दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी , भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ही मुख्य मुकाबले में हैं. पर कुछ अन्य छोटी पर महत्वपूर्ण पार्टियां भी चुनाव में सक्रिय हैं. जिसमें बहुजन समाज पार्टी, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम और जेडीयू भी शामिल है. बहुजन समाज पार्टी दिल्ली में कई बार चुनाव लड़ चुकी है जबकि एमाईएमआईएम अभी पहली बार दिल्ली में चुनावी जंग में उतर रही है. हालांकि अगर पिछले कुछ चुनावों को ध्यान में रखें तो बहुजन समाज पार्टी और एआईएमआईएम जैसी पार्टियों को जनता भाव नहीं दे रही है. पर जिस तरह दिल्ली में कांटे के मुकाबले दिख रहे हैं वैसी स्थिति में कुछ सौ वोटों के अंतर से बहुत सी सीटों पर फैसला होने वाला है. इसलिए इन छोटी पार्टियों को अनदेखी करने वाला काफी नुकसान करने वाला साबित हो सकता है. आइये देखते हैं कि इन दोनों पार्टियों के कठिन परिश्रम का सबसे अधिक नुकसान किसे होने वाला है.
दलित वोटों की जंग में बहुजन समाज पार्टी का कितना जोर
'200 यूनिट मुफ्त बिजली की आपने क्या कीमत चुकाई? आपने शिक्षा गंवाई, आपने साफ पानी गंवाया, साफ हवा गंवाई, आपने अपनी नौकरियां गंवाईं, आपने अपनी यमुना नदी गंवाई.'
उपरोक्त बातें कहने वाला कोई बीजेपी या कांग्रेस का नेता नहीं है. ये आवाज बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती के भतीजे आकाश आनंद की है जो सोमवार को दिल्ली में एक चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे. जाहिर है दिल्ली विधानसभा चुनावों को बीएसपी गंभीरता से ले रही है. हालांकि दिल्ली में बहुजन समाज पार्टी को पिछले चुनावों में मिले वोट बताते हैं कि अब इस पार्टी की जड़े दिल्ली में बहुत कमजोर हो चुकी हैं. दूसरे बहुजन समाज पार्टी का कोर वोटर जाटव और अन्य दलित समाज अब बिखर चुका है. कांग्रेस को ज्यों ज्यों सांस मिल रही है दलित वोटर्स उसके खेमे में जा रहे हैं.
दलित वोटर्स को ही ध्यान में रखकर अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी के ऑफिसों में और सरकारी दफ्तरों में गांधी की जगह आंबेडकर के फोटो लगाने का आदेश दिया है. भारतीय जनता पार्टी भी लगतार दलित वोटर्स के बीच सेंध लगा रही है. हालांकि संसद में अमित शाह के 11 सेकंड के विडियो को जिस तरह विपक्ष ने जबरिया मुद्दा बनाया है उसका कितना प्रभाव दिल्ली विधानसभा चुनावों में पड़ता है यह भी स्पष्ट हो जाएगा. जाहिर है दिल्ली में बहुजन समाज पार्टी के वोटों का बहुत बड़े पैमाने पर विभाजन होने वाला है. बीएसपी की चुनावी स्थिति में गिरावट आई है और 2020 के चुनावों में पार्टी को सिर्फ 0.71% वोट मिले. इस बार इससे अधिक वोट मिलने की गुंजाइश नहीं के बराबर ही है.
हालांकि दिल्ली नॉर्थ ईस्ट की कुछ सीटों पर बीएसपी अच्छा कर सकती है. 2015 के चुनावों में बीएसपी उम्मीदवारों ने 17 सीटों पर, जिनमें से चार उत्तर-पूर्वी दिल्ली में थीं, अधिक वोट हासिल किए थे.
ओवैसी क्या खेल बिगाड़ने की हैसियत रखते हैं दिल्ली में
2020 के दंगों के बाद दिल्ली विधानसभा चुनावों में पहली बार भाग लेने वाली एआईएमआईएम ने दंगा प्रभावित उत्तर-पूर्वी दिल्ली के मुस्तफाबाद सीट से पूर्व आम आदमी पार्टी (आप) के पार्षद ताहिर हुसैन को उम्मीदवार बनाया है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार पार्टी की दिल्ली इकाई के प्रमुख शोएब जमई कहते हैं कि एआईएमआईएम राजधानी में 10-12 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रही है, जहां मुस्लिम आबादी का महत्वपूर्ण प्रभाव है. इसमें सीलमपुर, ओखला, बाबरपुर और चांदनी चौक जैसे क्षेत्र शामिल हैं, लेकिन उत्तर-पूर्वी दिल्ली अब भी इसका मुख्य केंद्र बना हुआ है. ओवैसी की पार्टी के नेताओं का कहना है कि पार्टी उन सीटों से ही उम्मीदवार उतारेगी जहां मुसलमान कम से कम 25 प्रतिशत हैं. एआईएमआईएम का भी मुख्य ध्यान उत्तर-पूर्वी दिल्ली के क्षेत्रों पर है.
सीलमपुर और ओखला में मुस्लिम मतदाता क्रमशः 57% और 52% हैं, जबकि बाबरपुर और मुस्तफाबाद में यह 41% और 39.5% है. चांदनी चौक में यह समुदाय 30% और सीमापुरी में 23.5% मतदाता है.
जनता दल यू किसका खेल बिगाड़ेगी
महत्वपूर्ण पूर्वांचली मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए जेडीयू भी दिल्ली में चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने की इच्छुक है. पार्टी ने कोविड महामारी के दौरान पूर्वांचलियों का पर्याप्त साथ नहीं देने का आरोप लगाते हुए आम आदमी पार्टी की आलोचना की है. पार्टी भाजपा के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर बातचीत कर रही है पर उम्मीद कम ही लग रही है. अगर बीजेपी और जेडीयू के बीच समझौता नहीं होता है तो जाहिर है नुकसान बीजेपी का ही होने वाला है.2020 में जेडीयू ने संगम विहार और बुराड़ी से चुनाव लड़ा था, जहां महत्वपूर्ण पूर्वांचली मतदाताओं का आधार है. पार्टी ने क्रमशः 28% और 23% वोट हासिल किए थे जो बीजेपी कैंडिडेट को नुकसान पहुंचाने के लिए काफी है. दरअसल जो पूरबिया वोट आम आदमी पार्टी के हैं तो उसे मिलेंगे ही. बीजेपी और जेडीयू को मिलने वाले वोटों में बंटवारा होने की उम्मीद है.