नीतीश कुमार ने उद्धव ठाकरे से बातचीत में ऐसी संभावना जतायी है कि 22 जनवरी, 2024 के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के बाद चुनाव की घोषणा हो सकती है. नीतीश कुमार इस बात से खासे चिंतित हैं कि चुनावी तैयारियों के लिए वक्त बहुत कम बचा है. बताते हैं कि INDIA ब्लॉक की धीमी प्रगति को लेकर महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को फोन किया था, और प्रयास तेज करने की गुजारिश की थी.
नीतीश कुमार को भी रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का निमंत्रण भेजा गया है. विपक्षी खेमे के दिग्गज नेताओं सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे को तो निमंत्रण पहले ही मिल चुका है, लेकिन कांग्रेस की तरफ से रहस्य बनाने की कोशिश दिखी है. सोनिया गांधी के अयोध्या कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर कांग्रेस की तरफ से सरप्राइज की बात कही गई है.
हिंदुत्व और सनातन के मुद्दे पर तो विपक्षी खेमे से बयानबाजी पहले भी होती रही है, लेकिन एनसीपी नेता जितेंद्र आव्हाड और बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के ताजा बयान नये सिरे से बवाल मचा रहे हैं. एनसीपी नेता ने अपने बयान पर जो सफाई दी है, उसमें भी अपनी बात को सही ठहरा रहे हैं.
INDIA ब्लॉक की तैयारियां इसलिए भी आगे नहीं बढ़ पा रही हैं, क्योंकि सीटों के बंटवारे का कोई फॉर्मूला अब तक नहीं निकल सका है, और अब कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी मणिपुर से न्याय यात्रा पर निकल रहे हैं. इस बीच सुनने में आया है कि नीतीश कुमार को INDIA ब्लॉक का संयोजक और मल्लिकार्जुन खरगे को विपक्षी गठबंधन का चेयरपर्सन बनाया जा सकता है.
बाकी बातें अपनी जगह हैं, लेकिन राम मंदिर को लेकर विपक्षी खेमे के नेताओं की बयानबाजी यूं ही चलती रही, तो बाद में डैमेज कंट्रोल का स्कोप भी नहीं बचेगा. ऐसे में बेहतर तो यही होगा कि गठबंधन के बड़े नेता सीट शेयरिंग से पहले अयोध्या के राम मंदिर मुद्दे पर अपना स्टैंड तय कर लें - क्योंकि चुनाव मैदान में लोगों को अपना एजेंडा समझाना भी तो पड़ेगा.
राम मंदिर पर विपक्षी नेताओं की बयानबाजी बैकफायर कर सकती है
शिवसेना की तरह एनसीपी में भी दो फाड़ हो चुका है, और जितेंद्र आव्हाड उन नेताओं में शामिल हैं जो शरद पवार के साथ बने हुए हैं. अयोध्या में चल रही तैयारियों के बीच जितेंद्र आव्हाड ने भगवान राम को लेकर जो बयान दिया है, वो शरद पवार के लिए तो मुश्किल खड़ी कर ही सकता है, INDIA ब्लॉक के बाकी नेताओं को भी मुसीबत में डाल सकता है.
भले ही कांग्रेस पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद के बयान को कितना भी उछालने की कोशिश क्यों न करे, विपक्षी नेताओं के बयानों से होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती. कांग्रेस ने स्वामी निश्चलानंद के उस बयान को आगे बढ़ाया है जिसमें वो ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि जिस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जा रहे हों, उसमें उनके जाने का कोई मतलब नहीं रह जाता है. स्वामी निश्चलानंद के ट्रैक रिकॉर्ड को देखें तो वो हिंदुत्व के उस खेमे से आते हैं जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी की विचारधारा को पसंद नहीं करता.
मध्य प्रदेश के रतलाम में हिंदू जागरण सम्मेलन में स्वामी निश्चलानंद ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा, 'मोदी जी लोकार्पण करेंगे, मूर्ति का स्पर्श करेंगे तो मैं वहां तालियां बजाकर जय-जयकार करूंगा क्या? मेरे पद की भी मर्यादा है... राम मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा शास्त्रों के अनुसार होनी चाहिये... ऐसे आयोजन में मैं क्यों जाऊं'.
