एक मुहावरा है- तू डाल-डाल...मैं पात-पात. इससे पहले कि आप इसका अर्थ जानने की कोशिश करें, लगे हाथों एक और मुहावरे का अर्थ भी खोज डालिए. हक्का-बक्का रह जाना और अगर आप शब्दकोश से खोजने का झंझट नहीं लेना चाहते हैं तो राजस्थान के सियासी नज़ारे पर नज़र दौड़ा लीजिए. एक बार में ही दोनों मुहावरों का मतलब समझ में आ जाएगा.
राजस्थान के नए सीएम के नाम को लेकर मीडिया या एक्सपर्ट्स ने जितने भी कयास लगाए थे, एक बार फिर बहुत मेहनत के साथ फेल हुए. यानी डाल-डाल कयासों के सामने मोदी एक बार फिर से पात-पात साबित हुए. आप जितना सोचेंगे उससे अलग कोई नया ही नाम फाइनल लिस्ट में दिखाई देगा. आप हक्के-बक्के रह जाएंगे. क्या कहें? मुहावरे होते ही इसलिए हैं कि इस तरह की सिचुएशन को बिना ज्यादा शब्द खर्च किए बयां कर पाएं.
चलिए, काम की बात पर आते हैं. राजस्थान में क्या कुछ बयां नहीं हो गया है. पूरे माशरे पर ज़रा बारीकी से नज़र डालते हैं. मप्र, छत्तीसगढ़ के बाद राजस्थान में भी सीएम चेहरे के रूप में एक नया ही नाम भजन लाल शर्मा सामने आया है. मीडिया फिर गूगल करने पर उतारू हो गई. हालांकि थोड़ी बहुत पड़ताल भी करें तो साफ समझ में आता है कि नाम भले ही नया हो, लेकिन इस नाम के पीछे के मायने बहुत गहरे हैं. एक नाम के सहारे बहुत से दांव लगाए गए हैं. दूरंदेशी से भरे बहुत से लक्ष्य साधे गए हैं. आइए, सिलसिलेवार तरीके से समझने की कोशिश करते हैं एक तीर से कैसे लगाए गए हैं बहुत से निशाने...
1. सनातनी-ब्राह्मण खुश, कार्यकर्ताओं का मोरल बूस्टअप
मूल रूप से राजस्थान के भरतपुर निवासी भजनलाल शर्मा प्रदेश महामंत्री के तौर पर संगठन में सक्रिय थे. उन्हें संघ-संगठन का जबर्दस्त वरदहस्त प्राप्त रहा. संगठन के मामले में बेहद अनुभवी भजनलाल ने राजस्थान के पिछले तीन भाजपाध्यक्षों के साथ काम किया है. पार्टी को ग्रासरूट लेवल तक पहुंचाने का काम किया है. ब्राह्मण वर्ग से आने वाले भजन लाल शर्मा जयपुर की सांगानेर सीट से चुनाव जीते हैं. उनका यह भाजपा से पहला चुनाव था. शर्मा लगातार निस्वार्थ भाव से संगठन काम करते रहे हैं जिसका उन्हें प्रतिफल मिला. उनके चयन से पूरे राज्य में फैले लगभग 18 फीसदी ब्राह्मण वर्ग को भी मैसेज देने का काम किया गया है. शर्मा के साथ यह वर्ग और मजबूती के साथ भाजपा के साथ जुड़ जाएगा. यूपी में स्वामी प्रसाद मोर्य और दक्षिण में उदयनिधि स्टालिन जैसे लोग जहां सनातन पर हमला कर रहे थे वहीं, कई पार्टियों ने सनातन पर हमले को अपनी रणनीति में शामिल कर लिया था. इसी क्रम में राज्य में भी कई नेताओं ने आपत्तिजनक टिप्पणियां की थीं, इस दौरान ब्राह्मण लगातार भाजपा के साथ रहा. ब्राह्मण सीएम बनाकर इस वर्ग को साफ संदेश दिया गया है कि पार्टी आपके साथ है. उसे आपकी अपेक्षाओं की परवाह है. वह सनातन पर किए गए किसी भी हमले का डटकर जवाब देगी. इस बार भाजपा से 12 ब्राह्मण उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है. लोकसभा चुनाव में भी इस ब्राह्मण कार्ड से कई सीटों इधर से उधर हो सकती हैं.
