आदियोगी को इस देश में आम तौर पर शिव के रूप में पूजा जाता है. विभिन्न छविचित्रण आधारित प्रमाणों के अनुसार माना जाता है कि वे इस धरती पर 15,000 साल से पहले रहे थे. अगर हम उन्हें 15,000 साल से नहीं भूले हैं, तो उन्होंने जरूर कुछ महत्वपूर्ण किया होगा. हालांकि यह मुख्यतया पूजा और रस्मों में बदल गया है, पर आपको समझना चाहिए कि जब आदियोगी आए, तब मानव खुशहाली और आत्मपरकता को वैज्ञानिक तरीके से संभालने के लिए मानव बुद्धि आम तौर पर तैयार नहीं थी. तो यह न जानते हुए कि उनके द्वारा प्रदान की गई टेक्नोलॉजी का खुशहाली के लिए कैसे उपयोग करें, अधिकतर लोग उनको पूजने लगे. सिर्फ कुछ ही लोगों ने इसका उपयोग किया.
हालांकि आदियोगी का दौर बहुत प्राचीन है, पर फिर भी उनका संबंध अतीत से नहीं है. उनका संबंध भविष्य से है क्योंकि सिर्फ 21वीं सदी में, किसी भी पुराने दौर की अपेक्षा, अब ज्यादा लोग खुद के लिए सोच सकते हैं और यथोचित तार्किक रूप से सोच सकते हैं. बस 150-200 साल पहले, दुनिया में ज्यादातर समाजों में (भारत में उतना नहीं)औरतों से सोचने की आशा नहीं की जाती थी. तो, 21वीं सदी में, अब आबादी के पचास प्रतिशत के पास अपनी विचार प्रक्रिया है, और उसे पहली बार पहचान और अहमियत मिली है. आदियोगी ने जो विज्ञान सिखाया (कोई धर्म, दर्शन या विचारधारा नहीं, बल्कि विज्ञान) उसके लिए अब मानवता तैयार है, तकनीकी रूप से सही और आश्चर्यजनक रूप से अच्छी तरह काम करने वाली विधियों के साथ अपनी आत्मपरकता और आंतरिक खुशहाली को संबोधित करने का विज्ञान.
इन 15,000 सालों में आपने कहीं पर भी कभी नहीं सुना होगा, कि किसी व्यक्ति ने किसी के गले पर तलवार रखकर कहा हो, ‘योग करो, वरना मैं तुम्हारा गला काट दूंगा.’ लेकिन आज धरती पर 2.7 अरब से ज्यादा लोग योग के किसी न किसी प्रकार का अभ्यास कर रहे हैं. इन विधियों के जीवित रहने का एकमात्र कारण उनकी क्षमता है.
मनुष्य होने की संभावना
जब आप कहते हैं, ‘मैं एक मनुष्य हूँ,’ तो आप करोड़ों सालों के उस अनुसंधान और विकास का नतीजा हैं, जिसे आपके स्कूल की पुस्तक में एक अकेले शब्द ‘क्रमिक विकास’से बताया गया था. क्रमिक विकास प्रकृति के द्वारा बहुत मेहनत से किया गया अनुसंधान और विकास है, जिसके फलस्वरूप आप धीरे-धीरे इस संभावना में विकसित हुए हैं. एक इंसान सबसे संवेदनशील तंत्रिकीय सिस्टम रहा है और इस धरती पर सर्वोच्च संभव अनुभव पाने में सक्षम है. लेकिन दुर्भाग्य से, कई मनुष्यों ने इसे जीने के तकलीफदेह तरीके के दुःखद प्रसंग में बदल दिया है.
हो सकता है कि तीन साल पहले, आप नहीं जानते थे कि महामारी का क्या मतलब होता है. लेकिन आज हर कोई इसे पक्की तौर पर जानता है. अब विश्व स्वास्थ्य संगठन ‘मानसिक स्वास्थ्य महामारी’ की बात कर रहा है. क्या आपको लगता है कि आठ अरब लोगों को संभालने के लिए पर्याप्त मनोचिकित्सक हैं? नहीं. हमें यह समझने की जरूरत है कि मूल रूप से हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों हमारी जिम्मेदारी हैं. हमारी खुशहाली, खुशी और प्रेम का स्रोत हमारे अंदर ही मौजूद है. आदियोगी इसी के लिए हैं - अपने जीवन के हर पल को उल्लास और परमानंद के साथ कैसे जिया जाए. दुनिया में इस चीज की अभी सबसे ज्यादा जरूरत है.
आदियोगी ने 112 तरीके दिए हैं जिनके जरिए कोई मनुष्य अपनी चरम प्रकृति को प्राप्त कर सकता है. जो लोग प्रतिदिन दस से पंद्रह मिनट लगाने को तैयार हैं, उनके लिए हमारे पास एक तरह का साधन या विधि है. जो व्यक्ति अधिक समय देने को तैयार हैं, उनके लिए हमारे पास एक दूसरे तरह की विधि है. आपकी ललक के आधार पर, 112 जबरदस्त साधन मौजूद हैं. तो, हर किस्म के व्यक्ति के लिए आनंदमय होने की संभावना उपलब्ध है.
लेकिन संभावना बस आनंदमय होने की ही नहीं है. खुशी जीवन का लक्ष्य नहीं है; यह आपके लिए एक संभावना बनने के लिए जरूरी माहौल है. जब आप अपनी ही प्रकृति से आनंदमय होते हैं, सिर्फ तभी उसके फलस्वरूप आपमें पीड़ा का कोई डर नहीं होता. चूंकि आपमें पीड़ा का डर नहीं है, तो आप अपने जीवन में पूरे जोश से आगे बढ़ सकते हैं. वरना, कष्ट का डर आपको इस तरह से सीमित कर देता है कि आप हर समय आधा कदम ही लेते हैं. और गहनता, मधुरता, और अपने अस्तित्व की प्रकृति को जानने के संदर्भ में, आप जीवन की संभावनाओं के सारे पहलुओं से चूक जाते हैं.
एक पीढ़ी के रूप में आपके लिए और भावी पीढ़ियों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि आप खुद को एक स्थिर, उल्लासमय और शानदार इंसान बनाएं. मेरी यह कामना और मेरा आशीर्वाद है कि आपमें से हर किसी को परमानंद में होना चाहिए. अगर आप परमानंद में नहीं हैं, तो कम से कम आप आनंदमय जरूर हों. अगर आप आनंदमय भी नहीं हैं, तो कम से कम आप शांतिमय होने की सुंदरता को जरूर जानें.