स्वामी निश्चलानंद के बयान का राजनीतिक पक्ष हो सकता है, लेकिन जितेंद्र आव्हाड ने जो कहा है उसका सीधा सीधा राजनीतिक मतलब निकाला जा रहा है, और चुनावों के दौरान ऐसी बातों को लोग अपने हिसाब से काफी गंभीरता से लेंगे. तेजस्वी यादव की बातों के साथ भी ऐसा ही होगा.
एनसीपी नेता जितेंद्र आव्हाड का दावा है कि भगवान राम शाकाहारी नहीं, मांसाहारी थे और वो शिकार करके खाते थे. बवाल मचने पर अपनी सफाई में जितेंद्र आव्हाड नये सवाल खड़े कर रहे हैं, 'तब राइस नहीं था, तब खाते क्या थे? राजा और राम क्षत्रिय थे, तो क्षत्रिय का खाना ही मांसाहारी होता है... इसमें क्या कॉन्ट्रोवर्सी... राम का खाना क्या था? कोई बता दे कि राम मेथी की भाजी खाते थे.' मंदिर के बहाने खाने की पसंद-नापसंद को बीच में लाकर जितेंद्र आव्हाड कहते हैं, 'बयान पर बिलकुल कायम हूं. भारत को शाकाहारी बनाना चाहते हैं क्या? देश के 80 फीसदी लोग आज भी मांसाहारी हैं.' कहने को तो एनसीपी नेता ने अपनी तरफ से माफी भी मांग ली है, लेकिन उसमें भी शर्तें लागू हैं.
और राम मंदिर को लेकर तेजस्वी यादव ने जो कुछ कहा है, वो भी मौजूदा राजनीतिक माहौल में विपक्ष के लिए चिंता की बात हो सकती है. बीजेपी को निशाना बनाते हुए तेजस्वी यादव पूछ रहे हैं, 'बीमार पड़ोगे तो अस्पताल जाओगे ना? भूख लगेगी और मंदिर जाओगे, तो खाना मिलेगा? वहां तो उल्टा दान मांग लेंगे आपसे'.
विपक्षी खेमे के कई नेता हिंदुत्व की अपनी लाइन को बीजेपी से श्रेष्ठ बताने की कोशिश करते हैं. ऐसे नेताओं में उद्धव ठाकरे से लेकर अखिलेश यादव सभी शामिल हैं. तेजस्वी यादव का बयान भी उसी लाइन पर है, लेकिन ये नीतीश कुमार और उद्धव ठाकरे जैसे नेताओं के लिए भी मुश्किल खड़ी कर सकता है, और हिंदुत्व को लेकर काफी नरम पड़ चुके अखिलेश यादव के लिए भी. जाहिर है, झुलसने की नौबत आई तो नीतीश कुमार और मल्लिकार्जुन खरगे के साथ साथ राहुल गांधी, सोनिया गांधी और शरद पवार पर भी आंच तो आएगी ही.
जितेंद्र आव्हाड की तरह तेजस्वी यादव ने भी अपनी तरफ से सफाई देने की कोशिश की है, 'आप लोगों को जागना होगा... मैं किसी धर्म पर सवाल नहीं उठा रहा हूं. मैं तो खुद मुंडन करवाकर आया हूं... छठ पूजा मेरे भी घर पर होती है. भगवान मेरे दिल में हैं.' बीजेपी को टारगेट करते हुए कहते हैं, ये लोग बस कहते हैं हम भगवा ले आए... क्या ये लोग लाये हैं? हमारे तो तिरंगे में भी भगवा है, हरा भी है... अगर हरा झंडा लेकर घुमेंगे तो कहेंगे कि देखो नफरत पैदा कर रहा है, ताकि लोग आपस में लड़ते रहें.
और जो सबसे बड़ी बात तेजस्वी यादव ने कही है, वो है, 'लाखों करोड़ रुपये जो अयोध्या में खर्च हो रहा है... उतने में कितने लोगों को नौकरी मिल जाती... शिक्षा मिल जाती'.
