केशव प्रसाद मौर्य कह रहे हैं कि हमारे आंतरिक सर्वे में हम 78 सीटें जीत रहे हैं. जबकि ब्रजेश पाठक 80 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं. जबकि India Today-Aajtak MoTN survey के मुताबिक यूपी में भाजपा 70 लोकसभा सीटों में जीतती दिख रही है. जान लीजिये कि 2014 के चुनाव में भाजपा ने तब 71 सीटें जीती थीं, जब राम मंदिर नहीं था. भाजपा निश्चित ही जीत के आंकड़े को और आगे ले जाना चाहेगी. भले इसके लिए RLD के जयंत चौधरी को साधना पड़े. जनवरी में जब MoTN सर्वे हुआ था, तब तक BJP-RLD के रिश्ते का जन्म नहीं हुआ था. सवाल यह उठता है कि अगर राम मंदिर की लहर के बावजूद अगर बीजेपी को मात्र यूपी से 70 सीटें मिलती दिख रही हैं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 370 लोकसभा सीटों के टार्गेट का क्या होगा? पर जिस तरह उत्तर प्रदेश की राजनीति 2024 के चुनावों में 2014 वाले मोड में जा रही है उससे तो यह लगता है कि बीजेपी कम से कम 77 सीटें जीत सकती है.
सपा का वोट परसेंट बढ़ना मतलब , बीजेपी के लिए मुश्किल
एमओटीएन की सर्वे बता रहा है कि इस बार समाजवादी पार्टी अपने वोटों में 2019 की तुलना में करीब 12 परसेंट की बढ़ोतरी कर रही है.चूंकि बीजेपी भी 2019 की तुलना में करीब 2 परसेंट की बढोतरी करती दिख रही है इसका मतलब है कि समाजवादी पार्टी अपने विपक्ष के साथियों का हिस्सा काटती दिख रही है. समाजवादी पार्टी की सीट संख्या भी पिछली बार (5) के मुकाबले 2024 में बढ़ती दिख रही है. इस बार समाजवादी पार्टी करीब 7 सीट जीतती हुई नजर आ रही है. मतलब साफ है कि इस बार बीजेपी और समाजवादी पार्टी मे आमने-सामने की दोतरफा जंग है.दोहरे जंग में दोनों पार्टियों में वोट ध्रुवीकरण का खेल होगा, जो बाजी मारेगा वो इस सर्वे से भी अधिक वोट पाने का हकदार होगा. ध्रुवीकरण से फायदा दोनों दलों को होने की उम्मीद होगी.
बीजेपी को मिले वोट क्या इशारा करते हैं
2014 के आम चुनाव में बीजेपी को 71 सीटें मिली थीं, जबकि सहयोगी अपना दल के 2 सांसद लोक सभा पहुंचे थे. बची हुई सात सीटों में से 5 मुलायम सिंह यादव के परिवार को मिलीं, और दो गांधी परिवार को. बहुजन समाज पार्टी को कोई सीट नहीं मिली थी.पर 2019 के चुनावों में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का चुनावी गठबंधन हो गया जिसका फायद विपक्ष को मिला और बसपा को 10 सीट और समाजवादी पार्टी को 5 सीट जीतने में सफलता मिली. मतलब साफ था गठबंधन का असर कुछ खास नहीं पड़ा. खुद अखिलेश अपनी पत्नी डिंपल यादव को नहीं जिता सके. इस बार परिस्थितियां काफी कुछ 2014 जैसी रहने वाली हैं . क्योंकि इस बार समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी एक बार फिर अलग-अलग चुनाव लड़ रहीं हैं. पर देखा जाए तो इस बार 2014 से भी बुरी स्थित हो सकती है विपक्ष की. क्योंकि पिछली बार अमेठी विपक्ष के हाथ से जा चुका है. आजमगढ़ और रामपुर जैसे गढ़ भी विपक्ष के हाथ से निकल चुके हैं. रायबरेली से अगर सोनिया गांधी इस बार चुनाव नहीं लड़ती हैं तो यहां से भी बीजेपी की एक सटी पक्की ही होगी. इस तरह 2014 की परिस्थितियों में बीजेपी को करीब 77 सीट मिलती दिख रही है.
पूर्वी और पश्चिमी यूपी में इस बार बीजेपी मजबूत स्थित में
अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के चलते , ओमप्रकाश राजभर और दारासिंह चौहान के साथ आ जाने , नीतीश कुमार के एनडीए में आने और बहुजन समाज पार्टी के अलग चुनाव लड़ने के चलते परिस्थितियां ऐसी बन रही हैं कि बीजेपी इस बार पूर्वी यूपी की हर सीट जीत रही है.लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी को 16 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था. ये सीटें थीं बिजनौर, अमरोहा, मुरादाबाद, संभल, रायबरेली, घोसी, लालगंज, जौनपुर, अंबेडकर नगर, गाजीपुर, श्रावस्ती, मैनपुरी, सहारनपुर, आजमगढ़, रामपुर और नगीना. इन सीटों के नाम बता रहे हैं कि पूर्वी यूपी और पश्चिमी यूपी में बीजेपी को अधिक नुकसान उठाना पड़ा था. India Today-Aajtak MoTN survey जनवरी का है तब तक आरएलडी और समाजवादी पार्टी एक साथ दिख रहे थे. पर सर्वे होने के बाद की स्थितियां बीजेपी के लिए और भी बेहतर होती नजर आ रही हैं. पश्चिमी यूपी की जिन सीटों को बीजेपी ने 2019 में खो दिया था इस बार आरएलडी अगर बीजेपी के साथ होने से उनके जीतने की प्रत्याशा बढ़ जाएगी. बिजनौर, अमरोहा, मुरादाबाद, संभल ,सहारनपुर में जयंत के आने से स्थिति और मजबूत होगी. साथ ही पश्चिम की कई सीटें बीएसपी और एसपी के एक साथ चुनाव लड़ने के चलते बीजेपी के हाथ से निकल गईं थीं. विपक्ष उन सीटों पर निश्चित कमजोर स्थिति में रहेगा.