दिल्ली में भी अब बीजेपी की सरकार बन गई है. अभी तक तो अरविंद केजरीवाल और उनके साथी, एलजी वीके सक्सेना से ही उलझे रहते थे, अब उनका निशाना मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता हो जाएंगी.
कांग्रेस की बात करें तो ऐसा ही बदलाव आएगा. राजनीतिक विरोध के कारण पहले कांग्रेस के निशाने पर आम आदमी पार्टी नेतृत्व हुआ करता था, लेकिन अब कांग्रेस का टार्गेट भी बदल जाएगा. मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ही निशाने पर होंगी.
मुमकिन है अरविंद केजरीवाल ने निशाने पर आगे भी मुख्यमंत्री के साथ साथ एलजी भी रहें, लेकिन दिल्ली की बात होगी तो मामलाअब रेखा गुप्ता के इर्द-गिर्द ही खत्म हो जाएगा.
रही बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेता अमित शाह को निशाने पर लेने की, तो अरविंद केजरीवाल को कोई और रास्ता अख्तियार करना पड़ेगा - और यही बात कांग्रेस पर भी लागू होगी.
1. दिल्ली की महिलाओं को बीजेपी का थैंक-यू
रेखा गुप्ता के दिल्ली में कमान संभाल लेने के बाद से बीजेपी के पास महिला मुख्यमंत्री न होने का सवाल नरम पड़ जाएगा.
अरविंद केजरीवाल के पास इस मामले में पेश करने के लिए आतिशी उदाहरण थीं, और कांग्रेस के पास शीला दीक्षित - बीजेपी ने एक झटके में ही ये सवाल खत्म कर दिया है.
अब इसे संयोग समझिये या प्रयोग, रेखा गुप्ता भी आतिशी की तरह मुख्यमंत्री बनने वाली पहली बार की ही विधायक हैं. 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी के रमेश बिधूड़ी को शिकस्त देकर आतिशी दूसरी बार विधायक बनी हैं, जबकि उनके नेता अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया अपनी सीट भी नहीं बचा पाये हैं. वैसे भी आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने पर भी आतिशी तो ज्यादा से ज्यादा कोई मंत्री ही बन पातीं, केजरीवाल और साथियों ने पहले ही बता रखा था.
दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान महिला वोट बैंक तीनो पार्टियों के दिमाग में था. आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस सभी ने महिलाओं के अकाउंट में हर महीने पैसे भेजने का वादा किया था.
रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाकर बीजेपी ने दिल्ली की महिलाओं को थैंक-यू तो बोला ही है, अब महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये देने का वादा निभाने की बारी है.
मुख्यमंत्री बनने पर बधाई तो अरविंद केजरीवाल और आतिशी ने भी दी है, कांग्रेस नेता अलका लांबा ने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा है, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को मेरी शुभकामनाएं... जब उनका नाम घोषित हुआ तो मैं पुरानी यादों में खो गई... हमारे बीच हमेशा ही वैचारिक संघर्ष रहा है... दिल्ली में हमारी बेटियों की सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा है… उम्मीद है कि वो इस पर काम करेंगी... अगर वो इस दिशा में काम करती हैं, तो हम उनका समर्थन करेंगे.
2. चुनावों से अलग होगा कांग्रेस का स्टैंड
कांग्रेस की भूमिका चुनावों से थोड़ी बदली हुई होगी. ये बदलाव तो लोकसभा से बिल्कुल अलग विधानसभा चुनाव में ही देखा जा चुका है. आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस विधानसभा चुनाव में तो नये रंग में ही नजर आने लगी - जब राहुल गांधी ने खुद मोर्चा संभाल लिया.
दिल्ली चुनाव में कांग्रेस अरविंद केजरीवाल को टार्गेट करते थे, जो तब बीजेपी के पक्ष में जाता था. अब कांग्रेस रेखा गुप्ता को घेरेगी तो अरविंद केजरीवाल को स्वाभाविक मदद मिलेगी.
जैसे पहले अरविंद केजरीवाल कांग्रेस और बीजेपी की मिलीभगत की बात किया करते थे, अब ये काम बीजेपी की तरफ से होगा - और ये चीज केजरीवाल और कांग्रेस दोनो को परेशान करेगी.
3. रेखा गुप्ता को भी अलर्ट मोड में रहना होगा
रेखा गुप्ता के भी पुराने विचार वैसे ही पीछे छूट जाएंगे, जैसे योगी आदित्यनाथ के यूपी का मुख्यमंत्री बन जाने के बाद उनके लव-जिहाद और घर-वापसी जैसे कार्यक्रम महत्वहीन हो गये, और उनको नये राजनीतिक हथियार उठाने पड़ते हैं.
नई भूमिका मिलने के बाद रेखा गुप्ता के मामले में भी करीब करीब वैसा ही ही होने वाला है - जाहिर है, रेखा गुप्ता अब अपने कामकाज के लिए सीधे निशाने पर होंगी.
4. बीजेपी को हमले की जगह बचाव की मुद्रा में आना पड़ेगा
अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के संभावित हमलों को बीजेपी ने पहले ही भांप लिया है, और यही वजह है कि यमुना की सफाई पर मुख्यमंत्री के शपथग्रहण से पहले ही फोकस हो गया है.
जाहिर है, आने वाले दिनों में अस्पताल, स्कूल और कानून-व्यवस्था पर भी बीजेपी को खासतौर पर ध्यान देना होगा.
दिल्ली का मिजाज भी देश के बाकी राज्यों से काफी अलग है, ऐसे में काम के अलावा यहां कोई और दांव ज्यादा नहीं चलेगा - अगर दिल्ली में काम नहीं होगा तो बीजेपी की रेखा गुप्ता का भी अरविंद केजरीवाल जैसा ही हाल होगा.
5. बीजेपी रेवड़ी पॉलिटिक्स तो शुरू कर ही चुकी है
मुफ्त की चीजें अब आम वोटर के लिए सबसे ज्यादा मायने रख रही हैं. ये अरविंद केजरीवाल का ही दबाव था, जो बीजेपी को भी रेवड़ी पॉलिटिक्स अपनाने को मजबूर होना पड़ा. याद रहे, दिल्ली में सरकार की तरफ से लोगों को दी जाने वाली मुफ्त की चीजों के लिए रेवड़ी शब्द का इस्तेमाल पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही किया था - और चुनाव आते आते रेवड़ियां कब ‘गरीब कल्याण योजना’ में तब्दील हो गईं पता ही नहीं चला.
अब बीजेपी भी अगर चुनावी वादे से जरा भी इधर उधर हटती नजर आई, तो लेने के देने कब पड़ेंगे किसी को नहीं मालूम. बीजेपी को हर हाल में चुनावी वादों को लेकर सतर्क रहना होगा. वरना, अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस मिलकर शोर मचाएंगे, और दिल्लीवाले बीजेपी को आईना दिखाने में देर नहीं लगाएंगे.