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Ghosi bypoll results: घोसी में बीजेपी प्रत्याशी दारा सिंह चौहान की बुरी हार के ये हैं 7 कारण

घोसी उपचुनाव नतीजे (Ghosi bypoll results) पर पूरे देश की नजरें लगी हुईं थीं. इसे इंडिया बना एनडीए के महासमर का सेमीफाइनल माना जा रहा था. 33 राउंड की गिनती पूरी होने के साथ दूध का दूध और पानी का पानी हो गया. समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सुधाकर सिंह ने 42759 वोटों से भाजपा उम्‍मीदवार दारा सिंह चौहान को मात दे दी. तो जानिये बीजेपी की यहां इतनी बुरी हार क्यों हुई...

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क्या घोसी चुनाव हार रही है बीजेपी
क्या घोसी चुनाव हार रही है बीजेपी

Bypoll election results को लेकर देश में सबसे ज्यादा दिलचस्पी घोसी विधानसभा के उपचुनाव को लेकर थी. जहां से भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान बुरी तरह चुनाव हार गए. 33 राउंड की निर्णायक गिनती के बाद समाजवादी पार्टी के प्रत्‍याशी सुधाकर सिंह को 1,24,427 वोट मिले, जबकि भाजपा उम्मीदवार दारा सिंह चौहान 81,668 वोटों तक ही सिमट कर रह गए. कुलमिलाकर सपा ने यहां भाजपा के मुकाबले 42759 वोटों से जीत दर्ज की. 2022 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर घोसी से विधायक बने दारासिंह चौहान अभी कुछ दिन पहले ही फिर से भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी. पहले ऐसी चर्चा थी कि वह चुनाव से पहले मंत्री बनाए जाएंगे पर ऐसा नहीं हुआ. अपनी जीती हुई सीट पर ही दारा सिंह के परास्त हो जाने के क्या कारण रहे, आइये जानते हैं.

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1-दल बदल की सजा मिली

पहली योगी सरकार में दारा सिंह कैबिनेट मंत्री थे और उनके पास वन एवं पर्यावरण जैसा महत्वपूर्ण विभाग था. लेकिन 2022 में हुए विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दारा सिंह चौहान पार्टी छोड़कर समाजवादी पार्टी में चले गए.समाजवादी पार्टी की सरकार न बनने से निराश दारासिंह फिर बीजेपी में आ गए.आने के कुछ ही दिन बाद उन्हें बीजेपी ने घोसी से टिकट दे दिया. दरअसल यह सब इतनी जल्दी में हुआ कि दारासिंह के समर्थक आम जनता को यह पता ही नहीं चल पाया कि कब वह समाजवादी पार्टी से बीजेपी में आ गए. घोसी के निवासी आरपी राय कहते हैं कि बीजेपी को उन्हें लोकसभा चुनाव लड़वाना चाहिए. कुछ दिन बीजेपी के झंडा बैनर लगाकर उन्हें क्षेत्र में घूमने फिरने का मौका मिल गया होता.

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2009 में दारा सिंह ने बीएसपी से चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचे.पर 2014 में बसपा के टिकट पर लोकसभा पहुंचने से वंचित रह गए.देश के सियासी तापमान को भांपने में माहिर दारा ने 2015 में भाजपा ज्वाइन कर लिया.2017 के चुनाव में पार्टी ने मधुबन विधानसभा से टिकट दिया और विधायक ही नहीं मंत्री भी बने.2022 में सियासी तापमान भांपने में गलती हो गई. समाजवादी पार्टी से विधायक तो बन गए सरकार न बनने से मंत्री बनने से रह गए.


2-मुख्तार अंसारी और मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण

मुख्तार अंसारी का होम डिस्ट्रिक्ट होने के चलते यहां के मुस्लिम मतदाताओं पर मुख्तार अंसारी परिवार का प्रभाव रहा है.मऊ से मुख़्तार अंसारी पांच बार विधायक रह चुके हैं और अब उनके पुत्र सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से मौजूदा विधायक हैं. इसके चलते मुस्लिम वोट एकमुश्त होकर बीजेपी के खिलाफ जीतने वाले प्रत्याशी को पड़ा है. 2017 के विधानसभा चुनावों में बीएसपी ने अपना कैंडिडेट एक मुस्लिम प्रत्याशी अब्बास अंसारी को खड़ा किया था. जिन्हें करीब 81 हजार वोट मिले थे.इस बार उपचुनाव में मुस्लिम वोट बंटने के चांस ही नहीं थे.क्योंकि किसी भी दल ने मुस्लिम कैंडिडेट उतारा ही नहीं था.समझा जाता है मुस्लिम वोट एकमुश्त समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी सुधाकर सिंह मिले हैं. 

