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अरविंद केजरीवाल को 21 दिन में क्‍या मिला- सहानुभूति बटोरी या और फजीहत?

अरविंद केजरीवाल जैसे आये थे, वैसे ही फिर से तिहाड़ जेल चले भी गये. जाते जाते इंदिरा गांधी जैसा भाषण भी दिये - लेकिन सवाल ये है कि 21 दिन की आजादी में उनको हासिल क्या हुआ? फर्ज कीजिये, अगर वो बाहर नहीं आये होते तो क्या स्वाति मालीवाल केस हुआ होता?

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बड़ी उम्मीदों के साथ बाहर आये अरविंद केजरीवाल को खाली हाथ ही तिहाड़ लौटना पड़ा.
बड़ी उम्मीदों के साथ बाहर आये अरविंद केजरीवाल को खाली हाथ ही तिहाड़ लौटना पड़ा.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तिहाड़ जेल में सरेंडर कर दिया है. मुख्यमंत्री आवास पर माता-पिता का आशीर्वाद लेकर निकले अरविंद केजरीवाल जेल से पहले महात्मा गांधी की समाधि राजघाट और दिल्ली के हनुमान मंदिर गये, और पार्टी दफ्तर में आप नेताओं और कार्यकर्ताओं को संबोधित भी किया. 

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चुनाव कैंपेन के लिए आम आदमी पार्टी नेता केजरीवाल को मिली अंतरिम जमानत की मियाद 1 जून को ही खत्म हो गई थी. उससे पहले अरविंद केजरीवाल ने अंतरिम जमानत एक हफ्ता बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी भी दी थी, लेकिन कोई राहत नहीं मिली. दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट की स्पेशल जज कावेरी बावेजा ने अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है, अगली तारीख 5 जून मुकर्रर हुई है. 

आप के दफ्तर से तिहाड़ रवाना होने से पहले अरविंद केजरीवाल ने साधी नेताओं और कार्यकर्ताओं बहुत सारी बातें की, और खुद को भगत सिंह का चेला बताते हुए कहा कि वो देश के लिए फांसी पर भी चढ़ने के लिए तैयार हैं. 

अरविंद केजरीवाल ने कहा, 'मैं इसलिए जेल नहीं जा रहा कि मैंने कोई भ्रष्टाचार किया है... मैं इसलिए जेल में रहा हूं क्योंकि मैंने तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत की है... मुझे नहीं पता कि अब मैं कब वापस आऊंगा, लेकिन मुझे कोई परवाह नहीं है.' 

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और फिर इंदिरा गांधी वाली स्टाइल में बोले, 'मेरे शरीर का एक एक कतरा इस देश के लिए है... मेरे खून की एक एक बूंद इस देश के लिए है... मैं देश के लिए फांसी पर चढ़ने के लिए भी तैयार हूं.'

लोकसभा चुनाव को लेकर आये एग्जिट पोल को फर्जी करार देते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा, '4 तारीख को मंगलवार है... भला करेंगे बजरंगबली... तानाशाहों का नाश करेंगे... अपनी किसी व्यक्ति विशेष से कोई दुश्मनी नहीं है... अपनी दुश्मनी तानाशाही से है... मेरा मानना है कि ये लोग नहीं जीत रहे.'

कुल मिलाकर देखा जाये तो अरविंद केजरीवाल का जेल से बाहर आना न तो उनके लिए, न आम आदमी पार्टी के लिए - और न ही विपक्षी गठबंधन INDIA ब्लॉक को ही, ऊपर से मुसीबतों का जो ढेर लगा वो अलग ही है. 

फर्ज कीजिये, अगर अरविंद केजरीवाल जेल से बाहर नहीं आये होते तो...

1. मालीवाल केस नहीं हुआ होता

अगर अरविंद केजरीवाल घर नहीं लौटे होते तो क्या स्वाति मालीवाल उनसे मिलने मुख्यमंत्री आवास गई होतीं? केजरीवाल से मिलने के लिए तो उनको तिहाड़ जेल ही जाना पड़ा होता. 

