मणिपुर की 2 कुकी महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाती भीड़ का चेहरा आपको याद होगा. निश्चित रूप से उसे कहीं से भी ये नहीं कहा जा सकता कि मैतेई लोगों के गुस्से का प्रतिफल था यह सब. और यह भी सत्य है कि किसी ने भी इस तरह का तर्क नहीं दिया. यहां तक कि मैतेई लोगों के संगठनों ने भी इस तरह की बात नहीं की. पर आश्चर्य होता है उन लोगों पर जिन्होंने उन 2 मणिपुरी औरतों के लिए आंसू बहाए थे पर उन्हें इजरायल की औरतों और बच्चों के साथ हुए वहशीपन में कुछ भी काला नजर नहीं आया. उलटा हमास के दरिंदों के पक्ष में तर्क ढूंढ लाए कि ये तो इजरायल के अत्याचार का प्रतिफल था.
दरअसल इन लोगों की आंख पर पर्दे इसलिए पड़ जाते हैं क्योंकि इजरायली महिलाओं से हुई ज्यादती उनके एजेंडे में फिट नहीं बैठती. इन्हें लगता है कि अल्पसंख्यकों के साथ ही अत्याचार होता है, बहुसंख्यकों के साथ जो होता है वो गुस्से का परिणाम होता है. कुकी महिलाओं के साथ जो हुआ उसे मैतेई लोग कर रहे थे जो हिंदू हैं , बहुसंख्यक हैं. इसलिए वो अत्याचार कर रहे थे. इन लोगों को लगता है कि अल्पसंख्यक अत्याचार नहीं करते. अगर कभी उनसे कुछ गलत हो जाता है तो वो केवल अपने ऊपर हुए अत्याचार का प्रतिफल होता है. यही कारण है कि बॉलिवुड अभिनेत्री गौहर खान, स्वरा भास्कर और पत्रकार सबा नकवी, सायमा आदि को महिला होते हुए भी इजरायल में महिलाओं और बच्चों के साथ हुआ वहशीपन सामान्य लगा है.
'इंटेलेक्चुअल' महिलाओं को क्या हुआ?
जिस तरह का क्रूरतम हमला कुख्यात आतंकी संगठन हमास ने इज़राइल की महिलाओं-बच्चों और बुजुर्गों पर किया, वैसा ही अगर अश्वेतों, दलितों, आदिवासियों या भारत के अल्पसंख्यकों पर होता तो ये तथाकथित इंटेलेक्चुअल्स किस तरह पहाड़ उठा लेते. पर इजरायल में सबको आतंकियों का वहशीपन नहीं दिख रहा, दिख रहा है केवल इजरायल द्वारा किए अत्याचार. गौहर खान लिखती हैं कि 'दमन करने वाला पीड़ित कब से हो गया. दुनिया के लिए बहुत सुविधाजनक दृष्टि है और इतने वर्षों के दमन से आंखें मूंद लेना.' सबा नकवी को आतंकियों की करतूत नहीं दिखाई दी पर इजरायल का गाजा पट्टी पर बदला दिख गया. वे लिखती हैं कि 'आंख के बदले आंख से तो पूरी दुनिया अंधी हो जाएगी.'
स्वरा भास्कर दो दिन पहले तक एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर खुद कुछ नहीं लिखा पर हमास के कसीदे पढ़ने वालों के ट्वीट को रीपोस्ट किया है. हालांकि इंस्टाग्राम पर उन्होंने अपनी खुशी का इजहार कर ही दिया है. उन्होंने लिखा कि 'यदि आपको तब तक बुरा नहीं लगा जब इजरायल ने फिलिस्तीन पर हमला किया, जब इजरायलियों ने फिलिस्तिनियों के घर तबाह किए और बच्चों और किशोरों को नहीं बख्शा और 10 साल तक लगातार गाजा पर हमला किया तो मुझे इजरायल पर शोक मना रहे लोगों का यह कृत्य पाखंड भरा लग रहा है.' रेडियो जॉकी सायमा ने खुद तो कुछ नहीं लिखा पर कांग्रेस के मेंबर और इतिहाकार अशोक पांडेय के एक जहर भरे ट्वीट को रिपोस्ट करके उन्होंने अपने पुराने अंदाज को बरकरार रखा है.
हमास के दरिंदगी पर पर्दा डालने से पहले शानी लॉक के साथ जो हुआ, उसे जान लीजिये
सैकड़ों बुजुर्गों-बच्चों और महिलाओं को बर्रबरता के साथ खत्म करके के बाद जिस तरह हमास के दरिंदों ने जर्मन युवती शानी लॉक के निर्वस्त्र शव को गाजा में घुमाया और उस पर थूका. लेकिन, भारत के कुछ पढ़े लिखे लोगों ने उस खौफनाक कृत्य पर पर्दा डालने का काम किया. कुछ महिलाओं ने तो उन आतंकियों के सपोर्ट में यहां तक लिख दिया कि हो सकता है कि वो महिला ही बिकनी या देह दिखाने वाली कपड़े पहने हो. उससे हिंदुस्तान की सरजमीं पर होने वाला जौहर याद आ गया. शायद इस तरह की घिनौनी हरकतों से बचने के लिए ही हार नजदीक आते ही महिलाएं सामूहिक आत्मदाह कर लेतीं थीं.