एक बार मुख्यमंत्री बन जाने के बाद कुर्सी को लेकर उद्धव ठाकरे की धारणा बदल गई है. 2019 में जब वो मुख्यमंत्री बने, तब वो खास इच्छुक नहीं थे. कहते हैं, शरद पवार की सलाह पर मुख्यमंत्री बनने को तैयार हुए थे - लेकिन अब जबकि वो खुलकर मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश बता रहे हैं, तो कोई सुनने को तैयार नहीं है. बल्कि, उनकी दावेदारी ही खारिज कर दी जा रही है.
सबने ये भी देखा कि एक बार जब कुर्सी पर बन आई तो सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी फोन मिला दिये थे. क्योंकि तब कोविड 19 के चलते चुनाव आयोग ने हर तरह के चुनावों को होल्ड कर लिया था, और किसी भी सदन का सदस्य न होने की वजह से शपथग्रहण के 6 महीने पूरे होते ही उनको इस्तीफा देना पड़ता.
जिस तरह बीजेपी से गठबंधन तोड़कर उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने थे, उसी पार्टी के सबसे बड़े नेता को फोन करना किसी के लिए भी मुश्किल काम है, लेकिन ये कुर्सी पर काबिज होने की अहमियत ही रही, जो उद्धव ठाकरे ने मोदी से बात की. और, मोदी ने भी निराश नहीं किया.
बीजेपी के साथ गठबंधन में उद्धव ठाकरे अपने हिस्से में ढाई साल के लिए ही मुख्यमंत्री पद मांग रहे थे, और संयोग देखिये कि करीब करीब उतने ही वक्त बीतते बीतते उनको कुर्सी छोड़ देनी पड़ी. पार्टी का जो हाल हुआ वो तो हुआ ही, ये बात जरूर है कि लोकसभा चुनाव के नतीजों ने उन जख्मों पर मरहम लगाते हुए आत्मविश्वास भी बढ़ा दिया है - और उसी की बदौलत वो फिर से मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी करने लगे हैं, लेकिन उनकी बात को गठबंधन साथी तवज्जो नहीं दे रहे हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाये जाने पर विपक्षी गठबंधन महाविकास आखाड़ी को कोई नुकसान हो सकता है?
उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री चेहरा बनाये जाने के नुकसान
1. उद्धव ठाकरे को MVA के मुख्यमंत्री का चेहरा बनाये जाने का सबसे बड़ा नुकसान ये है कि वो एनसीपी (शरद पवार) और कांग्रेस नेताओं की तरह सेक्युलर चेहरा नहीं हैं. हिंदुत्व को नहीं छोड़ सकते. वक्फ बोर्ड पर भी वो खुल कर नहीं सामने आते - औरंगाबाद का नाम बदल कर संभाजी कर दिये थे - जो इंडिया ब्लॉक को स्वीकार नहीं है.
2. उद्धव ठाकरे को फिर से सीएम चेहरा न बनाये जाने का एक कारण ये भी है कि वो अपनी सरकार नहीं बचा पाये. उनके कामकाज की तारीफ तो हो रही थी, लेकिन राजनीति के वो कच्चे खिलाड़ी निकले - और उनकी वजह से गठबंधन साथियों को भी सत्ता से बाहर होना पड़ा. एनसीपी चाहे तो ऐसा बोल सकती है, लेकिन कांग्रेस का तो हक नहीं ही बनता.
3. कांग्रेस की तरफ से महाराष्ट्र प्रमुख नाना पटोले शुरू से ही खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानते हैं, क्योंकि उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री रहते हुए भी वो कहा करते थे कि कांग्रेस अपने बूते भी सरकार बना सकती है. हालांकि, राहुल गांधी की तरफ से उनको संदेश दिया गया है कि मिलजुल कर काम करने की कोशिश करें.
