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स्वामी प्रसाद मौर्य और बर्क को साथ रखकर अखिलेश यादव कैसे दे पाएंगे मोदी को चुनौती?

समाजवादी पार्टी में शफीकुर्रहमान बर्क और स्वामी प्रसाद मौर्य के बड़बोलेपन पर कोई रोक-टोक नहीं है. अखिलेश यादव की दुविधा का फायदा ये दोनों नेता उठा रहे हैं, और अखिलेश इन्हें रोक भी नहीं पा रहे हैं या जानबूझकर ऐसा खेल रहे हैं ताकि सबको खुश रख सकें?

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अखिलेश यादव क्यों नही रोक पा रहे स्वामी प्रसाद मौर्य और शफीकुर्रहमान बर्क को
अखिलेश यादव क्यों नही रोक पा रहे स्वामी प्रसाद मौर्य और शफीकुर्रहमान बर्क को

यूपी के पूर्व सीएम और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव देश के एक मात्र ऐसे नेता हैं जिनके पास उत्तर प्रदेश में करीब 30 परसेंट (19 परसेंट मुस्लिम और 11 परसेंट यादव) का एकमुश्त वोट बैंक है. इतना बड़ा वोट बेस तो बीजेपी के पास भी नहीं है. फिर भी 2014 के बाद से ही चुनावी सफलता उनसे रूठ गई है. अपने पिता मुलायम सिंह यादव के रहते उन्होंने जो सफलता अर्जित कर ली केवल वही उनके खाते में आज तक है. जब से उन्होंने पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली तब से लगता है कि उन्होंने स्थाई रूप से विपक्ष का नेता बनने का प्रण ले लिया है.

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दरअसल अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश की राजनीति में अब तक केवल प्रयोग पर प्रयोग करते रहे हैं. हर बार चुनावी हार के साथ वो कुछ संकल्प लेते हैं और इसके बाद एक और गलती कर लेते हैं. 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए एक बार फिर वो बहुत बड़ी गलती करते दिख रहे हैं.आइये देखते हैं कि इस बार वो कौन सी गलती कर रहे हैं जिसकी उन्हें बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है.

बर्क और स्वामी प्रसाद के बेलगाम बोल

दरअसल 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए अखिलेश यादव का सारा फोकस मुस्लिम वोट्स और पिछड़ों के वोटों पर है. इसके लिए वो आए दिन अपने भाषणों में पीडीए का जिक्र करते हैं. अखिलेश का मतलब पिछड़ा-दलित और अल्पसंख्यक को लेकर होता है. यूपी में अभी तक अल्पसंख्यकों को लेकर उनका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं रहा है. पर यूपी में कांग्रेस बहुत बड़े प्रतिस्पर्धी के रूप में उभर रही है.हालांकि अखिलेश यादव की कोशिश होगी कि इंडिया गठबंधन के साथ चुनाव लडे़. अगर ऐसा होता है तो अखिलेश के लिए कोई चिंता की बात नहीं है पर अगर ऐसा नहीं होता है तो बड़ी मुश्किल होने वाली है. शायद यही सोचकर अखिलेश अपनी पार्टी में शफीकुर्रहमान बर्क जैसे सांसद के बड़बोलेपन को झेल रहे हैं. ऐसे समय में जब अखिलेश राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रण की बाट जोह रहे हैं, बर्क कह रहे हैं कि समारोह के दिन वो बाबरी मस्जिद को फिर से पाने के लिए दुआ कर रहे होंगे. दूसरी ओर स्वामी प्रसाद मौर्य भी लगातार उनके लिए कांटे तैयार कर रहे हैं. अखिलेश यादव एक तरफ ब्राह्मणों के सम्मेलन में स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे लोगों पर अंकुश लगाने का वादा कर रहे हैं तो दूसरी ओर मौर्य हिंदू धर्म को ही धोखा बता रहे हैं. 

