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ओपी राजभर और दारा सिंह कितना फायदा करा सकेंगे बीजेपी का, घोसी में तो उल्टा पड़ा था दांव

घोसी विधानसभा उपचुनाव में ओपी राजभर के पूर्ण समर्थन के बाद भी दारासिंह चौहान अपनी परंपरागत सीट 42 हजार वोटों से हार गए. तो कैसे यह मान लिया जाए कि इन दोनों नेताओं को लाकर बीजेपी पूर्वी यूपी में अपनी स्थिति मजबूत कर सकेगी?

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उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री बने ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान
उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री बने ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान

आखिरकार उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में सुभासपा नेता ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान की एंट्री हो गई है. पिछड़ी जाति के वोटों को ध्यान में रखकर बीजेपी ने इन दोनों नेताओं को लोकसभा चुनावों के पहले इनकी दोनों नेताओं की बहुप्रतीक्षित मांग को पूरा कर दिया. पर सवाल यह उठता है कि क्या ओपी राजभर और दारासिंह चौहान बीजेपी को फायदा पहुंचा सकेंगे. क्या पूर्वांचल की जिन सीटों को बीजेपी 2019 में जीतने से चूक गई थी,या 2022 के विधानसभा चुनावों में जिन जगहों से बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया था वहां इन दोनों नेताओं की मदद से पार्टी विजय पताका फहरा सकेगी? यूपी में बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में  80 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. लक्ष्य को पाने के लिए बीजेपी कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती. पर सवाल यह भी है कि क्या घोसी विधानसभा उपचुनाव में ओपी राजभर के पूर्ण समर्थन के बाद भी दारासिंह चौहान अपनी  42 हजार वोटों से हार गए. तो कैसे यह मान लिया जाए कि इन दोनों नेताओं को लाकर बीजेपी पूर्वी यूपी में अपनी स्थिति मजबूत कर सकेगी?

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1-राजभर और दारा सिंह को मंत्री बनाने की क्या थी मजबूरी?

2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने आजमगढ़ को छोड़कर पूर्वी यूपी की 28 में से 27 सीटों पर जीत हासिल की थी. पर 2019 में सपा-बसपा और आरएलडी एक साथ  मिलकर गठबंधन में चुनाव लड़ा पूर्वी यूपी में बीजेपी ने 6 सीटें गंवा दी. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह माना गया कि ओमप्रकाश राजभर की पार्टी एनडीए में नहीं थी. राजभर की पार्टी सुभासपा ने 24 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. राजभर एक भी सीट जीत नहीं पाए उन्होंने बीजेपी की हार की स्क्रिप्ट तैयार कर दी थी. राजभर गाजीपुर से विधायक हैं. पर उनकी ताकत वाराणसी, जौनपुर, घोसी, लालगंज, गाजीपुर, आंबेडकर नगर, सलेमपुर, आजमगढ़, बलिया, चंदौली, इलाहाबाद, फैजाबाद, बस्ती, गोरखपुर, मछली शहर, भदोही सीटों पर भी दिखती है.बीजेपी को उम्मीद है कि अपना दल (एस), निषाद पार्टी, सुभासपा और दारा सिंह चौहान मिलकर पूर्वांचल और अवध में इस बार पार्टी  को सारी सीटें जिता सकेंगे.

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2-पूर्वांचल के समीकरण से समझें सियासी नफा और नुकसान

सत्ता और विपक्ष दोनों की भूमिका में ओपी राजभर ने बिरादरी पर पैठ बनाने का प्रयास लगातार जारी रखा. राजभर ने योगी मंत्रिमंडल में रहते हुए सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ गए. बाद में उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र भी दे दिया. उनकी बिरादरी में उनकी यही जिद और स्वाभिमान पर लोग लट्टू हैं. जब विपक्ष में थे तो योगी से लेकर मोदी तक को खरी खोटी सुनाते थे. अब एनडीए के साथ हैं तो अखिलेश पर अपनी वाणी से हमले में कोई कसर नहीं छोड़ते. इसी वजह से सुभासपा प्रमुख की पूछ बनी हुई है. पूर्वांचल के आंकडों पर गौर करें तो राजभरों का वोट नहीं मिलने के कारण 2022 के विधानसभा चुनावों में गाजीपुर, मऊ, जौनपुर, बलिया, आजमगढ़ समेत दर्जनभर जिलों में बीजेपी को करीब 25 से 30 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था. पर एनडीए के साथ आते ही आजमगढ़ में बीजेपी की बड़ी जीत का कारण बनते हैं.इन्ही सब बातों को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने आगे कदम बढ़ाना शुरू किया है. चुनावी आंकड़ों की मानें तो राजभरों की आबादी करीब 2.40 फीसद है. पर अंबेडकरनगर, आजमगढ, मऊ, देवरिया, श्रावस्ती, बहराइच, संतकबीर नगर, बस्ती, गाजीपुर, बलिया, वाराणसी, चंदौली आदि जिलों में राजभर वोट इस बार बीजेपी को भारी बहुमत दिला सकते हैं.

