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गुजरात: क्या मोदी अंदाज से जनता का दिल जीत पाएंगे अरविंद केजरीवाल?

गुजरात चुनाव में आप संयोजक अरविंद केजरीवाल पूरे जोर-शोर से प्रचार में लगे हुए हैं. वे खुद को दोनों बीजेपी और कांग्रेस का विकल्प बता रहे हैं. लेकिन जिस राजनीतिक शैली पर चल वे गुजरात फतेह करना चाहते हैं, वो कहीं ना कहीं 'मोदी अंदाज' से प्रेरित नजर आता है.

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गुजरात चुनाव में आप संयोजक अरविंद केजरीवाल की रणनीति
गुजरात चुनाव में आप संयोजक अरविंद केजरीवाल की रणनीति

गुजरात विधानसभा चुनाव में इस बार मुकाबला त्रिकोणीय होता दिख रहा है. बीजेपी बनाम कांग्रेस की सीधी फाइट में इस बार आम आदमी पार्टी ने भी एंट्री मार दी है. AAP के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लगातार राज्य में प्रचार कर रहे हैं. उनके रोड शो और रैलियों में भीड़ भी दिख रही है. अपने चिर परिचित अंदाज में जनता से सीधा संवाद स्थापित कर केजरीवाल आप के लिए वोट मांग रहे हैं. उनका ये अंदाज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस शैली से भी काफी मेल खाता है जहां पर जनता के सामने जोरदार भाषण से ज्यादा जोर बातचीत कर अपना संदेश पहुंचाने पर होता है. सवाल-जवाब के जरिए ही लोगों को अपने पाले में लाने की कोशिश होती है.

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मोदी केंद्रित राजनीति बनाम केजरीवाल केंद्रित

10 साल पहले की बात है. गुजरात विधानसभा चुनाव का प्रचार जोरों पर था. राज्य के उस समय के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता कायम रखने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे थे. एक रैली में उन्होंने कहा कि आप सभी साल में एक बार तो छुट्टी लेते ही हैं, मैं तो 6 करोड़ गुजरातियों का मजदूर हूं जिसने पिछले 12 साल में एक बार भी छुट्टी नहीं ली. मैंने सिर्फ गुजरात-गुजरात का राग अलापा है. एक बात और बताइए, क्या आप अपने घर की चाभी किसी अनजान को देकर कहीं जाते हैं? मुझे तो आपने 12 साल में कई बार टेस्ट कर लिया है. किसी और को चाभी देने की गलती मत करना.

इसी तरह 2022 के चुनावी रण में प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात की जनता के सामने संदेश दिया कि आपका एक-एक वोट मुझे मजबूत करने का काम करेगा. वोट सीधे मुझे मिलेगा. ये पीएम मोदी का स्टाइल है. अब अरविंद केजरीवाल पर आते हैं. जूनागढ़ में एक जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मेरा आप सभी से एक अनुरोध है. आपने बीजेपी को 27 साल दिए हैं, मुझे पांच साल दें. अगर काम नहीं करूंगा तो अगली बार वोट भी नहीं मांगूगा. मेरे पास चुनाव लड़ने के पैसे नहीं हैं. सात साल से दिल्ली का मुख्यमंत्री हूं, लेकिन एक पैसा नहीं कमाया है. मैं तो एक शिक्षित, ईमानदार आदमी हूं जिसे बस स्कूल-अस्पताल बनाना आता है.

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अरविंद केजरीवाल गुजरात की धरती से 'अपने' लिए वोट मांग रहे हैं. ये एक सोचा-समझा प्रयोग है जहां पर पार्टी से बड़ा चेहरा हो जाता है और उसी के इर्द-गिर्द सारी राजनीति होती है. इसी वजह से केजरीवाल अपने लिए एक मौका मांग रहे हैं, वे जनता को वादा कर रहे हैं. कहने को दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन संबोधन इस प्रकार से दिया जा रहा है कि गुजरात की कमान भी वे ही संभालने वाले हैं. ये वो रणनीति है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली में भी हर बार देखने को मिल जाती है. चुनावी मौसम में बीजेपी का मतलब ही नरेंद्र मोदी होता है और नरेंद्र मोदी का मतलब बीजेपी. अब उसी दिशा में अरविंद केजरीवाल भी आगे बढ़ गए हैं, आम आदमी पार्टी में उनसे बड़ा कोई दूसरा चेहरा नहीं है. हर चुनाव उन्हीं के चेहरे पर लड़ा जाता है, सीएम फेस कोई भी हो, वोट केजरीवाल के लिए मांगे जाते हैं.