जिस घटना के बारे में स्वाति मालीवाल ने बताया है, वैसी घटना तो कहीं भी हो सकती है, लेकिन अगर वो मुख्यमंत्री आवास न जातीं तो मारपीट कहां होतीं.

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और अगर ये सब नहीं हुआ होता तो बिभव कुमार भी न गिरफ्तार होते, न जेले भेजे गये होते.

2. संजय सिंह का नया रूप देखने को नहीं मिलता

आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह जब जेल से छूटे से तब उनके तेवर अलग ही देखने को मिले थे, लेकिन स्वाति मालीवाल केस के बाद तो लगता है जैसे वो गुम गये हैं. 

वैसे तो संजय सिंह इंडिया गठबंधन की बैठक में भी अरविंद केजरीवाल के साथ थे, और जब वो जेल जा रहे थे, तब भी उनके साथ डटे रहे - लेकिन अब कहां सुनाई देता है - जेल के ताले टूटेंगे, केजरीवाल छूटेंगे. 

स्वाति मालीवाल केस में संजय सिंह की प्रेस कांफ्रेंस और आतिशी के बयानों में विरोधाभास इस बात के सबूत हैं कि संजय सिंह और अरविंद केजरीवाल के रिश्ते में पहले वाली बात नहीं रही - संजय सिंह के लिए तो ये जैसा भी हो, लेकिन अरविंद केजरीवाल के लिए तो ये बहुत बड़ा नुकसान है. 

3. कांग्रेस का भी पूरा साथ मिला होता

कांग्रेस नेतृत्व तो पहले से ही अरविंद केजरीवाल से बचता रहा है, लेकिन स्वाति मालीवाल केस के बाद चुनावी गठबंधन के बावजूद दोनों तरफ से परहेज देखा गया. लखनऊ में संयुक्त प्रेस कांफ्रेस में अखिलेश यादव के साथ मल्लिकार्जुन खरगे तो नजर आये, लेकिन अरविंद केजरीवाल दूर ही रहे. उसी दिन वो कांग्रेस उम्मीदवारों के समर्थन में रोड शो करते देखे गये.

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लेकिन राहुल गांधी ने अरविंद केजरीवाल के साथ वैसे रोड शो या रैली नहीं की, जैसे अखिलेश यादव के साथ देखा गया था. दिल्ली कांग्रेस के नेता तो विरोध करते ही रहे हैं, अरविंदर सिंह लवली तो इसी मुद्दे पर कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में ही चले गये. 

4. जो सहानुभूति मिल रही थी, बरकरार रहती

अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार कर जेल भेज दिये जाने के बाद दिल्ली के लोगों में एक सहानुभूति की लहर थी, लेकिन जेल से आने के बाद वो थोड़ी कम हो गई. चुनाव कैंपेन के दौरान जेल में इंसुलिन न मिलने का आरोप लगाकर अरविंद केजरीवाल ने लोगों की सहानुभूति बटोरने की कोशिश भी की.

लेकिन एग्जिट पोल के नतीजे तो यही बता रहे हैं कि दिल्ली के लोगों को अरविंद केजरीवाल के साथ क्या हुआ, इसमें कोई दिलचस्पी नहीं रही - अगर ऐसा नहीं होता तो क्या दिल्ली की सभी सात सीटें बीजेपी को सौंपने के बजाये लोग अरविंद केजरीवाल के बारे में भी तो सोचते ही.  

5. AAP के सामने नई चुनौतियां नहीं खड़ी होतीं

अरविंद केजरीवाल के जेल जाने के बाद आम आदमी पार्टी कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी समझ कर काम कर रहे थे. केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल ने भी पति का मैसेंजर बनकर मोर्चा संभाल ही लिया था - और रामलीला मैदान में ये भी देखने को मिला कि उनको कितनी अहमियत दी जा रही है. 

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अब तो ऐसा लग रहा है कि दोबारा जेल जाने से पहले अरविंद केजरीवाल ने सुनीता केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के सामने चुनौतियों को अंबार लगा दिया है.

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