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मुसलमानों के बीच हिंदू सुरक्षित नहीं हैं, योगी आदित्‍यनाथ के बयान में कितनी सच्चाई है?

मुस्लिम बहुसंख्‍यकों के बीच हिंदू या अन्‍य संप्रदायों की असुरक्षा का हवाला देते हुए जब योगी आदित्यनाथ बांग्‍लादेश, पाकिस्‍तान और अफगानिस्‍तान का उदाहरण देते हैं तो उनकी बात गलत नजर नहीं आती. भारत के कई शहरों में भी जहां मुस्लिम आबादी बढ़ती गई, वहां से हिंदू आबादी पलायन करती गई. संभल उनमें से एक है.

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योगी आदित्यनाथ (फाइल फोटो)
योगी आदित्यनाथ (फाइल फोटो)

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ कहते हैं कि सौ हिंदू परिवारों के बीच यदि एक मुस्लिम परिवार रहता है, तो वह सबसे सुरक्षित है. अपने सभी धार्मिक क्रियाकलाप कर सकता है. लेकिन सौ मुस्लिम परिवारों के बीच एक तो छोडि़ये, 50 हिंदू परिवार भी सुरक्षित नहीं हैं. योगी इसके लिए बांग्‍लादेश, पाकिस्‍तान का उदाहरण देते हैं. न्‍यूज एजेंसी ANI के एक इंटरव्यू में दिए गए योगी के इस बयान पर बवाल मचा हुआ है. समाजवादी पार्टी के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तंज कसते हैं कि लगता है कि योगी की कुर्सी पर संकट आ गया है. यादव कहते हैं कि जब-जब ऐसा संकट आता है, योगी इस तरह की बयानबाजी करते नजर आते हैं. पर योगी ने जो बात कही है उस तरह की बातें नेता बंद कमरे में तो करते हैं पर सार्वजनिक तौर पर इस तरह का बयान देने से बचते हैं. यहां तक कि बीजेपी नेता भी इस तरह की बात इतनी साफगोई के साथ नहीं कर पाते हैं. सवाल उठता है कि योगी आदित्यनाथ की इस बात में कितना दम है? क्या वास्तव में हिंदुओं की सुरक्षा मुस्लिम बहुल इलाके में खतरे में हैं?

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संभल में अतीत में हुए संघर्ष और हिंदुओं के पलायन को लेकर योगी आदित्‍यनाथ काफी कुछ कहते हैं

दरअसल योगी आदित्यनाथ आजकल हर मंच से संभल की घटना का जिक्र करते हैं.योगी ने कुछ दिनों पहल विधानसभा और विधानपरिषद में बोलते हुए संभल के मुद्दे पर जमकर विपक्ष को घेरा था. योगी ने संभल में हुए 1947 से के बाद से हुए सारे दंगों का जिक्र विस्तार से किया था. सीएम ने विधानसभा में बताया था कि 1947 में एक मौत, 1948 में छह लोग मारे जाते हैं.

1958-1962 में दंगा, 1976 में पांच लोगों की मौत हुई थी. 1978 में 184 हिंदुओं को सामूहिक रूप से जला दिया गया था. 1980-1982 में दंगा और एक-एक की मौत हुई. 1986 में चार लोग मारे गए. 1990-1992 में पांच, 1996 में दो मौत हुई. लगातार यह सिलसिला चलता रहा. सीएम ने कहा कि 1947 से अब तक संभल में 209 हिंदुओं की हत्या हुई.1978 में जो दंगा हुआ, एक हिंदू बिजनेसमैन ने बहुत से मुसलमानों को पैसा उधार दे रखा था.

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दंगा होने के बाद हिंदू उनके घर में एकत्र होते हैं, उन्हें घेर लिया जाता है और उनसे कहा जाता है कि इन हाथों से पैसा मांगोगे, इसलिए पहले हाथ, फिर पैर, फिर गला काट दिया जाता है. सीएम ने कहा कि बजरंग बली का जो मंदिर आज सामने नजर आ रहा है, 1978 से उस मंदिर को इन लोगों ने खुलने नहीं दिया. 22 कुएं किसने बंद किए थे.

इस बीच संभल में 46 साल से बंद पड़े मंदिर में पूजा अर्चना शुरू हो गई है.तीस कुएं जो दबा दिए गए थे उनकी भी खुदाई हो रही है. दरअसल संभल की पूरी कहानी हिंदुओं के अल्पसंख्यक होने की कहानी है. ज्यों-ज्यों इस शहर से हिंदुओं की संख्या कम होती गई हिंदुओं के मंदिरों-कुओं आदि ढंकते गए. दंगे भी बढ़ते गए. संभल में कितने ऐसे मुहल्ले हैं जिनके नाम हिंदू हैं पर अब वहां एक भी हिंदू नहीं रहता है.

बांग्‍लादेश और पाकिस्‍तान में हिंदुओं, ईसाइयों के साथ हुई बर्बरता तो ताजा जख्‍म है

भारतीय उपमहाद्वीप का उदाहरण है कि जहां भी हिंदू अल्पसंख्यक होते गए वहां उन पर अत्याचार बढ़ता ही गया है. पाकिस्तान और बांग्लादेश कभी इतिहास में हिंदू बहुल ही हुआ करता था. पर आज वहां हिंदू नाम मात्र के रह गए हैं. पाकिस्तान में आजकल एक नया कल्चर देखने को मिल रहा है. वहां के लोग अपने बारे में बताते हैं कि मेरे पूर्वज हिंदू थे. वो अपने दादा -परदादा और 4 से 5 पीढ़ियों पहले के लोगों के हिंदू नाम बताकर गर्व महसूस करते हैं. पर ठीक इसके उलट लगातार जो हिंदू पाकिस्तान में बचे हुए हैं उन पर अत्याचार की खबरें आती रहती हैं. 

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बांग्लादेश में अभी हाल ही जो हुआ वो हम सबने सोशल मीडिया के माध्यम से देखा ही है. लगातार वहां पर हिंदुओं का उत्पीड़न हो रहा है. शेख हसीना की सरकार के अपदस्थ होने के बाद से वहां हर रोज इस्लामी चरमपंथी हिंदुओं को अपने नफरत का शिकार बना रहे हैं.
बांग्लादेश की आबादी में भी पाकिस्तान की तरह लगातार हिंदुओं का रेशियो घट रहा है. अफगानिस्‍तान में हमने देखा ही कि किस तरह सिखों को गुरुग्रंथ साहब लेकर भागना पड़ा.

भारत का मुस्लिम समुदाय गाजा में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ लगातार आवाज उठाता रहा है. रैलियां निकाली जाती हैं. देश के तमाम हिंदू भी उनके सपोर्ट में खुलकर सामने आते हैं. पर बांग्लादेश में हो रहे हिंदुओं पर अत्याचार के विरोध में कभी मुस्लिम समुदाय सामने नहीं आता है. कुछ मुट्ठी भर मुसलमान सामने आते हैं तो उन्हें अपने समाज से कट जाने का खतरा सताने लगता है. 

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