4. मौका तो शरद पवार भी अपने हिस्से में देख रहे हैं. भतीजे अजीत पवार के बीजेपी के साथ चले जाने के बाद वो भी चाहते होंगे कि बेटी सुप्रिया सुले को मुख्यमंत्री बनाये जाने का रास्ता साफ हो. लेकिन, खुल कर कभी ऐसा कोई संकेत नहीं दिये हैं. बल्कि, अपनी पार्टी के महाराष्ट्र अध्यक्ष जयंत पाटिल का नाम इशारों इशारों में जरूर बढ़ा रहे हैं - जिस पर उद्धव ठाकरे कैंप की तरफ से संजय राउत और कांग्रेस का भी रिएक्शन आ गया है.
सांगली में पार्टी की तरफ से 'शिव स्वराज्य यात्रा' अभियान के तहत हुई रैली में शरद पवार ने ये बोलकर हड़कंप मचा दिया है कि ये सभी की इच्छा है कि जयंत पाटिल राज्य के पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी लें.
बताते हैं कि रैली के दौरान जयंत पाटिल जैसे ही बोलने के लिए खड़े हुए, लोग उनको भावी मुख्यमंत्री बताते हुए नारे लगाने लगे. तभी जयंत पाटिल ने थोड़ा डपटते हुए कहा, 'कोई सिर्फ उठक बैठक करके मुख्यमंत्री नहीं बन सकता.
उद्धव ठाकरे के चेहरे पर चुनाव लड़ने के फायदे
ऐसा भी नहीं कि उद्धव ठाकरे को महाविकास आघाड़ी के मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाये जाने पर असहमति और नुकसान ही हैं, बहुत सारे फायदे भी हैं, जिसे गठबंधन साथी महसूस भी कर रहे होंगे.
1. उद्धव ठाकरे के साथ एक खास तरह का इमोशन जुड़ा हुआ है, महाराष्ट्र के लोगों में संदेश गया है कि उनके साथ धोखा हुआ है. लोकसभा चुनाव में एकनाथ शिंदे के मुकाबले उद्धव ठाकरे की झोली में सीटें भर दिया जाना इस बात का सबूत है.
2. सत्ता और संगठन सबकुछ गंवा बैठने के बावजूद उद्धव ठाकरे आज भी मराठा स्वाभिमान के प्रतीक हैं, और ये वो महत्वपूर्ण चीज है जिसके लिए बीजेपी अब भी जूझ रही है - एकनाथ शिंदे को साथ लेने, और मुख्यमंत्री बना देने के बाद भी बीजेपी लोगों से कनेक्ट नहीं हो पा रही है.
3. देखा जाये तो उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र में बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत चेहरा हैं. कम विधायकों और नेताओं के सपोर्ट होने के बावजूद उद्धव ठाकरे ने दिखाया है कि वो मोदी-शाह से डंके की चोट पर टक्कर ले सकते हैं.
4. बाकी संभावित दावेदारों के बीच उद्धव ठाकरे अनुभवी हैं, और महाराष्ट्र में वो एक अच्छी सरकार चला चुके हैं. कोविड 19 जैसे संकटकाल के दौरान उनके कामकाज की काफी तारीफ हो रही थी, जबकि बीच बीच में वो खुद भी बीमार रहे.
और इन सब के बीच एक दिलचस्प पहलू ये भी है कि एक तरफ शरद पवार जयंत पाटिल का नाम भी आगे बढ़ा रहे हैं, और मुख्यमंत्री पद के चेहरे को खत्म हो चुका मुद्दा भी बता रहे हैं. जयंत पाटिल के बारे में पूछे जाने पर अपनी तरफ से तस्वीर साफ करने की भी कोशिश करते हैं, 'जयंत पाटिल सीट शेयरिंग को लेकर फैसला ले रहे हैं... उनको बड़ी जिम्मेदारी दी गई है.
मुख्यमंत्री पद को लेकर शरद पवार कहा कहना है, 'ये मुद्दा हमारे लिए खत्म हो गया है... जब हमने प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, तब इस पर सफाई दी थी... उद्धव ठाकरे और मैं दोनो ही उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद थे... चुनाव के नतीजे आने दें, फिर इसके बारे में बात करेंगे.'