मोदी Vs ऑल के बाद केजरीवाल Vs ऑल

इसी रणनीति का दूसरा पहलू है विक्टिम कार्ड. ऐसा दिखाना कि हर कोई एक शख्स के खिलाफ साजिश रच रहा है. उसे हराने के लिए सभी साथ आ रहे हैं. इस प्रकार का नेरेटिव पीएम मोदी ने कई मौकों पर सेट किया है. अरविंद केजरीवाल भी ऐसा ही करते दिख जाते हैं. 2007 के गुजरात विधानसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने तब के सीएम नरेंद्र मोदी को 'मौत का सौदागर' बता दिया था. उस समय मोदी ने बिना समय गंवाए नेरेटिव ये सेट किया कि बाहरी लोग उन्हें बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने अपनी अस्मिता को गुजरात की अस्मिता से जोड़ दिया था. अब गुजरात चुनाव के लिए अरविंद केजरीवाल का प्रचार देखिए. ऐसी कोई रैली नहीं जहां उन्होंने ये ना कहा हो हर कोई मुझे गाली दे रहा है. बीजेपी वाले मुझे गाली दे रहे हैं, कांग्रेस वाले मुझे गाली दे रहे हैं. संदेश दिया जा रहा है कि एक तरफ अरविंद केजरीवाल अकेले खड़े हैं और दूसरी तरफ हर कोई उनके खिलाफ एकजुट हो रहा है.

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पिछले महीने की बात है जब वडोदरा में अरविंद केजरीवाल ने टाउन हॉल बैठक को संबोधित किया था. वहां पर उन्होंने बीजेपी और कांग्रेस दोनों को आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि जब राहुल गांधी गुजरात आते हैं, बीजेपी के समर्थक कभी भी उनके खिलाफ नारेबाजी नहीं करते. ऐसा इसलिए है क्योंकि ये दोनों ही पार्टियां मेरे खिलाफ एकजुट हो रही हैं. ये सिर्फ केजरीवाल के खिलाफ नारे लगाते हैं. भर-भर कर मुझे गालियां देते हैं.

अगर थोड़ा पीछे चला जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तेलंगाना की धरती से कुछ इसी अंदाज में विपक्ष पर निशाना साधा था. उन्होंने कहा था कि मैं रोज दो किलो, ढाई किलो, तीन किलो गाली खाता हूं. परमात्मा ने मेरे भीतर ऐसी रचना कर दी है कि ये सारी गालियां मेरे अंदर प्रोसेस होकर न्यूट्रीशन में कंवर्ट हो जाती है. इससे सकारात्मक ऊर्जा बन जाती है जो कि जनता की सेवा में काम आती है. 

मंदिर पर्यटन...पीएम मोदी की राह पर केजरीवाल

वैसे हिंदुत्व के मुद्दे पर भी अरविंद केजरीवाल ने जो राह पकड़ी है, उसमें पीएम मोदी की छवि साफ दिख जाती है. चुनावी प्रचार के दौरान मंदिर जाना, धार्मिक गतिविधियों में सक्रिय हो जाना, पीएम मोदी लंबे समय से इस परंपरा का पालन कर रहे हैं. उनके इन दौरों के सियासी मायने कई निकाले जाते हैं. फिर चाहे उनका गुजरात में सोमनाथ जाना हो या फिर वाराणसी में काशी विश्वनाथ. अब आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी इस अंदाज को पकड़ लिया है. जब अरविंद केजरीवाल ने गुजरात में चुनावी प्रचार की शुरुआत की थी, उन्होंने सबसे पहले द्वारकाधीश मंदिर के दर्शन किए थे. इसके बाद सूरत में उन्होंने गणेश पंडाल जाकर आरती में भी हिस्सा लिया. इसके अलावा गुजरात की ही धरती से केजरीवाल वादा कर चुके हैं कि राज्य में आप सरकार बनने पर इच्छुक लोगों की अयोध्या यात्रा का पूरा खर्च वहन किया जाएगा.

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मोदी का गुजरात मॉडल, केजरीवाल के पास दिल्ली मॉडल

इस समय जिस तरह से अरविंद केजरीवाल गुजरात में अपना दिल्ली मॉडल बेच रहे हैं, प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में ही गुजरात मॉडल के जरिए लोगों को विकास के नए सपने दिखाना शुरू कर दिया था. अरविंद केजरीवाल का दिल्ली मॉडल तो पंजाब और अब गुजरात चुनाव में सक्रिय हुआ है, पीएम मोदी ने 2014 के बाद से इस गुजरात मॉडल को ही अपनी सियासत का सबसे बड़ा हथियार बनाया है. उनकी विकास वाली राजनीति का आधार ये गुजरात मॉडल रहा है. अब अरविंद केजरीवाल भी अपने विकास वाले एजेंडे को दिल्ली मॉडल के जरिए आगे बढ़ा रहे हैं. अच्छी स्कूली शिक्षा, बेहतर अस्पताल और मुफ्त बिजली जैसे वादों को उन्होंने अपनी राजनीति का हिस्सा बना लिया है.

केजरीवाल के लिए चुनौती बड़ी?

'मोदी अंदाज' के जरिए अरविंद केजरीवाल गुजरात में अपनी सियासी जमीन तलाशने में जुटे हैं, लेकिन पीएम मोदी के गृह राज्य में उन्हें चुनौती देना आसान नहीं रहने वाला है. बीजेपी तो पहले ही साफ कर चुकी है कि उनका एक बार फिर पूरा चुनावी प्रचार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द रहने वाला है. ऐसे में आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल का मुकाबला बीजेपी से ज्यादा पीएम मोदी की लोकप्रियता से है. अरविंद केजरीवाल को उस 'गुजराती अस्मिता' वाले दांव की भी काट ढूंढनी पड़ेगी जिसे पीएम मोदी हर बार गुजरात चुनाव के दौरान हवा देते हैं और जनता के साथ भावनात्मक रिश्ता बना लेते हैं.

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