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वक्फ संशोधन बिल पास कराने को लेकर NDA सरकार कितनी गंभीर? क्या BJP के गेम में फंस गया है विपक्ष

बीजेपी के लिए वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को पास कराने से अधिक महत्वपूर्ण है कि इस मुद्दे पर लगातार बहस होती रही. बीजेपी को इस बिल के नाम पर ही बिहार, बंगाल और यूपी का विधानसभा चुनाव जीतना है. विपक्ष इस बिल का जितना विरोध करेगा बीजेपी को उतना ही फायदा होने का अनुमान है.

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Wakf Board Bill has been postponed to the budget session.
Wakf Board Bill has been postponed to the budget session.

देश भर में तमाम विरोध प्रदर्शनों के बीच केंद्र की एनडीए सरकार ने ये फैसला ले लिया है कि वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को लोकसभा में 2 अप्रैल को पेश किया जाएगा. संसदीय कार्य एवं अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री किरेन रिजिजू ने 8 अगस्त 2024 को ये बिल लोकसभा में पेश किया था जिसे विपक्ष के हंगामे के बाद संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेज दिया गया था. संसदीय समिति में कुल 44 संशोधन पेश किए जिसमें करीब 14 संशोधन जगदंबिका पाल की अगुवाई वाली जेपीसी ने स्वीकार कर लिए. संशोधित बिल को कैबिनेट ने पहले ही मंजूरी दे दी है. अब देखना यह है कि क्या सरकार वास्तव में इस बिल को पास कराना चाहती है? क्यों कि सरकार यह बिल संसद में लाती है तो इसे पारित कराना कम चुनौतीपूर्ण नहीं रहने वाला.हालांकि आंकड़ों की लिहाज से विधेयक को संसद से पारित कराने के लिए एनडीए दलों के पर्याप्त बहुमत है. अब देखना ये है कि सरकार की मंशा क्या है?  

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1- संसद में वक्फ बिल के लिए कितना तैयार है एनडीए

आमतौर पर एनडीए के दलों में अगर वक्फ बिल को लेकर कोई मतभेद नहीं होता है तो सरकार संसद से बिल पास कराने में कोई दिक्कत नहीं आने वाली है. पर बीजेपी की सहयोगी जेडीयू हो या टीडीपी दोनों ही पार्टियों का बेस मुस्लिम समुदाय के बीच ठीक-ठाक रहा है. इसलिए ऐसा नहीं कहा जा सकता कि ये दोनों ही पार्टियां आंख मूंदकर सरकार को समर्थन देंगी. राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि ये दोनों ही पार्टिया्ं इस बिल को लेकर सौदेबाजी करेंगी. बिहार में विधानसभा चुनाव है और नीतीश कुमार इफ्तार पार्टियों में और ईद के मौके पर जिस तरह अल्पसंख्यक समुदाय के साथ दिखे हैं उसे हल्के में नहीं लेना चाहिए. जेडीयू के एक एमएलसी ने खुलकर इस बिल का विरोध किया है. इसे देखते हुए यह कहना मुश्किल लगता है कि वक्फ बिल पर नीतीश कुमार आसानी से मान जाएंगे. उधर रमजान की शुभकामनाएं देते हुए टीडीपी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू ने भी मुस्लिम समुदाय को आश्वासन दिया कि TDP सरकार ने हमेशा वक्फ संपत्तियों की रक्षा की है और आगे भी करती रहेगी. मतलब साफ है कि नायडू के लिए भी वक्फ बिल पर आंख मूंदकर समर्थन देना आसान नहीं है.

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लोकसभा में 542 सदस्य हैं और 240 सदस्यों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है. एनडीए  की कुल संख्या 293 है जो बिल पारित कराने के लिए जरूरी 272 से कहीं अधिक है. इंडिया ब्लॉक में शामिल सभी दलों का संख्या बल 233 ही पहुंचता है. आजाद समाज पार्टी के सांसद चंद्रशेखर, शिरोमणि अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल जैसे कुछ लगो दोनों ही गठबंधनों में नहीं हैं. कुछ निर्दलीय सांसद भी हैं जो किसी भी गठबंधन के साथ खुलकर नहीं हैं. जाहिर है कि इनमें से अधिकतर केंद्र सरकार के साथ ही होंगे.

राज्यसभा में इस समय 236 सदस्य हैं. इसमें बीजेपी की संख्या 98 है. एनडीए में सदस्यों की संख्या 115 के करीब है. छह मनोनीत सदस्यों को भी जोड़ लें जो आम तौर पर सरकार के पक्ष में ही मतदान करते हैं तो नंबरगेम में एनडीए 121 तक पहुंच जा रहा है जो विधेयक पारित कराने के लिए जरूरी 119 से दो अधिक है. जाहिर है कि आंकड़ों का खेल सत्ताधारी दल के पास है पर एनडीए के लिए आसान नहीं है.

