएंगी. 

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2-इंफ्रास्ट्रक्चर पर बहुत काम

भारत के सुदूर गांवों के लोगों को भी इन्फ्राट्रक्चर के डिवेलप होने का लाभ मिल रहा है. सड़के और हाइवे बन रहे हैं तो उसका मुआवजा भी मिल रहा है. देश में एक दौर ऐसा था जब सड़कें और रेलवे की जमीन के लिए सर्वे शुरू होता था तो किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें आ जातीं थीं. कारण यह होता था कि जिस जमीन का अधिग्रहण होता था उसका सरकार की ओर से मुआवजा बेहद कम मिलता था. यही नहीं मुआवजा लेने में पीढ़ीयां गुजर जाती थीं. इसलिए लोग सरकारी बाबूओं को पैसा खिलाकर अपनी जमीन को अधिग्रहण से बचा लेते थे. आज दूसरा दौर है. इतना पैसा मिल रहा है कि लोग खुद चाहते हैं कि उनका घर या जमीन अधिग्रहीत एरिया में आए जाए तो उनका जीवन सुधर जाए. इसके लिए लोग पैसे खर्च करने को भी तैयार हो जाते हैं.

3-राम मंदिर पर विपक्ष का नकारात्मक रुख

उत्तर भारत ही नहीं दक्षिण भारत में भी राम मंदिर की लहर थी पर वो दिख नहीं रही थी. क्योंकि मंजिल मिल जाने के बाद सिर्फ संतुष्टि भाव रह जाता है. पर ये संतुष्टि भाव कई और कमियों की ओर देखने नहीं देता. शायद यही कारण रहा कि महंगाई-बेरोजगारी जैसे मुद्दों से लोग परेशान होने के बावजूद सरकार से संतुष्ट दिखे. राम मंदिर बन जाना महत्वपूर्ण नहीं था . महत्वपूर्ण ये हो गया था कि किस तरह विपक्ष उसे नजरअंदाज कर रहा है. जनता को मंदिर बनने से जितनी खुशी नहीं थी उससे अधिक इस बात का दुख था कि कुछ नेता राममंदिर से जानबूझकर दूरी बना रहे हैं क्योंकि उन्हें डर लगता है कि कुछ लोगों का वोट उन्हें नहीं मिलेगा. अगर अखिलेश यादव, राहुल गांधी, ममता बनर्जी, तेजस्वी यादव आदि ने राम मंदिर पर अपने रुख को सकारात्मक रखा होता तो राम मंदिर का श्रेय बीजेपी लेकर भी लोगों के वोट नहीं ले पाती.

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4-हर दल के लोगों को तोड़ने का माइक्रो लेवल पर काम

भारतीय जनता पार्टी हर लेवल पर बहुत सूक्षम स्तर पर काम कर रही थी. बूथ और पन्ना प्रमुखों को जिस तरह की ट्रेनिंग और जिम्मेदारी दी गई थी वो किसी भी पार्टी में नहीं देखी गई. समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता जिस तरह का उत्साह यूपी में दिखा रहे थे वह उत्साह कब उन्माद में बदल जा रहा था यह पार्टी खुद ही नहीं समझ पा रही थी. पर बीजेपी के कार्यकर्ताओं इस तरह ट्रेंड किए गए थे कि कहीं से भी शिकायत का मौका नहीं मिला. विपक्ष कई जगहों पर अपने कोर वोटर्स को भी मतदान नहीं करा सका.
इसी तरह बीजेपी ने बहुत बड़े लेवल से बहुत छोटे लेवल तक के नेताओं को पार्टी में शामिल करने के लिए काम कर रही थी. कांग्रेस को ही लीजिए केरल जैसे राज्य से जहां अभी बीजेपी का कोई अस्तित्व नहीं था वहां भी कद्दावर कांग्रेसी एके एंटनी के बेटे को बीजेपी में शामिल कराकर पार्टी ने चुनाव लड़वा दिया. महाराष्ट्र , गुजरात ,बिहार, यूपी, हिमाचल, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में कई पार्टियां नेताओं से खाली हो गईं. यूपी में अंतिम चरण के चुनाव के महज 2 से 3 दिन पहले समाजवादी पार्टी से नारद राय को बीजेपी में शामिल करा लिया गया. अखिलेश यादव के कितने करीबी लोग बीजेपी में आ गए वो हैरान करने वाला ही है. मनोज पांडेय , राकेश सिंह, पूजा पाल वगैरह बीजेपी यूं ही नहीं आ गए. इसके लिए माइक्रो लेवल पर प्लानिंग हुई. पूरे देश मेंकांग्रेस-समाजवादी पार्टी-आम आदमी पार्टी ही नहीं हर दल के लोगों को पार्टी शामिल करके सामने वाले को कमजोर किया गया.

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5-मोदी-शाह और योगी की हिंदू हृदय सम्राट वाली तिकड़ी

मोदी -शाह और योगी की तिकड़ी ने जिस तरह चुनाव सभाएं और रैलियां की हैं वह अपने आप में एक मिसाल है. 12 अप्रैल तक जब विपक्ष (तेजस्वी को छोड़कर) अभी योजनाएं बना रहा था बीजेपी ने ताबड़तोड़ रैलियां और सभाएं करनी शुरू कर दी थी. यूपी में तो पहले चरण के चुनाव तक साथ चुनाव लड़ रही समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की संयुक्त रैली तक नहीं हुई थी. बाद में भी मुट्ठी भर रैलियां ही संयुक्त रूप से हो सकीं.इसके विपरीत मोदी-शाह और योगी ने मिलकर रिकॉर्ड बना डाला. नरेंद्र मोदी ने कुल 206 रैलियां और सभाएं की हैं ,अमित शाह ने 188, राजनाथ सिंह ने 101, नड्डा ने 134 तो योगी ने पीएम से केवल 2 कम 204 रैलियां की हैं.इसके मुकाबले कांग्रेस की ओर से मल्लिकार्जुन खरेग, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने कुल मिलाकर 315 रैलियां ही किए. अखिलेश ने तो सबसे कम 81 रैलियां की जबकि उत्तर प्रदेश के मुकाबले छोटे राज्य बिहार में तेजस्वी ने 251 रैलियां करके विपक्ष और सत्ता पक्ष की ओर से सबसे अधिक मेहनत करने वाले नेता का खिताब अपने नाम कर लिया. मोदी, शाह और योगी ने अपनी रैलियों में बड़ी खूबी से हिंदू हितों का ख्‍याल रखा. और यही सब पार्टी के वोटरों को मतदान केंद्र तक लाने में सफल भी रहा.

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