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3-फागू चौहान को राज्यपाल बनाने के बाद भी नहीं मिले नोनिया वोट 

घोसी के ही एक नेता होते थे फागू चौहान. फागू मंडल की राजनीति करके आगे बढ़े पर बाद में बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी ने उन्हें बिहार जैसे महत्वपूर्ण स्टेट का राज्यपाल बना दिया. मकसद यही था कि पूर्वी यूपी और बिहार दोनों ही जगहों पर बीजेपी की पिछड़ा समर्थक पार्टी की छवि बनाना. पूर्वी यूपी के मऊ-गाजीपुर-बलिया आदि जिलों में पिछड़े मतदाताओं की संख्या बीजेपी को हमेशा से भारी पड़ती रही है. पार्टी में निषादों के नेता संजय निषाद और अपना दल एस पहले से ही साथ है. इसके साथ ही ओमप्रकाश राजभर की एनडीए में वापसी तो करा ली गई फिर भी समीकरण अभी बीजेपी के पक्ष में नहीं बन रहे थे. इसलिए नोनिया मतदाताओं के बीच अच्छी पकड़ रखने वाले दारा सिंह चौहान को भी पार्टी में लाया गया.

बलिया, सलेमपुर, घोसी, ग़ाज़ीपुर जैसी पूर्वांचल की सीटों पर नोनिया समुदाय के मतदाता ऐसी स्थिति में हैं कि वे जिस भी खेमे में जाते हैं, उनकी जीत की संभावना बढ़ जाती है. दारा सिंह चौहान राजनीति मौसम को भांप नहीं सके और 2022 यूपी चुनाव से पहले योगी कैबिनेट से इस्तीफा देकर सपा में शामिल हो गए. दारा घोसी सीट से सपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचे पर सरकार बन गई बीजेपी की.फिर उन्होंने बड़े बेआबरू हो कर  भाजपा में वापसी कर ली. 2019 के लोकसभा चुनाव में घोसी और गाजीपुर में बीजेपी को बीएसपी से हार मिली थी. यहां तक कि मनोज सिन्हा जैसे कद्दावर नेता को भी ग़ाज़ीपुर में हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी बड़ी मुश्किल से बलिया और मछलीशहर सीट जीत सकी. ऐसे में पार्टी को उम्मीद है कि ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान जैसे नेताओं के सहारे राजभर और नोनिया वोटों को जोड़कर पूर्वांचल की हर सीट जीती जा सकेगी.

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4-घोसी उपचुनाव की कहानी तो कुछ और कहती है

घोसी विधानसभा उपचुनाव में सारे समीकरण बीजेपी के पक्ष में थे. इसके बावजूद समाजवादी पार्टी ने यह चुनाव जीतकर ओमप्रकाश राजभर और दारासिंह चौहान की ताकत की कलई खोल कर रख दी है.  इस चुनाव में सपा के सुधाकर सिंह ने भाजपा के दारा सिंह चौहान को 42672 मतों के बड़े अंतर से हरा दिया. जबकि पूरा मंत्रिमंडल और सरकारी मशीनरी इस चुनाव को जीतने में लगा दी गई थी. दरअसल इसी सीट से साल 2022 के विधानसभा चुनाव में दारा सिंह चौहान ने सपा प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की थी लेकिन एक साल के भीतर ही उन्होने विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा जॉइन कर लिया. जनता को यह महसूस हो रहा था कि ये लोग अपने लाभ की राजनीति कर रहे हैं . उन्हें अपनी बिरादरी के उत्थान से कोई मतलब नहीं है. शायद यही कारण रहा कि दारा सिंह चौहान भाजपा प्रत्याशी के रूप में उतरना जनता को नागवार लगा और चुनाव में दारा को हार का मुंह देखना पड़ा.

पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं कि ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान की पकड़ अपने बिरादरी के वोटों पर रहा है. पर हर साल इन जातियों में नये नेता उभर रहे हैं. जब बड़े नेता सत्ता के नजदीक हो जाते हैं तब निचले लेवल पर नया नेतृत्व उभरता है. यह कहना बहुत मुश्किल है कि राजभर और दारासिंह के साथ आने से बीजेपी को पिछड़ों का सारा वोट मिल जाएगा.

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सवाल यह उठता है कि जिन 2 नेताओं ने मिलकर घोसी उपचुनाव में पार्टी को जीत नहीं दिला सके वो किस तरह पूर्वी यूपी के सारी सीटें दिला सकेंगे. घोसी में तो जातिगत गणित उनके फेवर में था फिर भी दोनों की जातियों ने उन्हें नकार दिया. अगर दारा सिंह चौहान को घोसी उपचुनाव में केवल नोनिया और राजभर वोट भी मिल गए होते तो 42 हजार वोटों से उनकी हार नहीं होती.

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