हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव प्रचार अपने अंतिम चरण में है. केवल दो दिन और चुनाव प्रचार हो सकता है. इस अंतिम हफ्ते में सभी पार्टियां ताबड़तोड़ चुनाव प्रचार कर रही हैं. दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जिस दिन तिहाड़ से बाहर निकल कर आए ऐसा लगा कि हरियाणा चुनावों की दिशा बदल देंगे. उन्होंने बार-बार यह भी कहा कि हरियाणा में किसी की सरकार बने पर आम आदमी पार्टी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होगी. पर पिछले 5 दिन की आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल की गतिविधियां बताती हैं कि उन्होंने विधानसभा चुनावों में अपनी भूमिका और इरादों में कुछ बदलाव कर लिया है.
1- अरविंद केजरीवाल के मुकाबले आम आदमी पार्टी के दूसरे नेता ज्यादा एक्टिव
देश की मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक पर छा जाने वाले अरविंद केजरीवाल हरियाणा विधानसभा चुनावों के अंतिम चरण में अपनी सक्रियता शायद कुछ कम कर दी है. पिछले पांच दिनों में अरविंद केजरीवाल नेशनल मीडिया में नहीं दिख रहे हैं. उन्होंने इस बीच हरियाणा के बल्लभगढ़ , असंध और रेवाड़ी में रोड शो भी किया पर अपनी चिर परिचित शैली में वो नहीं दिखे. शायद यही कारण रहा कि उन्होंने मीडिया ने भी तवज्जों नहीं दिया.अन्यथा केजरीवाल विपक्ष के उन खास चेहरों में हैं जिन्हें कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बराबर महत्न मिलता है. दरअसल केजरीवाल ने शायद अपने प्रतिक्रियावादी टाइप के स्पीच से मीडिया को मरहूम रखा. वो कांग्रेस के खिलाफ कुछ बोलते नहीं. इस बीच उन्होंने लगातार अपनी पार्टी की सरकारों की उपलब्धियों पर ही चर्चा की. शायद इस कारण केजरीवाल की रैलियों और रोडशो की चर्चा न नेशनल मीडिया में हुई और न ही सोशल मीडिया पर . वैसे भी प्रचार के अंतिम समय में अरविंद से ज्यादा रैलियां और रोड शो में उनके मुकाबले उनके सहयोगी ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं. जैसे बीजेपी में सबसे ज्यादा रैलियां और सभाएं नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ करते हैं. यही हाल कांग्रेस में भी है. राहुल और प्रियंका स्टार प्रचारकों में सबसे ऊपर रहते हैं. पर हरियाणा में आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल से ज्यादा उनके पूर्व डिप्टी मनीष सिसौदिया अधिक दिखाई दे रहे हैं. कुल मिलाकर क्लीयर दिख रहा है कि आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के खिलाफ फ्रेंडली मैच खेल रहे हैं.
2-हरियाणा के लाल को उनके जन्मस्थान में भी लोग ढूंड रहे
इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अरविंद केजरीवाल के पैतृक गांव में भी लोग उन्हे ढूंढ रहे हैं, ऐन चुनाव के मौके पर भी उनकी अनुपस्थिति की चर्चा कर रहे हैं. हरियाणा के भिवानी जिले के सिवनी में अनाज मंडी के पास एक बड़े कार्गो अनलोडिंग ग्राउंड के कोने पर एक मंजिला सफेद मकान में अरविंद केजरीवाल का बचपन बीता था. उनकी अपनी शुरूआती पढ़ाई भी यहीं के स्कूल में हुई थी.हरियाणा में 5 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, और केजरीवाल के बचपन के घर के आसपास की गलियों में चुनावों की चर्चाओं कई स्थानीय निवासी AAP प्रमुख की अनुपस्थिति की बात कर रहे हैं. एक्सप्रेस लिखता है कि केजरीवाल का सुनसान बचपन का घर राज्य में AAP की चुनावी स्थिति का प्रतीक बन गया है.
पिछले बुधवार को भिवानी में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए केजरीवाल ने अपनी जड़ों का जिक्र किया. उन्होंने कहा था कि आप किसी भी हरियाणवी को तोड़ नहीं सकते. यह बात उन्होंने दिल्ली शराब नीति मामले में अपनी गिरफ्तारी का हवाला देते हुए कही थी.उनकी पत्नी भी अरविंद केजरीवाल के जेल में रहने के दौरान लगातार हरियाणा में रैलियां कर रही थी. उन रैलियों में केजरीवाल को हरियाणा का लाल ही कहकर संबोधित करती थीं. पर हरियाणा के इस लाल के जन्मस्थान पर ही आम आदमी पार्टी चुनाव परिदृश्य से गायब है.
3-क्या कांग्रेस की जीत के लिए सुरक्षित रास्ता दे रहे हैं केजरीवाल
तिहाड़ जेल से निकलने के बाद हरियाणा चुनाव को लेकर अरविंद केजरीवाल ने जो उत्साह दिखाया था उसकी तुलना आज से करने पर लगता है कि आम आदमी पार्टी ने अपनी रणनीति बदल ली है.पिछले हफ्ते जिस तरह अरविंद केजरीवाल ने हरियाणा की कुछ खास सीटों पर ही अपनी उपस्थिति दिखाई है उससे तो यही लगता है कि केजरीवाल समझ गए हैं कि हरियाणा में उनकी नहीं चलने वाली है. साफ दिख रहा है कि वो अपने आपको खर्च करने के बजाय वो अपने को बचा कर रखना चाहते हैं. हालांकि आम आदमी पार्टी का वोट परसेंटेज ठीक ठाक रहे इसलिए उनके सहयोगी जमकर मेहनत कर रहे हैं.मगर ये मेहनत भी कुल 89 प्रत्याशियों के लिए नहीं हो रही है. कुछ ऐसी सीटों पर ही ये मेहनत हो रही है जहां आम आदमी पार्टी को कुछ उम्मीद है. जिन सीटों पर आम आदमी पार्टी के कैंडिडेट ठीक ठाक स्थिति में हैं पर कांग्रेस मजबूत है वहां भी अरविंद केजरीवाल ने रैली या रोडशो नहीं किया है. दरअसल अरविंद केजरीवाल को भविष्य में आगे बढ़ना है तो कांग्रेस के सहारे की जरूरत होगी. राजनीतिक विश्लेषकर सौरभा दुबे कहते हैं कि दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए भी आम आदमी पार्टी को कांग्रेस के सहारे की जरूरत होगी. अभी दिल्ली में जो स्थिति है उसमें अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी की नैय्या 2025 के विधानसभा चुनावों में बिना कांग्रेस के सहयोग के पार नहीं लगा पाएंगे.