2-वक्फ बिल के भरोसे बिहार-बंगाल-यूपी और 2029 का चुनाव जीतने का सपना

बीजेपी चाहती है कि इस बिल का विरोध जितना बढ़ेगा उतना ही इस पर चर्चा होगी. आज से कुछ महीने पहले तक हिंदुओं को छोड़िए मुसलमान तक को वक्फ बोर्ड के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता था. पर बीजेपी की शायद रणनीति ही यही है कि इस बिल पर इतना विवाद बढ़े कि देश के आम लोग भी जान सकें कि वक्फ बोर्ड किस तरह के फैसले करता है. एक आम हिंदू को जब यह खबर मिलती है कि महाकुंभ की जगह , संसद और राष्ट्रपति भवन , 1000 साल पुराने मंदिरों तक को वक्फ बोर्ड अपनी संपत्ति घोषित कर दे रहा है तो उसे समझ में आता है कि ये तो गलत हो रहा है. विपक्ष के विरोध के चलते बीजेपी को बहाना मिल रहा है कि वो आम लोगों को बताए कि वक्फ बिल किसी संपत्ति को जब अपनी संपत्ति घोषित कर देती है तो आपके पास कोई अधिकार नहीं होता कि आप हाईकोर्ट का भी सहारा ले सकें. जाहिर है कि आने वाले दिनों में बिहार और बंगाल में विधानसभा चुनाव हैं. 2027 में यूपी में भी चुनाव है. इन राज्यों में देश के अन्य हिस्सों से अधिक मुस्लिम समुदाय की आबादी है. वक्फ बोर्ड बिल पर जितनी बातें होंगी उतना ही बीजेपी को फायदा होगा. इसलिए बीजेपी किसी न किसी तरीके से इस मुद्दे को बहस के केंद्र में रखना चाहती है.

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3-विपक्ष की प्रतिक्रिया बताती है कि वक्फ बिल से घबराई हैं विरोधी पार्टियां

वक्फ बिल के नाम पर विपक्ष जमकर केंद्र सरकार पर हमले कर रहा है. यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव हों या पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी की मुखिया ममता बनर्जी , बिहार में आरजेडी हो सभी ताल ठोककर बीजेपी का विरोध करने मैदान में उतर पड़े हैं. पूरे देश में ईद के दौरान इफ्तार पार्टियों में पहुंचे विपक्ष के नेताओं ने इस मौके का इस्तेमाल वक्फ बोर्ड बिल के नाम पर मुस्लिम समुदाय को इस बिल को लेकर दिग्भ्रमित करने का काम किया है. यहां तक बीजेपी की सहयोगी पार्टियों ने भी इफ्तार के बहाने मुस्लिम समुदाय के बीच वक्फ प्रॉपर्टी को बचाने का आश्वासन दिया है. विपक्ष जिस तरह वक्फ बिल के खिलाफ माहौल बना रहा है उसका केवल एक ही मकसद है कि इस बिल के खिलाफ अनर्गल प्रलाप किया जाए. 

4-बिल को कानून बनाने से ज्यादा बिल के पक्ष में माहौल बनाए रखना बीजेपी के लिए फायदेमंद

पर बीजेपी इतनी आसानी से इस बिल को पेश करके कानून भी शायद न ही बनाए. बीजेपी जानती है कि राम मंदिर बनने के बाद जिस तरह मुद्दा ही खत्म हो गया उसी तरह वक्फ बिल पास होने के बाद इसका फायदा शायद ही बीजेपी को मिले. इसलिए हो सकता है कि बिल पेश होने के बाद भी येन केन प्रकाणेन बिल को लंबित कर दिया जाए. बीजेपी यही चाहेगी कि इस बिल पर इतनी चर्चा हो कि आम लोग खुद विपक्ष को हिंदू विरोधी साबित करने लगे. ऐसा लगता है कि इस बिल को लेकर बीजेपी अभी जनता के बीच जागरूकता ही फैलाना चाहती है. विपक्ष इस बात को शायद समझ नहीं रह है. अखिलेश यादव और उनके चाचा रामगोपाल यादव ने जिस तरह वक्फ बोर्ड का विरोध किया है, ममता बनर्जी भी बार-बार कह रही हैं कि वो किसी भी कीमत पर इस कानून को राज्य में लागू नहीं होने देंगी. बिहार में आरजेडी का पूरा समर्थन वक्फ बिल विरोधियों को मिल रहा है.

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