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3-अरविंद शर्मा से नाराजगी

नगर विकास और बिजली जैसे महकमे को संभाल रहे अरविंद शर्मा से नाराजगी भी बीजेपी को वोट न मिलने का कारण बताया जा रहा है. आईएएस से नेता बने अरविंद शर्मा भूमिहार बिरादरी से आते हैं और मऊ जिला ही उनका होम टाउन है. अपनी ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध अरविंद शर्मा इसी के चलते कभी नरेंद्र मोदी के बहुत प्रिय रहे हैं. उन्हीं के आशीर्वाद के चलते अरविंद शर्मा की एंट्री भी राजनीति हुई थी. घोसी के स्थानीय नागरिक आरपी राय कहते हैं कि मंत्री जी तो बहुत ईमानदार हैं पर प्रशासनिक मशीनरी बहुत भ्रष्ट हो गई है. अमिला नगरपालिका की हालत यह है कि पहले ठेकेदारों को कमीशन 25 परसेंट देना होता था वह अब 40 परसेंट हो गया है.महंगाई से त्रस्त किसान के लिए सरकार नहर में पानी तक की व्यवस्था नहीं कर पाई. इसका चुनावों में बहुत प्रभाव पड़ा है.

4-योगी का देरी से चुनावों में उतरना

इस बार के उपचुनाव में अखिलेश यादव एक्टिव रहे तो मुख्यमंत्री योगी ने अंतिम समय में मोर्चा संभाला.इसके पहले उल्टा होता था. बीजेपी की पूरी मशीनरी उपचुनावों में लगी होती थी और अखिलेश यादव नदारद रहते थे. रामपुर और आजमगढ़ हारने के बाद अखिलेश ने इस बार घोसी उपचुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था.अखिलेश ही नहीं उनके चाचा शिवपाल भी क्षेत्र में लगातार डटे रहे.

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5-ठाकुर वोटों का न मिलना

आम तौर पर समझा जाता है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के चलते यूपी के ठाकुर वोट पूरी तरह से बीजेपी की ओर शिफ्ट हो गए हैं. कहा जा रहा है कि घोसी उपचुनावों में स्थानीय फैक्टर चलने चलते ठाकुर वोट बीजेपी को ट्रांसफर नहीं हो सके हैं.दरअसल सुधाकर सिंह लोकल घोसी विधानसभा क्षेत्र के ही रहने वाले हैं जबकि दारासिंह चौहान पड़ोस की मधुबन विधानसभा के रहने वाले हैं. इसके साथ ही गोरखपुर आस-पास के जिलो में यह बात बहुत पहले से ही होती रही है कि योगी आदित्यनाथ दारा सिंह चौहान और ओम प्रकाश राजभर दोनों को पसंद नहीं करते.ऐसी चर्चा आम रही है कि योगी इन दोनों नेताओं की बीजेपी में एंट्री चाहते ही नहीं थे. 

6-बीएसपी कैंडिडेट का न होना

बीएसपी कैंडिडेट का न होना भी समाजवादी पार्टी की बढ़त में सहायक बनी है. दलित वोट अंतिम समय तक कन्फ्यूज रहे कि किसे वोट देना है. चुनावों के अंतिम समय में मायावती का केंद्र सरकार पर हमलावर रवैया भी यह संदेश दे गया कि बीजेपी को वोट देना जरूरी नहीं है.2022 के चुनावों में 21 परसेंट वोट बीएसपी पाने में कामयाब हुई थी जो इस बार आधा भी बंटा हो तो समाजवादी पार्टी की जीत में सहायक बना है.2017 के चुनावों में पार्टी को करीब 81 हजार वोट मिले थे.

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7-इंडिया गठबंधन के दलों का एक साथ होना

घोसी उपचुनावों में समाजवादी पार्टी के पक्ष में कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी नहीं खड़ा किया था. वामपंथियों ने भी अपना समर्थन समाजवादी पार्टी को देने का ऐलान किया था. अपना दल कमेरावादी आदि छोटी पार्टियां भी समाजवादी पार्टी के लिए खुलकर प्रचार कर रही थीं.घोसी उपचुनाव को इंडिया बनाम एनडीए का संघर्ष मान लिया गया था.

कौन हैं  दारा सिंह चौहान?

घोसी उपचुनाव में भाजपा उम्‍मीदवार दारा सिंह चौहान की पहचान एक दबंग नेता की है. वे नौनिया चौहान नामक पिछड़ी जाति से आते हैं. अपने राजनीतिक जीवन में एक दल से दूसरे दल में तेजी से आवाजाही के कारण अब उनकी छवि एक दलबदलू नेता की बन गई है. वे यूपी के लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों का हिस्‍सा रह चुके हैं. कांग्रेस से अपना राजनीतिक सफर शुरू करके वे बहुजन समाज पार्टी से सपा और फिर भाजपा में आए. इसके बीच एक बार फिर भाजपा छोड़ी और उसे दोबारा ज्‍वाइन किया है. करीब साढ़े 4 करोड़ रुपए की संपत्ति के मालिक दारा सिंह चौहान पर कई आपराधिक मुकदमे लंबित हैं. उन पर चोरी, डकैती से जुड़े भी आरोप हैं.

 

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