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अखिलेश दुविधा में हैं या खेल रहे हैं

शफीकुर्रहमान बर्क और स्वामी प्रसाद मौर्य के बयानों को सुनकर क्या लगता है? इन बयानों का मतलब अलग-अलग विश्वेषक अलग अलग निकालते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि अखिलेश दुविधा में हैं. वो सॉफ्ट हिंदुत्व और अपने पिता के तरह की कट्टर मुस्लिम समर्थक के इमेज में से किसी एक को चुन नहीं पा रहे हैं. कभी उन्हें लगता है कि आज की राजनीति में मुस्लिम समर्थक छवि के साथ वोट पाना मुश्किल हो जाएगा. कभी उन्हें लगता है कि मुस्लिम उनका ऐसा वोट बैंक है जिसके बदौलत पार्टी आज खड़ी है इसलिए बर्के जैसे लोगों पर नियंत्रण करने के लिए वो सख्त नहीं हो पाते हैं.

यही हाल ओबीसी वोटर्स को लेकर है. स्वामी प्रसाद मौर्य को खुली छूट देने के पीछे यही कहानी है.अभी तक समाजवादी पार्टी की छवि यादव डॉमिनेंट वाली रही है. अखिलेश चाहते हैं कि पार्टी की छवि ओबीसी डॉमिनेंस वाली हो. पर उत्तर प्रदेश में जब भी यादवों पर अत्याचार होता है अखिलेश वहां हाजिर हो जाते हैं पर अगर अति पिछड़ों के लिए उनके पाल टाइम नहीं होता है. स्वामी प्रसाद मौर्य रामचरित मानस जलाते हैं, अखिलेश यादव यूपी से लेकर एमपी तक मंदिरों के चक्कर लगाते हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य लक्ष्मी पूजा को नाटक करार देते हैं अखिलेश सभी देवताओं को पूजते नजर आते हैं. ये समझना मुश्किल हो जाता है कि अखिलेश दो नावों पर सवार होकर खेल रहे हैं या भ्रम की स्थिति में हैं कि किस नाव से पैर उतारूं? फिलहाल दोनों ही स्थिति समाजवादी पार्टी के लिए ठीक नहीं है. कहा गया है कि दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम.

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स्वामी प्रसाद मौर्य अब अखिलेश को इस्तेमाल कर रहे

दरअसल स्वामी प्रसाद मौर्य के बारे में कहा जा रहा है कि उनका राजनीतिक आधार खत्म हो चुका है. मौर्य समाजवादी पार्टी के टिकट पर खुद की सीट नहीं बचा सके. यही कारण है कि उन्होंने अपनी बेटी से कभी बीजेपी छोड़ने के लिए नहीं कहा.संघमित्रा हमेशा पब्लिकली पीएम मोदी की तारीफ करती रहती हैं. संघमित्रा को पता है कि उनके पिता उन्हें दुबार सांसद नहीं बना सकेंगे. बीजेपी में रह गई तो हो सकता है कि एक बार सांसद बनने का मौका मिल जाए.

दूसरी बात ये है कि उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियां सवर्णों से नाराज होकर जरूर बीजेपी के खिलाफ वोट कर सकती हैं पर हिंदू धर्म को और देवी देवताओं को गाली देने वालों के साथ तो कभी नहीं जा सकती . मौर्य का हिंदू धर्म को गाली देना नव बौद्धों और दलितों को भले ही लुभा सकता है पर पिछड़ों को नहीं. मौर्य की जाति के वोटर कोयरी भी बीजेपी को वोटर बन चुके हैं. दलित वोट और नव बौद्धों का वोट आज भी कम से कम यूपी में तो मायावती के कहने पर ही पड़ते हैं. दूसरे हिंदू देवी देवताओं को गाली देने के चलते ब्राह्मणों -राजपूतों और बनियों के बीच जो बचा खुचा आधार पार्टी का रहा है वह भी खत्म हो रहा है. मुलायम सिंह यादव के समय में समाजवादी पार्टी को यादव और मुस्लिम वोटों के साथ राजपूतों और ब्राह्मणों का वोट भी मिलता रहा है.  

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हिंदू धर्म पर स्‍वामी प्रसाद मौर्य के आ‍पत्तिजनक बयान पर अखिलेश तो खामोश रहे, लेकिन उनकी पत्‍नी डिंपल यादव ने जरूर सफाई दी. डिंपल ने यह कहकर पल्‍ला झाड़ लिया क‍ि स्‍वामी प्रसाद का बयान उनकी निजी राय है, और इसका सपा से कोई लेना-देना नहीं है. डिंपल ही नहीं, पूरी पार्टी को समझना होगा कि चुनाव से पहले ऐसे बयान किसी के निजी नहीं होते. भाजपा इन बयानों का हिसाब यूपी में सपा से ही मांगेगी. 

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