इसी तरह मप्र में नए सीएम के रूप में संघ में सक्रिय और साइलेंट कार्यकर्ता मोहन यादव को एकाएक खोजकर सामने लाया गया था उसी तरह से भजनलाल का चयन कर कार्यकर्ताओं को मैसेज दिया गया है कि इस पार्टी में परिवारवाद की जगह काम करने वाले आम कार्यकर्ता का सम्मान है. साधारण कार्यकर्ता को इतने बड़े पद पर बैठाकर निश्चित तौर पर भाजपा ने ना सिर्फ आम कार्यकर्ता में यह विश्वास भरने की कोशिश की है कि पार्टी आपके प्रयासों का सम्मान करती है. यह संदेश अवश्य ही कार्यकर्ता का मोरल बूस्टअप करने काम करेगा.
2. आडवाणी युग की जगह मोदी-शाह युग की शुरुआत
भजनलाल शर्मा के सीएम बनाने के साथ ही राजस्थान में लालकृष्ण आडवाणी युग के क्षत्रपों की जगह मोदी ने भाजपा की नई लीडरशिप गढ़ने की कवायद भी शुरू कर दी है. पूर्व सीएम वसुंधरा को कोई भूमिका न देकर यह साफ कर दिया गया है कि अब वे प्रदेश की राजनीति सक्रिय दिखाई नहीं देंगी. संदेश बहुत स्पष्ट है कि राज्य में अब भाजपा का नया वर्जन 2.0 दिखाई देगा. नए नेता सामने आएंगे. नाम चमकाने के प्रयासों की जगह चुपचाप, पर्दे के पीछे से किए जा रहे हैं काम को महत्व मिलेगा. यह प्रयास अन्य राज्यों में भी दिखाई देंगे. युवाओं को तरजीह मिलेगी. वहीं, मोदी मैजिक पर मुहर भी लगेगी. बीजेपी ने सभी राज्यों के चुनाव में मोदी का चेहरा ही आगे रखा था, इसलिए यह माना जा सकता है कि मोदी मैजिक अभी बना हुआ है. लोकसभा के नजरिये से भी माहौल बनेगा. कार्यकर्ता सक्रिय दिखेगा. उत्साह के साथ मोदी की योजनाएं लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करेगा.
3. ब्राह्मण-राजपूत-दलित का संतुलन
ऐसा नहीं है कि प्रदेश में सिर्फ ब्राह्मण वर्ग को ही महत्व दिया गया है. यहां दो डिप्टी सीएम बनाकर राज्य की अन्य प्रमुख जातियों को भी साधने का काम किया गया है. जयपुर या आमेर राजघराने की दीया कुमारी को डिप्टी सीएम बनाकर जहां राजपूतों को साध गया है. राजपूत पूरे राजस्थान में कई सीटों पर डिसाइडिंग हैसियत रखते हैं. हालांकि इन्हें भाजपा का परंपरागत वोटर भी माना जाता है. पिछले कुछ समय से इस वर्ग के कुछ नाराज़ होने की खबर आ रही थी. दीया का चयन इस वर्ग को साथ बनाए रखने और फिर से पार्टी के करीब लाने में सफल होगा. वहीं, प्रेमचंद्र बैरवा के रूप में दूसरे डिप्टी सीएम दलित वर्ग से आते हैं. बैरवा आबादी भी प्रदेश की कई सीटों पर अच्छी खासी संख्या में है. दलितों पर फोकस करती भाजपा बैरवा जाति के साथ अपने लिए एक और बड़ा लॉयल वोटबैंक खड़ा कर पाने में सफल होगी. जातियों के इस बैलेंस से भाजपा का लक्ष्य आगामी लोकसभा चुनाव में फिर से राज्य की सभी 25 लोकसभा सीटें जीतकर पिछली बार की तरह क्लीन स्वीप करने का रहेगा. इस तरह तीन प्रमुख पदों पर तीन जातियों को स्थान देकर राजस्थान के बड़े तबकों के बीच संतुलन बनाने की कवायद की गई है. विधानसभा स्पीकर के पद पर वासुदेव देवनानी को बैठाकर सिंधी वर्ग को भी पाले में लाने का प्रयास किया गया है.
4. सोशल इंजीनियरिंग का खेल
तीन राज्यों में तीन तबके के नए सीएम चुनकर भाजपा ने कमाल की सोशल इंजीनियरिंग दिखाई है. छत्तीसगढ़ में आदिवासी सीएम, मप्र में ओबीसी तो राजस्थान में ब्राह्मण सीएम बनाकर लोकसभा चुनाव के नजरिये से तीन प्रमुख जातियों को साधा गया है. वहीं, अन्य तबके के डिप्टी सीएम बनाकर दलित, ओबीसी, महिला वर्ग को साफ मैसेज दिया गया है कि पार्टी सभी वर्गों को साथ लेकर चलने में विश्वास करती है. राजस्थान में महिला डिप्टी सीएम बनाकर पार्टी ने मोदी के चार वर्गों महिला, गरीब, युवा, किसान को भी एड्रेस करना का प्रयास शुरू कर दिया है.