लेकिन, तेजस्वी यादव की बातों को बीजेपी नेता आम चुनाव में कैसे पेश करेंगे? कभी सोचा है? सनातन के मुद्दे पर भी आरजेडी नेता मनोज झा ने डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन के बयान को ही सही साबित करने की कोशिश की थी.
ये ठीक है कि लालू यादव आम चुनाव में मंदिर बनाम कमंडल की मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन देश की राजनीति जिस नाजुक मौड़ से गुजर रही है, लेने के देने भी पड़ सकते हैं. बेशक विधानसभा और लोक सभा चुनाव का माहौल बिलकुल अलग होता है, लेकिन जातीय जनगणना के मुद्दे का जो हाल अब तक देखने को मिला है, ऐसा तो नहीं लगता कि वो आम चुनाव में भी बहुत प्रभावी होने जा रहा है. खासकर, तब जबकि राम मंदिर के पक्ष में एक माहौल बन चुका हो.
कम वक्त को लेकर नीतीश की चिंता बिलकुल वाजिब है
खबर है कि उद्धव ठाकरे ने नीतीश कुमार से फोन पर बातचीत में कहा है, 'भाई ऐसे कैसे चलेगा? अभी तक हम लोगों ने कुछ नहीं किया... हमारी कोई रैली नहीं हुई... कोई संयोजक नहीं बना... सीट शेयरिंग की कोई बातचीत नहीं आगे बढ़ रही है.'
और सूत्रों के मुताबिक, नीतीश कुमार ने हामी भरते हुए कहा है, 'हां, ऐसा तो है... 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान राम के मंदिर में जो प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है, उसके बाद हो सकता है देश में आम चुनावों की घोषणा हो जाये... तो ऐसे में अब हमारे पास समय बचा कहां है? समय है ही नहीं'.
निश्चित रूप से नीतीश कुमार की चिंता वाजिब है. वक्त वास्तव में बहुत कम बचा है. उद्धव ठाकरे से नीतीश कुमार ने अपनी पुरानी पीड़ा भी शेयर की है. कहा है कि कांग्रेस की तरफ से जो पहल होनी चाहिये, नहीं हो रही है. ये भी पता चला है कि विपक्षी गठबंधन का संयोजक बनाये जाने की बात पर नीतीश कुमार ने उद्धव ठाकरे से कहा है, 'मैं तैयार हूं.' हालांकि, अब तक सार्वजनिक रूप से नीतीश कुमार ऐसी बातों से साफ साफ इनकार करते आये हैं.
विपक्षी खेमे से देखा जाये तो ये बात भी समझ में आ रही है कि नीतीश कुमार अपनी अहमियत बढ़ाने में सफल लगते हैं. ऐसे में जबकि नीतीश कुमार के फिर से एनडीए में चले जाने की चर्चा चल रही हो, अचानक उनको INDIA ब्लॉक का संयोजक बनाये जाने की बात होने लगे, तो क्या समझा जाये. समझ में तो यही आता है कि नीतीश कुमार दबाव बनाने वाली अपनी राजनीति में सफल हो रहे हैं.
वैसे भी अगर नीतीश कुमार पाला बदल कर एनडीए में चले जायें तो INDIA ब्लॉक का मामला तो ठंडा ही पड़ जाएगा. क्योंकि अभी कांग्रेस के वश की बात तो लगती नहीं. जिस तरीके से विपक्षी दलों की हालिया मीटिंग में ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने मल्लिकार्जुन खरगे का नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में उछाल कर राजनीतिक चाल चली, फिर से साफ हो गया है कि राहुल गांधी को लेकर विपक्षी खेमा क्या सोच रहा है.
अब तो दारोमदार नीतीश कुमार पर ही है कि वो 22 जनवरी को अयोध्या जाते हैं या नहीं? और अगर वो जाते हैं तो क्या मल्लिकार्जुन खरगे को भी राम दरबार में हाजिरी लगाने की अनुमति मिलती है - ये मुद्दा ऐसा है कि सीट बंटवारे जैसी चीजें बहुत पीछे छूट जाती हैं.